Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
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जीवन है। (आदहणाए परेहि निज्जइ) शरीर जब मर जाता है, तब उसे जलाने के लिए दूसरे लोग ले जाते हैं, (सरीरे अगणिझामिए अट्ठीणिं कवोतवाणि भवति) आग से जब शरीर जल जाता है, हड्डियाँ कपोतवर्ण की हो जाती हैं (आसंदीपंचमा पुरिसा गामं पच्चागच्छति) इसके पश्चात् मृत व्यक्ति को श्मशान भूमि में पहुचाने वाले जघन्य चार पुरुष मृत शरीर को ढोने वाली मंचिका (अर्थी) को लेकर अपने गाँव में वापस लौट आते हैं, (एवं असंते असंविज्जमाणे) ऐसी स्थिति में यह स्पष्ट हो जाता है कि शरीर से भिन्न कोई जीव नामक पदार्थ नहीं है, क्योंकि वह शरीर से भिन्न प्रतीत नहीं होता । (जेसि तं असते असंविज्जमाणे तेसि तं सुयक्खायं भवइ) अतः जो लोग शरीर से भिन्न जीव को नहीं मानते, उनका यह पूर्वोक्त सिद्धान्त ही युक्तियुक्त समझना चाहिए । (अलो जीको भवइ, अन्नं सरीरं) जो लोग यह कहते हैं किजीव पृथक् है, और शरीर पृथक है, (ते एवं नो विपडिवेदेति) वे इस प्रकार जीव और शरीर को पृथक्-पृथक करके नहीं बता सकते । वे इस प्रकार नहीं बता सकते कि (आया दीहेति वा हस्सेति वा, परिमंडलेति वा वटेति वा तंसेति वा चउरसेति वा आयतेति वा छलंसिएति वा अठंसेति या किण्हेति वा णीलेति वा, लोहियहालिद्दे सुविकल्लेति वा सुब्भिगंधेति वा दुब्भिगंधेति वा तित्तेति वा कडएत्ति वा, कसाएति वा अंबिलेति वा, महुरेति वा कक्खडेति वा मउएति वा गुरुएति वा लहुएति वा सिएति वा उसिणेति वा निद्धति वा लुक्खेति वा) यह आत्मा लम्बा है, या छोटा है, यह चन्द्रमा के समान मण्डलाकार है, अथवा गेंद की तरह गोल है, यह त्रिकोण है या चतुष्कोण है, वह चौड़ा है, या यह षट्कोण है, अथवा अष्टकोण है, यह काला है या यह नीला है, अथवा यह लाल है या पीला (हल्दी के रंग का) है अथवा यह श्वेत है। यह सुगन्धित है या दुर्गन्धित है, यह तीखा है या कड़वा है, अथवा कसैला है, खट्टा है या मीठा है, अथवा यह कर्कश (खुरदरा) है या मुलायम है, यह भारी है या हलका है, यह ठण्डा है या गर्म है, यह चिकना है या रूखा है, (एवं असंते असंविज्जमाणे जेसि तं सुयक्खायं भवइ) इसलिए जो लोग आत्मा को शरीर से भिन्न नहीं मानते हैं, उनका यह मत ही युक्तिसंगत है, (अन्नो जीवो अन्नं सरीरं) परन्तु जो लोग कहते हैं कि जीव अन्य है, शरीर अन्य है ; (ते णो एवं उवलन्भंति) वे इस प्रकार से उपलब्धि (प्रतीति) नहीं कर सकते। (जहाणामए केइ पुरिसे कोसाओ असि अभिनिवट्टित्ताणं उवदंसेज्जा अयमाउसो ! असी अयं कोसी) जैसे कि कोई व्यक्ति म्यान से तलवार को बाहर निकालकर दिखलाता हुआ कहता है-"आयुष्मान् ! यह तलवार है और यह म्यान है।" (एवमेव णत्यि, केइ पुरिसे अभिनिव्वट्टत्ताणं उवदंसेत्तारो अयमाउसो आया इयं सरीरं) इस तरह कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर से जीव को पृथक् करके बतला सके कि आयुष्मान् ! यह तो आत्मा है और यह (उससे भिन्न) शरीर है। (से जहा
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