Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
लेकर मरते हैं । मरकर पुनः प्रगट होते हैं और नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं । जैसे पुष्करिणी अनेक प्रकार के कमलों का आधार होती है, उसी प्रकार यह मनुष्यलोक भी नाना प्रकार के मनुष्यों का आधार है । अतः इस तुल्यता को लेकर मैंने मनुष्यलोक को पुष्करिणी का रूपक दिया है। आयुष्मान् श्रमणो ! कर्म को मैंने उस पुष्करिणी का जल कहा है । जैसे पुष्करिणी में जल के कारण कमलों की उत्पत्ति होती है, इसी तरह आठ प्रकार के कर्मों के कारण मनुष्यलोक में मनुष्यों की उत्पत्ति होती है जो कि मनुष्यों द्वारा उपार्जित होते हैं। दोनों में सदृशता होने से मैंने जल को कर्म की उपमा दो है । इन दोनों में विसदशता इतनी-सी है कि एक जगह कमल की उत्पत्ति का कारण जल अवश्य है, किन्तु जल की उत्पत्ति का कारण कमल नहीं है। जबकि कर्म मनुष्यों की उत्पत्ति का कारण भी है और मनुष्यों द्वारा जनित-उपाजित भी हैं। ___ इसके पश्चात् भगवान् कहते हैं-श्रमणो ! मैंने काम-भोगों को पुष्करिणो के कीचड़ से उपमा दी है । जैसे पुष्करिणी के कीचड़ में फंसा हुआ मनुष्य अपना उद्धार स्वयं करने में असमर्थ हो जाता है, वैसे ही काम-भोगों में फँसा हुआ कामासक्त मानव भी अपना उद्धार स्वयं नहीं कर सकता । ये दोनों ही समान रूप से बन्धन के कारण हैं इसलिए इन दोनों की समानता देख कर ही मैंने कामभोगों को मनुष्य लोकरूपी पुष्करिणी का कीचड़ कहा है। अन्तर केवल इतना ही है कि पंक बाह्यबन्धन है, जबकि काम और भोग आध्यात्मिक बन्धन हैं ।।
आयुष्मान् श्रमणो ! जनों और जनपदों को मैंने बहुसंख्यक पद्मवरपुण्डराक कहा है। जैसे पुष्करिणी में नाना प्रकार के कमल होते हैं वैसे ही मनुष्यलोक में नाना प्रकार के मानव निवास करते हैं। इन दोनों में समानता देखकर मैंने मनुष्य लोक में निवास करने वाले मानवों को मनुष्यलोकरूपी पुष्करिणी के बहुसंख्यक कमल बताया है । अथवा जैसे कमलों से पुष्करिणी शोभायमान होती है, वैसे ही मनुष्यों या मनुष्यों के जनपदों (विभिन्न प्रान्तों या प्रदेशों) से मानवलोकरूपी पुष्करिणी शोभायमान होती है। कमल में निर्मल सुगन्ध होती है, वैसे ही मानव में गुणों की सुगन्ध होती है। इस कारण दोनों में समानता है।
जैसे पुष्करिणी के समस्त कमलों में प्रधान एक उत्तम और विशाल श्वेतकमल है, इसी प्रकार मनुष्यलोक में सभी मनुष्यों में श्रेष्ठ और सब पर शासनकर्ता नरेन्द्र होता है। इसीलिए मनुष्यलोकरूपी पुष्करिणी में सर्वश्रेष्ठ श्वेतकमल से शासक की उपमा दी है। शासक शीर्षस्थ अनुशास्ता होता है, वह अपने पर भी शासन करता है, दूसरों पर भी; वैसे ही पुष्करिणी का सर्वश्रेष्ठ राजा-कमलों का शीर्षस्थ शासक-राजा-बही प्रधान पुण्डरीक (श्वेत) कमल है।
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