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सूत्रकृतांग सूत्र
और सभी सत्त्व डंडे, मुक्के, हड्डी या चाबुक अथवा ठीकरे से मारे जाते हुए या पीटे जाते हुए (तज्जिज्जमाणा वा) अंगुली दिखाकर धमकाए या डाँटे जाते हुए (ताडिज्जमाणा वा) ताड़न (प्रहार) किये जाते हुए, (परियाविज्जमाणा वा) सताए जाते हुए, (किलामिज्जमाणा वा) क्लेश दिये जाते हुए, (उद्दविज्जमाणा वा) उद्विग्न किये जाते हुए (जाव लोमुक्खणणमायमवि हिंसाकारगं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति) यहाँ तक कि एक रोम के उखाड़ने के कष्ट का सा मारने का सा दुःख तथा भय प्राप्त करते हैं। (एवं णच्चा सव्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा, ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा, ण परितावेयव्वा ण उद्दवेयव्वा) यह जानकर किसी भी प्राणी की हिंसा न करनी चाहिए, उन्हें बलात् किसी भी कार्य में नहीं लगाना चाहिए, उन्हें जबर्दस्ती दासदासी आदि नहीं बनाना चाहिए, न उन्हें किसी प्रकार से संतप्त करना चाहिए, न किसी भी प्राणी को उद्विग्न करना चाहिए। (से बेमि जे य अतोता, जे य पड़प्पन्ना, जे य आगमिस्सा अरिहंता भगवंता सव्वे ते एवमाइक्खंति, एवं भासंति, एवं पण्णवेति, एवं परूवेंति) इसलिए मैं (सुधर्मास्वामी) कहता हूँ कि जो तीर्थंकर भूतकाल में हो चुके हैं, जो वर्तमान में हैं, तथा जो भविष्य में होंगे, वे सभी तीर्थंकर भगवान् ऐसा ही उपदेश देते हैं, ऐसा ही भाषण करते हैं, ऐसा ही आदेश करते हैं और ऐसी ही प्ररूपणा करते हैं । (सत्वे पाणा जाव सत्ता ण हंतव्वा ण अज्जावेयव्वा ण परिघेतव्वा ण परितावेयव्वा, ण उद्दवेयवा) वे (भगवान्) कहते हैं कि किसी भी प्राणी को मत मारो, जबरन उनसे अपनी आज्ञा का पालन न कराओ, बलात् किसी प्राणी को दासीदास आदि न बनाया जाए, उन्हें कष्ट न दिया जाए। उन पर कोई उपद्रव न किया जाय, या उन्हें उद्विग्न न किया जाए, (एस धम्मे धुवे णिइए [णिच्चे सासए) यही धर्म ध्रुव है, नित्य है और शाश्वत है, सदा स्थिर रहने वाला है। (लोग समिच्च खेयन्नेहिं पवेइए) समस्त लोक को केवलज्ञान के प्रकाश में जानकर जीवों के खेद (पीड़ा) को जानने वाले श्री तीर्थ करों ने इस धर्म का निरूपण किया है। (एवं पाणाइवायाओ जाव परिग्गहाओ विरए से भिक्खू णो दंत पक्खालणेणं नो दंते पक्खालेज्जा) इस प्रकार प्राणातिपात से लेकर परिग्रह-पर्यन्त पाँचों आस्रवों से निवृत्त साधु दतौन आदि दाँत साफ करने वाले पदार्थों से दाँतों को साफ न करे, (णो अंजणं, णो वमणं, णो धूवणे, णो तं परियाविएज्जा) तथा शोभा के लिए आँखों में अंजन (काजल) न लगावे, न दवा लेकर वमन (कै) करे, तथा अपने वस्त्रों को धूप आदि से सुगन्धित न करे तथा खाँसी आदि रोगों के शमन के लिए धूम्रपान न करे । (से भिक्खू अकिरिए, अलूसए, अकोहे, अमाणे, अमाये, अलोहे, उवसंते परिनिन्बुडे पुरतो आसंसं णो करेज्जा) वह साधु सावध क्रियाओं से रहित हो अलुषक-जीवहिंसा आदि क्रियाओं से रहित हो, अक्रोधी, अमानी, अमायी और लोभरहित हो, वह शान्त
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