Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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सूत्रकृताग सूत्र
सिद्ध नहीं होता । अन्वय और व्यतिरेक के द्वारा शरीर ही आत्मा है, ऐसा सिद्ध होता है । इस सम्बन्ध में वे निम्नलिखित युक्तियाँ (हेतु दृष्टान्त के रूप में) प्रस्तुत करते हैं
(१) मरने के पश्चात् मृत व्यक्ति को जलाने के लिए जो लोग श्मशान में जाते हैं, वे उसे जलाकर अकेले घर लौटते हैं, उनके साथ मृतव्यक्ति का जीव नामक कोई भी पदार्थ साथ नहीं आता।
(२) चिता में जब मृत व्यक्ति का शरीर जलता है, उस समय जीव नामक कोई पदार्थ शरीर को छोड़कर अलग जाता हुआ नहीं दिखाई देता। श्मशान में तो उस शरीर की जली हुई सिर्फ कपोतवणं की कुछ हड्डियां ही शेष रह जाती है, उनके सिवाय कोई भी अन्य विकार वहाँ नहीं दिखायी देता, जिसे हम जीव का विकार कह सकें । अतः आत्मा शरीररूप ही है-शरीररूप परिणाम से विशिष्ट कायाकार ही जीव है, शरीर से अतिरिक्त कोई जीव नहीं है। यही ज्ञान यथार्थ और सब प्रमाणों में श्रेष्ठ प्रत्यक्ष प्रमाण से सिद्ध है । जो लोग शरीर को अन्य और आत्मा (जीव) को अन्य बताते हैं, वे वस्तुतत्त्व को नहीं जानते हैं।
(३) जगत् में जो भी वस्तु होती है, वह किसी वस्तु से छोटी या किसी वस्तु से बड़ी अवश्य होती है, तथा उसकी अवयव रचना भी किसी खास किस्म की होती है, तथा वह काली, पीली, नीली या सफेद आदि रंग में से किसी रंग की होती है एवं वह या तो दुर्गन्धित होती हैं या फिर सुगन्धित होती है, तथा वह कोमल या कठोर अथवा ठण्डे या गरम आदि स्पर्शों में से किसी एक स्पर्श वाली अवश्य होती है, और वह तीखा, कड़वा, कसैला, खट्टा, मीठा आदि रसों में से किसी एक रस से युक्त भी अवश्य होती है । परन्तु इनसे रहित कोई भी वस्तु नहीं होती । अतः यदि शरीर से भिन्न आत्मा (जीव) नाम की कोई वस्तु होती तो वह अवश्य ही शरीर से छोटी या बड़ी होती, काले, पीले आदि में से किसी एक रंग की होती, वह सुगन्धित होती या दुर्गन्धित होती, कोमलादि स्पर्श में से किसी एक स्पर्श से युक्त होती, तथा मधुर आदि रसों में से किसी एक रस वाली अवश्य होती, परन्तु ये सब आत्मा में बिलकुल नहीं पाये जाते, अतः शरीर से भिन्न आत्मा या जीव नामक किसी भी वस्तु के सद्भाव या अस्तित्व के विषय से कोई प्रमाण या युक्ति नहीं है।
(४) जो वस्तु जिससे भिन्न होती है, वह उससे अलग करके दिखायी भी जा सकती है। उदाहरणार्थ-तलवार म्यान से भिन्न है, वह म्यान से बाहर निकालकर पृथक रूप से दिखलाई जा सकती है, इसी प्रकार मुंज नामक घास से ईषिका (सलाई), माँस से हड्डी, तिल से तेल, ईख से उसका रस, और अरणि से आग अलग
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