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सूत्रकृतांग सूत्र
के पुरुष यद्यपि माता-माता आदि पूर्वकालीन सम्बन्धों का त्याग कर चुकते हैं, तथापि वे आर्य-मोक्ष मार्ग-तीर्थंकरोक्त मार्ग को प्राप्त नहीं हुए या होते हैं, इस कारण चारों ही पुरुष उत्तम श्वेतकमल के समान राजा आदि का पुष्करिणीरूपी संसार से उद्धार नहीं कर सकते, न स्वयं का ही सुधार या उद्धार कर पाते हैं। कामभोगों में फंसकर संसार चक्र - परिभ्रमणरूप दुःख के भागी होते हैं ।
सारांश इस सूत्र में नियतिवादिक नामक चतुर्थ पुरुष का वर्णन किया गया है। नियतिवादी कर्म, काल, ईश्वर आदि को न मानकर एकमात्र नियति को ही जगत् के समस्त पदार्थों का एकमात्र कारण मानते हैं । वे कहते हैं कि कर्म आदि को प्रत्येक सुख या दुःख का कारण मानने वाले रात-दिन चिन्तित, दुःखित रहते हैं, परन्तु नियतिवाद को मानने वाले प्रत्येक सुख-दुःख आदि का कारण नियति को मानते हैं, इससे उन्हें दुःख नहीं होता, न परलोक बनाने की फिक्र होती है, जो कुछ निश्चित होता है, वही मिलता है । परन्तु नियतिवाद का सिद्धान्त यक्तिविरुद्ध एवं भ्रान्त होने से इसे अपनाने वाला पुरुष दोनों लोकों को बिगाड़ लेता है। वह विषयभोगों का मनमाना सेवन करके यहीं फंसा रहता है । मोक्ष नहीं पा सकता।
चारों पुरुषों का वर्णन करने के बाद अब शास्त्रकार पाँचवें पुरुष निःस्पृह भिक्षु के स्वरूप का वर्णन करते हैं
मूल पाठ से बेमि पाईणं वा ६ संतेगइया मणुस्सा भवंति, तं जहा-आरिया वेगे अणारिया वेगे उच्चागोया वेगे णीयागोया वेगे कायमंता वेगे हस्समंता वेगे सुवन्ना वेगे दुवन्ना वेगे सुरुवा वेगे दुरूवा वेगे तेसिं च णं जणजाणवयाई परिग्गहियाई भवंति, तं जहा–अप्पयरा वा भुज्जयरा वा, तहप्पगारेहि कुलेहि आगम्म अभिभूय एगे भिक्खायरियाए समट्टिता सतो वावि एगे णायओ य अणायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता, असतो वावि एगे णायओ य अणायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता। जे ते सतो वा असतो वा णायओ य अणायओ य उवगरणं च विप्पजहाय भिक्खायरियाए समुट्ठिता। पुत्वमेव तेहिं णायं भवइ, तं जहा-इह खलु पुरिसे अन्नमन्नं ममट्ठाए एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा-खेत्तं मे वत्थू मे हिरणं मे सुवन्नं मे धणं मे धण्णं मे कंसं
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