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अखातृस
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अगइधना
अस्त्रानुस ।khritis यु) जालो करनव; करम- अगः agah-सं. प. (1) पहाइ, पर्वत-हि.
कल्ला, गोभी भेद ( will cabbat.)। (Mountain) (२) एक वृक्ष । (३) श्रल नह khlah एक कंटकयुद्ध बूटी हैं जो पत्थल (४) सर्प (५) मूर्य । पहाड़ श्राग्नेय बालिश्न के बराबर होती है। पुष्प नीले एवं
व सौम्य गुण भेत मे दो प्रकार के होते हैं । स्वेत और पत्ते कार होते हैं।
इनमें विन्ध्य पर्वत श्राग्नेय गुण युक और
हिमालय सौम्य गण यक है। भाग्नेय गण अरूलातhat. -अ, (च) व.)विस्त (ए)
विशिष्ट पहाड़ों में होने वाली औषधियों अग्नि व)) यूनानी वैद्यक के मतानुसार खिल्त ( दोप)
गुण विशिष्ट होती है, और सोमगुण विशिष्ट चार हैं, यथा---पौदा (वान ) सफ़रा (पिन)
पनों में होने वाली ग्रीपधियाँ मोमगुण विशिष्ट बलास (का, श्नेमा) और च न (रक्र)
होती हैं। भा...! शारीरिक---द्रव (तरी) अथात् शरीर की यह चारों रतूयने (नरी, स्निग्धता) जो भोजन के अगई ngni-t. संज्ञा पु. (?) चलता की प्रथम परिवर्तन द्वारा उन्न होगी। हार्स
जाति का एक पेड़ हो अवध, बंगाल, मध्यदेश (Lumors) 0
और सद्रास में बहुतायत में होता है। इसकी
लकड़ी भीतर सफेबीलिए हप बाल होती है। श्रखलीलल मलिक akhiltu-malika
जहाजों और मकानों में लगती है। इसका अपभ्र० इकलीलुल्मलिक, ताज बादशाहती।
कोयला भी बहुत अच्छा होना है। इसके पत्ते अरशम akhshan . अ। ग्वश्म रोगी, घ्राणज
दो दो फुट लम्बे होते हैं और पत्तल का काम संगी। वह रोगी जिसकी घ्राण सक्रि नाश हो गई भी देने हैं। इसकी कली और करचे फलों की हो अर्था 1. जो वस्तुओं के गन्ध को न मालम
तरकारी बनती है। कर सके । अॉसनेटिक (AROsmatic.)
अगज ayaja-हि० संज्ञा पु० पर्बन से उम्पन्न
होने वाला । शिलाजीत। अस्त्र म. akhsi-अ० मोबर, ग । डङ्ग( On:)
अगजः aga jah-सं० प. (:) पाई धनियाँ, फासेज ( Forces) इं"।
नैपाली धयियाँ, तुम्बुरु-हि.) । नुम्बुरुः, आर्ट अरुसामुलमkhsamulaim-अ) पलकों
धान्यकम्-सं० । काँचधनम्-यं । Extecaril के किनारों के मिलने का स्थान ।
agulocha ( २ ) बन्दकः-सं० यन्दा अव सीनह.khsinah-जङ्गली राई(Brassic
बाँदा-हिं० । बाँदड़ा । बरगाछा--बं. A payafuncil, Titltd.)।
sitispliant (Epithe ntdrum Tasstt. अग -१० संज्ञा पु. [सं० अङ्ग] मूढ़ अन t um)| जान । अंग, शरीर,-६० सं० पु० [सं०
अगजन avajani--पं. भवानी त्रुटी । मे मो०। अङ्गारी ] ऊख के सिरे पर का पतला भाग जिममें गाः बहुत पास २ होती है, और रम अगजम् agin.jn-m-सं० क्ली. शिलाजतुः, शिलाफीका होता है। अगौरा | अगौरा । वि० [.. ।जीत ( Bitumcn ) i० मा० । श्रा मूढ़, अनजान, अनाड़ी | वि० सं० (१). अगट agata-हिं संज्ञा पु. [देश] भिक घा न चलने वाला । अचर । स्थावर । (२) टेढ़ा मांस बेचने वाले की दुकान । चलने वाला।
- अगड़धत्ता aar and hatta--हि. प. (१)द्रोण अगंड ganda-it० सं० पु. (सं०) घर से पुप्पी, गूमा । (२)हि. वि. ( अग्रोद्धत, बढ़ा जिसके हाथ पैर कट गए हों।
ना] लम्बा नगा । ऊँचा (श्रेष्ठ) अढ़ा चढ़ा
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