Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutang Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Sudharmaswami, Hemchandraji Maharaj, Amarmuni, Nemichandramuni
Publisher: Atmagyan Pith
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प्रथम अध्ययन : पुण्डरीक
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गति-पराक्रम का ज्ञाता था, तभी वह श्वेतकमल को पाने में सफल रहा भिक्ष ने अपनी सफलता के लिए पहले उक्त असफल व्यक्तियों से प्रेरणा ली, स्वयं का निरीक्षण-परीक्षण किया और जब यह निर्णय कर लिया कि मैं इस श्वेतकमल को पा सकता हूँ, तब तत्काल श्वेतकमल को आवाज देकर अपनी आत्म-शक्ति के बल पर पुष्करिणी से बाहर निकाल लिया ।
मूल पाठ
किट्टिए नए समणाउसो ! अट्ठे पुण से जाणियन्त्रे भवइ, भंते ! त्ति समणं भगवं महावीरं निम्गंथा य निग्गंथीओ य वंदंति नमसंति वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी- किट्टिए नाए समणाउसो ! अट्ठ पुण से ण जाणामो समणाउसोत्ति, समणे भगवं महावीरे ते य बहवे निगंथे य निग्गंधीओ य आमंतित्ता एवं वयासी-हंत समणाउसो ! आइक्खामि विभावेमि किमि पवेदेमि अट्ठ सहे सनिमित्तं भुज्जो भुज्जो उवदंसेमि से बेमि ।। सू० ७
२७
लोयं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! पुक्खरिणी बुइया, कम्म च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! से उदए बुइए, कामभोगे य खलु मए अप्पा हट्ट समणाउसो ! से सेए बुइए, जणजाणवयं च खलु मए अप्वाह समणाउसो ! ते बहवे पउमवरपोंडरीए बुइए, रायाणं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! से एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइए, अन्नउत्थिया य खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! ते चत्तारि पुरिसजाया बुइया, धम्मं च खलु मए अप्पाट्टु समणाउसो ! से भिक्खू बुइए, धम्मतित्थं च खलु मए अप्पा हट्टु समणाउसो ! से तीरे बुइए, धम्मकहं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! से सद्द े बुइए, निव्वाणं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! से उप्पाए बुइए, एवमेयं च खलु मए अप्पाहट्टु समणाउसो ! से एवमेयं बुइयं ॥ सू० ८ || संस्कृत छाया
कीर्तिते ज्ञाते श्रमणाः आयुष्मन्तः ! अर्थः पुनरस्य ज्ञातव्यो भवति । भदन्त ! इति श्रमण भगवन्तं महावीरं निर्ग्रन्थाश्च निन्थ्यश्च वन्दन्ते नमस्यन्ति वन्दित्वा नमस्कृत्य एवमवादिषुः कीर्तिते ज्ञाते श्रमण आयुष्मन् अर्थ पुनरस्य न जानीमः । श्रमण ! आयुष्मन् इति । श्रमणो भगवान् महावीरस्तान् बहून् निर्ग्रन्थान् निर्ग्रन्थींश्च आमन्त्र्यैवमवादीत् - हन्त श्रमणा आयु
!
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