Book Title: Panchkappabhasam
Author(s): Labhsagar
Publisher: Agamoddharak Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमोद्धारक-ग्रन्थमालायाः द्विपञ्चाशं रत्नम् णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्त / आगमोद्धारक-आचार्यप्रवरश्री आनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / DAWRASE खमासमणसिरिसंघदासगणिविरइयं पंचकप्पभासं (पञ्चकल्पभाष्यम्) 000000 PAN संशोधकः प. पू. गच्छाधिपतिआचार्य श्रीमन्माणिक्यसागरसूरीश्वरशिष्यः शतावधानी मुनिराज-लाभसागरगाणः Con वीर सं. 2498 विक्रम सं. 2028 आगमो. सं. 23 प्रतयः 300 [अमूल्यम् Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगमोद्धारक-ग्रन्थमालायाः द्विपञ्चाशं रत्नम् णमोत्थु णं समणस्त भगवओ महावीरस्म / आगमोद्धारक-आचार्यप्रवरश्री आनन्दसागरसूरीश्वरेभ्यो नमः / खमासमणसिरिसंघदासगणिविरइयं पंचकप्पभास (पञ्चकल्पभाष्यम्) .. संशोधकः-- प. पू. गच्छाधिपति* आचार्य श्रीमन्माणिक्यसागरसूरीश्वरशिष्यः a शतावधानी मुनिराज-लाभसागरगणिः वीर सं 2428 विक्रम सं. 2028 आगमो. सं. 23 / मतयः 300 [अमूल्यम् Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक : आगमोद्धारक-ग्रंथमालाना एक कार्यवाहक शा. रमणलाल जयचन्द्र कपडवंज (जि. खेडा) द्रव्यसहायक 500-0. गं. भा. रतनबाइ रतनचंद पटणी येवलावालाना श्रेयार्थ. हा. डॉ. कांतिलाल रामचंद शाह नंदरबार. मुनिराजश्री अमीसागरजी महाराजना सदुपदेशथी 250-0. सरसपुर जैनसंघ शानखातामाथी 250-0. डभोइ जैनसंघ शानखातामांथी. मुद्रक : वसन्त श्रीपाद सातवलेकर, भारत-मुद्रणालय, स्वाध्याय-मण्डल, पोस्ट- 'स्वाध्याय-मण्डल (पारडी)' पारडी [जि. बलसाड] Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना आदि- वर्तमान दृश्यमान जगतना नकशाना विशाल फलक उपर नजर करतां जणाशे के स्थानिक वसती तरीके जैनो हिंदुस्तान सिवाय हालमा क्याय देखाता नथी. भारतमा पण जनोनुं प्रमाण थोडं छे, परंतु विश्वने अपाएल सूक्ष्मतप तत्त्वज्ञान, उच्चतम आदर्शो, कठिनतम आचारी, अन श्रेष्ठतम संस्कृति. आ चार महान् वारसाथी अल्पसंख्य जैनो आजे पण गौरवान्वित छे, अने सदा रहेशे कारण विश्वने अपाएल आ अत्युत्तम वारसो ए अज्ञान अने अशांत जगतने भौगिक विलासना क्रूर पंजामाथी छोडावी निरव शाश्वत शांति रूप आध्यात्मिकताना उच्च शिखर पर स्थापन करवानुं सामर्थ्य धरावे छे. आ सामर्थ्यनी प्रतीती आजे पण थइ शके छे. रहस्य--- सूक्ष्मदृष्टिथी अवलोकन करतां समजाशे के- उपरोक्त वारसामा जे सामर्थ्य रहेल छे, तेनी पश्चाद्भमां एक रहस्य समापलं छे, ते रहस्य ए छे के- आ कल्याणकारी उच्चतम एवा वारमाने विश्व समक्ष सौ प्रथम रजु करनार परमतारक जगत्पूज्य तीर्थकर परमात्माओ छे. आ तीर्थकर परमात्माओ सर्वश हता तेथी जगतना सर्व पदार्थोने यथार्थ रूपे जाणीने अने जोइने पछी जगत् समक्ष रजु कर्यां छे. तेमां तेमना मानसतरंगोने कोई स्थान नथी. तेमज तेओए निर्देशेल आचारोना आदर्शोमां भेदभावनुं पण स्थान नभी, कारण तेओ वीतराग छे. भगवंतो द्वारा निर्दिष्ट सिद्धान्तोमा क्यांय अपूर्णता नथी, कारण तेओर जणावेल मुख्य सिद्धांत अनेकान्तवाद ए सनातन सत्यनी पीठिकाज छे. आ बधुं त्यारे ज समजावी शकाय ज्यारे तेना प्ररूपक सर्वज्ञ होय. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्वश्चत्व वीतरागत्व- तीर्थकरो सर्वज्ञ होवाना अनेक पुरावा छे. तेमांनो एक आ पण छे के- तेओए जणावेल तत्त्वज्ञानने जाणवा अने संपूर्णपणे समजवानो सौ कोइने अधिकार छे. इतरो मान छ तेम एक व्यक्ति पूरता ईश्वरत्व-सर्वज्ञत्वने नहि. जैनदर्शन माने छे अने जणावे छे के- जगतनो कोइपण प्राणी ईश्वर-सर्वज्ञ थइ शके छे, अने आ तत्त्वज्ञानने प्रत्यक्ष जोइ शके छे. सवाल छे तेना माटे करवी पडती कठोर साधनानो. सर्वज्ञ थवा माटे अनादिकालीन कर्मोने आत्माथीं दूर करवा पडे छे अने ते माटे कर्मबंधना हेतुरूप काम, क्रोध, राग, द्वेष अने विषय विकारनी दीर्घकालीन वासनाओ त्यागवी पडे छे. आ बधुं एकदम नष्ट नथी थतुं परंतु प्रथम मार्गानुसारीपणु, बोधिबीजप्राप्ति, सम्यक्त्व प्राप्ति देशविरति, सर्वविरति विगेरेनी प्राप्ति बाद क्रमशः आ वासनाओ नष्ट थाय छे. आत्मानुं शुद्ध स्वरूप प्रगट थतुं जाय छे. आखरे चार घाती कर्मो- प्रथम मोहनीय कर्म पछी अंतर्मुहूर्त्तमां ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय मूलथी नष्ट करी केवलज्ञान प्राप्त करे छ. अने साथेज सर्वज्ञ थाय छे. आत्मिक सुखरूप आध्यात्मिकताना उच्चशिखरने प्राप्त कर छे. सर्वज्ञत्व प्राप्तिना प्रयासोमां मुख्यरूप सर्वविरति छ आनी प्राप्ति बाद कठोर साधनानी शरूआत थाय छे. तेमां वारंवार स्खलना न थाय ते माटे मुनिओना आचारो विगेरे सर्वविरति स्वीकारनारे बराबर समजवा जाइए. एना माटे जैनदर्शनमा घणां शास्त्रो छे. आगममां निर्दिष्ट चार अनुयोगमां पण महत्त्वनुं स्थान चरणकर णानुयोगनुं छे. बाकीना त्रणे अनुयोगो पण आना माटे ज छ. छेदसूत्रो बहुलताए मुनिजीवनना आचारने आश्रयीने चौद पूर्वधरं एम्चेला छ. आमांनुं एक छेदसूत्र छ- 'बृहत्कल्पसूत्रम् ' अ छेदसूना अर्थने विस्तारथी समजाववा नियुक्त भाष्य-चूर्णि- टीका वगैरे रचाया छ तवी रीते बृहत्कल्पसूत्र (छदसूत्र ) ना नामनिक्षेपाने Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (5) आश्रयाने 'द्रव्यकल्प' आ शब्द उपर बे भाष्य रचायां छे 1 लघुपंचकल्पभाष्य 2 बृहत्पंचकल्पभाष्य. माहीती- लघुपंचकल्पभाष्य ए कोई स्वतंत्रकृति जणाती नथी. परंतु बृद्भाष्यमांनो उद्धृत संक्षिप्त भाग जणाय छे. 184 गाथात्मक लघुभाष्यनी एक प्रति श्री जैनानंदपुस्तकालय सुरतमां छे. तेमांनी 84 गाथाओ छे तेनो आ बृहद्भाष्यमा समावेश था जाय छ. प्रस्तावनाने अंते 184 गाथाओनो बृद्भाष्यांतर्गत क्रमांक जणाकोश. ते उपरथी ख्याल आवा शकशे. बृहद्भाष्यनी 2674 गाथा छ श्लोकात्मक ग्रंथान 3928 छे. जैनानंदपुस्तकालय सुरतनी एक प्रति अनुसार 2175 ग्रंथान छ. श्रुतदेवीनी स्तुतियुक्त एक गाथा घणी प्रतोमा बेल्ल जोवा मल छे. पंचकल्पनुं प्रमाण 1633 छे. आ टीपनकमा पंचकला सूत्र मूल अने भाष्य बंने अलग जणावाया ले. परंतु खरखर आम नथी बंने एक छे. भाष्यकार संघदासगणि 2572 श्लो. 3035 तया चूर्णी 3000 / 3136 नुं जणावायुं छे. विषय- मुनि जीवन ए कठीन साधनानी भूमिका छे. अनादिकालीन विषयवासनाथी विरुद्ध संयमजीवननी अवस्था घडाएली छे. संयम साधनानी पगदंसीए पग मांडना आत्माने रस्ताला भोगादि पुष्पानी सुकोमलता प्राप्त थती नथी. प्राप्त थाय छ विघ्न-परिवह रूप कंटकनी तीक्ष्णता. कर्मसत्ता पण तेनी साम पडे छ, अने दरेकरीते ते मागथी पाछा हठाववानो प्रयास कर छ. अनेक जातना प्रलोभनो तनी सामे मूके छे. आवा समये सयमजीवनमां दृढ रहेवू ने आगल वधवं मुश्केल बनी जाय छ. आ वधानी सामे जो मुनित्व स्वीकारनार व्यक्ति दृढ होय योग्य होय तो स्वीकार्या बाद पोताना कल्पो-आचारोनुं मान मेळवे अने तेमां-पालनमां सजाग बने उत्सर्ग- अपवादने Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुरुनिश्राए समजे, अपवादना अवसरे अपवादनुं आचरण करी प्रभु आज्ञामां स्थिर रही आत्मकल्याणमां उद्यत बने. प्रस्तुत आष्यमां पण आ हाद रजु करवामां आव्युं छे. प्रथम गाथामां अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामिने नमस्कार, पछी 11 गाथाओमा आद्यगाथाना विवरणात्मक पुनः शासनना प्रभावक जणावी अद्रबाहुस्वामिना 'बहूभद्र' 'सुभद्र' विगरे. विशेषणा युक्तस्तुति, त्यारबाद आठ गाथामां ए गाथाना दोनुं विवरण, तमने नमस्कार करवानुं कारण, तेनो प्रत्युत्तर, नवमा पूर्वमांथीत्रण छेद सूत्र उद्धत कर्यानो उल्ख, सूगडांगनी पहलां आना अध्ययन- कारण, भावी मुनिओ विरे अनुकंपा, हितवुद्धि, दुःषमकालना प्रभावन वर्णन, सूत्रग्राहकनी योग्यतः, लद्वार, जिनकल्प, स्थविरकल्प, पुलाकादि पांच प्रकारना चरित्र ओ, सामायिकादि चारित्र, मिथ्शत्वना षट्प्रकार, कला शब्दना अनेकार्थो, मनुष्य जीवकल्पना भेदा, दीक्षाने योन, पाल प्रव्रज्याना कान णो, मिष्य चोरोना दोषों, छंदा रोषादि प्रव्रज आदि विषया छ अंन वीस प्रकारना कुलो छल्ले स्थापनाकुलना वर्णन साथे ग्रंथ समाप्त थाय छे. भाष्यमां पांच प्रकार 2-7.50-60-42 प्रकारथी कल्पनु विस्तारथी वर्णन करवामा आव्युं छे. आ बाबत गाथा १७४मां जणाववामां आव्यु छ. . 'विशेषता- तीर्थकरनी स्तुतिने बदले भद्रबाहुस्व मिनीज स्तुति छे. जे एक नविनता, जोके एम करवाना हेतुनो उल्लख गाथामां भाष्यकारे स्वयं कर्यो छ. 1 प्रसंगोपात ए पण जणावू छु के-लघुभाष्य पर रचाएल छे ते पंचकल्प चूर्णिनी जैनानंद एस्तकालय सुरतनी एक प्रतिना पत्रांक 2-1 उपर सिद्धसेन क्षमाश्रमण नामनिर्देशपूर्वक तेमने रचेली एक गाथा 'बालाइयणुकंपा.' चूर्णिकारे जणावी छे. पत्र 5-1 Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (7) गाथा 1335 मां चतुर्दश पूर्वधरने पण तीर्थ तरीके जणाव्या छ. भाष्यकारे जने गाथासूत्र तरीके जणावी छ ते 558-552-560 मी गाथाओमां निर्दिष्ट प्रवज्याना प्रकारो अन्यत्र क्यांय प्राप्तशास्त्रोमां जोवा मलता नथी. गाथा 163 नुं उत्तरार्ध 'आसज्ज उ सोयारं' आ पद् आवश्यक-नियुक्तिनुं छे ( गाथांक 228) 1 ली गाथा दशाश्रुतस्कंधनियुक्तिनी आद्य गाथा छे. एम न होई शक क-- आ गाथा प्रस्तुत या अन्य भाष्यादिनी गाथा होय अने ते पाछलथी नियुक्तिमा मिश्रित.थइ गइ होय ? कारणके भद्रबाहुस्वामि स्वयं तो पोतानी स्तुति न ज करे? भाष्यकार- भाष्यकारतरीके मामान्यतया संघदासगणिश्रमाश्रममा अने जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण अति सुप्रसिद्ध छे. तेमां पण जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणनी ख्याति महाभाष्यकार तरीकेनी छे. एक संघदासर्गाण वाचक थया छे. त वसुदेवहिंडिना प्रथमखंडना प्रणता छ. तेनाथी भाष्यकार संघदालगाणिक्षमाश्रमण जुदा छ प निर्विवाद छे क- वसुदेवहिंडिकार वाचक छ अने भाष्यकार क्षमाश्रमण छे. भाष्य अथवा चूर्णिमां क्यांय भाष्यकर्ता तरीके संघदाल नाण क्षमाश्रमणना नामनो तेमज अन्यकोइ नामनो निर्दा मलतो नी भाष्यना हस्तलिखित प्रतिओने अंत कर्ता तरीक संघदालक्षमाश्रयण आवो निर्देश प्राप्त थाय छे. 'षण्महावता' आवा उल्लख छे तथा 7-1. - उपर 'सिरिअज्जखमासमण धम्मगणि खमासमण वाचकखमासमण (?) तथा 11-1 उपर ' जहा अज्जगोविंदा' वि० उल्लेख प्राप्त थाय छे. 560 मी 'पल्लिसूरा' गाथाने चूर्णिकारे संग्रहणीनी गाथा तरीके जणावी छे 2 मारी पासे त्रण प्रति हस्तलिखित छे. तेमां अंते 'संघदाससमाश्रमण' शब्द लख्यो छे परंतु अत्रे अने ग्रंथादिमां गणिशब्द Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (8) आ महापुरुषनी विद्यमानतानो समय निर्देश पण चोकस प्राप्त थतो न होवाथी तथा ते पूज्यधीना जीवन कवन विषे कोई खास नोधो-उल्लेखो प्राप्त न होवाथी आ महापुरुषो विषेनी घणी बाबतो अनिर्णीत रहे छे. तेथी ए पण निर्णीत थइ शकतुं नथी. साखा नामना रचयिताए रचेला भिन्न भिन्न ग्रंथोना कर्ता एकज क अन्य! जेम कल्पलघुभाष्यना कर्ता तरीके पण संघदाप गणिक्षाश्रमणनाम आवे छ, अने प्रस्तुत भाष्यना कर्तार्नु नाम पण आज छ. व प्रश्न थाय छे के- बंनना कर्ता पक के अन्य समयनिर्देश प्राप्त न थतो होवार्थी आ बधुं अनिर्णीत रहे छे... सामान्यतया तीर्थकरो सिवाय कोइ जन्मथी महान् होनी . व्यक्तिओ महान बने छ, चामशी ना पण कार्यथो. आया महान् पुरुषांना जीवनमां नाम नहिं पण काम वणाइ गएलु होय छ. ए कामज विश्वनी अन्य व्यक्तिओना हृदयसिंहासन उपरममा नामने सम्राट तरीके स्थापे छे, अने चिरस्थायी बनावे छे. आज प्रमाणे भाष्यकार भगवाने पण भाष्यमां क्यांय पोतानो नामनिर्देश सुद्धा कर्यों नथी तो पोताना जीवनने लगती बाबतनो उल्लेख ज क्यांथी होय? तेमनी पछीना ग्रंथकारो या इतिहासकारोए पण एमना विषनी विगती जणावी नथी, अने जणावी होय तो आपणने प्राप्त नथी एटले एटलं मान रह्य छ के-आ महापुरुषना जीवन विषे अंधकारमा छीए. अलबत्त प्रस्तुत उमेर्यो छे. ते 'क्षमाश्रमण गणि वाचक दिवाकर' पूर्वता अभ्यासी आचार्यों माटे वपराता एकार्थिक शब्दो छे. तेथी में आ शब्दप्रयोग कर्यो छे. छतां पण ग्रंथना अंते तो ह.प्र. मां 'संघदासक्षमाधरण' शब्द उल्लेख्यो छे. जेथी विद्वानो विचारी शक के आनी पालन कोइ रहस्य छे के लेखकदोष छे. Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (2) भाष्यनी 602 मी गाथा उपरथी तेमना सत्तासमय माटे एक प्रकाशन आर्छ किरण प्राप्त थाय छे. जे किरणने आधारे एम मानी शकाय के-तओ जिनदासगणिमहत्तर (निशीप सूत्र उपर विशेष चूर्णिमा )ना समकालीन छे. अने भाष्यनी रचना आवश्यक चूर्णिनी पछीनी अने पंचकल्पचूर्णि के जे लघुभाष्य उपर छे. तेनी पहेलां थश्ली छ. जुओ- पृ.६७ 'परिजुण्णसा भणिता सुविणे देवीए पुष्फचूलाए / नरगाण सणणं पव्व जाऽऽवस्सए वुत्ता // 609 // आमां भाष्यकार पुष्पचूलाना दृष्टांत माटे आवश्यकनो निर्देश करे छे. आ दृष्टांत आवश्यक नियुक्ति के भाष्यमां क्यांय नथी. आवश्यक चूर्णिमांछे. त्यां पण अर्णिका पुत्र आचार्यनुं दृष्टांत छ तेमां अवांतर प्रसंग आवे छे. जो चूर्णि पहेला आनी रचना होय तो आ निर्देश न होय. आथी सिद्ध थाय छ के- आनी रचना आवश्यकचूर्णि पछी थइ छे. आ गाथा उपरथी आटली कडी प्राप्त थाय छे अने ए कडी मने एवी संभावना उपर लइ जाय छ केभाष्यना रचयिता' आवश्यकचूर्णि पंचकल्पचर्णि (लघु) निशीथविशेषचूर्णि, आधनियुक्तिचूर्णि, पिंडनियुक्तिचूर्णि, बृहत्कल्पचूर्णिना कर्ता श्री जिनदासगाण महत्तर जाहोय? जो केआ तो एक संभावना छ, अने ते पण खास महत्त्वना प्रमाण वगरनी छ. माटे आनी उपर घणुं संशोधन जरुरी छ. उपरोक्त प्रकाशनुं आर्छ किरण आटलाथी वधु माहितीदर्शक बनी शकतुं नथी... टुंकमां पटलुंज के- आना कता संघदासगणिक्षमाश्रयण के संघदास क्षमाश्रमण के अन्य कोइ ते निीत करी शकतो नथी. .1 जनानंद पु० सु०) हस्तलिखित पंचकल्पचूर्णिती प्रतिना पत्रांक 33 / 2 उपर 'एतदुपरिष्टात्तस्मिन्नेव कल्पे प्रथमोद्देशके मासकल्पद्वितीयसूत्रे व्याख्यास्यामः' तथा 'व्यवहारसमे Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (10) उपान्ते- जगतने अहिंसाना सूक्ष्मतम आदर्शों द्वारा संसारना तमाम प्राणीने अभयदान आपवानो संकल्प करावनार जगतमा भा एक मात्र जैन धर्म दुःषमकालनी अनेक पछडाटने सहन करीने पण प्रेरणा आपो रहेल छे. आनुं कारण शुं ? आनुं कारण एज छे के- आ धर्मना पायाना सनातन सिद्धांतोमां आज पर्यंत कोइ सडो लाग्यो नथी... कारणके- आ धर्मना मुख्य आधार रूप श्रमणोए आनी रक्षा न जालवणी माट श्रेष्ठतम प्रयासो कर्या छे, अन आत्मभोगसहित तमाम बलिदानो पण आप्या छे. आ श्रमणपंघनी दृढ मान्यता छ के- जीवनना क्षुल्लक आदर्शो करतां धर्मना आदशो महान् छ. आ हकीकतनी प्रतीति आमजनताने आ महापुरुषनी उपलब्ध कृति अने अनुपलब्ध एता जीवनक्वनथी थाय छे. अंत- आवी महान् कृतिओ गीतार्थ मुनिप्रवरो द्वारा प्रसिद्ध थाय ए आकांक्षा सहित मारी क्षतिओने उदारता पूर्वक अमा आपी कृतार्थ करशे. | cল গুলা प० पू० आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरशिष्य ___ मुनिराज श्री एण्योदयसागर. उद्दशे व्यवहारस्य वक्ष्यामः / 074-. ) तथा व्यवहारचूर्णिमां 'उक्तः कल्पः, अधुना व्यवहारस्यावसरः प्राप्तः' ( 501-1 } जहा आवस्सए भाणया' (5021-1) 'आवस्सगादीहिं दारहि पुब्वभणिताह' (21-2) 'एयं पिंडानज्जुत्तीए व्याख्यातं' (73-2) 'जहा णिसी है व्याख्यातं ' (73-2) 'पूर्व पंचकल्पे व्याख्याता' (1.0-1) 'पुव्वर्भाणया ओहनिज्जुत्तीए, कोय' (167-1) 'जहा णिसीहे' (173-1) आ उपरथी स्पष्ट निर्णीत थाय छे. के- निशीथ विशेषचूर्णिकार श्री जिनदासगणिमहत्तर आ बधी चूर्णिओना कर्ता छे. Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (11) लघु महत् लघु भाष्यांक भाष्यांक महत् भाष्यांक भाष्यांक 13 25 859 * * 860 * * * 36 37 38 154 27 28 29 186 32 187 188 558 33 58 * * * * * * * * * 870 871 36 37 38 872 873 874 875 876 560 744 745 746 747 780 781 782 783 834 723 724 858 877 878 * * * * * * * * 8 879 44 45 880 881 882 48 Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (12) महत् लघु भाष्यांक भाष्यांक महत् भाष्यांक भाष्यांक 884 885 73 886 887 888. 77 889 1121 1127 1128 1129 1932 1133 1964 1146 1147 1155 1159 1961 1962 825 895 896 81 968 976 .977 978 979 1261 1338 1340 1344 982 984 1042 1043 1119 1120 1347 1348 1408 96 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (13) लघु भाष्यांक महत् लघु भाष्यांक भाष्यांक महत् भाज्यांक 100 101 102 103 104 1409 121 1410 122 1414. 123 1415 124 1432 125 1457 126 1465 127 2484 128 1599 129 . 1600 13. 1601 131 1602 132 1614 133 1785 1790 1791 1793 1797 1798 1799 1801 1803 1824 1827 1828 1834 1886 105 1888 1891 1896 1916 1616 135 1617 136 1640 137 1661 138 1694 139 2695 140 1743 141 1744 142 1765 143 1784 144 117 118 1918 1919 2066 2078 2079 Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (14) महत् लघु भाष्यांक महत् लघु भाष्यांक भाष्यांक. भाष्यांक 145 246 147 2528 2563 2588 2589 148 149 150 152 153 154 2274 165 2175 166 2176 167 2285 168 2261 169 .2262 170 2263 171. 2264 172 2341 173 2342 174 2343 105 2344 176 2351 177 2357 178 2367 172 2368 180 2512 181 2513 182 2514 183 2527 184 156 157 101 158 114 159 160 161 . 5 717 162 118 163 164 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय-निवेदन पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी महाराजनी निश्रामा वि.सं. 2010 वर्षे आगमोद्धारक-ग्रंथमालानी स्थापना थइ हती. आ ग्रंथमालाए त्यारबाद प्रकाशनोनी ठीकठीक प्रगति करी छे. सूरीश्वरजीनी पुण्यकृपाए खमासमणसिरिसंघदासगणिविरइयं 'पंचकप्पभासं' नामनो महान् ग्रंथ आगमोद्धारकग्रंथमालाना 52 मा रत्न तरीके प्रगट करतां अमोने बहु हर्ष थाय छे. आना संशोधनमाटे 'जैनानंद पुस्तकालय' नी एक हस्तलिखितपत तथा छाणी प्रवर्तक श्री कान्तिविजयजी शास्त्रसंग्रहनी सोमचंदभाई द्वारा प्राप्त थएल तेमज श्री जैन श्वेतांबर ज्ञानमंदिर दर्भावतीनी मफतभाई द्वारा प्राप्त थएल हस्तलिखित प्रतनो उपयोग करवामां आवेल छे. आनी प्रेसकोपी गणिवर्य श्री सौभाग्यसागरजी महाराजे करेल छे तेमज संशोधन पू० गच्छाधिपति आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरजी म. नी पवित्रदृष्टि नीचे शतावधानी मुनिराज श्री लाभसागरजीए करेल छे. ते बदल तेओश्रीनो तेमज जेओए द्रव्य तथा प्रति आपवानी सहाय करी छे ते महानुभावोनो आभार मानीए छीए. प्रकाशक Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषयानुक्रम विषय भद्रबाहुस्वामिने नमस्कार / 'भद्रबाहुं' पदनो अर्थ। दुःषमाकालनो अनुमाव। कल्पाध्ययनना अभिधेयो। चारित्रना भेदो। . पांच निग्रंथो अने संयतो। निग्रंथोनो समवतार। संयतोनो समवतार। संयतोमा निग्रंथोनो अने निग्रंथोमां संयतोनो समवतार। देशभंग अने सर्वभंगनुं स्वरूप। . कल्पशब्दना अनेक अर्थ / 'कल्प' ना नामादि छ निक्षेपा अने 'द्रव्यकल्प' ना भेद अने प्रभेद / 23 थी 60 बाल-वृद्ध आदि दीक्षाने अयोग्य वीस प्रकारना जीवो अने एओनी दीक्षामां लागता दोषो तेमज एओने दीक्षा आपनारने प्रायश्चित्त / Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (17) थी 76 छंदा, रोषा आदि सोल प्रकारनी प्रवज्या अने एना उदाहरणो। उपस्थापनाविधि। अढार प्रकारनो लोकपिड / भोजनविधि / पूतिविशेष / थी 94 उपधिकल्प, जिनकल्प, स्थविरकल्प अने साध्वीनी उधिनुं प्रमाग। वीस प्रकारना उपधिना उपघातो। साडी पच्चीस आर्यदेश। विहारयोग्य क्षेत्रना गुगो। अनायतनो। . 113 थी 123 कालकल्पमा मासकल्प, पर्युषणासामाचारी, . वृद्धवास, पर्यायकल्प, कायोत्सर्ग, प्रतिक्रमग, कृतिकर्म अने पडिलेहणानुं स्वरूप / भावकल्पमां दर्शनकल्प। 130 थी 140 ज्ञानकल्पमां सूत्रकरंग, उद्देशकल्प, वाचनाना गुणो, वाचनाविधि, प्रच्छनाकल्प अने अध्यापन योग्य आचार्य उपाध्यायचं स्वरूप / 141 थी 167 स्थितकल्प, अस्थितकल्प, जिनकल्प, स्थविरकल्प, लिंगकल्प, उपधि कल्प भने संभोगकल्प, एम सात प्रकारनो चारित्रकल्प। 168 . . कल्प, प्रकल्प आदि दश कल्पनुं निरूपण / नामकल्प, स्थापनाकल्प आदि वीस प्रकारना कल्पनु निरूपण। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 186 थी 24* द्रव्यकला, क्षेत्र, काल, दर्शन, सूत्र, अध्ययन, चारित्र, उपधि, संभोग, आलोचन, उपसंपदा, उद्देश, अनुशा, अध्व, अनुवासणा, स्थित, अस्थित, जिन, स्थविर अने अनुपालनाकल्प ए वीस प्रकारना कल्प निरूपण। 241 थी 295 द्रव्य, भाव, तदुभय, विरमण, साधारण, निर्विशन, अंतज्ञ, नक, नयांतर, स्थिन, अस्थित, स्थान, जिन, स्थविर, पर्युषणा, सूत्र, चारित्र, अध्ययन, उद्देश, वाचना, प्रतीच्छना, परावर्त्त, अनुप्रेक्षा, जात, अजात, आचीर्ण, अनाचीर्ण, संधान, चरण, उपपात, निशीथ, व्यवहार, क्षेत्र, काल, उपधि, संभोग, लिंग, प्रतिसेवना, अनुवासना, अनुपालना, अनुशा अने स्थापना ए बैंतालीस प्रकारना कल्पनुं निरूपण / 296 उपसंहार। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ // णमोत्थु णं समणस्स भगवओ महावीरस्स // // आणंदसायरगुरुं पणमामि सूरि // ॥खमासमणसिरिसंघदासगणिविरइयं // N पंचकप्पभासं (श्री बृहत्कल्पीयनामनिक्षेपान्तर्गतम् ) वंदामि भद्दबाहुं पाईणं चरिमसगलसुयनाणीं। सुत्तत्थ (स्स) कारगमिसिं दसाण कप्पे य ववहारे // 1 // कप्पं ति णामणिप्फण्णं महत्थं वत्तुकामतो। णिज्जूहगस्स भत्तीय मंगलछाए य संथुतिं // 2 // तित्थगरणमोकारो मत्थस्स तु आइए समक्खाओ। इह पुण जेणऽज्झयणं णिज्जूढं तस्स कीरति तु // 3 // सत्याणि मंगलपुरस्सराणि सुहसवणगहणधरणाणि / जम्हा भवंति जंति य सिस्सपलिस्तेहिं पचयं च॥४॥ Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [2] पञ्चकल्प-भाष्ये भत्ती य सत्थकत्तरि तं कयउवओगगोरवं सत्थे / एएण कारणेणं कीरइ आदी णमोकारो // 5 // वद अभिवाद-थुतीए सुभसहो गहा तु परिगीतो। वंदणपूयणणमणं थुणणं सक्कारमेगट्ठा भई ति सुंदरत्ति य तुल्लत्यो जत्थ सुंदरा बाहू। सो होति भद्दबाहू गोण्णं जेणं तु बालत्ते // 7 // पाएणं (ण) लक्खिजइ पेसल भावो तु बाहुजुयलस्स / उववण्णमतो णामं तस्सयं भद्दयाहुत्ति // 8 // अण्णे वि भद्दबाहू विसेसणं गो (त्त) पण गहणपाईणं / अण्णसिं पिय सिद्धे विसेसणं चरिमसगलसुतं // 2 // चरिमो अपच्छिमो खलु चोहसपुव्वा उ होति सगलसुतं / सेसाण वुदासट्ठा सुत्तकरज्झयणमेयस्स किं तेण कयं सुत्तं ? जं भण्णति तस्स कारतो सो उ। भण्णति गणधारीहिं सव्वसुयं चेव पुत्वकतं // 11 // तत्तो चिय णिज्जूढं अणुग्गहट्ठाए संपयजतीणं / तोमुत्तकारओ खलु स भवति दसकप्पववहारे // 12 // वंदे तं भगवंतं बहुभद्द सुभद्द सव्वओभदं। पवयणहियसुयकेउं सुयणाणपभावगं धीरं // 13 // Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्रबाहुपदस्यार्थः वदिसद्दो पुव्वभणिओ तदिती तं चेव णामगोत्तेहिं। इस्सरियाइगुण भगो सो से अत्थित्ति तो भगवं॥१४॥ भई कल्लाणं ति य एगळं तं च सुबहुयं जस्स। सो होति सुबहुभद्दो सोभणभद्दो सुभद्दोत्ति // 12 // खीरासवमादीणि तु सुभाणि भद्दाणि नस्स सुबहणि / सवओ इहपरलोए भदं तो सव्वतो भद्दो // 16 // आमोसहादि इह भद्द परलोए होतऽणुत्तरसुरादी। सुकुलुप्पत्ती य तओ ततो पच्छा य णेव्वाणं // 17 // भातित्ति भद्दमहवा भाई णाणादिएहिं सो जम्हा / सो होति भणामो कुव्वति भहाणि वा जम्हा // 18 // पवयण दुवालसंगं तस्स हितो जं करेतऽवोच्छित्तिं / संघो तु पवयणं तू हितोवदेसं अतो तस्स // 19 // केतृसहो उसिए सियं तुंगं तु तस्स तु सुहं तो। इहलोए परलोए सो भगवं होति परमसुही // 20 // वायणपभावणया सुतणाणगुणा य जे वदति लोए / विउसपरिसाए मज्झे सुतणाणपभावणा एसा // 21 // किं कारण तस्स कओ महया भत्तीय तृ णमोकारो। जम्हा तेणं जूढा अम्ह हियट्ठाय सुत्त इमे // 22 // Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [4] . पञ्चकल्प-भाष्ये आयारदसाकप्पो ववहारो णवमपुव्वणीसंदी। चारित्तरक्खणट्ठा सूयकडस्सूपरि ठविता // 23 // अंगदसा अण्णावि हु उवासगादीण तेण तु विसेसो। आयारदसा उ इमा जेणेत्थं वणियाऽऽयारा // 24 // दसकप्पव्ववहारा एम सुतक्खंध केइ इच्छंति / केई व दसा एवं कप्पववहार बीयं तु // 25 // रयणागरथाणीयं णवमं पुव्वं तु तस्स णीसंदो।। परिगाल परिस्सावो एते दसकप्पववहारा // 26 // किं कारण णिज्जूढा चरित्तसारस्स रक्खणट्ठाए। खलियस्स तहिं सोही कीरइ तो होति निरुवयं // 27 // सूयकडुवरि ठविता जम्हा तं पंचवासपरियाए / सूयकडमहिजति तू तो जोग्गो होति से तेसिं // 28 // अणुकंपावुच्छेदो कुसुमा भेरी तिगिच्छ पारिच्छा। कप्पे परिसा य तहा दिळंता आदिसुत्तम्मि // 29 // ओसप्पिणि समणाणं हाणिं णाऊण आउगलाणं / होहिंतुवग्गहकरा पुव्वगतम्मी पहीणम्मि . // 30 // खेत्तस्स य कालस्स य परिहाणी गहणधारणाणं च / बलवीरिए संघयणे सद्धा उच्छाहता चेव Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीनुमाया किं खत्त कालो वा सकृयती जेण-तण परिहाणी। भन्नई नसकुयती परिहाणी तेसि तु गुणेहिं / / 32 // भणियं च दूसमाए गाना होहिंति तू मसाणसमा / इय कारण (खेत्त) गुणहाणी काले विउ होहिमा हाणी समए मजएऽणंता परिहायते उ वण्णमादीया / दव्वाईजाया अहारत्तं तत्तियं चेव // 34 // दूसम अणुभावेणं साहूजोग्गा उ दुल्लभा खेत्ता। कालो वि यदुभिक्खा अभिक्खणं होति डमरा य॥ दूसम अणुभावेग य परिहाणी होति ओसहिबलाणं। तेणं मणु पाणं पितु आउगमेहादि परिहाणी(दा) 36 / / संघयणं पि य हीयति इनो यहाणी य घितिबलस्त भवे / विरियं सारीरबलं तपि य परिहाति सत्तं च / / हायलिन सड्ढाओ गहणे परियट्टणे व मणुधाणं / उच्छाही उज्जोगी अणालमत्तं च एगट्ठा // 38 // इय णाड परिहाणि अारमहट्ठाए एम साहणं / णिज्जूहऽकंगाए दिछनेहिं इहिं तु 39 // पगरण चडणकंपा दइहाविदड्लेहिं होयऽगारीणं जह ओने बीचमत्तं रण्णा दिण्णं जणवयस्स // 4 // Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [6] पञ्चकल्प-भाष्ये एवं अप्पत्तंच्चिय पुव्वगतं केइ मा उ मरिहंति। तो उद्धरिऊण ततो हेट्ठा उत्तारियं तेहिं (दा.) // 41 // मा य हु वोच्छिन्जिहिती चरणऽणुओगोत्ति तेण णिज्जूढं / वोच्छिण्णे बहुतम्मी चरणाभावो भवेज्जाहि (दारं) // 42 // कह पुण तेण गहेडं दिण्णाई तत्थिमो तु दिळंतो। जह कोइ दुरारोहो सुसुरभिकुसुमो तु कप्पदुमो॥४३॥ पुरिसा केइ असत्ता तं आरोढूण कुसुमगहणट्ठा। तेसिं अणुकंपट्ठा कोइ ससत्तो समारुज्झे // 4 // घेत्तुं कुसुमा सुहगहणहेतुगं गंथिउं दले तेसिं। तह चोदसपुवतरं आरूढो भहबाहू तु // 4 // अणुकंपट्ठा गथितुं सूयगडस्सुप्परि ठवे धीरो। तं पुण सुतोवएसेण चेव गहितं ण सेच्छाए / (दा.)॥ अण्णह गहिए दोसो असाहगं होति णाणमाईणं / केसवभेरीणातं वक्खातं पुव्वसामइए // 47 // अहवा तिगिच्छओतू ऊणहियं वावि ओसहं दिज्जा। तेहिंतु ण कज्जसिद्धी सिद्धी विवरीयए भवति / (दा.) Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पाध्ययनस्याभिधेयाः [7] पारिच्छ परिच्छिा पकप्पमादी दलंति जोग्गस्स। परिणामादणिं तु दारुगमादीहिं णातेहिं // 49 // णारिच्छ आदिमुत्ते पुव्वं भणिया तु जाउ विहिमुत्ते। मलघणादी परिसा पूरता ईय भणिहिती // 50 // परिसादारं भणितं कप्पहारं कमेण हु इदाणिं। किं पुण उकमकरणं बहुवत्तव्वं ति णाऊणं // 51 // किं पुण कप्पज्झयणे वणिज्जति? भण्णती सुणसु नाव ! जे अभिहिता उ अत्था तहियं ते ऊ समासेणं // कपण य कप्पिए चेव कप्पणिज्जेत्ति आवरे / फासुए एसणिज्जे य संजमे त्ति य यावरे // 53 // वालए वागए चेव चम्मपति आवरे / पम्हए किमिए चेव धातुए मीसतेति य // 54 // उपसंपधा चरित्तस्स चरित्ते कइविहे इय / णियंठा कति पण्णत्ता कह समोतारणाति य ? // 55 // ववहार कस्स पण्णत्ते कहं पडिसेवणावि य ? / देसभंगे कहं वुत्ते ? सव्वभंगे त्ति यावरे // 56 // पच्छित्ते कइविहे वुत्ते ? छट्ठाणे त्ति यावरे / पंचट्ठाणे चतुट्ठाणे तिट्ठाणे ति यावरे // 5 // Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [8] पञ्चकल्प-भाष्ये छट्ठाणे दंसणे वुत्ते संजमेत्ति यावरे / गाहणा य चरित्तस्स एमे ता पडिवत्तीओ। एताओ दारगाहाओ / / 58|| कप्पो य होइ दुविहो जिणकप्पो चेव थेरकप्पो य। दुविहो उ कप्पिओ खलु दव्वे भावे य णायव्यो।।५९।। आगम णोआगमओ दवम्मी ऋप्पिओ भवे दुविहो। आगमतो णुवउत्तो णोआगमओ इमो होति // 60 // जाणगसरीर भविए तव्वतिरित्ते य होति णायव्यो / जाणग मयगसरीरं भविआ पुण सिरिकहि जो तु / 61 // वतिरित्तो एगभवी बद्धाउ अभिमुहो य बोधव्वो। भावेऽवि होति दुविहो आगम णोआगमे चेव // 6 // आगमओ उवउत्तो णोआगमओ य पिंड माईणं। गहणाम्मि कप्पिओ खलु पव्वावेतुं च सेहाणं // 6 // जं जं जोग जतीणं आहारादी तहेव सेहा य / एयं तु कप्पणिज्जं अपरिग्गहणा अकप्पम्मि // 64 // आहारे पलंबादी सलोममजिणादि होति उवहीए। सेज्जाए दगसाला अकप्पसेहा य जे अण्णे // 65 // केरिसयं कप्पणिज्ज ? फासुयगं फासुयं तु केरिसगं? जीवजदं जं दव्वं तंपि य जं एसणिज्जंतु // 66 // Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वालज-वल्कलजादिप्ररूपणा दसदोसविप्पमुक्कं गहियं चसद्देण उग्गमादीवि। एयं तु साहुजोरगं गिहतो संजतो होति // 67 अहवा सत्तरसविहो संजमो जं वावि सुत्तछंदेणं / भुंजति आहाराती विवरीयनसंजयो होति। (दा.)।। आहारस्त उ भेदा असणादी उवहिणो उ वालादी! एतेसिं तु पावणया वालयमादीणिमा होति // 65 // वालेहिं णिप्फण्णं वालयमोण्णोहियादिगं होति। (दा.) वक्केहि तुणिप्फण्णं वागजसणवामादी (गं) णं // 70 / चम्मं च चम्मपडिए पट्टो उण होतिमा सुणेयव्वो। पल्लत्थोग्गहपट्टो तिरीडपट्टो य एमादी पम्हजं हंसगम्भादि अहवा कप्पासियं मुणेथव्वं (दा.) कोसेज्जपट्टमादी अंकिमियं तू पवुच्चत्ति / (दा)।७२। छुन्भति वंसकरिल्लो कम्मिविदेसम्मि तरुणतो धडए। वहतो पूरयती तं घडयं विप्पिए तम्मि // 73 // संकोहे लूणयतो तेहिं तुन्हारूएहिं कि (ज)विए सुत्तं / तेण वुयं जं वत्थं भण्णति तं धातुतं णाम दुगसंजोगादीहिं एएसिं चेव वालयादीणं / तंमीसयंति भण्णति जह ऊम (दुण्ह) क्खाम्हियादीयं Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [10] पञ्चकल्प-भाष्ये वत्तव्व चसद्देणं भेयपभेदा उ जेत्तिया तेसिं। सुद्धेहिं तेहिं तु उवसंपण्णो हु सुचरित्ते / (दा.)॥७६॥ अहवा पंचविहाओ उवसंपय होतिमा समासेणं / सुय सुहदुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य बोधव्वा // 77 // अहवा तिविहुवसंपय णाणे तह दंसणे चरित्ते य। चरित्तं च कतिविहं तू पंचविहं तं इमं होति // 7 // सामाइय छेदुवट्ठावणं च परिहारसुद्धियं चेव / तत्तो य सुहमरागं अहखायं चेव बोधव्वं // 79 // अहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवावि। खाइग खओवसमितं उवसमियं वा भवे तिविहं / (दा.) भेदा उ चसणं होंति इमे णाणदंसणाणं तु / खाइयखओवसमियं दुविहं णाणं मुणेयव्वं // 81 // खइयं केवलणाणं खओवसमियाई सेसणाणाइं / खइयं खओवसमियं उवसमियं दसणं तिविहं // 82 // कस्सेतं चारित्तं णियंठ तह संजयाण ते कतिहा ? पंच णियंठा पंचेव संजया हॉतिमे कमसो // 83 // पुलए बउस कुसीलो होति णियंठे तहा सिणाए य / एएसिं एकेको पंचविहो होति बोधव्वो // 84 // Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुलाकादिनिर्ग्रन्थनिरूपणम् [11] णाणपुलाए तह दंसणे य चारित्त लिंग अहसुहमे / पसरपंचविही खल पुलगणियंठो मुणेयव्यो / / 8 / / आभागमणाभोगे नह संवुडमसंवुडे अहासुहुमे / मो पंचविहो तृ षउसणियंठो मुणेयव्वो // 86 // दुविही होति कुसीलो पडिसेवणया तहा कसाए य / परेको पंचविहो परूवणा तेसिना होइ // 8 // णाणपडिसेवणाए दंसणचरणे य लिंग अहसुहुमे / पडिसेवणाकुसीलो पंचविहो एस णायव्वो // 8 // णाणकसायकुमीले दंसण चरणे य लिंग अहसुहमे / एस कसायकुसीलो पंचविहो तू मुणेयन्वो // 89 // पढभगसमयणियंठे अपढम-चरिमे यतह अचरिमे य / तत्तो य अहासुहुमे पंचमए होति णायब्वो // 10 // पंचविहसिणाए ऊ अच्छवितह असबले अकम्मसे। मंसुद्धणाणदसणधरे य होती चउत्थे तु // 11 // अरहा जिणे य केवलि अप्परिसावी य होति पंचमए। एते पंच विकप्पा सिणायस्स तो होंति णायव्वा // 12 // पंचविह संजता वी सामाइय-छेउवट्ठ-परिहारे। सुहमे य अहक्खाए एकेके ते पुणो दुविहा // 13 // Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [12] पञ्चकल्प-भाष्ये इत्तरिए आवकही सामाइयसंजए भवे दुविहे / . दुविहे छेओवळें सतियारे णिरतिमारे य // 14 // परिहारविसुद्धीए णिविममाणे तहेव निविठे ! दुविहे च सुहुमराग संकिस्संत विमुज्झते // 15 // अहखाओ वि य दुविहो छउमत्यो चेव केवली चेव ! एसो तु संजतो खलु पंचविहो होति णायवो // 16 // सामाइयम्मि उ कए चाउज्जामं अणुत्तरं धम्मं / तिविहेण फासयंतो सामाइयसंजतो स खलु // 17 // छेत्तूण तु परियागं पोराणं तो ठवेति अप्पाणं। धम्मम्मि पंचजामे छेओवट्ठावणो स खलु (दा.) 28 परिहरति जो विसुद्धं पंचज्जामं अणुत्तरं धम्म / तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजतो स खलु / / 19 / / लोभमणुं वेदिता जो खलु उवसामओ व खवओ वा। सो सुहमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि // 10 // उवसंते खीणम्मिवजोखलु कम्मम्मि मोहणिज्जाम्म छउमत्थो व जिणो वा अहखाओ संजतो स खलु / एतेसि समोतारो दुविहो सट्ठाण तह परट्ठाणे / वोच्छामि आणुपुब्धि जो जत्थ समोयरति तेसिं॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुलाकादिनिर्ग्रन्थानां समवतारः [13] जहणुवसंपज्जणता सव्वेसिं चेव पुच्छियवाओ। वाकरण जहाकममो तेसिं इणमो उ वोच्छामि / / पुलागा तु पुलागत्तं जहमाणो जहइ से पुलागत्तं / उचसापोऽमजम अहवावि कसायमील नु ! बउमो य बउस्सत्तं जहती पडिसेवणं कसा वा / संजनसंजन अस्संजन च पडिवज्जती सो तु॥१०५॥ पडिसेवणाकुसीलो विजहति पडिसेवणाकुसीलतं / षउसकसायकुलीलं पडिरज्ज अमंजसं वावि।१०६॥ अहवावि मंजमासंजन तु पडिवज्जनी ततो सोउ। जोऽवि कसायकुसीलो विजहति मो तू कसायत्तं // पुलगं रउसं वा अहवा पडिमेवणाकुसीलं तु! पडिवजनिठवा अहवावि अमंजमं वावि // 105 / / अहवा लंजअसंजन उधसंपज्ज सो चुलो तत्तो। णियंठे उणिशंठत्तं विजहति नत्ती चुनो संलो॥१०॥ उवसंपने कला सिजाय अहवा अलंजन वावि। विजनिलिणामतं सिजायगा उ चुनो लत्तो।। उपजाति लत्तो सिद्धिति सो पहीणकन्नंसो। एसा गिाणं सोचारी संजवाणेत्तो // 11 // Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [14] पञ्चकल्प-भाष्ये सामादिसंजतो तू सामाइयत्तं जहति किं जहति / किं वा उपसंपज्जे एवं पुच्छा उ सव्वेसिं // 112 // सामाइयत्तं जहती सामाइय संजते चूते तत्तो / छेदुवट्ठावणियं वा पडिवज्जति सुहुमरागं वा अहवावि संजमासंजमं च अस्संजमं च पडिवज्जे / छेदुवठावणिए पुण वि. जंहति से छेदुवट्ठवणं // 114 // परिहारविसुद्धीयं अहवा वी सो तु सुहुमरागं तु। अस्संजमं संजमसंजमंच पडिवज्जती अहवा / / 11 / / परिहारविसुद्धीओ विजहति व तत्तो चुतोऽवि तं चेव / उवसंपज्जति छेदं अहवावि असंजमं सो तु // 11 // विजहति सुहुमसरागो तत्तो चुत्तो सुहुमसंपरायत्तं / उवसंपज्जति सामाइसंजमं छेदमहवा वि // 117 / / अहव अहक्खायं तू अस्संजममहब सो उ पडिवज्जे। अहखायसंजतो पुण अहवायत्तं विजहमाणो॥११८॥ जहति अहक्खायत्तं उवसंपज्जे तु सो चुतो तत्तो। सुहुमं च संपरायं अस्संजमसिद्धिगतिमहवा // 11 // एस समोतारो खलु अहवावि णियंठसंजएसुं तु / संजयनिग्गंथेसु अवरोप्परतो समोतारो // 120 // Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयतनिर्ग्रन्थानां परस्परं समवतारः [15 पुलगबउसाण दुण्हवि सामइयछेदेसु तू समोतारो / ओतरति कुसीलो पुण आदिल्लेसुं चउस्सुंपि // 12 // निग्गंथसिणाता पुण समोतरंते तु ते अहक्खाते / एवं तु णियंठा तू उत्तरिया संजतेसुं तु // 122 // पुलबउसकुसीलेसुं सामइछेदा समोतरंती तु / परिहारसुहुमरागा ओतरति कुसीलएसुं तु // 123 // ओतरति अहक्खाओ णिग्गंथसिणातएसु दोसुंपि / एमेते समोतरिता अण्णोऽण्णेसुं जहाकमसो // 124 // उत्तारे सव्वमहव्वयाणि णियमा तु सव्वदब्बेसु / ण तु सव्वपज्जवेहिं जम्हा सामादिए उदितं // 125 / / पढमम्मि सव्वजीवा बीते चरिमे य सव्वदव्वाइं। मेमा महव्वता पुण (खल) तदेकदेसेण दव्वाणं / दा. एतेसि णियंठाणं आवण्णाणं तु संजयाणं च / ववहारो होति दुहा पच्छित्ते आभवंते य // 127 // पच्छित्ते पंचविहो आगममादी उ होति णायव्यो। कस्सा भवति ण वावी सचित्तादी तु आभव्वो 128 सावराहिस्स ववहारो अवहारो पडिसेवणा। पडिसेवणा य कतिहा तीसे भेदा इमे भवे // 129 // Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [16] पञ्चकल्प-भाष्ये दप्पिया कप्पिया चैव दुविहा पडिसेवणा। . ' जयणा अजयणा कप्पी जयणासुद्धो तु सेवतो 130 जयणासेवी कप्पो दप्पो जयणाए अजयणाए य / आवज्जति सहाणं वणिज्जति वित्थरो कप्पे / दा. // पडिसेवगस्स होती देसम्भंगो य सवभंगो य अवराहे करिसए देसे सव्वेवि सो होति // 132 // पणगादी जा छेदो एसो खलु होति देसभंगो तु। मूलादिउवरिमेसु णायव्वो सव्वभंगो तु // 133 // तस्स उ विसुद्धिहेर्ड पच्छित्तं तस्स केत्तिया भेदा। छट्ठाणादीया खलु परूवणा तेसिमा होति // 134 // छसु काएसु वएसु य छविह एगिदियादि पंचविहं। मंघट्टण परितावण उद्दवणे चेव निप्फण्णं // 135 // चउहा तु णाणवंते दंसणवंते चरित्तवंते य / नत्तो चियत्तकिच्चो अहवा दवाइयं चउहा // 136 // अहवा अतिकमादी चउहा कोहाइयं च चउहा तु। णाणादियारभादो होति तिविहं च पच्छितं // 137 // अहवा आहारोवहि सिज्जतियारे य होति तिविहं तु। उग्गम उप्पायण एसणा य तिविहं तु एकेके // 138 // Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [17] षोढा मिथ्यात्वम् आलोयणपडिकमणे तदुभयमेवं तु होति तिविहं तु / सच्चित्तअचित्तमीसग तिविहं चेदं मुणेयव्वं // 139 // अहवा सत्तट्ठविहं नव दसहा वावि होति पच्छित्तं। आलोयणपडिकमणे मीसविवेगे य वोसग्गे // 140 // छद्रं तवे य तत्तो सव्वे उवरिल्ल सत्तमं छेदो। अछविह छेद दुविहो देसे सब्वे य बोद्धव्वो // 141 // णवविह सब्वच्छेदो दुह संजमुवट्ठ विजती मूले / कालंतरमितरे पुण खेत्तंतो बहिं च दसभेदं // 142 // अह वण्णह दुविहेदं एगविहं वावि होज णायव्वं / रागद्दोसा दोण्णी एगविहोऽसंजमो होति // 143 // छट्ठाणे दंसणेत्ती जो काए छविहे ण सद्दहति / णत्थि ण णिच्चादी वा छविहमेयं तु मिच्छत्तं // 144 // धम्मत्थिकायमादी कालंतादिं तु छत्तु दवाई। जो ताई न सद्दहति छविहमेयं तु मिच्छत्तं // 14 // संजमो सत्तरसविहो तु सामाइयमादी अहव पंचविहो (दा) गाहण तव चरित्तस्सा गहणं चिय गाहणा होति किह पुण चरित्तगहणं होजाहि ? भण्णती इमेहिं तु / वेरग्गेणं अहवा मिच्छत्ता होइ सम्मत्तं // 147 // सम्मत्ता उ चरित्तं अहवा होज्जा इमेहिं गहणं तु / सवणे णाणविणाणे एमादी गाहण चरित्ते // 148 // Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [18] पञ्चकल्प-भाष्ये अहवा वी उवएसो एगळं होति गाहणाउत्ति। तह उवदिस्सति जह ऊ चारित्तं गेण्हती सोतु॥१४९॥ अविराहणम्मि य गुणा दोसाय विराहणा चरित्तस्स। तह गाहिज्जति जह तू ओगाढो होति चारित्ते // 150 // णाणे य चेव तह दंसणे य जातिगहणेण संसूया। एयातिं गाहिंति गाहणता वण्णिता एसा // 151 // एमेता जा भणिता अहवा अवहारणे चसदो तु। पडिवत्ती उवगारो वागरणं वावि पडिवत्ती // 152 // एवं कप्पे वणिज्जती उ अण्णे य बहुविहा अत्था / अत्थेसु अणेगेसु य कप्पऽभिधाणं मुणेयव्वं // 153 // सामत्थे वण्णणा काले छेयणे करणे तहा। ओवम्मे अहिवासे य कप्पसद्दो वियाहिओ // 154 // सामत्थे अठमासे य वत्तीकप्पो तु होति गभगतो। वण्णणे अज्झयणं तू कप्पिय जहमेगसाहूणं / / 155 // काले हेमंताणं जह तू दसराय कप्प अतिकते। छेदण जह केसे तू चउरंगुलवज्ज कप्पेहि // 156 // करणे वित्ती कप्पिय अहो! इमेणं जहा तु पुरिसेणं / आइच्चचंदकप्पा हवंति जह साहुणो धम्मे // 157 // सोहम्मकप्पवासी अहिवासे जह तु होति देवा तु / एते सामत्थादी जोएयव्वा इहं कप्पे // 158 // Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्पशब्दस्यानेकार्थाः [19] कप्पज्झयणमधीतुं अतियारविसोहणे समत्थो उ। फतिविह पायच्छित्तं परूवणे वण्णणा होति / / काले उडुबडाणं वासावासं च वुड्ढवासं च / वसती जहाविहिं खलु उस्सरगववायसंजुत्तं // 16 // तवसोहिमतितं छिदति पणगादिएहिं परियागं / कुणइ य लहा पयत्तं जह तं दिण्णं वहइ सम्म 161 ओवस्मे जिणकप्पा जाणण गहणे यसो हति गीतो। अहिवास मालादिसु ऊणतिरित्ते विभासा तु // 162 // सम्वेसि कप्पाणं परणवण एवणा नवभम्भि। आसज्ज उ सोयारं घुळवगत वा इह वाचि (अधिक) एतेसि सव्वेसि छविह कप्पाइयाण कप्पाणं / पण्णवण परवणता णवले पुव्वम्मिणिविट्ठा // 164 // सोतारं पुण आसज्ज होज्ज इह कप्प अहव णवमम्मि धारण गहण समत्थे तहि तं असमत्थे इह तु॥१६५ कप्पाणं बक्खाणं पुव्वगते वणितं सभत्तं तु / इह थोवगति काउंण हु बहुमाणो ण कायव्यो 166 दव्वे खेत्ते काल उग्गह संधयण धारण गुरूणं / तपि बहुमश्णियव्यं जं एगपदे पदं अस्थि // 16 // दुस्समअणुभावेणं हाणी विरियस्स ओसहीणं तु / दुलभाणि य दवाई जइ जोग्गाइं तदणुभावा // 168 / / Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [20] पञ्चकल्प-भाष्ये खेत्ताणि य हायंती विहारजोग्गाइं तदणुभावेणं / दा. दुब्भिक्खपउरकालो तेणऽणुभावेण मणुयाणं 169 लद्धी उग्गहणम्मि संघयणं धारणा य परिहाति / ण य सीसायरियाणं सत्ती वत्तुं व सोतुं वा // 170 // ण य संति बहू गुरुवो जे वत्तारो य हुंति अत्थस्स / तेवि ण सव्वस्स लहुं पसादसुमुदा भवंती तु। दा॥ इयाणि परिहाणिं जं एगपदे वि एगमत्थपदं / बहु मंतव्वं तंपि हु किं पुण संतेसुऽणेगेसु // 172 // तो ण पमाएयव्वं ण य भत्ती तू तहिं ण कायव्वा / सुठुतरं उज्जोगो कायव्वो तम्मि चित्तव्वे // 17 // सो पुण पंच विकप्पो कप्पो इह वण्णिओ समासेणं / वित्थरतो पुवगतो तस्स इमे हाँति भेदा तु // 174 // छविह सत्तविहे या दसविह वीसतिविहे य बायाले। जस्स तु नत्थि विभागो सुव्वत्त जलधकारो से 175 विभयण विभागो भण्णति जहरिसो छव्विहो य सत्तविहो / णामादिविभागोवा जस्सेसोण विदितो होति सुव्वत्त सुटु वत्तं तस्स निबुड्डस्स वा जलमगाहे / होती सचक्खुयस्स वि जहंधकारो मणुस्सस्स // 177 // अहवा जलंधकारो मेहोछइयम्मि होति गगणम्मि / अहवा जलंधकारो जत्थादिच्चो ण दीसति तु // 178 // Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मनुष्यजीवकल्पस्य षड्भेदाः [21] एवं तु अंधकारो कप्पपकप्पं पडुच्च तस्स भवे / अहवा सो चेव जलो भवइ य से अंधकारं तु // 179 / / छव्विह कप्पस्सिणमो णिक्खेवो छव्विहो मुणेयव्यो। णामं ठवणा दविए खेत्ते काले तहेव भावे य // 180 // जेण परिग्गहिएणं दव्वेणं कप्प होति णाऽकप्पो। तं दव्वमेव कप्पो कारणकज्जोवयारातो // 18 // सो तिविहो बोधब्वो जीवमजीवे य मीसतो चेव / एतेसिं तु विभागं वोच्छामि अहाणुपुवीए // 182 // तिविहो य जीवकप्पो दुपयचउप्पय तहेव अपदेहि / अहिगारो दुपदेहिं तत्थवि य मणुस्सदुपदेहिं // 183 // तत्थवि य कम्मभूमगसंखिज्जगवासआउएहिं तु। पव्वइतुकामएहिं तत्थवि तू होति अहिगारो // 184 // सो होति छव्विहो तू वोधव्वो मणुयजीवकप्पो तु / वोच्छामि तस्स इणमो भेदविकप्पं समासेणं // 185 // पव्वावण मुंडावण सिक्खावणुवट्ठ भुंजसंवसणा। एसो तु जीवकप्पो छन्भेदो होति णायव्वो // 186 // अन्भुवगमो पव्वावण मुंडावण होति लोयकरणं तु। गहणासेवण सिक्खं सिक्खाविन्तम्मि सिक्खवणा। वयठवणमुवट्ठवणा संभंजण मंडलीए सह भोगो एगततो सहवासो संवसणा होति णायव्वा // 188 // Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [22] पञ्चकल्प-भाष्ये णाऽपव्वाविते मुंडावणा तुणाऽमुंडिए तु सिक्खवणा। एमादी तु विभासा पब्वावयंती तु केरिसगा // 189 // सुत्तत्थतदुभयविसारयस्स संगहउवायकुसलस्स / कप्पति पवावेतुं संवेगमुवट्टितमतिस्स // 19 // सुत्तत्थेण विसारए चउभंगो एत्थ होति कायव्वो। तं चेव तदुभयं खलु विसारतो जाणतो तस्स // 191 // दब्वे भावे संगहो दवे आहारमादिएहिं तु / सिक्खावणमगिलाए गेलण्णे यावि करणं तु // 192 // भावम्मि संगहो खलु णाणादी तंतु होति बोधव्वो। जाणइ वट्टावेतुं गच्छं तु उवायकुसलो तु // 193 // संसारभउव्विग्गो संविग्गो सो तु होति णायव्यो। एतेसिं तु पदाणं चउभंगा होंति एकेके // 194 // तदुभयविसारदो खलु ण संगहे कुसलो एत्य चउभंगो तदुभयउवायकुसलो एत्थंपि तु होइ चउभंगो॥१९५॥ तदुभयसंविग्गेहि वि चउभंगो एव होति कायव्यो। एव गुणजातियस्सा पव्वावेतुं तु कप्पति तु // 196 // पव्वाविंता भणिता अहुणा पव्वावणिज्ज वोच्छामि। पवज्जाए जोग्गा जे वा होंति अजोग्गा तु // 197 // पव्वावणारिहा खलु जातीकुलरूवविणयसंपण्णा। तविवरीय गुणा खलु होंति अपव्वावणाजोग्गा 198 Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षाऽनः [23] तोसि त जे विवक्खा तश्विवरीया हवंति तेणियमा। अहवावि इमे वीसं वज्जित्ता सेसगा जोग्गा॥१९९॥ घाले बुड्ढे नपुंसे य जड्डे कीवे य वाहिए। तेण रायाऽवगारी य उम्मत्ते य अदंसणे // 20 // दासे दुढे य मूढे य अणत्ते जुंगिते इय / ओबद्धए य भयए सेहनिप्फेडिया इय // 201 // गुठ्विणी बालवच्छा य पव्वावेतुं न कप्पए / एसि परूवण दुविहा उस्सग्गाववायसंजुत्ता // 202 // कारणमकारणे अहव कारण जयणेतरा पुणो दुविहा। एस पम्वण दविहा एत्तो बालादि वोच्छामि // 203 // तिविहीं य होति बालो उकोसो मज्झिमो जहण्णो य / एतसिं तिण्हं पी पत्तेय परूवणं वोच्छं // 204 // सत्तट्टगमुबोसो छप्पण मज्झोय चतुतिय जहण्णो। एवं वणिफण्णं सभावओ होति णव भेदा // 205 // जहण्णो जहण्णसभावो मज्झसभावो तहेव उ झोसो। एवं मज्झिम तिण्णी उसोसावि भवे तिण्णि // 206 // छिंदतमछिंदता तिन्निवि हरितादि वारिता संता / पुणरविय छिंदभाणा जइ दिट्ठ गुरूणवऽण्णणं / / उकोसो दट्टणं मज्झिमतो ठाति वारितो संतो। जो पुण जहण्णवालो हत्थे गहिओवि णवि ठाति // Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [24] पञ्चकल्प-भाष्ये दाहिणकरम्मि गहितो वामकरणं स छिंदती ताई। मंडलगंमिव धरिता चिट्ठह एवं च भणिता तु 209 जह भणितो तह तु ठितो पढमो बीएण फेडियं ठाणं। तइओ न ठाति ठाणे अहरुब्भति विस्सरं रुयति 210 एतसिं बालाणं पव्वाविंतस्सिमं तु पच्छित्तं / तिण्हंपि कमेणं तू वोच्छामी आणुपुवीए // 21 // अउणत्तीसा वीसा इगुवीसा चेव तिविह बालम्मि। तव छेद वीसु पढमे बिति मिस्सा ततिय छेदाइ 212 अउणत्तीसं दिवसे सिक्खावितस्स मासियं लहुयं / उकोसगम्मि बाले सो चेव असिक्खणे गुरुगो२१३॥ अण्णे अउणत्तीसं गुरुओ सिक्खे असिक्खि चउलहुया। पुणरवि अउणत्तीसं गुरुगा सिक्खे य छल्लहुया॥ अण्णे अउणत्तीसं सिक्खावितस्स होति पच्छित्तं / छल्लहुगा सिक्खम्मि य असिक्ख गुरुगा अउणतीसं॥ अण्णे सिक्खे छग्गुरु (असिक्ख) तवो छेदो छग्गुरू चव / मूलणवठे पारंचिगं च एककगं तत्तो // 29 // अहवा सो चेव तवो छेदादी मासमादिया होति / सिक्खाविंतमसिक्खे मूलेक्कदुगं तहेक्केकं // 217 // अहवा सो चेव तवो छेदो पणगादि जाव छम्मासा। सिक्खाविंतमसिक्खे लहु गुरु एकेक इगुतीसो 218 Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालान् शिक्षापयतः प्रायश्चित्तम् [25] मूलणवद्रं च तओ पारंचियमेव होति एकेक / सिक्खामिक्खपगारा उक्कोसे होति बालेते // 219 // अहवा सो चेव गमी दिहिं सिक्खितरवज्जिए होति। मासादि तव छेदा मूलाईया दिणेकेकं // 220 // एमेव मज्झिमे वी णवरं दिवसा तु वीस वीसं तु। एमेव जहण्ण वी उगुवीसु गुवीस दिवसा तु // 221 // अहवा मज्झे मीसा जहण्ण छेदादी अन्नपरिवाडी। तवछेदेगंतरिया मज्झे जहण्णे तु भयणाए // 222 // मज्झिमि वीस लहुओ सिक्खमसिक्खस्स मासिओ छेदो। वीलपणछेदो लहुओ सिक्खमसिक्खणे गुरुगो॥ तवो अड्ढोवती एवं तवछेदगंतरा तु णेयव्वा / जा छम्मासा ता चतु परओ मूलादि एकेकं // 224 // अउणावीस जहण्णे सिक्खाविंतस्स मासिओ छेदो। सो चिय सिक्ख गुरुओ जा छग्गुरु तिणि परओतु अहवा ण होइ छेदो ठाणे चिय मूल तह य अणवट्ठो। पारंचिए य तत्तो एवं भयणा जहण्णस्स // 226 / / अहवा पढमे छेदो तद्दिवसो चेव हवइ मूलं वा। एमेव होति बीए तइए पुण होति मूलं तु // 227 // किं कारण सोधेसा दोसा तहियं इमे समक्खाता / पव्वाविएसु तेसुं उड्डाहाई मुणेयव्वा // 228 / Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चकल्प-भाष्ये घंभस्स वयस्स फलं अयगोले चेव होंति छकाया। णिसिभत्तमंतराए चारग अजसो य पडिबंधो // 229 // लोगो बेती पेच्छह इणमो बंभवईण तु फलं तु। अयगोलो विव तत्तो डहती सो जित्तिए मुको // 230 // भत्त णिसि मग्गमाणा दिंते तू राइवत्तभंगो तु। हवइ अदितम्मि तु अंतराइयं बेइ लोगो य // 231 // चारगपाला हु इमे जे घालाइं तु एव रुंभंति। लोगे जायति अजसो अहह इमो णिरणुकंपत्ति 232 तेण य पडिबंधेणं पडिबद्धा णवि कहिंचि विहरति / जे दोसा णीयवासे ते पावंते य अच्छंता // 233 // ऊणठे णत्थि चरणं पव्वावितो वि भस्सई चरणा। मूलावरोहिणी खलु णारभते वाणिओ चेझें // 234 // उग्घायमणुग्घायं णाऊणं छव्विहं तवोकम्मं / एमेव छेदछविह जिण चोद्दसपुविएदिक्खा // 235 // उग्घायमणुग्घातो मासो चउ छच्च छव्विह तवे सो। एमेव छव्विहो चिय छेदो सेसाण एकेकं // 236 / एयं पायच्छित्तं णाउं पव्वावए तओ बालं / णवरं पव्वाविती जिण चोदसपुब्वि अतिसेसी 237 ते जाणिउं गुणागुण बहुगुण णाऊण तेण दिक्खंति। के पुण जिणमादीहिं दिक्खिय बाला इमें सुणसु // Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बालप्रव्रज्यायाः कारणानि [27] सत्याए अतिमुत्तो मणओ सिज्जंभवण पुव्वविदा। अतिससिणा य वतिरो छम्मासो सहिागरिणावि॥ एते अव्यवहारी पव्वाविंतीह गच्छवासी तु। एयं इत्थं जाउं भण्णति इणमो णिसामेहि // 240 // उवसंते व महाकुले णातीवग्गे व सन्निसिजतरे / अजाकारणजाते बाले पव्वज्जऽणुण्णाया // 241 // पव्वज्जाए परिणए विउलकुले तत्थ बाल होज्जाहि / मा सब्बे तेसि कते अच्छंतू तेण पवावे // 242 // णातीवग्गे य तहा थेरगमादीमयस्मि संतम्मि / जणवानरक्खतो सारवेइ आसण्णबालाई 213 // एवं सणितराण वि अज्जायव डिंडिबंधपडिणीए। कज्जं करेमि सचिवा जदि मे पवाव तह बाल // 244 // एतेहि कारणेहिं पवाविज्जाहि गच्छवासी तु / पव्वावियाण सिं इमेण विहिणा उ सारयणा / 245 // भत्ते पाणे धोवण सारणमा वारणा निउंजणता / चरणकरण सज्झायं गायव्यो पयत्तेणं // 246 // निद्धमहुरेहिं आउं पुस्सति देहिमि पाडवं मेहो। . अच्छति जत्थ ण णज्जति सड्ढादिसु पीहगादीया। धावत्ती सालवाडा पडिलेहणमादि सारणमभिक्खं / वारिज्जए अभिक्खं हरियादी छिंदमाणो य // 248 // Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [28] पञ्चकल्प-भाष्ये सामायारि सव्वं सज्झायं चेव उ पयत्तेणं / ' गाहिज्जति सो एवं जयणा एसा तु बालस्स / दा॥ तिविहो य होइ वुड्ढो उक्कोसो मज्झिमो जहण्णोय। एतेसिं तिण्हंपी पत्तेय परूवणं वोच्छं // 25 // दस आउविपागदसा दसभागे आउयं विभतिऊणं। दसभागे दसभागे होति दसा ता इमे होंति // 251 // बाला किड्डा मंदा बला य पण्णा य हायणि पवंचा। पन्भार मुम्मुही वि य सयणी दसमा य णायव्वा // तहियं पढमदसाए अट्ठमवरिसादि होति दिक्खा तु। सैसासु छसुवि दिक्खा पब्भारादीसु सा ण भवे / / वुड्ढट्ठ दसुकोसो मज्झो णवमि दसमी य तु जहण्णो जं उवरिं तं हेट्ठा भयणाऽप्पबलं समासज्ज // 254 // केसिंचि एववादी वुड्ढो उकोसगो उ जा सतरि / अट्ठदसाए मज्झो णवमी दसमीसु य जहण्णो / कुरुकुयमादि णिसिद्धी जह मा बीयं करेहि एवंति / पुणरवि य करेमाणो दिहो साहहिं ताहे तू // 256 // उकोसो दट्टणं मज्झिमओ ठाति वारिओ सतो। जो पुण जहण्णवुड्ढो हत्थे गहिओ णवरि ठाति // ठाणे यचिट्ठसुत्तीजह भणिओ तह ठिओ भवे पढमो बीएणं फेडियं तं तइओ णवि ठायई ठाणे // 258 // Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धस्य दीक्षानर्हत्वे कारणानि [29] एगुणतीसा वीसा अउणावीसा य तिविह वुड्ढम्म / पत्तेयं तवछेदा पढमे बितिमीसतवछेदा // 259 // तह चेव विभागो तू जह बालाणं तु होति तिण्हंपि। किं पुण एसा रूवणा? भण्णति इणमो निसामेहि 260 आवस्सय छकाया कुसत्थ सोए य भिक्ख पलिमंथो। धंडिल अप्पडिलेहा पमज्ज पाढे करणजड्डा // 261 // आवस्सयं न सको गाहेतुं जड्डयाए सो बूढो। छकाय ण सद्दहती ण तरति ते यावि परिहरिङ 262 कुद्दिठिकुसत्यहिं तु भावितो नेच्छए नगं मोत्तुं / लोगस्स अणुग्गहकरा चिरपुराणत्ति अम्ह मो // 263 // अतिसोयवायएणं पुढविं गेण्हति बहु दवं छड्डे / अपरीहत्थो भिक्खायरियं पलिमंथ पातवहो / / 264 // थंडिल्लं णवि पासइ दुब्बलगहणी य गंतु ण चएइ / अण्णस्सपि वक्खेवा चोदण इहरा विराहणया 265 पहिलेहणं ण गिण्हइ पमज्जणे यावि सो भवति जडो। णवि तीरति पाढेतुं दुम्भहो जड्डबुद्धी य // 266 // भंजति अभिक्खमालावगं च अण्णेसि यावि पलिमंथो उवहिं वीसारेती छड्डेइ व पंथि वच्चंतो // 267 // उठ्ठिलणिवेसिंते चंकंमते अ वाउडियदोसा / चरणकरणसज्झाए दुक्खं वुड्ढो ठवेतुं जे // 268 // Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [30] पञ्चकल्प-भाष्ये उग्घायमणुग्घायं छव्विह पच्छित्त कारणे तेणं। . तम्हा वुड्ढ ण दिक्खे जिणचोदसपुब्विए दिक्खे // पव्वाविति जिणा खलु चोद्दसपुव्वी यजे य अतिसेसी जिणमादीहिं तेहिं कयरे ते दिक्खिया वुड्ढा // 270 / / सत्थाए पुव्वपिता चोद्दसपुवीण जंवुणामपिता। तं मग्गेणं जणतो तु दिक्खितोरक्खियज्जणं // 27 // एते अव्ववहारी इच्छामी णातु अणतिसेसीया / जह दिक्खंते भण्णति सुणसू जहं तेऽवि दिक्खंति // उवसंते व महाकुले णातीवग्गे व सण्णिसेज्जतरे। अज्जाकारणजाते वुड्ढस्सेवं भवे दिक्खा // 273 // जह चेव य बालस्सा विभास तह चेव होति वुड्ढस्स। णवरं इमो विसेसो अज्जाणं कारणा होति // 274 // अज्जाण णत्थि कोती संचारितो तु खेत्तमादीसु। तेणं तेसट्ठाए वुड्ढं हतसंक पव्वाए // 27 // एतेहिं कारणेहिं जति णाम होज्ज दिक्खितो वुड्ढो। ताहे य तस्स सारण कायव्व इमीइ तु विहीए // 27 // भत्ते पाणे सयणासणे च उवही तहेव वंदणए। चरणकरणसज्झायं अणुयत्तणया य गाहणता // 27 // जारिसतभत्तपाणेण णिव्वाहो दिज्जते से तारिसगं / सयणीयसमा भूमी पाउंछणमादि आसणंयं // 278 // Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकस्य लक्षणानि [31] जत्तिय तरए वोढुं सीयत्ताणं व जत्तिएणं सो। तत्तियमेत्तो उवही दिज्जति सेऽणुग्गहठाए // 279 // वंदणए अणुकंपा कीरति न सारियम्मि वंदावे / चरणकरणमझायं अणुकूलेउं चरणगाहो // 280 // उवउंजिउं णिमित्ते दोण्हपि य कारणा दुवग्गाण / होहिंति जुगप्पवरा दुण्डवि अट्ठा दुवग्गाणं // 281 // ओहिमणा उपजिद परोक्खणाणी णिमित्त धेतूणं / जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिंति 282 दोषिणत्ति वालवुड्ढा पुणवि दो वग्ग इथि पुरिसाय सुत्तत्पदुगटाग कालियपुश्वगयअठा वा // 283 // पुणरवि दो वगा खल सभणा समणी य होति णायव्वा लेसि अट्ठा दिती आहारा तेसि होहिंति दा. एत्तो बुच्छ पुंज सो किह णज्जेज्ज जहणपुंसोत्ति। भण्णति चव कप्पति दिक्खेतु चिहि अजाणंतो॥ तम्हा दिक्खा गीते दिक्खिंते चउगुरू अगीयस्स। गीतेऽवि अपुच्छित्ता गुरुगा पुच्छा उवाएणं // 286 / / अम्हं णपुंसगादी ण कप्पने एव भणिते साहेज्जा। को वा णिवेदो ते भणिज्ज भगवं अहं ततिओ 287 अहवावि य मित्ता से णिव्वेदं पुच्छिया हु साहेज्जा। अहवा वि लक्खणेहिं इमेहिं गाउं परिहरेज्जा 288 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [32] पञ्चकल्प-भाष्ये महिलासहावोसरवण्णभेदो मेंढं महंतं मउया यवाणी ससद्दगं मुत्तमफेणगं च एताइं छप्पंडगलक्खणाई॥ गती भवे पञ्चवलोइयं च, मिउत्तया सीतलगत्तया य। धुवं भवे दुक्खरणामधेओ, संकार पञ्चंतरिओ ढकारो॥ गतिहत्थवच्छकडिभमुयभास दिट्टि य केसलंकारे। पच्छण्णमज्जणाणि य पच्छण्णतरं च णीहारो 291 मंदा गती विक्खिवे वामहत्थं, लंबं णियंसेति जहेव इत्थी। कडिथंभगं वा विकरे अभिक्खं सविन्भमं उक्खिवए भुमाओ // 292 // भासंतो या विकरं वच्छे णिवेसेति इत्थिया चेव / हीणस्सरो य जायइ दिट्ठी य सविन्भमा तस्स / / 293 // केसे इत्थी व जहा आमोडति इत्थिमंडणं चेव / ण्हायति एगंते या पच्छन्ने आयरुच्चार // 294 // पुरिसेसु भीरु महिलासु संकरो पमयकम्मकरणो य। एवं बाहिरलक्खण णपुंसवेदो भवे अंतो // 295 // सो पुण णपुंसवेदो लिंगे तिविहो वि होति बोधव्यो। कह लिंग तिए ? भण्णति एत्थं एक वेदतिगं // 296 // उस्सग्गलक्खणं तु त्थीपुरिसणपुंसगाण वेदाणं / फुफुमदवग्गिमहणगरदाहसरिसा जहाकमसो 297 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकस्य षोडशभेदाः 33] एकेके तिह भयणा इत्थी थीसरिस पुरिस अपुमे य / इय पुरिसणपुंसेथा एक होति वेदतिगं // 298 // सो पुण णपुंसगो तू सोलसहा होति तू अणेयव्यो। पंडग कीव वातिय कुंभी ईसालु सउणी य // 299 // तकम्ममेवि पक्खियमपक्खिए तह सुगंधि आसित्ते / वद्विन चिप्पिय मंतोमहीहिं वा उवहए जे य // 30 // इसिलत्त देवसत्ते रतेसि परूवणा इमा होलि। लहिय पंडो लिविहो लक्खणदूसी य उवधाओ 301 पंडगलक्खण जस्सा जाचा अवलोयणेण तु गहाणं। सो लक्खणतो पंडो दूसीपंडो इनो होति // 302 // दूसियवेदा दूसी दोसु य वेदेसु सज्जए दूसी। दो सेवइ वा वेदो दोसु व दूसिज्जई दूसी // 30 // दूसेति मेला वा लो दुह आलित्तो तह य ऊसित्तो। सावच्चो आभित्तो अणवचो होति सित्तो // 304 // उवघाचि दुविहा वेदे य तहेव होति उवकरणे। वेदांवधायडा इणनो तहियं मुणेघव्वो // 30 // पुचि दुबिग्माणं कम्भाणं असुहफलविवागणं / तो उचहलीने वेदा जीवाणं पावकम्नाणं // 306 // Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [34] पञ्चकल्प-भाष्ये जह हेमकुमारो ऊ इंदमहे बालियाणिमित्तेणं / मुच्छिय गिद्धो अतिसेवणेण वेदोवघातमतो // 307 // एयस्स वि भास इमा जह एगो रायपुत्तो वण्णेणं। तवियवरहेमसरिसो तो से णामं कतं हेमो // 308 // सो अण्णदा कदाई इंदमहे इंदठाणपत्ताओ। / णगरस्स बालियाओं पुप्फादीहत्व दटूणं // 309 // पुच्छति सेवगपुरिसे कि एया आगताउ इह इंति ? / ते बिंती सोहरगं मग्गंते ता वरत्थीओ // 310 // तो बेई एयासिं इंदेण वरी हु दिण्ण अहमेव / घेत्तूणं ता तेणं छूढा अंतेउरे सव्वा // 311 // तो णागरगा रणो उवटिता मोयवेह एताओ। तो बेति मज्झ पुत्तो किं जामाता ण रुचनि भ 312 तोतासु अतिप्पसत्तस्स तस्स णिग्गलियसव्वीयस्स वेदोवघातो जातो सागारीयं ण उद्वेति // 313 // तो ताहि रूसियाहिं सो अद्दागेहिं घातितो ताहे / वेदोवघातपंडो एसोभिहितो समासेणं // 314 // उवहत उवगरणम्मी सेज्जातरभूणियाणिभित्तेणं / तो कविलगस्स वेदो ततिओ जातो दुरहियासो 315 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डकदीक्षायां प्रायश्चित्तम् [35] उवहय उवगरणम्मी एवं होज्जा णपुंसवेदो हु। दोसा सवेदुदिण्णं धारेतु णचाइ णायमिणं // 316 // जह पढमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरियगतणस्स / अणुसज्जति कोटिंबिं वावणं दुब्भिगंधीयं // 31 // एवं तु केइ पुरिसा भानूणं भोयणं पतिविसिझें। ताव ण भवति तुट्ठा जाव ण पडिसेविओ वेदो 318 लक्खणदूसियउवघायपंडगं तिविहमेव जो दिक्खे / पच्छित्त तिसुवि मूलं दोसा तहियं इमे होंति // 319 तरुणादीहिं सह गओ चरित्तसंभेदिणी करे विकहा। इथिकहाउ कहित्ता तो सि यऽवण्णं पगासेइ 320 समलं साविलगंधिखेदो य ण ताणि आसए होति। सागारियं णिरिक्खेइ मलेत्तु हत्थेहिं जिग्घइ य 321 पुच्छति सेवियपुवो णसगो णवित्ति अतिसुहं एवं / आसयपोसे य तहा दुविहवि सेवी अहं चेव // 322 // एवं पुच्छित्तु तओ अहवावि अपुच्छिऊण सहसेवे / गणेहज्जा ही समणं तेण कहेयव्यतो गुरूणं // 323 // छदिय कहिय गुरूणं जोण कहेति कहिएऽविय उवेहं। परपक्ख सपक्खे वा जं काहिति सो तमावज्जे 324 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [36] पञ्चकल्प-भाष्ये सो समणसुविहिएहिं पवियारं कत्थती अलभमाणो। तो सेवितुं पवत्तो गिहिणोतह अण्णतित्थी य 325 अजसो य अकित्ती या तं मूलागं तहिं पवरणस्स / तेसिपि होति संका सव्वे एतारिसा मण्णे // 326 // एरिससेवी एतारिसा वी एतारिसो चरतिसदा / सो एसो णवि अण्णों अस्संखडघोडमादीहिं // 327 // जम्हा एते दोसा तम्हा णवि दिक्खणिज्जो पंडो उ। एसो पंडोऽभिहिओ एत्तो किलियं पवक्खानि // 328 क्रिलियस्स गोण्ण णामं तदभिप्पाओ कलिज्जए जस्स सागारियं से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा 329 सो हू णिरुन्भमाणो कम्मुदएणं तु जायए तइओ। तम्मिवि सो चेव गमो पच्छित्तं चेवजह पंडे // 330 // उदएण वातियस्सा सविगारं जाण होती संपत्ती। तचणिय असंबुडिते दिळंतो तत्धिमो होति / / 331 // णावारूढो तच्चण्णितो तु दटुं असंवुड पगारि / ओवतिओ पुरिसेहिं ज्झांडन्ति शारिज्जमायोचि 332 एसोऽवि वातिगो हु अल अंतो सेवितुं अणा। कालंतरेण सोऽविहु णपुंसगत्तेण परिणति 333 // Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुम्भीनपुंसकनिरूपणम् [37 ] दुविहीय होति कुंभी जातीकुंभी य वेदकुंभी य / जातीकुंभी वायंडिओ हु सो भइय दिक्खाए // 334 // होइ पुण बंदकुंभी असवओ सुज्जते स सागरियं / सोऽवि य णिरुद्भवत्थी णपुंसगत्ताए परिणमति 335 वेउक्कडना ईसालगो हु संविज्जमाण दट्टणं / ण चएती बारेउ णिरुभमाणो भवे ततिओ // 336 // सउणी उ डओ चडउच्व अभिक्ख सेवए जो उ। सोवि य णिरुद्धवत्थी णपुंसगत्ताए परिणमति 337 तकमसेवि जो खलु सेविय त चेव लिहति साणो व्द / सोविय अपडियरलो णपुंसगत्ताए परिणभत्ति 338 एगे पक्ख चुदओ एगे पक्खम्मि जस्स अप्पो उ। सो पक्खपक्खिओ हू सोऽवि णिरुद्धो भवे अपुमं // सागारियर गंधं जिंघान सागंधिओ भवेस खलु। फालं नरेण तोऽवि अलभतो परिणमे अपुमं // 340 // विग्गहअणुप्पवेसिय अच्छति सागारियसि आसित्तो ण य से भावो समो अलभंतो सोवि अपुभ भवे / गालियदोसा भाऊगा जस्स हु सो वद्धिओ मुणेयव्यो। चिप्पियबालस्सेव तु चिप्पित्तु विराहिता जस्स 342 Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [38] पञ्चकल्प-भाष्ये मंतेणुवहतवेदो अहवावी ओसहीहि जस्स भवे। इसिसत्तदेवसत्ता इसिणा देवेण वा सत्ता // 34 // वद्धियमादि उवरिमा छच्च णपंसा हवंति भयणिज्जा जदि तो सेविण दिक्खे अहणवि पडिसेवितो दिक्खे आदिल्लेसु दसस्सु वि पवावितो हु पावए मूलं / जो पुण पटवावेहा वदतेवं तस्स चउगुरुगा 349 जे पुण छ तूवरिमा पवाविंतस्स चउगुरू तेसुं। वदमाणेऽवि य गुरुगा किं वदते सो इमं सुणसु 34 // धीपुरिसा जह उदयं धरिति झाणोववासणियमेहि एवमपुमंपि उदयं धरेज्ज जदि को तहिं दोसो 1349 अहवा ततिए दोसो जायति इयरेसु किन सो भवति एवं तु नत्थि दिक्खा सवेदगाणं ण वा तित्थं / / 348 / भण्णति धीपुरिसा खलु पत्तेयं दोसरहियठाणेसु / णिवसंती इयरो पुण कहि छन्भति दोसु वी दोसा॥ संवासफासदिट्ठी दोसा हू तस्स उभयसंवासे / अपत्थंबगदिळंतो जह रायमतो अवारंतो // 350 // एत्थंबगदिद्रुतो अहवा जह वच्छो मातरं दटुं। अभिलसती मायावि य वच्छं दठूण पण्डयति 351 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डकादिदीक्षायामपवादः [39] अंबं वा खज्जतं दट्टे अहिलासो होति अण्णस्स / सागारियादि दटुं एव णपुंसे भवे दोसा // 352 // तम्हा हु ण दिक्खिज्जा एवं णाऊणमेत दोसगणं / वितियपदे दिक्खिज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु 353 असिवे ओभोयरिए रायदुठे भए य आगाढे। गैलण्ण उत्तिमढे जाणे तह दंसण चरिते // 354 // रायडुठभएसुं ताण णिवस्त चेव गमणछा / घेज्जो व सयं तस्स व तप्पिस्सति वा गिलाणस्स 355 पडिचरगस्सऽसतीए एगागी उत्तिम पडिवणो। अहवा वी कुसहाए वेयावच्चट्ठना दिक्खे // 356 // गुरुणो व अप्पणो वा णाणादी गिण्हमाण तपिहिती। अचरणदेसा णेते तप्पे ओमासिवेहिं वा // 37 // एतेहिं कारणेहिं आगाढेहिं तु जो तु णिक्खामे / पंडादी सोल सगं कयकज्ज विगिंचणट्ठाए // 38 // तस्स विही होति इमा दिक्खिज्जंतस्स कारणज्जाए। सो पुण जाणिमजाणी जाणति जाणी जहा ततिओ॥ णवि कप्पनि दिक्खेतुं तमुवट्टिन पण्णवेति अह एवं / तुज्झ ण कप्पति दिक्खा नाणादिविराहणा मा ते // Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [40] पञ्चकल्प-भाष्ये जो पुण ण जाण एवं तस्स विही होति मा करयव्वा। जणपञ्चधट्ठताए जाणंतमजाणए वावि // 361 // कडिपट्ट भंड छिहली कत्तरि खुर लोय परमतं पाढे। धम्मकह सण्णि राउल ववहार विगिचणं कुज्जा॥ कडिपट्टभंडछिहली कीरति णवि धम्म अम्ह चेवासी कत्तरि खुरेण णिच्छे हाणी एशेश जालोओ / / 363 // लोएवि कए पच्छा भिक्खुगमादीमताई पाटिंति / तंपि य अणिच्छमाणे पाहिँति छलियकव्वाई 364 ताणिवि अणिच्छमाणे धम्मकहाता विहू अणिच्छते। परतित्थियवत्तव्वं दिज्जति ताहे ससमए वि / / 365 // तंपि य अणिच्छमाणं उसमतो तस्स दिज्जए सुत्तं / अण्णोपणसुत्तपल्लव पुवावरओ असंबद्धं // 366 // घीयारगोयरे थेरसंजुतो रत्ति दूरि तरुणाणं। गाहेह मर्मपि ततो थेरा जुत्तेण गाहिंति // 367 // घेरग्गकहा विसयाण जिंदणा उट्टणिसयणेगुत्ता। चुक्खलितम्मि बहुसो सरोसमिव तज्जए तरुणा // कतकज्जा से धम्मं कहिंति मुंचाहि लिंगमेयंतिं / मा हण दुएवि लोए अणुव्वता तुज्झ णो दिक्खा // Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पण्डकव्युत्सर्जनविधिः [4] इय पण्णविओ संतो जइ मुंचइलिंग तोउ रमणिज्ज। अह णवि मुंचति ताहे भेसिज्जति सोइमेहितो 370 सण्णि खरकम्मितो वा भसेइ कओ इहेस के चिच्चो / ते सासति रायकुले यदि सो ववहार माग्गज्जा 371 एतेहिं दिक्खिओऽहं जति वियलोगोण याणते कोति। एतेहिं विक्खितोऽहं तो ते बिंती ण दिक्खमो // 372 / / अज्झाविओवि एतहिं चेव पडिसेहो किं व धीयं ते / छलियकहादी कढति कत्थ जती कत्थ छलिताई 373 पुव्वावरसंजुत्तं वेरग्गकर सतंतमविरुद्धं / पोराणमद्धमागहभासाणियतं हवति सुत्तं // 374 // जे सुत्तगुणाभिहिता तविवरीयाइं गाहिओ पुट्विं / तेहिं चव विवगो जह एरिसयं भवति सुत्तं // 375 / / णिववल्लह बहुपक्खम्मि वाविं वुटुं व गम्मि पव्वइए। घोसिरणं वाच्छामी विहिए जह कीरए तस्स // 376 // भिण्णकहाओभट्ठ बिती ण घडति इइं खु एरिसयं / परतिथिगादि वयसू जति बेती तुज्झ समयत्ति 377 इय होउती वोत्तूण णिग्गतो भिक्खमादिलक्खेणं / भिक्खुगमादी छोढुं विपलायंती पुणो तत्तो // 378 // Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [42] पञ्चकल्प-भाष्ये कावालिए सरक्खे तचण्णिय लिंगमादि वसभा तु। तं किंतु देउलादिसु सुत्तं छड्डेत्तु वसहि इंति // 379 // तिविहो य होति जड्डो भाससरीरे य करणजड्डो य / भासाजड्डो चउहा जलएलगमम्मण्णदुमेहो // 380 // जह जलबुड्डो भासति जलमूओ एव भासइ अवत्तं। जह एलगो व्व एवं एलगमूगो वलवलेति // 381 // मम्मणमूओ बोब्बडो खलेइ वाया हु अवि सदा जस्स दुम्मेहस्स ण किंची घोसनस्सावि ठायइ हु // 382 // दसणणाणचरित्ते तवे य समितीसु करणजोगे य / उवइटपि ण गेण्हति जलमूगो एलंमूगो य // 383 / णाणादिऽट्ठा दिक्खा भासाजड्डी अपचलो तस्स / सो य बहिरो य णियमा गाहणे उड्डाहो अहिकरणं तिविहो सरीरजड्डो पंथे भिक्खे तहेव वंदणए / एतेहिं कारणेहिं सरीरजडू ण दिक्खेज्जा // 385 // अद्धाणे पलिमंथो भिक्खायरियाए अपरिहत्थो य। उड्दुसासऽपरकम अहियग्गी उदगमादीसु // 386 // आगाढगिलाणस्स य असमाही वावि होज्ज मरण वा जड़े पासेवि ठिए अण्णे य भवे इमे दोसा // 387 // Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षाऽनहजडुनिरूपणम् [43] सेदेण कक्खमादी कुच्छण धुवणुप्पिलावणे दोसा। णत्थि गलभोय चोरो णिदिय मुंडा य जणवादो // णेगे सरीरजड्डे एमादीया हवंति दोसा तु। तम्हा तं णवि दिक्खे गच्छे महल्ले वऽणुण्णाओ 689 हरियासमिई भासेसणासु आदाणसमिइगुत्तिसु / णवि ठाति चरणकरणे कम्मुदएण करजणड्डो 390 जलभूग एलमूगो अइथूरसरीर करणजडे य / दिक्खंतस्सेते खलु चउगुरु सेसेसु मासलहु // 391 // भासाजड़े मम्मण मरीरज९ च णातिथूरं च / जावजियपरियट्टे करणे जरुं तु छम्मासा // 392 // मोत्तुं गिलाणकज्ज दुम्मेहं वावि पाढि छम्मासे / ताहे तं दुम्मेहं जाविय करणम्मि सो जड्डो // 393 // छण्हुवरि ते दोण्हवि आयरिओ अण्ण गाहि छम्मासा। पच्छा अण्णो ततिओसोविय छम्मास परियट्टे 394 जो वितं गाहेती सिस्सो तस्सेव सो हवति ताहे / तहवि ण गिण्हइ जदि हू कुलगणसंघे विगिचणता॥ दुविहो य होति कीवो अभिभूओ चेव अणभिभूओ य अभिभूतोऽवि य दुविहो आलिद्धनिमंतणाकीवो // Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [44] पञ्चकल्प-भाष्ये दुविहो य अणभिभूओ दिट्टीकीवो य सद्दकीवो य। एतेसि विसेसमिणं वुच्छामि अहाणुपुवीए // 397 // आलिद्धो जो णिवडति इत्थीहिं एस पढमओ कीवो। जो पुण पडति णिमंतिओ सो होति णिमंतणाकीवो दुब्वियडदुण्णिसणं णिगिणमणायारसेवणं वावि / दळूणं जो खुन्भति दिट्टीकीवं तयं चिंति // 399 // अह साहम्मीण तहण्णधम्मिणं अहव वावि गिहियाणं / इत्थीओ दट्टणं खुभति दिट्ठीय कीवो सो 400 भासा भूलण तह गीयसद्दपरियार सहमहवावि / सोऊणं जो खुन्भति सो भण्णति सद्दकीवोत्ति 401 मोहुकडताएते करेज्ज दोसे इमे णिरंभंता / सज्ज इत्थिरगहणं मरणं अहवावि ओहाणं // 402 // आलिद्धणिमनणदिद्विसद्दकीवाण होति आरुवणा। चउगुरु छग्गुरु छेदो मूलं च जहक्कमेणं तु // 403 // एत्थं दो आदिल्ले जदि दिक्खे तो हु एव परियट्टे / जावज्जीवं णिमिय चरित्तसंघातसहिएहिं // 404 // दिट्ठीयसद्दकीवा णवरं दिक्खज्ज उत्तिमम्मि / अण्णह ण तेसि दिक्खा एवं कीवो समक्खातो 405 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दीक्षाऽनहरोगि-स्तेननिरूपणम् [5] रोगेण व वाहीण व अभिभूयस्स ण कप्पती दिक्खा। गडीकोढादीओ सोलसहा हवति रोगो उ // 406 // वाही पुण अट्टविही कामादिओय होति णायव्वो / न रोगवाहियत्थं दिक्खते ऊ इमे दोसा // 407 // छ काय समारंभो णाणचरित्ताण चेव परिहाणी। घंसण पोसणपयणं दोसा एवंविहा होंति // 408 // जाताअणाहसाला समणावि यदुक्खिया तिगिच्छंता नेवि य पउणा संता होज्ज व समणा ण वा होज्जा // अवंतिओ य तेणो पागइओ गामदेसअद्धाणे / नकारखाणगतेणे परूवणा तेसिमा होति // 410 // अनिओ अडा (डा) णो पागइओ थिरा य अहव पागइणं / हरली गामाईणं अंतर अहवावि तेसिं तु // 411 // तेणेन तु कम्मेणं जीवति णऽण्णण तकरो स खलु / खत्ता जो खणली खाणगतेणो भवे स खलु 412 से मानगो उहा दळवे खित्ते य कालभावे य / एतेन नापी तेव पचणं वोच्छं // 413 // सकिने प्रक्षिते पीले विश होति दवतेणा हु। सञ्चित्त दुवादी दुरदे दा लाइथं होति // 414 // Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [46] पञ्चकल्प-भाग्ये गोमादी य चउप्पय अपदं फलधण्णमादियं होति। अच्चित्त हिरण्णादी दुपयादि सभंड मीसम्मि 415 एमादि दव्वतेणो साहम्मिय अण्णधम्मियगिहीणं / तेणितो सो तिविहो उकोसो मज्झिम जहण्णो // 416 हयगतमाणि कादि य तेणितो तेणितो उ उक्कोसो। खत्तखणकण्हवब्णिय गोणी तेणो तु मज्झिमओ॥ गंठी भेदग पहियजणदव्वहारी जहण्ण तेणो तु / एकेकस्स य एत्तो पडिच्छग पडिच्छगो चेव // 418 // सगदेस परविदेसे अंतरतेणे य होति खित्तम्मि / दा। राइंदिया वि काले भावम्भि यणाणतणादी // 419 // गोविंदज्जो णाणे दंसण सुत्तट्ट हेतुसट्ठा वा। पारंचिग उवचरगा उदाइवहगादओ चरणे // 420 // दव्वादि तेण एसो पव्वावेतुं ण कप्पए सव्वो। समणाण व समणीण व पव्वाविते इमे दोसा 421 धंधण रोहण तालण दासत्तं मारणं च पाविज्जा / णिव्विसयं च णरिंदो करेज्ज संघपि सो रुट्ठो // 422 // अजसो य अकित्ती या तं मूलागं ताहिं पवयणस्स / ठाति गिहीण वि एवं सव्वे एयारिसा मण्णे // 423 / / Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्तेनदीक्षायां प्रायश्चित्तम् [47] सग्गाम परग्गामे सदेस परदेस अंतो चाहिं वा। दिट्ठमदिटुकोसा मज्झिम जहणे इमा सोही // 424 // मूलं छेदो छग्गुरु छल्लहु चत्तारि लहुग गुरुगा य / गुरुग लहुगो य मासो एएसिं चारणा तुइमा // 425 // सग्गामंतो दिठे उझोसे मूल छेदो अद्दिठे। वाहिं दिठे छेदो अद्दिठे होति छरगुरुगा // 426 // परगामंतो दिठे उक्कोसे छेदो छग्गुरुमदिठे। चाहिं दिठे छग्गुरु अदिठे होति छल्लहुगा // 427 // सद्देसंतो दिढे छग्गुरु अदिठे होति छल्लहुगा / पहि दिठे छल्लहुगा अद्दिठे होति छरगुरुगा 428 परदेसंतो दिठे छल्लहुगा अदिठि होंति चउगुरुगा। पहिं दिढे चउगुरुआ अद्दिष्ठे होति चउलहुगा // 429 // एवं ता उनोसे मज्झे छेदादि ठाति गुरुमासे / छग्गुरुगादि जहणणे ठायइ अंतम्मि लहुमासे / / 430 // वितियपदमुकमोइ य अहवा वीसज्जितो णरिदेणं / अद्वाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमठे वा // 431 // रन्नो उवरोहादिसु संबद्ध तह य दव्वजोगम्मि / अन्भुठिओ विणासाय होइ रायावकारी तु // 432 // Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [48] पञ्चकल्प-भाष्ये सच्चित्त अचित्त मीसगमवकारे दूतलेह उवकरणं / . . समणाण व समणीण व ण कप्पते तारिसे दिक्खा // आसो हत्थी खरिया वाहीत कतकतं च कणगादी। अहवा सभंडमत्ता खरियादी अवहिता होज्जा 434 दोच्च विरुद्धं य कतं होज्जाहि पउत्तकूडलेहो वा / पिउपुत्तभाउगादी कोई वहिओ व से होज्जा 435 तं तु अणुद्धियदंडं जो पव्वावेति होति मूलं से / एगमणेगपओसे होज्जा पत्थारदोसा वा // 436 // बितियपद मुकमोऽइ य अहवा विसज्जितो णरिदेणं। अद्धाणपरविदेसे दिक्खा से उत्तिमठे वा / दा 437 उम्मादोखलु दुविहो जक्खादेसो य मोहणिज्जो य। दुविहं पि ण दिक्खिज्जा दोसा तु भवे इमे तस्स / / अगणी आलीवणता आयवयविराहणा य उड्डाहो। छक्काय ण सद्दहती सज्झायज्झाणजोगे य // 439 / / पडिलेहणादि वितहं करते लमितीनु असमितो आवि उवदिपि ण गिण्हति तम्हा चि दिक्त उम्मत्तं / दा // 440 ! दुविहो अदंसणो खलु जातिउ उवद्याततोगणायक उवघातो पुण तिविहो वाहि उवघाउ अंजणता 441 Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दासस्य प्रकाराः [49] एय पसंगणं चिय अवरो थीणद्धिओ मुणेयव्वो / एतसिं सोहि इमा जहकमेणं मुणेयव्वा // 442 // उद्रियणय तह सेसएमु थीणद्धितो नु कमसोतु / कग्गुरु चउगुरु चरिमं दोसा तहिं दिक्खिते इणमो॥ कायविउरमणता आवडणं खाणुकंटमादीसु / थंडिल्लअपडिलेहा अंधस्स ण कप्पती दिक्खा 444 // आवहति महादोसं दंसणकम्मोदएण थीणद्धी। एगमणेगपओसे जं काही तं तु आवज्जे // 44 // गम्भे कीए अणए दुभिक्खे सावराहि रुद्धे य / एमाइ होति दासा ण कप्पती तारिसे दिक्खा // 446 राया व रायमचो कितिकम्मं संजताण कुव्वतो। दट्टण दुवक्खरयं सव्वे एयारिसा मण्णे // 447 // वहबंधं उद्दवणं खिंसण दासत्तमेव पावेज्जा। णिव्विसयपि णरिंदो करेज्ज संघपि सो रुट्ठो॥४४८॥ अजसो य अकित्तीया तंमूलागं तहिं पवयणस्स / लोगस्स हाति संका सव्वे एयारिसा णूणं // 449 // मुझो व मोइओ वा अहवा वीसज्जितो णरिदेणं / अद्वाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमढे वा / दा 450 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [5.] पञ्चकल्प-भाष्य दुविहो य होति दुट्ठो कसायदुट्ठो य विसयदुट्ठो य दुविहो कसायदुट्ठो सपक्ख परपक्ख चउभंगो 451 सासवणाले मुहणंतए य उलुगच्छि सिहरिणि सपक्खे सासवणाल सुसंभिय एगेण गुरूणमुवणीयं // 422 // सव्वं गुरुणा खइयं इयरे कोवो य खामणे गुरुणा / अणुवसमंते उ गणे गणिं ठवेत्ताऽन्नहिं परिन्ना / / 453 / पुच्छंतमणक्खाए सोव्वण्णतो गंतु कत्थ से देहं / गुरुणो पुव्वं कहिते दाइ य पडियरण दंतवहो // 404 / मुहणंतगस्स गहणे एमेव य गंतु णिसि गलग्गहणं संमूढेणियरण वि गलए गहितो मया दो वि // 427 // अत्थं गते वि सिव्वसि उलगच्छी उक्खणामि तुह अच्छी। पढमगमो नवरि इहं उलुगच्छीउ त्ति ढोके / सिहरिणि लद्ध णिवेदे गुरुणं सव्वादितं ते उग्गिरणा भत्तपरिणा अण्णहिं ण गच्छती सो इहं णवरि // परपक्खम्मि सपक्खे उदाइणिवमारतो जह पदुट्ठी सो पवयणरक्खट्ठा णिच्छुभति लिंग हातृणं // 428 परपक्खि सपक्खे पुण जउणाराय व्व सोतु भयणिजो तं पुण आतिसयणाणी दिक्खेंतिऽधिगारिणं णाउं 4.6 Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूढस्य भेदाः [51] परपक्खे परपक्खे दंडियमादी पदुट्ठ परदेसे / उवसंते वा तत्थ उ दमगादि य दुट्ट भइतो वा // 460 तिविही य विसयदुट्ठो सलिंग गिहिलिंग अण्णलिंगे य। अहवा सव्वोऽवि दुहा सपक्ख परपक्ख चउभंगो॥ सपक्खे विसयदुट्ठो सपक्ख पारंचिओ तु आउद्यो / अठियम्मि लिंगहरणं एमेव सपक्खपरपक्खे // 462 // परपक्खं तु सपक्खे विसयपदुढे ण तं तु दिक्खंति / सेज्जियमादि पदुटुं ण य परपक्खं तु तत्थेव // 463 // दव्वदिसखेत्तकाले गणणा सारिक्ख अभिभवे वेदे। बुग्गाहणमण्णाणे कसायमत्ते य मूढपदा // 464 // दव्वे दुह पाहि अंतो अंतो धत्तूरगादि बहि धूमो। जाव दवियं ण याणति घडियाबोद्दो व दिर्सेपि 460 दिसमूढो पुव्वमवरं मण्णति खेत्तम्मि खेत्तवच्चासं / दियरातिविवच्चासी काले पिंडारदिट्टतो // 466 // जह कोई पिंडारो खीराणसद्धाए रत्ति (पाउ) पासुत्तो अन्भच्छपणे उठिओ मण्णति जह वट्टए रत्ती // 46 // महिसीओ पविसंतो दिट्ठो लोएण हसियतो ताहे। किं एयं ति य भणियं एमादी कालमूढो सो // 468 // Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [52] पञ्चकल्प-भाष्ये ऊणहियं मण्णंतो उद्दारुढो य गणणतो मूढो। सारिक्खथाणुपुरिसो महतरसंगामदिटुंतो // 469 // , जह एके गामम्मी चोरा पडिया तु तत्थ जुद्धम्मि / सेणावती तहिं वहिओ सारिक्खो महतरो वणितो। सो णीओ चोरपल्लिं इयरो दट्ठो य तेण गामेणं / वेती य चोरे महतरो णाहं सेणावती तुझं // 47 // ता ते चौरा बिंति तो (णियमा) गहिओ एसो तरुणपिसाईए / तो णासिऊण तत्तो गामगतो विणियतो णियमा // 472 / / दट्ठोसी अम्हेहिं किं देवेहिं जियावितो तंसी / इय सारिक्खविमूढा दोण्णिवि गामेल्लचोरा य 47 अभिभूतो संमुज्झति सत्थग्गीचोर(वात)सावयादीहि अब्भुदयऽणंगरती वेदम्मी रायदिढतो // 474 // जह कोति रायपुत्तो बालो अच्छीसु दुक्खमाणासु। माद्गहसारिसारियसंफुसणठितो तु तुहिको // 475 लद्धोवाउत्ति तओ एवमभिक्खं तु ताहे सा कुणति / सो वियविवद्धमाणो सत्तो तीए तु पासम्मि // 476 // तीयवि अणुप्पियं चिय पितु उवरमणे य तस्स रायत्त तह वि य तं पडिसेवति सचिवादिणिसिज्झमाणोवि॥ Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्युग्राहिते द्वीपजातादि दृष्टान्ताः [53 ] बुग्गाहितो परेणं कज्जमकज्जं च ण सुणती जो तु। सो बुग्गाहणमूढो दिटुंता दीवजातादि // 478 // वणिदारग पियमहिलो तीय समंगमण वारिजाणणं। गम्भिणी पोतविवत्ती समुद्दमज्झे फलगलग्गा 479 अंतरदीवुत्तिण्णा पसूय दारग विवढितो कमसो। तेण सह लग्ग वितिरिच्छपोतरूढा गता सपुरं // 480 बुग्गाहिय तीय सुतो ण सुणति लोगेण भण्णमाणो वि। जह जणणि तवेसत्ती अगम्मगमणं ण वदृति उ जह वा अणंगसेणो ण सुणति वुग्गाहियऽच्छराहिं तु मित्तवयणं हियं पी जह वावि सुवण्णगारीणं 482 बुग्गाहिलो तु बोहो मा हीरेज्जा सुवण्णकारणं / तुझं तु मोरगाइं छाएमी तंबएण अहं // 483 // लोगो य तुमं भणिहिति हरियाई मोरगाई बोद्द ! तुहं तं मा हु पत्तियाही एवं च भणिज्जसी लोगं॥४८४॥ जो एत्थं भूतत्थो तमहं जाणे कलाय ! मा सोय / सोवि य एवं भणती वुग्गाहिय अहय अंधलया / अंधलगभत्तणिवे सयणासणभत्तवसहिमादीहिं / सुपरिग्गहिअंधलगा तेऽवि य धूत्तेण भणिया य // Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [54] पञ्चकल्प-भाष्ये अहयाम्म अंधदासो अम्हं राया य अंघलगभत्तों। इह दक्खित तहिं वच्चह जह कयपुण्णो च दियलोयं इय होतु त्तिय णेहिं जीणेतुं रत्ति डोंगरे तेणं / वेढेऊण पुरिल्ला लाविओ मग्गिल्लपट्टीए // 488 आणेह भे जं अत्थि एत्य चोराण पतिभयं ठाणं / गेण्हह पत्थर मा हु य कासति देहित्थ अल्लियितुं // भणिहिंति चोर तुम्भे केणेते अंधला वरागा तु / गिरिडोंगरे वेढाविय पहणह ते पत्थरेहिं तु // 490 // इय वोत्तुण पलाओ चित्तूणं अत्थजातयं तेसिं / ते य पभाते दिट्ठा गोवादीएहिं भणिता य // 491 // केणेते एव कता इय वुत्ते पत्थरेहिं ते पहया / णवि दिति अल्लियावं बुग्गाहिय एवमादीया // 492 // वणिमहिल मूदु दवे वेयम्मि य मूढु होति राया ऊ बुग्गाहणमूढा पुण दीवादी सेस सत्वेऽवि // 493 // अण्णाणमूढ इणमो दाइज्जतंपि कारणसतेहिं / जो सप्पहं ण याणति जचंधी चेव जह चंदं // 994 // कोहादिकसाओदयमूढो णवि जाणती मणूसो तु। इह य परम्मि य लोए हिताहितं कज्जऽकज्जं वा / / Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जुङ्गितस्य प्रकाराः दन्वेण य भावेण य दुविहो मत्तो तु होति णायव्यो। मज्जमदादी दव्वे माणविहेण भावम्मि // 496 // मोत्तूण वेदमूहं आदिल्लाणं तु णत्थि पडिसेहो / बुग्गाहण अण्णाणे कसायमूढा य पडिकुट्ठा // 497 // मच्चित्तं व अचित्तं मीसगं जो अणं तु धारेति / ममणाण व समणीण व ण कप्पते तारिसे दिक्खा। अयसो य अकित्तीया तंमूलागं तहिं पवयणस्स / अण चाप्पडझंज्झडिया सव्वे एतारिसा मण्णे / 499 वितियपद दाणतोसिय अहवा वीसज्जितो पभूणं तु। अद्वाण परविदेसे दिक्खा से उत्तिमढे वा / दा 500 चउरो य जुगिया खल जाती कम्मे य सिप्प सारीरे / जाती य पाण वरुडा डोंबा णिकारमादीया // 501 // पोसगसंवरणडलंखवाहसोयरियमच्छिगा कम्मे / पडकारा य परीसह रजगा कोसेज्जगा सिप्पे // 502 // करपादकण्णणासियओट्ठविहूणा य वामणा वडभा। खुज्जा पंगुल कुंटा काणा एते अदिक्खा य // 503 // पच्छा य होति विगला आयरियत्तं ण कप्पए तेसिं / सीसो ठादेयत्वो काणगमहिसो य णिण्णम्मि 504 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [56] पश्वकल्प-भाष्ये जे पुण जाती जुंगित जाती कम्मे [सिप्पे] य तिणि वि ण दिक्खे / बितियपदे दिक्खज्जा इमेहिं अह कारणेहिं तु // 505 // जाहे य माहणेहिं परिभुत्तो कम्मसिप्पपडिविरतो। अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अन्भणुण्णाया। दा 506 कम्मे सिप्पे विज्जा मंते जोगेण चेव ओबद्धे। समणाण व समीण व ण कप्पए तारिसे दिक्खा // कम्मं तु उड्डमादि सिप्पं सिक्खिज्जते गुरुवदेसा। लोहारादी तं पुण विज्ज कला लेहमादीओ // 508 // अहवा विज्ज ससाहण मंतो पुण होति पढियसिद्धोतु। वसिकरणपादलेवादिता त जोगा मुणेयव्वा // 509 // गोवालादी कम्मे ओबद्धा छिण्णछिन्नकालेणं / दिण्णा अदिण्ण भतिया दिण्णभतीया ण कप्पंति // सिप्पादी सिक्खंतो सिक्खावितस्स देंति जा सिक्खे। गहिताम्म वि सव्वं पीजच्चिरकालं तु ओबद्धो / / 511 // बंध वहो रोहो वा हविज्ज परिताव संकिलेसो वा। ओषद्धगम्मि दोसा अवण्ण सुत्ते य परिहाणी // 512 // मुक्को व मोइओ वा अहवा वीसज्जितो णरिंदेणं / अद्धाण परविदेसे दिक्खा से अब्भणुण्णाया। दा५१३ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भृतकस्य विकल्पाः [57] विवसभयए व जत्ता भत्तीय कव्वाल भतग उव्वत्ते / भयओ चउविहो खलु ण कप्पते तारिसे दिक्खा // दिवसभयओ उघिप्पह छिपणेण धणेण दिवसदेवसियं। जत्ता तु होति गमणं उभयं वा एत्तियधणेणं 515 कव्वाल उड्डमादी हत्यमितं कम्ममेत्तियधणेणं / एचिरकालोवत्ते कायव्वं एत्तियधणेणं // 16 // कतजत्तगहियमोल्लं दिक्खेज्ज कया य होति पडिसेही पव्वाविंते गुरुगा गहिए उड्डाहमादीणि // 517 // छिण्णमछिण्णे य धणे वावारे काल इस्सरे चेव / सुत्तत्थजाणएणं अप्पाबहुयं तु णायव्वं // 518 / / वावारे काल धणे छिण्णमछिपणे य होंति भंगट्ठा / साहियगहिते अ कते मोत्तुं सेसेसु दिक्खंति // 19 // गहिए व अगहिए वा छिण्णधणे साधिते ण दिक्खंति अछिण्णधणे कप्पति गहिते वा अगहिते वावि // 520 जत्थ पुण होति छिण्णं थोवो कालो य होति कम्मस्स। तत्थ अणिस्सर दिक्खा इस्सरो बंधपि कारेज्जा 521 घेत्तुं समयसमत्थो रायकुले अत्यहाणि कड्ढते / फेल्लस्स तेण कप्पति रोइरसवीरिए भयणा ।दा 522 Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [58] पञ्चकल्प-भाष्ये सेहस्सा णिप्फेडिय जो सेहं घेत्तु आसियाडेति। सो पुण व तेण केरिसो ण कप्पती आसियाडेतुं 523 अप्पडुपण्णो पालो सोलसवरिसूणो अहव अणिविट्ठो अम्मापितु अविदिण्णो ण कप्पती तत्थ वऽण्णत्थ // ततियवतअतीयारोणिप्फेडिण तेणसद्द भइणिज्जो। नेणे य तेणतेणे पडिच्छगपडिच्छगे चउहा // 525 // ततियवतस्सऽइयारो निक्खाविंतस्स सेहमविदिण्णं / भयणा तेणगसद्दे होती इणमो समासेणं // 26 // जो सो अप्पडप्पण्णो बिरवरिसूण अहव अणिविट्ठो नं दिक्खित अविदिण्णं तेणो परतो अतेणो तु // 527 अहवा मुंडित ससिहे भइयची होति तेणसदोतु / एकेकस्स य इत्तो चउभंगो हो इमो कमसो // 528 // मुंडपभुपेल्लएया चउभंगो पढमततिय अणुण्णाया। ते हरमाणो अतेणो सेसेसु तु तेणओ होति // 529 // एव पभुससिहपिल्लग चउभंगो णूण एत्थ वि तहेव / एतेण कारणेणं तेणगसद्दो तहिं भजितो / दा // 530 // अहवऽण्णे चउभंगा ससिहेगं एको तेणि इति एको। असिहम्मि होति बितिओ तेणा चतारि तत्थ इमे // Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्यनिष्फेटिकाया दोषाः [59] जो तं तु सयं णेती सो तेणो होति लोगउत्तरिओ। भिक्खादिगते तम्मि तु हरमाणो तेणतेणोतु // 532 // नं पुण पडिच्छमाणो पडिच्छओ तस्स जो पुणो मूला। गिण्हनि पगंतरियो पडिच्छगपडिच्छओ स खलु // नइयव्वताइयारो एवं णितस्स होइ सेहं तु / अण्णे य इमे दोसा गहणादीया भवे तस्स // 534 // अम्मापितरो कस्सइ विपुलं घेत्तूण अत्थसार तु / रायादीणं कहते कहियम्मि य गिग्रहणादीया॥५३॥ विष्परिणमे व सण्णी केई संबंधिणो भवे तस्स / विपरिण या य धम्म मुएज्ज कुज्जा व गहणादी 36 आयरिय उवज्झाया कुल गण संघो तहेव धम्मो य / सच्चे वि य परिचत्ता सेहं गिफेडयंतेणं // 537 / / तम्हा तु ण हायवो बितिपदेणं हरेज्ज व कयाइ / होही जुगप्पहाणो ण य दोसा तत्थ केइ भवे // 538 // तो अतिसेसी दिक्खे ओहीमादी अमूढहत्थो वा / चिरहत्यों व अमूढो दिक्खेज्जा सो तहिं चेव // 539 केह पुण मंदधम्मा बितियपद णिसेविय ववदिसंति। वडपादवो विव जहा मूलविणट्ठा णहविलग्गा 540 Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [60] पञ्चकल्प-भाष्ये णिप्फेडियमिच्छंता रक्खियमालंघणं ववदिसंति। मूलविणट्ठो व वडो जह चिट्ठति लग्गपादेसु // 541 // एवं तु मूलसुत्तं छड्डेतुं ते तु लग्गसाहासु। साकारणणिप्फेडी णिकारणओ य पडिकुट्ठा // 542 // जे केई सेहस्सा बालादीता मए समक्खाया। ते चेव य सविसेसा गुव्विणि तह बालवच्छासु 543 कह ते तु संभवंती गम्भम्मी तम्मि चेव बाले य। दिट्ठा तु बालदोसा होज्ज कदादी णपुंसो वी // 544 // एवं अवसेसा वि णवरं मोत्तूणिमे तहिं अणले / वुड्ढं जड्डुसरीरं तेणं रायाऽवकारिं च // 545 // दासमणत्तं च तहा ओबद्धं भतग सेहणिप्फेडिं। अविसेस अणलदोसा भइयव्वा गुठ्विणीए उ // 546 अहवा वि गुग्विणीए अण्णे दोसा इमे भवंती हु। कायभवत्थो बिंबं वतिकितिविणयम्मि व मरेज्जा। कीवे तेणे रायावकारि दुटे य सेहणिप्फेडे। गुव्विणिए य जहक्कम वोच्छं आरोवणं इणमो // 548 // मूलं चतुगुरु पारंचिया दुवे चउगुरुं तओ मूलं। अहवाऽवकारि मोत्तुं सेहं वा सेस मूलं तु // 549 / / Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रव्रज्यायाः प्रकाराः [61] पारंची मूलं वा अवकारिए सेहे होंति चउगुरुगा। सेसेसु ठाणएसुं चउगुरुगा ह मुणेयव्या // 550 // बालं वुड्ढे कीवे जड्डे मत्ते अदंमणे चेव / करमादिजंगिए वा जदि पच्छा होज्ज णिक्खंतो॥ गच्छे संगहियाणं संवासो नमि होति णिहिछो। ण विउत्ताण णियमा एगट्ठाणे य पाएण // 552 // होज्जाहि गुब्विणीय विजह पउमवतिव्व खुड्डमाया या। तं तू उवस्सयम्मी भावियसढे नु वा गावे // जिणपवयणपडिकुट्ठो जो पवावेति लोभदोसेणं / चरित्तठितो तवस्सी लोवेइ तमेव तु चरित्तं // 54 // पव्याविओ सियत्ती सेसं पणगं अणायरणजोग्गं / अदुवा समायरंते पुरिमपदणिवारिया दोसा॥ पवावण मुंडावण सिक्खाक्णुवट्ठभुंज संचसणा। पढमपदहीण सेक्षा पंच पदा तेहिं बज्जलि // 56 // पव्वज्जानु अभिहिया सा पुण होजा कहं तु पव्वज्जा तं वत्तुमणायरिओ गाहालुत्तं इभ आह // 957 / / छंदा रोखा परिजुण्णा सुविणा णाणं पडिमाता। सारणिया रोगिणिया अणाढिया देवसणित्ति 558 Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [62] पञ्चकल्प-भाष्ये पच्छाणुबंधिया अजणयकणिया बहुजणस्स संमु. दिया। अक्खाता संगारा वेयाकरणा सयंबुद्धा / / 559 // पल्लि सुरा भाय देवी वड तेतलि मूग वासुदेवे य उद्दायण मण केसी जंबु पभव मल्लि सोम जिणा॥१६० गामेगो चोर पडिया वत्थहिरण्णादि गेण्हितुं ते य / संपट्टिते य पल्लिं रूववती महिलिया भणति // 261 // किंण हरह महिलाओ चोराचिंतेति इच्छिया महिला। णेतुं पल्लिवइणो उवणीता तेण पडिवण्णा // 12 // तीए धवो सयणेणं भणितो किं बंदिगं ण मोएसि / गंतूण चोरपल् िथेरी ओलग्गए पयओ // 563 / किं ओलग्गसि पुत्ता! चोरेहिं भारिया इहाणीया। विरहे तीए कहेती इहागतो तुज्झ भत्तत्ति // 564 / कहिते तु चोरअहिवम्मि पउत्थे भणति अज्ज रत्तीए पविसतु चोरहिओकं पविढे पच्छा सेणावती आओ। हेहा आसंदिपवेसो चोरहिवं भणति धुत्ति इणमो तु जदि एज्ज मज्झभत्ता तस्स तुमं किं करिज्जासि 566 चोराहिवाह सकारइत्तु तुमं देज्ज तो करे भिउडि आह ततो चोराहियो दारे थंभम्मि उल्लेहिं // 56 // Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छन्दाप्रव्रज्यायां पल्लीपतिदृष्टान्तः [63] बद्धेहि वड्डेज्जा तुट्ठा सण्णेति हेहसंदीए। जीणेतुं चोरहिवो खंभे वद्धेहिं वेढेह // 568 // सुणएण ख इयवद्धे पासुत्ताणं च चोरअहिवस्स। सगअसिणा छेत्तूणं सीसंगहि इच्छिओ भणति' 69 णीणिज्जती सीसं चोरहिवस्सा तु सागहेऊणं / गालंती ऊ रुहिरं अह गच्छति मग्गतो तस्स // 570 // जाहे जातभासं ताहे सीसं तयं पमोत्तूणं / दसिया चीराईणि य माडिंति य जातिचिंधट्ठा 571 जाहे य णिहिताई ताहे तणपूलियाओ बंधंती / बच्चति अवयक्खंती पुणो पुणो मग्गतो सातु।।२७२।। गोसे य पभायम्मी सेणहिवं घाइयं ततो दटें / लग्गा कुढेण चोरा पासंति य ताणि चिंधाणि // 573 // रुहिरदसिगादियाई अणिच्छिया णिज्जइत्ति मण्णता तुरियं धावे कुढिया ताणि वि य पभायकालम्मि०७४ पंथस्स एगपासे ठिया णि कुढिएण जाव दिट्ठाई। तं खोलेहि वितड्डिय महिलं घेत्तूण ते य गता / / 572 // ते चोरा तं जेउं चोराहिवभाउगस्स उवणिति / सा तेणं पडिवण्णा चोराहिवपट्टबंधम्मि // 576 // Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [64] पञ्चकल्प-भाष्ये इतरोवि खीलएहिं वितड्डिओ अच्छती तु अडवीए। जूहाहिवणिज्जूढो अह एति अणीहुतो तहियं / / 977 // तो कुवितो दट्टणं कहिं मण्णे एस दिट्ठपुवोत्ति / चिंतेऊणं सुचिरं संभरिता णियगजाती उ // 578/ अहमेतस्स तिगिच्छी आसि विसल्लोसही य तं मोए। संरोहणीइ य तओ संगेहेत्ता वणे तस्स / 579 // लिहितक्खराणिहुओ सोऽहं वेज्जों तवासि पुन्वभवे। संभारियसंभिण्णाणतो उ तो वाणरो कहते // 580 // जह जूहा णिच्छूढो साहिज्जं मज्झ कुणसुंवरमित्त !! आमं ति तेण भणितो जूहं गंतूण ते लग्गा // 28 // दोण्ह विसेसमणातुं ण किंचि कासी यसो हु साहिलं णट्ठो लुत्तविलुत्तो लिहति ततो अक्खरा पुरतो 586 किं साहिज्जण कतपुरिसाह ण जाण दोण्हवि विसेस तो तुट्ठो वाणरतो वणमालं अप्पणो विलए // 283 // लग्गे सेगपहारेण मारितुं चोरपल्लिमतिगंतुं। रत्तिं मारिय चोराहिवं तु तं गिण्हितुं इत्थिं // 584 // सग्गामं आणेत्ता इत्थिं उवणेति सयणवग्गस्स। बेरग्गसमाजुत्तो घिरत्थु इत्थीहि जे भोगा // 582 // Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोषा प्रवज्या [65] मज्झत्तं (त्थं) अच्छंनं सयणो जंपतितुझायसे किण्णु?। किं वासि कज्जकामो भणती काह अप्पणो छंद 586 थेराणंतिय धम्मं सोतुं पवज्जमब्भुवेसी य। एसा छंदा भणिना अहुणा रोसा तु पव्वज्जा // 587 // सीमारक्खो रण्णो धम्म सोऊण सावओ जातो। मा मारेहिं किंचि वि उज्झित्तु असिं हरे दारूं // 588 // तप्पडिणि रायकहिए पिच्छामि असिंति सावएणुत्तं। सम्मट्टिीदेवय सारक्खिज्ज त्ति तो रुट्ठो // 589 / / दिवप्पभावमायसमयं तु दळूण कुद्ध तो राया। णिज्जाने पचणीए सड्ढो तेसिं तु रक्खट्ठा // 590 // घेति णरिंदं अह सो मा एतसिं तु रूसहा तुम्भे। जं जंपियमतेहिं तं सव्वं णरवर ! तहेव // 591 // ताहे छाढूण पुणो णिकुट्ट असी तु णवरि दारुमओ। दिछी णरवसभेणं विम्हइओ बेति किं एयं ? // 592 // जंपति सड्ढो नाहे णरवर ! देवप्पसाद इच्चेसो / पावविवज्जीउ णरा हवति देवाण वि पुज्जा // 593 // तो तुछो भणति णिवो सेवसु एमेव दारु असिणाउ। कडगादीहि य पूजितो पावितो सुमहत्तमिस्सरियं // Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [66] पञ्चकल्प-भाष्ये कालगयम्मि य सड्ढे पुत्तो णामेण चण्डकण्होत्ति। पडिवण्णो तं भोगं सामंते णाणमंतम्मि // 595 // पेसेति चंडकण्हं गंतूणं घेत्तु सजियमाणेति / तुट्ठो य भणति राया किं देमि अहाह सो इणमो॥ जं खज्जपेज भोज्जं गेण्हेज्ज पुरंमि तं तु सुग्गहियं / इय होतुत्ति य भणिए वारुणिपाणे पमादेणं // 597 // रत्तिं चिरस्स सगिहं आगच्छति भज्जमातरो तस्स। दुहिया जग्गंतीओ उण्णिद्दा अण्णदा रत्तिं // 598 // चिक्खितदारं पिहए अह वदती आगतो तु सो दारं / उग्घाडेतो जणणिं वऐसु जत्थेरिसे वेले // 599 // उग्घाडिय दाराई तहियं वच्च त्ति मातु रुसितो तु / साहुग्घाडिय दारत्ति गंतू साहूणमल्लियओ // 600 // पव्वावेह लवेई ते विय मत्तो त्ति कातु वक्खेवं / बिंती गोसग्गम्मी पभाते पव्वावइस्सामो // 601 // सयमेव कुणति लोयं ताह लिंगं दलंति जतिणोतु। पव्वाविंती विहिणा एसा रोसा तु पव्वज्जा। द। 602 दमगं भइयं कम्मं कुणमाणं दटु सावओ पुच्छे / केवतिभतीय कम्मं करेस पाएण पच्चाह. // 6031 // Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिजुण्णा प्रव्रज्या [67] दाहामी पतिदिवसं तव पादं गंतु साहूणो बूहि / सावेण पेसिओऽहं करेज्ज जं आणवे साहू // 604 // साहू भणंति दमगं जो पब्वइतं करेति कम्मम्हं / तं कारवेसु न गिहिं पव्वइओ दव्वओ ताहे // 605 // साहू भणंति दिवसं पढियव्वं जं च देमु उवएसं / एयं कम्मं अम्हं सिक्खं दुविहं पि गाहिंति // 606 // कतिवयदिवसगतेहिं अह सड्ढो भणति तं भर्ति गिण्ह / उक्कोसगभत्तेणं सुहितो रत्तो लवे इणमो 307 अच्छतु तुम्भं हत्थे जति ता मग्गे तदा दलेज्जाहि / कतिवयदिवसेहिं ततो अभिगयधम्मो उवठविओ। दा परिजुण्णेसा भणिता सुविणा देवीए पुप्फचलाए / नरगाणं दंसणेणं पव्वज्जाऽऽवस्सए वुत्ता। दा 609 चतुरो तु गोणपाला सत्थाहीणं जतिं तु अडविए / पडिलाभिंति पढ्छा दोहि दुगुंछाइयं तहियं / / 610 // दियलोगगता तत्तो चइतुं दुगुंछी दसपणे दासत्तं / तत्तो मिगा य हंसा सोवागा चित्तसंभूता // 611 // अदुगुंछी तित्थगरं पुच्छति किं सुलभदुलभधोहि म्हे / तित्थंकराह विग्धं अम्मापितरो करेहिंति // 12 // Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [68] पञ्चकल्प-भाष्ये तो ओहिणा पासित्ता माहणपुत्तत्त णगरमुसुगारो। सो माहणो अपुत्तो पुच्छति मित्तिए बहवे // 613 // ते काउ समणरूवं उसुगारपुरम्मि आगता कहए। बहुजण तीतादीण तो पुच्छे माहणो ते उ // 614 // होज्जऽम्ह किं वऽवच्चं पञ्चाह चुया दिया तु होहिंति / दो जमलदारगा तू कुमारगा पव्वइस्संति // 615 // मा तेसि करेज्जासी विग्घमवस्सं च तेसि पव्वजा। होही वोत्तूण गता चइत्तु उववन्नया तेसिं // 616 // घालत्तऽम्मापितरो भणंति समणाण सरिसरूवेणं / रक्खस माणुसखाता भमंति दळूण ते पुत्ता // 617 // मा तेसि अल्लिएजह दूरंदूरेण परिहरेज्जाह / मा भक्खेज्जा ते भे तेवि य तेसिं पडिसुणेति // 18 // रत्थादि जत्थ पासंति संजए ते तओ पलायंति / अह अन्नया नगरबहिं चेडे पासंति वंदते // 619 // बिंति य अम्मापितरो दिट्ठाऽम्हे चेड वंदमाणा तु / णवि समणरूव रक्खस भक्खिति च चेडरूवाई 620 चिंतेतऽम्मापितरो अतिवीसत्था इमे तु जाय त्ति। मा पव्वएज्ज इहर्ति अल्लियमाणा तु समणाणं 621 Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रतिश्रुता प्रव्रज्या [69] सउवज्झाया एते वइयं णिज्जंतु तत्थाहिज्जंतु। इय संचिंतेऊण वइयं णीता ततो तेहिं // 622 // वइयाए समीवम्मी मणाभिरामोतु अत्थि वडरुक्खो। अह अन्नदा कदाई ते तु रमंता गता तहियं // 623 // सत्थाहीणा य जती तिसियकिलंतातु आगता तहियं / एत्थ करेमो भिक्खं वडहेट्ठा पठिता तत्तो // 624 // तो ते भयाभिभूता चेड विलग्गा तमेव वडरुक्खं / जतिणोऽवि य तस्साहे ठातुं पविसंति भिक्खट्ठा / / णवरि पवत्तिंति गुरु तहियं अज्झयण णलिणगुम्मंति। तो ते सरंति जातीं ओयरितुं वंदिउं विति // 626 // अम्मापितरो पुच्छित पव्वज्ज अब्भुवेमोऽसेसं तु। जह उसुगारज्झयणे वक्खातं सुत्तआलावे / दा 627 एसा पडिस्सुता खलु पव्वज्जा सारणी य णातेसु। चोद्दसमे अज्झयणे जह तेतलिपोटिलाबोहे / दा 628 पतिठाणे जुवराया राहायरियाण पासि णिक्खंतो / तगराए तस्स भगिणी दिण्णा जितसत्तुरायस्स 629 तगरगताण कदायी उज्जेणीओ य आगतो साहू / राहगुरु पुच्छणा बाह बिंती वाहेति रायसुतो // 630 / / Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [70] पञ्चकल्प-भाष्ये पुत्तो पुरोहियस्स य दोऽवि ते णिवघरम्मि वाहंति। तं सोतुं जुवणिवमुणी बेति मम नत्तुओ सोतु // 631 // सासेमि तं दुरप्पं आपुच्छित्ता गुरुं तु उज्जणि / णिरुवस्सग्गं पुट्ठा तं चैव कहिंति से जतिणो // 632 // भिक्खट्टणिग्गयम्मि य भणितो अच्छाहि आणइस्सा. मो। भत्तट्ट अत्तलाभी.मि बेति दंसेह णिवओकं 633 दंसेतूण णियत्तो खुड्डो इयरो वि गंतुं णिवओकं / सद्देण महंतेणं अह कुणती धम्मलाभं तु // 634 // तो तेहिं सोतु दिट्ठो परितुडेहिं चऽणेहिं सो गहिओ। भणितो तं नच्चसुत्ती इय होतु तेणं तो भणिता 635 गायह तुम्भेत्ति ततो ते तु पगीता पणचिओ साहू / ता ते उवद्दविता साधुणा खिज्जिया दोवि // 636 // पुणरवि बेंती गायसु तुम तु अम्हे उ णचिमोइहि / इय होतुत्ति य भणिते पणचिता ताहे ते दोवि // 637 // पुणरवि य विद्दवेत्ता गोवालग विद्दवेह किं एयं। भणिता ते साधूणं चिंतिय किं सवास तं अम्हे 638 देही जुद्धं अम्हं लविता साहूण दोण्ह वी समगं। आगच्छह त्ति सिग्धं तोते आधाविता तुरितं 639 // Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सारणी प्रव्रज्या [71] आधावेत्ता य ततो घेत्तुं बाहासु दोवि साहूणं / तह विधुताऽणेण दुतं जह संधिविसंधिता सब्वे 640 उत्ताणए महीए पाडेतुं णिग्गतो तु सो तत्तो। उज्जाणं गंतृणं झायति झाणं गुणसमग्गो // 641 // अह ते दटुं णिहते संभंतो परिजणो कहे रणो। रायावि य संभंतो आगंतु णियच्छती ते तु // 642 // पुच्छावइ य जतितो बिंति य णेत्थंम्ह पविसते कोइ / णवरिको पाहुणओ आगतोण तं तु जाणामो // 643 // ताहे उज्जाणादिसु रंण्णा गवेसाविओ य दिट्ठो य। गतृण लयं राया चलणसुणिवडिओ जतिणो // 644 // घेई य जमिनमेहिं अवरद्धं तं खमाहिसी भंते ! / जंपति साधू जदि णिक्खभात मोक्खामि तो गवरिं॥ सण्णाओ अवरेहिं एस कुमारस्स मातुलो सो उ / बहुसो णिबंधकते पडिवण्णो जाहे ते दोऽवि // 646 // ताहे गंतूण तहिं दोण्णिवि धेतूण तेण बाहासु। तह णं खलंखलीकत जह संधी सिं पुणो लग्गा 647 णिक्खामेउं दोणि वि सूरिसगासं णीणिया तेणं। चिंतेइ रायतणओ साधुकतं मातुलेण ममं // 648 // Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [72] पञ्चकल्प-भाष्ये मम हियमिच्छंतेणं रुदमाणे पीहको व्व बालस्स। तह मज्झं सेयंति अतियारविवजितो विहरे // 649 // इतरो जातिमदेणं अविणयमादीणि अविगडेत्ताणं। दुल्लभवोहीयत्तं बंधित्तु गतो तु दियलोयं // 650 // कोसंबीए इणमो सेट्ठी णामेण तावसो णामं / मरिऊण सूयरोरग जातो पुत्तस्स पुत्तो तु // 651 // जातो जाति सरंतोचिंतयति किं नु सुण्ह अम्मोत्ति। पुत्तो वि य बप्पो त्ती भणामि मूयत्तण वरं मे // 652 // मरुदेवो तित्थकरं पुच्छति किह सुलभदुलभवोहीहं। भणितो दुल्लभवोही तंसि गुरु परिभवकएणं // 653 // कह बुझेज्जामित्ति य भणितो कोसंबिमूगमाऊए / उववज्जिहिसीतहियं मूगो अब्भत्थितो बोहो 654 // ताहे आगंतुणं राहू गामंति भणति सो देवो / अहगं चइऊण इतो तुज्झं मातूए उदरम्मि // 655 / / उववज्जीहं अइरा होहिति अंबेहिं डोहलो अकाले। अविणिज्जंते तम्मि य किच्छप्पाणा य होहिति तु // अहगं गिरिणीतंबे सव्वोतुय अंबगं करेहामो। ' अंबाऽलंभे खि (वे) ज्जसि दे अंबे देह जदि ग़म्भं 657 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रोगिणी प्रव्रज्या [73] अब्भुवगते ससक्खे अंबे देज्जासि बालभावे य। साहणं चलणे म पाडेज्जाही अणिच्छंपि // 658 // किं बहुणा तह कुज्जा जहऽहं साहुत्तणे दढो होमि / संबोहिकारओ खलु लभति अजत्तेण बोहिं तु 659 मूगेण अब्भुवगते देवो णमिण सालयं पत्तो। चइऊण य उववन्नो कुच्छीए मूगमाऊए // 660 अंबगडोहलजाते अविणिज्जंतम्मि देहहाणीए / अद्दण्ण परिजणाणं मूगो लिहतक्खराणिणमे // 661 जदि देह मेऽह गम्भं मझ तो अंबगाणि आणेमि / देमुत्ति अन्भुवगते ससक्खमाणेति अंबाइं // 32 // तो पुण्णडोहलाए जातो दिएणो य ताहे से तस्स / उत्ताणसायगं तं जतिणो पादेसु पाडेति // 63 // अतिविस्सरं परोती जाहेवि य पाडिओ उ पादेसु। सुहचलणेसु जतीणं मूगेणुत्तो तु णेच्छी या // 604 धेत्तुं गीवाए तओ मूगेणं पाडिओ रुवे बहुसो / परितंतु ततो मूओ णिक्खंतो गतो य दियलोयं / / ओहीए दट्टणं सुविणादिसु बोहिओ जति ण बुज्झे / ताहे करेति रोगी देवोवि उ वेज्जरवेणं // 666 // Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [74] पञ्चकल्प-भाष्ये जदि वहति सत्थकोसं भमति मए यावि जदिसमं एसो तो णीरोगु करेमी पडिवण्णो कतोय णीरोगो // 667 // घेत्तूण तं पयाओ गुरुगं से सत्थकोसगं दावे / तं वज्जभारगुरुगं बेती ण तरामि वोढुं जे // 668 // दंसेति साधुरूवं बेति जति णिक्खमाहि तो तेऽहं / मुंचामि विमुंचेमि य रोगा पडिवण्ण तो मुको 669 णिक्खंते तो तम्मी देवोवि ततो तु सालयं पत्तो। कालेणुप्पवइत्तं सघरं संपट्टितो अह सो // 670 // देवेण पलायंती दिट्टो विगुरुविऊण तो अडविं / काऊ मणुस्सरूवं अह अडविं पंठितो तत्तो !!671 // लवति ततो दुब्बोही किं इच्छसि अप्पगं विणासेतुं। जं जासि अडविहुत्तं देवोऽवि ततोऽणु पच्चाह / / 672 // तं पुण विजाणमाणो णरगादीदुक्खसंकिलेसं तु। किं णिग्गंतुं तत्तो पुणरवि दुक्खाडविमतीसि // 73 // अगणितो तं वयणं सघरं अह आगतो ततो सोतु। रोगाणं साहरणं भूओ वेज्जागमो दिक्खा // 674 // कालेण केणइ पुणो लिंग मोत्तूण पट्टितो सगिहं / देवेण पुणो दिट्ठो गामपलित्तंतरा कुणति // 675 // Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गोगिणी प्रव्रज्या [75] पुणरवि मणुस्सख्वी तणभारेणं तु विसति तं गाम / दटुं लवे पुराणो किं इच्छसि अप्पणो णासं // 676 // जं तणभारेण तुमं विससि पलित्तं ततो लवे देवो / एव तुमं जाणंतो जरमरणपलित्तसंसारं // 677 // पविसंनिच्छसि णासं मुंचसि जं दुक्खलद्धिय दिक्खं। अगणितो वच्चति घरं गतस्स रोगं पुणो कुणति // 678 // पुणराव नहंव दिक्खा उप्पब्वइए य लघरहुतम्मि / संपट्ठिए अडवीए तस्स पहे वंतरप्पडिमं // 679 / / काउं अञ्चणदेवी अचितमहितो तु पडति हेट्टमुहा। पुणरवि समवेतुं पहवियचिओ सो पुणो पडितो 80 एवं पुणावि अच्चियमहितीवित बहुसो पडे जाहे। लवनि ततो दुव्योही किंवरठाणे ण ठाए मो // 681 // देवाह जहासि तुमं वरठाणेवि ठविउ एव। पध्वज मोत्तणं णरगनरगादहठाणं पुगरवि य अभिलससि // 682 // लवति पुराणो को तुम देवो दंसेति मूगरूवं से। देवत्तं पुव्वभवं संगारं वावि संभारे // 683 // तो संभरितुं जाति संवेगमुवागतो भणति देवं / इच्छामो अणुसहि जातो थिरो संजमे ताहे। दा 684 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [76] पञ्चकल्प-भाष्ये रोगिणि य एस दिक्खा अणाढिया रामकण्ह पुव्वभवे दा। उद्दायण संबोही पभावती देवसण्णावी। दा 685 वच्छ अणुबंधी मणको।दा। कण्णाए अजणिओ तु केणइवि। पुत्तो जायति जो तू सो होती अजणकण्णीतु णिवति सुतातिं दोनिवि णिक्खंताई तु भातुभंडाई / अण्णद रायसुतो तू णिसाए लोयप्पणो कुणति 687 छड्डेहामि पभाते चलणाहो कालपडियरंतीए / पोग्गलवेदागमणं अह णिश्यति तेसु वालेसु // 688 / / वीसरिया ते तस्स य सिरोरुहा तम्मि चेव ठाणम्मि। तत्थ य पवित्तिणीओ अहागता गाम गंतुमणा 689 अह तीए रायदुहिया तं वंदिउंसा पदेसि अह तम्मि। उवविट्ठ णवरि तीए य मोतुगं सहसमोगाढं // 690 लज्जाए सहस घेत्तुं तेसिं जे सुक्कपुग्गलाइण्णे / गुज्झम्मि सन्निवेसिय अह सुकं जोणिमोगाढं // 691 // तो गब्भो आभूतो अह पोर्ट वद्वियं पयत्तं च / मुणिया य सुविहियाहिं पुट्ठा बेती तु णवि जाणे 692 अतिसयणाणी थेरा य पुच्छिता तेहिं सिट्ठ जहवत्तं / होही जुगप्पहाणो रक्खह णं अप्पमादेणं // 693 // Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुण्डापनम् [77] जम्मं सड्ढकुलेसू स वढितो गोण्णणाम कत केसी। एसा तु अजणकण्णी पव्वज्जा होति णायव्वा / दा॥ बहुजणसम्मतियाए णिक्खमणं होति जंबुणामस्सादा अक्खायाए जंबू धम्मं अक्खादि पभवस्स // 695 // संगार मल्लिणाते सत्त णिवा कासि जह उ संगारं। दा वेयाकरणे सोमिलपुच्छा जह वाकरे भगव / दा 696 सयबुद्धा तित्थगरा दा सोलसहा एस होति पव्वज्जा। पुच्छा परिसुद्धम्मि तु अब्भुवगत होनि पव्वज्जा 697 गोयरमचित्तभायण सज्झायमण्हाण भूमि सिज्जाती। अब्भुवगयम्मि दिक्खा दवादीसुं पसत्येसुं / दा लग्गादिसुत्तरंते अणुकूल दिज्जते अहाजात / सयमेव तु थिरहत्थो गुरू जहण्णण तिण्हऽट्टा // 699 // अन्नो वा थिरहत्थो सामाइग तिगुण अगहण च / तिगुणं पादक्खिण्णं णित्थारग गुरुगुण वुड्ढी / मुंडावण गतं / दा // 700 / फासुय आहारो से अणहिंडतं च गाहए सिक्ख। ताहेव उवट्ठवणं छज्जीवणियं तु पत्तस्स // 701 // अप्पत्ते अकहेत्ता अणभिगय परिच्छ अतिकमे पासे। एकेके चउगुरुगा विसेसिया आदिमा चउरो / / 702 // Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [78] पञ्चकल्प-भाष्ये अप्पत्तं तु सुतेणं परियाग उवट्ठवेंत चउगुरुगा। आणादिणो य दोसा विराहणा छण्ह कायाणं। दा॥ सुत्तत्थं अकहेत्ता जीवाजीवे य बंधमोक्खं च / उवठवणे च उगुरुगा विराहणा जा भणिय पुव्वं / दा॥ अणहिगतपुण्णपावं उवट्ठविंतस्स चउगुरू होति / आणादिणो य दोसा मालाए होति दिटुंतो / दा 709 ससरक्ख दगउल्लगणी पतिठिते हरितबीजमादीसु। होति परिक्खा गोयर किं परिहरती णवा वि त्ति 706 उच्चारादि अथंडिल वोसिर ठाणादि वावि पुढवीए / णदिमादिदगसमीवे खारादीदाह अगणिम्मि / / 707 / विजण अभिधारण वाते हरिए जह पुढविए तसेसुं च एमादि परिक्खित्ता वतदाणमिमेण विहिणा सो 708 दव्वादि पसत्थे वता एककं तिगुणणोवार हेट्ठा / दुविहा तिविहा य दिसा आयंबिलणिव्विगतिगावा। दा / / 709 // पितिपुत्ताणं जुयला दोणि तु णिक्खंत तत्थ एगस्स। पत्तो पिता ण पुत्तो एगस्स तु पुत्तो ण तु थेरो // 710 ताहे तु पण्णविज्जति दंडियणायं तु कातु भण्णइ तु। मा गेण्ह असरगाहं रातिणिओ होति एस पिता 711 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपस्थापना [79] एवं सो पण्णवितो जदि इच्छे तो उवट्टवेती तु / णेच्छंते पंचाहं ठंती दो तिणि वा पणगा // 712 // वत्थु सभावा सज्ज व जाऽधीतं ताव तं परिच्छंति / एवं रायअमचे संजतिमज्झे महादेवी / दा // 713 // राया रायाणो वा दोणि विसमपत्त दोसु पासेसुं। ईसरसेडिअमचे णियम घडा कुल दुवे खुड्ड // 714 // समयं तु अणेगेसुं पत्तसु अणभिओगमावलिया। एगतो दुहतो व ठिता समराइणिता जहासण्णं 718 इसिं अणोयइत्ता वामे पासमिन होति आवलिया / अहिसरणम्मि घ वढि ओसरणे सो व अण्णो वा। दा // 716 // उवठावियस्स एवं संभंजणता तहेव संवासो। वितियपदं संबंधी ओमादिसु मा हु बहिभावं 717 भुंजीसु भए सद्धिं इयाणि णेच्छति तु मातु बहिभावं। अहिखायंति च ओमे पच्छन्ने जेण भुंजंति // 718 // एमादिणा तु भावं ताहे अप्पत्त अहव पत्तं वा। उवठावेतुं भुंजति अपरिणते चित्तरक्खट्ठा // 719 // उवठाधिए संभुत्त संवासो एत्य होति कायव्वो। वितियपए संवसेज्जा अणुवट्ठवियं पिमेहिं तु 720 Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [80] पञ्चकल्प-भाष्ये अण्णत्थ णत्थि ठाओ अहवा होज्जाहि सोऽविएगामी ण य कप्पति एगस्सा संवासो तेण संवासो॥ 721 // सच्चित्तदवियकप्पो एमेसो वन्निओ महत्थो तु / अचित्तदवियकप्पं एत्तो वोच्छं समासेणं // 722 // आहारे उवहिम्मि य उवस्सए तह पस्सवणए य / सेज्जाणिसेज्जठाणे दंडे चम्मे चिलिमिणी य / / 723 // अवलेहणिया दंताण धोवणे कण्णसोहणे चेव / पिप्पलग सूति णखाण छेदणे चेव सोलसमे // 724 // आहारो खलु दुविहो लोइय लोउत्तरो य णायव्यो। तिविहो य लोइओखलु तत्थ इमो होइ णायव्वो७२५ भायणे भोयणे चेव मुंजियव्वे तहव य। भायणे तु इमं थेरा गाहामुत्तमुदाहरे // 726 // सुवण्णरजते भोज्जं मणिसेले विलेवणं। अविदाही घतमायसे पयं तंबे पाणमंबुं च मिम्मते॥ सूपोदणं जवणं तिनि य मंसाणि गोरसो जूसो। भक्खा गुललावणिया मूलफलं हरियगं डागो / / 728 // होइ रसालो य तहा पाणं पाणीय पाणगं चेव / . सागं चऽट्ठारसहा णिरुवहतो लोगपिंडो सो // 729 // Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोजनविधिः [81] सूवगहणेण गहिता वंजणभेदा उ जत्तिया लोए / ओदणगहणणं पुण सत्तविहो ओदणो गहियो 730 जोत जवण्णं भण्णति तिन्नि तु मंसाणि जलयरादीणं। गोरसो खीरादीउ मुग्गपडोलादि जूसो तु // 731 // भक्ख विहि उल्लमुक्का गुलकन तह लावणी त बोद्धव्वा / मूलग अल्लगमादिमूलं अंबादि फलगं तु // हरितग मूलकुढेरगभूयणगादी य होति णायव्यो / डागो य गोरसकओ पजेवणादी बहुविहाणो // 733 // दो घतपला महुपलं दहिस्स अद्धाढयं मरिय वीसा। खंड तुलादसभागो एस रसालू णिवइजोगो // 734 // खंड तुलादसभागो दस खंडपला हवंति णायव्वा / ते तम्मि पक्खिवित्ता मजिय णामं रसालोत्ति 735 पाणं मज्जविहीओ पाणीयं धारपाणियादीयं / दक्खादिपाणगाइं सागणं वंजणा जे तु // 736 // एवं अट्ठारसहा णिरुवहतो दड्ढगादिपरिहीणो। ण य उवहम्मति जेणं रसादि छूढेण दवणं // 737 // परिसुकं दाहिणतो दवाणि सव्वाणि वामतो कुज्जा। णिद्धमहुराणि पुवं मज्झे अंबं दवंताणि // 738 // Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [82] पञ्चकल्प-भाष्ये परिसुकं सालणगादि तं गिण्ह सुहं तु दाहिणकरणं / वामेण पाणगादी तेण तयं वामपासम्मि // 732 // अप्पाइज्जति देहं पुव्वं तृणिद्धमहुरदव्वेहिं ! पेतादीहिं णियमा केवइयं तं तु मोत्तव्वं 740 // अद्धमसणस्स सव्वंजणस्स कुज्जा दवस्स दो भाए। वातपवियारणहा छभागं ऊणयं कुज्जा 141 // तं पुण एयपमाणं आदी मज्झे तहेव अवसाण : केरिसयं भोत्तव्वं तस्स इमं गाहमासु // 42 // असतामिव संजोगं पण्णा भोयणविहिं उवदिमंति। लुक्खं दवावसाणं मज्झविचित्तं महुरमादि / / 743 // असता असज्जणा दुज्जणा य एगढिताणि प्रयाणि / तेहिं सम जा मेत्ती संजोगो सो तु णायव्वो // 744 // गुलमहुरा उल्लावा तेसिं पुव्वं कारति य पियाइ / मज्झे य होंति मज्झा महुरा विगतिं च दाएंति 742 // कुव्वंति य भासंति य अवसाणे तारिसाणि जेहिं तु। छिज्झति सव्वं सुकयं एवं किर भोयणं भुंजे // 746 // आदिए णिद्धमहुरं मज्झ विचित्तं दवलक्ख अवसाणे। तेणं विपागमेती दुज्जणमेत्ती व अवसाणे // 747 // Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोजनविधिः [83] कुसलाभिहिएणं पुण तं भोत्तव्वं इमेण विहिणा तु। असुरसुरं अचवचवं अदुतमविलंबियं चेव 748 // अयमण्णाऽविविहीं खल भोयणजाम्भ हाति णायव्यो: जारिसय भोत्तव्यं दोसा जे वि भुत्तस्स अच्चुराह बाद र अतियंचं इंदियाइं उवहाति। अतिलोणि च पक् अतिणिद्धं अंजने गहाण 750 आहारियामपणीहारेणं अवस्स भवियव्वं / तस्थ ण धारे वेगं दोसाइने परिज्जते 7.13 मुत्तनिराहे चक् वच्चगिरोह य जीवियं हणति / उड्ढणिरोहे कोडं सुकणिरोहे भवे अपुमं // 7.2 // तेइच्छियधूताए आहरणं तत्थ होइ कायव्वं / तेइच्छिमते राया पुच्छति पुत्तत्थि णस्थित्ति ! // 73 // णस्थित्ति अत्थि धूया राया बेती अहिज्जिऊ सत्थं / पिउसंतिओ य भोगो तह चेव य तीयणुण्णातो 7.4 मच्छरिता विज्जऽण्णे बेती किं एस णाहिति वराई। भिससत्थं अहवा से परिच्छिउं दिज्ज अह भोगे 755 सहावेतुं पुट्ठा किमधितं ते त्ति तसि सा पुरतो / तोऽणाए वातुकम्मं सहेण कतं हसे वेज्जा // 73 // Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [84] पञ्चकल्प-भाष्ये तो भणति णिवं सा तू एते वेज्जा ण चेव तु णरिंद!। ण य जाणंती सत्थं कहंति बेती इमं सुणसु // 757 // तिणि सल्ला महाराय! अस्सिंदेहे पइट्ठिता। वाउमूत्तपुरीसाणं पत्तवेगं ण धारए गण धारए // 758 // णिम्मुहिकतातु वेज्जा तीए सावि य पतिहिना तहियं। तम्हा ण धारए वेगं वायातीणं तु सव्वेसिं // 759 // एवं भुत्ते समाणे जति वातादी पकोव गच्छेज्जा। जाणेज्ज तेसि वेलं पच्चूसादी इमं तहियं // 760 // सिंभो वड्ढति पच्चूस पदोसे पित्तमड्ढरत्तम्मि। मज्झंतिए य वाओ वड्ढति पुव्वावरण्हे य // 761 // तत्थ ण वेज्जो पुच्छिज्जती तु तेसिं तु वेल सच्चेव। कुवियाण अवेलाए पच्छे किरिया इमा तेसिं // 762 // तित्तकडुएहिं सिंभं जिणाहि पित्तं कसायमहुरेहिं / णिधुण्हेहि य वायं सेसा वाही अणसणाते // 763 // केरिसए कालम्मी आहारो केरिसो तु पुरिसेणं / आहारेयव्वो खलु तत्थ इमो वण्णितो सो य // 764 // सीते उण्हं पविसेज्जा उण्हे सीयं पवेसए (दव्व)। णिद्धे लुक्खं पविसेज्जा लुक्खे निद्धं पवेसए // 765 // Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल्प्याकल्प्यविचारः [85] जो वाही णिद्धेणं समुट्टितो तस्स लुक्खकिरिया उ। लुक्खेणमुट्टियस्स तु कायव्वा णिद्धकिरिया तु 766 एसोतु लोइओ खलु पिंडो तू वण्णिओ समासेणं ।दा। लोउत्तरिए पिंडे वणिज्जति पिंडणिज्जुत्ती // 767 / / पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा (सं) जोयणा पमाणे य / इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडणिज्जुत्ती // 768 // पुढवाईया भेदा वत्तव्व जहकमेण पिंडस्स। गविसणमादीया वि य एसणभेदा य तह चेव // 769 // उग्गममादी दोसा सव्वे य जहकमेण वत्तव्वा / जह भणिय पिंडजुत्तीइ णवरि इमो पूतिए विसेसो।। संचय कोढग दारुय डाए तह गोरसे य लोणे य / लंघणणेहि हिंगू दालिम तह तित्तए चेव // 771 // अगडारामे पुत्ते तुंबे फलही तहेव गाओ य / एतारिसेसमुप्पण्णे गहणं णणु कस्स केरिसयं / / 772 / / भत्तस्स उवक्खेवो गोरसमादी तु संचतो होति। सो संघट्ठा ठवितो भावे अवोच्छिण्णि अगिज्झो 773 अत्तद्विय परिभुत्ते कप्पति भावम्मि ताहि वोच्छिण्णे। कह वोच्छिज्जति भावो सो तू ण अफासुदोसंतु।दा Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [86] . पञ्चकल्प-भाष्ये कोट्ठग तंदुल तिछडा समणट्ठा सिं कडा ण कप्पति। अह दुच्छड संजयट्ठा आयट्ठोवक्खडा कप्पे 775 आयट्ठाए दुछडा संजयअट्ठा तिच्छडा कप्पे। जदिवि य आयट्ठाए आरंभो होति तेसिं तु / दा 756 एमेव य दारुसागाइयाइं जाइं अफासुदव्वाई। अत्तणि ठिताई कप्पे समणट्ठ णवि कप्पे // 777 // गोरसहिंगू तेल्लादि दालिमे तित्तकडयदव्वाइं। लंबण गुलो य भण्णति संचियमेवादि संघट्ठा 778 फासुगदव्वा जे तू अवोछिण्णम्मि भावे ण तु कप्पे। उवक्खडिया वत्तट्ठा वोच्छिण्णभावें य कप्पंति। दा अगडं व खणेज्जाही आरामं वावि अहव रोवेज्जा। संजयणिमित्त कोई पाणफलाई व दाहंति // 780 // तत्थ वि संजयजोग्गा संजयहा कया ण कप्पंति। अत्तछाए कता पुण कप्पंती तंदुला जह उ // 781 // पुत्तं जणेज्ज कोई आयरिओ मज्झ अपरिवारो त्ति / तेसि सहाओ होहिति पव्वावेउं तु सो कप्पे // 782 // भायणअट्ठा तुंबीओ वावे फलेही य वत्थमातट्ठा। संजयठाए जा सुत्तं आतट्ठ वियम्मि पुण कप्पे 783 Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पात्रप्रमाणं [87] रूती संजयठाते आतट्ठासुत्तमादिक ण कप्पे / जम्हा उ गहणजोग्गोतु संजतट्ठाए कारितो॥७८४॥ संजत अट्ठा वियितो आतट्ठोवठितो य तत्तो य / कप्पति जम्हा य कतो संजतजोग्गो तु आतट्ठा 785 एवं गावीओ वी काइ किणिज्जाहि संजयट्ठाए / आतट दढ कप्पे सभणट्ठा दूढ णो कप्पे // 786 // एमा पनि विसंसो भणितो पुव्वं तु पिंडुजुत्तीए / दा। पत्तो उयहीक्रप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं // 787 / / दुविहीं य हाति उवही पत्ते वत्थे य ओहुवग्गहिए / जिणविर आणलहा बोच्छामि अहाणुपुवीए 788 पाए उम्मन उधाणमणा संजोयणा पमाणे य / इंगाल का कारण अविहा पालणिज्जुत्ती // 789 / / जह सभव यव्वा पिंडगमेणं तु पातणिज्जुत्ती। सव्वत्युग्गाप्रसादी जहा जहा जे तु जुज्जति // 79 // पातपमाणं तु इमं पमाणदारम्भि होति वत्तव्वं / मज्झजहाणु कोसं वोच्छामि अहाणुपुवीए // 791 // तिणि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिमपमाणं। एत्तो हीण जहणणं अतिरेगतरं तु उकोसं // 792 // Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [88] पञ्चकल्प-भाष्य उक्कोस तिसामासे ढुगाउअद्धाणमागतो साहू। . भुंजति एगट्ठाणे एयं किर मत्तगपमाणं // 793 // एवं चेव पमाणं अतिरेगतरं अणुग्गहपवत्तं / कंतारे दुभिक्खे रोहगमादीसु भइयव्वं // 794 // वढे समचउरंसं होति थिरं थावरं च वण्णं च / हुंडं वाताइद्धं भिण्णं च अधारणिजाइं // 795 // संठियम्मि भवे लाभो पतिट्ठा सुपतिहिए। णिव्वणे कित्तिमारोग्गं सव्वणे वणमादिसे। दा 796 वत्थे उग्गम उप्पायणसणा जोयणा पमाण य। इंगाल धूम कारण अट्ठविहा वत्थणिज्जुत्ती // 79.7 // एत्थ वि य जहासंभव घोसेयत्वाइं सव्वदाराई। पडलादिपमाणाणि य पमाणदारे समोतारो // 798 // गिम्हसिसिरवासासु य पडला उक्कोसमज्झिमजहन्ना वण्णेऊणं कमसो पच्छादा पुरिसि वोच्छामि // 799 // एमेव य पच्छादा पुरिसं खेत्तं च कालमासज्ज / तिण्णादी जा सत्त तु परिजुण्णा पाउणेज्जाहि 800 पुरिसो असहू कालो सिसिरो खेत्तं व उत्तरपहादी। गिम्हेवि पाउणेज्जा तारिसयं देसमासज्ज // 801 // Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सपरिकर्मवस्त्रम् [8] एवं तु उग्गमादिसु सुद्धो सव्वोऽवि एस उवही उ। धारेयव्वो णियतं अहाकडो चेव जहविहिणा // 802 // असती तिगेण जुत्ता जोगि ओहोवही उवग्गहितो। छेदणभेदणकरणे जा जहिं आरोवणा भणिता 803 तिविह असतित्तिजा सा दव्वे काले य होति पुरिसे या दव्वम्मि णत्थि पातं ओमोदरिया य कालम्मि !!804! पुरिसो य उरगमंतोण विज्जती एस पुरिल असती तु। अहवा अणलं अथिरं अधुवं सतासती तिविहा 807 अहवा तिग त्ति असती अहाकडाणं अपपरिकम तस्सऽसति परिकम्मं तं तु विहीए इभाए तु। 8066 चत्तारि अहागडए दो मासा होति अप्पपरिकम्मे / तेण परि विमग्गेज्जा दिवढमास सपरिकम्मं / / 8073 पुणसद्दा तिक्खुत्तं विमग्गियव्बंतु होति एकवं / एवं तु जुत्तजोगी अलभंतो गिण्हती ततियं // 808 // अहवा असिवोमेहिं रायदुढे व से गुरुणं वा / सेहे चरित्त सावय भए य ततियं पि गिव्हिज्जा 809 असिवादि पुव्वभणिता गुरूवमग्गे गुरू भणिज्जाहि / अच्छाहि ताव अज्जो तत्थ तु ते कारण विदंति 810 Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 90] पञ्चकल्प-भाष्ये एतेहिं कारणेहिं अहगडवज्जेण दोण्ह गहिताणं / छेदणमादी कुव्वं जयणाए होति सुद्धोतु // 811 // णिकारणगहणे पुण विराहणा होति संजमायाए। छेदणमादीएसुं जा जहि आरोवणा भणिता // 812 // नं पुण सपरिकम्मं जयणाए होनि लिंपियव्वं तु। तेण तु लेसेणं लेवग्गणं तु वण्णेऽहं // 813 // हरिते बीजे चले जुत्ते वच्छे साणे जलहिते। पुढवी संपाइमा सामा महवाए महिया हिमे // 814 // एवं लेवग्गणं जह कामं वणितं समासेणं / दा। ओहोवहुवग्गहितं उलिंगेऽहं समासेणं 815 // जणकप्प धेरकप्पे अज्जाणं व ओहुवग्गहितं / वोच्छामि समासेणं जहण्णगं मज्झिमुकोसं 1816 // पत्तं पत्ताबंधो पायढवणं च पायकेसरिया। पडलाइं रयत्ताणं च गोच्छओ पायणिज्जोगो // 817 // तिण्णेव य पच्छागा रयहरणं चेव होइ मुहपोत्ती। सो दुवालसविहो उवही जिणकप्पियाणं तु // 818 // उक्कोसिओ उ चउहा मज्झिमग जहण्णगोवि चउहाउ पच्छादतिगं उग्गही जिणाण अह होति उक्कोसो 819 Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्याणामधिकोपधिः [91] पडलाणि रयत्ताणं रयहरणं पत्तबंधमज्झिमगो। गोच्छग पत्तट्ठवणं मुहणंतग केसरि जहण्णो // 820 // जिणकप्पियाण एसो सेसाण वि णिग्गयाण एसेव / थेराणं अतिरगो मत्तो तह चोलपट्टो य // 21 // उकोम जहन्नो त जे चिय जिणकप्पियाण ते चेव / मज्झिमए अतिरेगो मत्तो तह चोलपट्टो य // 822 / / एसेव चोदमविहो चोलट्ठाणम्मि णवरि कमढं तु। अज्जाण इसो अण्णो ओहोवहि होति णायव्बो 823 ओगहणंलगपट्टो अद्धोरुग चलणिन्याय बोद्धव्वा / अभिता वाहिणियलणीच नह कंचए चेव 18214 / / उकच्छिय बेकच्छिय संघाडी व खंधकरणीय। ओहोवहिमित एते अज्जाणं पण्णवीसं तु 820 / / उकोसो अट्टविहो मज्झिमओ होति नरसविहीं तु। चउह जहन्नो मो चिय जो जिणकप्पे समक्खाओ। पच्छादतियं उग्गह णियंसणभंतरी य बाहिरिया। संघाडि खंधकरणी य अट्टहा होति उक्कोसो // 827 // पत्ताबंधो पडला रयहरणं पादपुंछणं चेव / मत्तय कमढगोग्गहणते तह पट्टए चेव // 828 // Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [92] पञ्चकल्प-भाष्य अद्धोरुए चलणीया कंचुग ओकच्छि तह विकच्छी य। एसो तु तेरसविहो मज्झिम उवही तु अज्जाणं // 829 // एसो तु ओहउवहि एत्तो सेसो तु होतुवग्गहिओ। संथारपट्टमादी तुणेगहा होति णायव्वो // 830 // दुविहोवहीवि एसो जहक्कम वणितो समासेणं ।दा। एत्तो उ उवेसणयं वोच्छामि आणुपुत्वीए // 831 // भिसगादिउवेसणयं वासारत्ते उपाणदयहेतुं। वेहासट्ठा धिप्पड़ तं चिय सावंगपरसवणं // 832 // विस्समणट्ठाथेराण घेप्पती।दा। एत्तो वोच्छ सेजं तु। सेज्जा संथारो या एगळं होति णायव्वं // 833 // सव्वंगिया व सिज्जा होति असव्वंगितो तु संथारो। एगंगिअ णेगंगी परिसाडी अपरिसाडी य // 834 // एतेसिं सव्वेसिं अट्ठहिं दारेहिं मग्गणा होति / पिंडणिज्जुतिगमेणं णेयं जहसंभवं सव्वं / दा 835 णिसियणहेतु णिसेज्जारयहरणपमाणओ गहेयव्वा। किं पुण घिप्पइ साहू भण्णति सुण कारणमिमेहिं 836 पुरिसे पुढवि सरक्खे पच्छाकम्मे तहेव अचियत्ते। बाउसपरिहरणाए संथाराणसेज्जणुण्णाता // 837 // Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यष्ट्यादीनां प्रमाणं प्रयोजनं च [93] राजादी पव्वइओ भूमीए अणंतरं णिवेसंतो। विष्परिणमेज्ज तेणं संथारणिसेज्जणुण्णाता // 838 // मसिसचित्तधराए अद्वाणणदीसु मा विराहणता / उपहाए पुढवीए तेण णिसिज्जा य संथारो 839 // एमेव य ससरक्खे सच्चित्ते संतरं भवे जयणा / सागारियं च इहरा धूलीउग्गुंडियसरीरो // 840 // कज्जेण गिहिणिसेजागतस्स वत्थम्मि मइलिए गिहिहो। ओफुसणधोवणादी कारेज्जा पच्छकम्मं तु 841 अचितत्तं वा सि भवे धूलीउग्गुंडितपुते णिविट्ठम्मि / अहवा बाउसदोसा पप्फोडिंते धुवंते वा। दा // 842 // ठाणं तिविहं भणितं उड्ढनिसीयण तुयट्ट ठाणं च / उड्ढ काउस्सग्गो णिसीयण णिवेट्ठ ठाणं च 843 // होति तुयह णिवण्णं पडिलेहपभज्जियाण कायव्वं / सेज्जणिसेज्जाणं वा ठाणं अहवावि ठाणं तु / दा / लट्ठी आतपमाणा विलट्ठी चउरंगुलेण परिहीणा। दंडउ बाहुपमाणो विदंड ओकच्छगपमाणो // 845 // दुपसुसाणसावदविज्जलविसमेसु उदयमग्गेसु / लट्ठी सरीररक्खा तवसंजमसाहिगा भणिता / दा॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [94] पञ्चकल्प-भाष्ये चम्मपडितलिय-खल्लगवज्झादी होज्ज चम्मगहणं तु। अत्थुरणपादरक्खा फुडिए तह संधणट्ठादी 847 अरिस भगंदलकच्छू छप्पतिगिल्लाति अत्थुरणगं तु / दुब्बलपाए चक्खू अद्धाणादीतु ललिया तु // 848 // फुडियावविच्छिणहंगुलिरक्खट्ठा खल्लकासगी होति / वज्झा उ संघणट्ठा अद्धाणादीसु छिण्णायदा 849 गज्जुमयी पोत्तमयी कंबलमयि तह य दंडकडगमयी। पंचविहा चिलमीणि तु वण्णिता एस पुव्वं तु :दा 850 उडुबद्धे रयहरणं वासावासासु पादलेहणिया। वड उंबरे पिलिक्खू तस्स अलम्भम्मि चिंचिंणीया॥ उभओ णहसंठाणा सच्चित्ताचित्तकारणा मसिणा। सचित्तेगेण फुसे पासेणेगेण अच्चित्तं / दा // 852 // कण्णाण सोहणं पुण कण्णाण मलेण संचिएणं तु / दुक्खेज्ज जस्स कण्णा न सुणेज्ज व सोतु गिण्हेज्जा ।दा // 8 // पविरलदंतो थेरो सित्थादीणं तु दंतलग्गाणं / लेवाड अरतिसारिय रक्खट्ठा गिण्ह सोहणयं / दा 854 अद्वाणोमादीसुं पिप्पलतो विकरण? कंदाणं / ' माणाहिगवत्थादी पगासमुहभाणकरणहा / दा / / Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... उपधेरुपघातो विंशतिधा [9.. जुण्णाण संधणंहा सूई णखसिव्वणं तु कंटाणं / उद्धरणट्ठ गहाण य छेदणहेतुं गहेयव्वं / दा // 856 / उच्चारमत्तगादी अण्णोऽवि य बहुविहप्पगारो तु। ओवग्गहिओ भणिओ उवग्गहट्ठा महाणस्म 18571 सव्वोऽपि एस उवधाय दोस परिवज्जिओ घरेपव्वा वीसतिधा उवघातो तस्स इमो होति णायव्यो / / 858 उग्गम उपायण एसणा य पडिमणाय परिहरणा अचियत्त वतीयारे तहेव परियट्टणा विहिया // 859 उग्गमम्मि य अण्णात पामिचे य पवाहणे / तेरिच्छया हया चेक तदा तेणाहडेति या // 860 अण्णाणोवहडे चेव मालोहड अरक्खिए / कते य कारिते चेव बंधणे य विराहणे // 86 // विवण्णकरणे चेव एमेता पडिवत्तिओ। एते पत्तेय उवघाता उवहिस्स तु वीसति // 862 // उग्गमेणं तु अस्सुद्धं तहा उपायणेसणा। उवहिं उवहतं जाणे वोच्छामि परिकम्मणे // 863 परिकम्मे चउभंगो कारणे विहि बीतिओ कारणे अविही। (तहओ) णिकारणम्मि य विहीं चउत्थ णिकारणेऽविही / / 864 // Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [96] पञ्चकल्प-भाष्ये गग्गरदंडी वेलतिग खीलगमादी य होति अविही उ। णिकारणाम्म तीय तु परिकम्मे तम्मि उवघातो 866 भाणस्स वि परिकम्मं णिम्मोयण लेव सिव्वणादी या णिकारणमविहीए कुणमाणे होति उवघातो।दा 866 अभितरं च बाहिं बाहिं अभितरं करेमाणो। परिभोगविवच्चासे उवघातो होति णायव्यो।दा 867 णियगोवहिपरिभोगं समणुण्णाणं ण देति कज्जम्मि। जो भंडमच्छरीयत्तणेण उवहिस्स उवघातो // 868 // वतियारे पडिहारियवत्थं पादं च जो गहेऊणं / पुण्णेवि तम्मि काले अणपुच्छ धरेंत उवघातो / / 869 // लोइय लोउत्तरियं परियटिय जो तु गिण्हती उवहीं। उग्गमदोस असुद्धं च उवहतं तं तु णायव्वं / / 8705 अण्णगणमागतस्स तु जस्स उ उवहिस्स उग्गमो ण णज्जे / सोऊणं परि जति उप्पायंते य णायम्मि। दा // 871 // पामिचं उज्जयगं उच्छिण्णं चेव होति णायव्वं / लोइय लोउत्तरियं तु उवहतं तं वियाणाहि // 872 // अण्णवहंते असंते दिपणे साहुस्स अण्ण जदि वाहे / तं तु पवाहणदोसा उवही तू उवहतं जाणे // 873 // Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपधेरुपघाताः [97] सुणएण वानरेण वजह रूवगमादि हरितुमाणीतं / दिज्जनमदिज्जं वा गेण्हतं उवहतं जाणे // 874 // अण्णाणावहतो खलु वत्थादि अकप्पिएण जो गहिओ दा। मालोहडो तु उवही ओलइओ जो तु वेहासा 879 अणरक्खिउत्ति सुण्णं उवहिं मोत्तूण जो उ गच्छेज्जा भिक्खादीणट्टाए सोऽवि य उवहिस्स उवघातो / . दा // 876 // सयभव करे उवहीणिसेज्जाई सोऽवि ओहतो होति / दा। कारेड व अण्णणं उवघातो सोवि बोधव्वो 877 बंधति भिण्णं अविहीभिण्णं च धरेति सोवि उवघातो। सुब्वण्णं च दुवण्णं करेज्ज मा तं तु हीरेज्जा // 878 // दुव्वणं च सुवण्णं विभूसहेउं तु जो करेज्जाहि / दा। उवहि उवघात एते अहवा अण्णेऽविमे होति // 879 // पंचट्ट य पण्णरसा सोलस दस चेव होति ठाणाणि / चतारि एकगाई वारस वीसं च ठाणाई // 880 // दव्वे खेते काले भावे पुरिसे य होंति पंचेव। एतेसिं पंचण्हवि परुवणा होति कायव्वा // 881 // दब्वे अणलं अधिरं अधुर च तहा अधारणिज्जं च। एतेसुं चउसुंपी गण्हते भंग सोलस उ // 882 // Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [98] पञ्चकल्प-भाष्ये अहवा महद्धणाइं खित्ते काले य अचित्तं जंतु। भावे जहा गिलाणो भुंजे अगिलाण तह चेव // 883 // पुरिसे असहू तु जहा सह वि परिभुंजते तहा उवहीं / रायादी पव्वइओ अहवा पुरिसो हवेज्जाही / दा 884 अहवा गारवमुच्छा अचियत्ततिरित्त बाउसत्तं च : पंचेते उवहिम्मी समणेण सया ण कायव्वा / दा 885 जोगमकाउमहागडे जो गेण्हति अप्पसपरिकम्म वा। अहवा अमग्गिऊणं अप्पं गिण्हं सपरिकम्मं // 883 // अप्पडिलेहिय गारवमुच्छविभूसा य होति मत्तमए / अचियत्ते मा मे कोवी किव्वतुत्ती होति अट्ठमए / दा। पण्णरसुग्गमदोसा अज्झोयर भीसजायमेगंतु। दा। उपायण सोलसगं एसणदोसा य दसगं तु / दा 888 संजोयणा पमाणे इंगाले चेव होति धूमे य / चत्तारि एकगा खलु एते ते होंति गायव्वा / दा 882 बारस ठाण इमे खलु वेदणमादी तु होति छ हाणा आयंकादी छच्चिय अधरण धरणा य उवघातो। दा॥८९०॥ वेयणवेयावच्चे इरियडाए य संजमठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए // 891 / / आयंके उवसग्गे तितिक्खता बंभचेरगुत्तीसु / पाणदयातवहेउं सरीरवोच्छेयणट्टाए // 892 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मिश्रकल्पः वीसं पुण पुव्वुत्ता ते चेव य उग्गमादिणो होति / एते सव्वे मिलिया णउतिं खलु होंति उवद्याया 893 आसीतं ठाणसतं जस्स विमोहीए होति उवलद्धं / सो जाणती विसोही उवघातं वावि उवहिस्स 894 णउति उवघाता खल तत्तियमेत्तावि अणुवघातावि! एए दोषिण वि भिलिता आसीतं होनि ठाणसतं 89 एयं चिय आसीयं मयं तु जिणथेर-अज्जउवहीहि / गुणिने होइ स संखा जहमेणं तु ठाणाणं // 893 / दो चैव सहस्साई महसयं चव जस्म उवलद्धं ! सो जाणती विसोही उवघातं वावि जिणकप्पे 897 दो ठाणसहस्साई पंचेव सयाइं होति वीसाई। सो जाणती विसोही उवघातं वावि थेराणं // 898 // चत्तारि सहस्साई पंचव सयाई होंति पण्णाई / सो जाणती विसोही उवघातं चेव अज्जाणं // 899 / / एसो उ सोलसविहो अजीवकप्पो समासतो भणितो। एत्तो अ मीसकप्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए // 10 // एत्तो छहिं सोलसहिय दोहिं वि निष्फज्जती य जो कप्पो। दुगसंजोगादीओ सन्चो सो मीमओ कप्पो।। Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [10] पञ्चकल्प-भाष्ये पव्वावण मुंडावण सिक्खोवढे य भुंज संवासे। एते छ णायव्वा आहारुवहादि सोलसयं // 902 // दुगसंजोगाईया सचित्तअचित्तमीसकप्पाणं / पत्तेयमीसगा वि य णेयव्वा आणुपुवीए // 903 // पव्वावे मुंडावे पवावे चेव तह य सिक्खावे / / पवावे उवट्ठावे पव्वावे चेव संभुंजे // 904 // पव्वावे संवासे एवं मुंडावणा उवरिमेहिं। णेया दुगसंजोगा एवं सेसा वि संजोगा // 905 // तिचउ पण छक्क जोगा एते सच्चित्त दवियकप्पम्मि। पत्तेयं संजोगा एत्तो अचित्त वोच्छामि // 906 // आहारे उवहिम्मि य आहारे तह उवस्समणए य / एवं जा णक्खणता आहारेण चारेज्जा // 907 // एवं अवसेसासु वि उवधादीएसु उवरि उवरिं तु। णेया दुगसंजोगा जा पच्छिम सूइणहच्छेदो // 908 // एमेव सेसगा वी तियगाईया वि सव्वसंजोगा। णेया जा सोलसगो एते पत्तेय अचित्ते // 909 // चित्तेतराण दोण्हवि एत्तो संजोगतो मुणेयव्वो। मीसगकप्पे णेया दुगमादी सव्वसंजोगा // 901 // Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादिसंयोगभङ्गानयनोपायः [101] पव्वावे आहारंपि देइ पव्वाविएवि उवहिं च / पव्वावे उवस्समणं एवं णखछेयणं जाव // 911 // एतेण कमेणेवं दुग तिगमादीसु सव्वसंजोगा। यव्वा जाव पच्छिम बावीसगो होइ संजोगो 912 एतेसि सव्वेसिं संखाणयणम्मि आणणोवाओ। पत्तेयमीसगाण य इमो तु कमसो मुणेयवो // 913 // एगादेगुत्तरिया पदसंखपमाणओ ठवेयव्वा / गुणगार भागहारा तेर्सि हेट्ठा उ विवरियं / ठवणा // 64 192 540 160 60 12 भं० पढमं रूवं गुणए भागं व हरे हवेज्ज जं लद्धं / तम्मि वि पडिरासितगुणित भाइए जं भवे लद्धं 915 एवं ठाणे ठाणे पडिरासिय गुणियभजिय लद्धाई / एगाईसंजोगाण होति संखप्पमाणाइं // 916 / / एक्काईसंजोगाण होते एवं तु लक्खणं दिलु / एते सव्वे मिलिता तेसहि होति संजोगा // 917 // Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [102] पञ्चकल्प-भाष्ये एक्कगसंजोगादिसु उप्पज्जंते उ जत्तिया भंगा।" तेसिं संखाणयणे करणं तु इमं मुणेयव्वं // 918 // एक्कगसंजोगादिसु जत्तियमित्ता हवंति ठाणाउ। तत्तियमेत्ता दुवगा ठावेयव्वा कमेणं तु // 919 // 2 / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 // 2 / 4 / 8 / 16 / 32 / 64 // पडिरासिय पडिरासिय अण्णोण्णणऽन्भसाहि ते दुयगा। जावंतिल्लं ठाणं गुणि एवं जा भवे संखा 920 एक्कगसंजोगादिसु एकके भंगसंख तावइया / स चिय एकादीहिं पुणरवि संजोग संगुणिता / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 / 2 // 921 // पत्तेयं पत्तेयं एक्कगमादीण सव्वजोगाणं / सा होति भंगसंखा जहक्कमेणं मुणेयव्वा // 922 // कह भंग भवंतेत्थं भण्णति दिक्खेज्ज अहव बहुआउ। मुंडावणादि एवं दुगचउभंगादि चारणिया // 923 // पच्चयहेउं तहियं पत्थारो होइ पत्थरेयव्वो। इमिणा उ लक्खणेणं तमहं वोच्छं समासेणं // 924 // भंगपमाणायामो गुरुओ लहुओ य अक्खणिक्खेवो। मत्ता दुगुणादुगुणो पत्थारो होति णिक्खेवो // 925 // एवं तू पत्थरिए पिच्छसु एक्कादिए उ संजोगे। जे जत्थ उणिवडती पञ्चक्खंते तहिं सव्वो // 926 // Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकसंयोगादिभङ्गसङ्ख्यामानम् [103] छक्कग. सोलसगाणं जीवमजीवाण दोण्ह कप्पाणं / एक्कगजोगादीणं संखमाणं इमं होति // 927 // छच्चेव य पण्णरसा वीसा पण्णरस छक्क एको य। एकगसंजोगादी छव्विह सचित्तकप्पम्मि // 928 // सोलम वीसं च सयं पंचव सयाई होति सट्ठाई। अट्टारस वीसाई तेयालं अट्ठसठ्ठाइं // 929 // अट्टेव महस्साई अट्ठहियाई अजीवछट्टम्मि / एक्कारम य सहस्सा चत्तारि सया तहा चत्ता / / 930 // बारस चेव सहस्सा अटेव सया उ सत्तरा होति / अट्ठममंजोगम्मि वि उकमतो एव जावेको // 13 // सचित्तदवियकप्पो तेवठ्ठी होति सव्वसंजोगा। पंचसता पणतीसा पण्णठि सहस्स अच्चिते // 932 // सचित्तअचित्ताणं एते भणिया तु सव्वसंजोगा। पत्तेयं पत्तेयं एत्तो मीसाण वोच्छामि // 933 // अचित्तदव्वकप्पे संजोग पिहिप्पिहे ठवेऊणं / जितकप्पे (क्कग) कमसंजोगगुणित तेसिं फलमिणं तु छण्णउनि संजोगा दुगसंजोगम्भि मीसए कप्पे / सत्तसया वीसहिगा तियसंजोगाण बोधव्वा // 935 / / Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [104] पञ्चकल्प-भाष्ये तित्तीसं चेव सता सट्ठहिगा तू चउक्कसंजोगे। दस चेव सहस्साई णववीसहियाइं पंचमए // 936 // छत्तीस सहस्साइं दो चेव सताइं अट्ठ सहियाई। अडयालं च सहस्सा अडयाला होति सत्तमए / / 937 अट्ठठि सहस्साइं छच्चेव सयाइं होंति चत्तारि / सत्तत्तरिं सहस्सा दो चेव सया भवे वीसा // 938 // एमेव उक्कमेण वि णवमाउ परेण हंति बोधव्वा / छण्हती जा सोले छच्चेव पदा मुणेयव्वा // 939 // एवं पण्णरस य [वीस य] वीसएण पण्णरस छक्क एक्केणं / पत्तेयं पत्तेयं गुणिएणं रासिणो मुणसु॥९४०॥ दोण्णि सया चत्ताला अट्ठारसया य होंति णायवा। अट्ठ सहस्सा चउसय ततिए मीसम्मि संजोगा 941 सत्तावीस सहस्सा तिणि सता चेव होंति णायव्वा। पण्णठि सहस्साइं पंचसया वीस अहिया य // 942 // एकं च सयसहस्सं वीस सहस्सा सयं च वीसहियं / एक्कत्तार सहस्सा लक्खेको छस्सता चेव // 943 // एक्कं च सतसहस्सं तेणउइ सहस्स तहय पण्णांसा। उक्कमतो सत्तेव य ठाणाइं ततो य पण्णरस // 944 // Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भङ्गसङ्ख्यामानम् [105] तिषिण सता तू वीसा दोणि सहस्साई चउसयजुयाई एक्कारस य सहस्सा दोषिण सता चेव णायव्या 945 छत्तीस सहस्साई चउरो य सता हवंति णायव्वा। सत्तासीइ सहस्सा तिणि सता चेव सट्ठहिता 946 एक्कं च सतसहस्सं सठि सहस्सा सयं च सट्ठी य। दो लक्खा अडवीसा सहस्स अट्ठेव य सयाइं // 947 दो चेय सयसहस्सा सत्तावणं भवे सहस्साइं। चउरो सय अट्ठमए ठाणा सत्तंतिमे वीसा // 948 // जह पढमे तह पंचमे जह बीए तह चउत्थए रासी / एक्कगगुणकारे पुण सोलसमादी तु जावेक्को 949 अचित्तदविए कप्पे संजोगा सव्वपिंडिता काउं / जितकप्पेक्कादीहिं गुणिते फलरासिणो मुणसु 950 तिणे व य सतसहस्सा ठाणसहस्सा हवंति तेणउति दो य सया य दसहिता एक्कगसंजोगसंगुणिता 951 णव चेव सयसहस्सा तेसीति सहस्स तय पणुवीसा बियसंजोग चउक्के वि एत्तिया चेव णायव्वा // 952 // सत्तसय दस सहस्सा तेरस लक्खा य तियगसंजोगे पंच य पढमसरिच्छा अचित्तपिंडो उ अंतिमए 956 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [106] पञ्चकल्प-भाष्ये जियपिंडेणं पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणो णियमा। मो होति दव्वपिंडो तस्स उ संखा इमा होति // 954 ईयालसतसहस्सा अट्ठावीसं भवे सहस्साई / सत्तसया पंचसहिया ठाणाणं मीसकप्पम्मि // 955 // जियअजियमीसगाणं कप्पाणण्णे वि भंगसंजोगा। पत्तेयमीसगा वि यणेयव्वा आणुपुवीए // 956 // पव्वावेको एक एको अणेगा अणेग एकं च। गेगाणेगे य तहा चउभंगा एव एकेगे // 957 // एवं एक एक्कासि एकमणेगेऽवि एत्थ वि तहेव / चउभंगो णेयवो एकेके छह तु पदाणं // 258 // एकेक्कसि पव्वावे मुडावेक्कं तु एक्कसिं चेव / पत्थ उ दुगसंजोगो चउभंगो होति णायव्वो // 959 // एवं दुततिय-चउपंच-छक्कजोएहिं जत्तिया जे तू। संजोगा भंगाया ते सव्वे होंति णेयव्वा // 16 // पव्वावे मुंडेगं पव्वावगं च मुंडणेगे य! गंगे एक्कं च तहा णेगाणेगे य एमेव // 161 // एभेव लेसगावी दुगतिग-चउपंच--छक्क-संजोगा। बुद्धीएऽणुगंतवा सब्वेवि जहक्कमेणं तु . 1962 // Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रकल्पः [107 ] अचित्त विय एवं एक्को एक्कस्स देति आहारं / एवं उवहीमादिसु सव्वेसु वि होंति चउ भंगा 963 दुगमादी संजोगा एत्थंपि तहेव हुंति विण्णेया। एमेवेक्को एक्कसि आहारादीणि देज्जाहि // 964 // एवं दुगमादीया णेया एत्थंपि सव्वसंजोगा। एवं ता अचित्ते मीसेऽवि य बुद्धिए जोए // 965 / / (एक्को पवावेक्कं आहारादी य देति एत्थवि तहेव / संजोगायव्वा जावतिया संभवे तत्थ ) एसोतु दवियकप्पो तिविहोवि समासतो समक्खाओ पत्तो समामतोऽहं वोच्छामी खित्तकप्पं तु // 966 // जं देवलोगसरिसं खित्तं णिप्पच्चवाइयं जं च / एसो तु खेत्तकप्पो देसा खल अद्वछव्वीसं // 967 // रायगिह मगह चंपा अंगा तंह तामलित्ति बंगा य / कंचणपुरं कलिंगा वाणारसि चेव कासी य // 968 // माएय कोसला गजपुरं च कुरु सोरियं कुसहा य / कपिल्लं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव // 969 / / पारवती य सुरट्ठा महिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। णदिपुरं संदिल्ला भद्दिलपुरमेव मलया य // 970 / / Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [108] पञ्चकल्प-भाष्ये वयराड वच्छ वरणा अच्छा तह मत्तियावति दसण्णा। सोत्तियमती य चेती वीतभयं सिंधुसोवीरा // 971 // महुरा य सूरसेणा पावा भंगी य सामपुरि वट्ठा। सावत्थी य कुणाला कोडीवरिसं च लाढाय // 972 // सेयविया वि य णगरी केततिअद्धं च आरियं भणितं। जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकण्हाणं // 973 // एतेसु विहरियव्वं खेत्तेसु साहुभाविएसुं तु / जत्थ य गुणा इमे तू खेमाईया मुणेयव्वा // 974 // खेमो सिवो सुभिक्खो अप्पप्पाणो उवस्सयमणुण्णो। एसो तु खेत्तकप्पो (पासंडखेदमुक्को) गामणगर पट्टणाइण्णो // 17 // खेमो डमरविरहितो रोगासिवविरहितो सिवो होति। पउरण्णपाणदेसो होइ सुभिक्खो मुणेयव्यो / दा९७६ जलगा-संखण-मूइंगपिसुगमसगादिविरहितो जोतु। सो होति अप्पपाणो अप्प अभावम्मि थेवे य। दा 977 समभूमि-रेणुवजिय-रितुक्खमोवस्सया मणुण्णाओ। गामणगरा वि य बहू पाउग्गा मासकप्पस्स // 978 // सज्जणजणो य भद्दो जहियं च मणुण्णसाहुजोणीओ तारिसए खेत्तंमी समणुण्णातो विहारोतु। दा // 979 // Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहारयोग्यक्षेत्रम् [109] खेमो य सिवो य तहा खेमो सुभिक्खो य एव संजोगा गेयव्व छम् पदेसुं सत्तसु वा आणुपुवीए // 980 // अहवोदयग्गिसावदतक्कर-वालभयविवज्जिओ रम्मो / णिरवेक्खोवि वि य जहियं समणगुणविदू य जत्थ जणो // 28 // एताणि चव खेमाइयाणि आरीयखेत्तसहियाणि / पुत्वभणियाणि जाणि तु ताई खलु सत्त उ हवंति॥ णाणस्स दंसणस्स य चरणस्स य जत्थ णत्थि उवधातो एसो तु खेत्तकप्पो जहियं च अणायणा णत्थि 183 // उदगभयवुज्झणादी जह कोंकण-सिंधु-तामलितादी। पत्थि जहिं अग्गिभयं निरग्गिसाहम्मियगिहा वा // जहियं च सावयभयं सीहादीणं ण विज्जए देसे। जहियं च णत्थि चौरा देहुवही-पंथमोसादी // 1.85 // वाला उ सप्प गोणसमादी।दा। बोहिगभयं च णत्थि जहिं / मणसो समाहिकारो सो रम्मो होति णायव्यो। सूरी अणण्णगम्मो जत्थ णरिंदो तहिं सुहाविहारं / साहुगुणे य बियाणति कुणति य साहण जो रक्खं। दा / / 987 // अहिरण्णसुवण्णेते छज्जीवणिकायसंजमे णिरता। जाणति जणो य एवं जत्थ तु साहण गुणाणहसं। दा।। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [110] पञ्चकल्प-भाष्ये सज्झाओ जहि सुज्झति / दा। कुदिहिगिण्णो ण या वि जो होति / एसण इत्थी सोही य जत्थ तहियं णिवासो तु / दा / / 9.89 // जहितं च अणायतणा न संति के पुण अणातणा भणिया। साहम्मिभिन्नचित्ता मूलत्तरदोसपडिसेवी एतेहिं जो देसो आइन्नो तह य अन्नतित्थीहिं / मच्छंधवाहगामा पुलिंददेसा अणायतणा // 191 // एतारिसम्मि खेत्ते अप्पडिबद्धण विहरियव्वं तु / आलंबणाई केइ तु इमाणि काउंण विहरंती // 10 // वसही संथारो भत्त पाण वत्थे पडिग्गहे सेहा / सड्ढा य पुव्वसंथुय असद्दहंते य पडिबंधो // 10 // फासुया एसणिज्जा य णिवाया य रितुक्खमा। एरिसा साहुपाउग्गा वसही दुल्लभऽण्णहिं / दा 194 एमेव य संथारा कंबलदन्भादिवत्थुनिप्फन्ना। सयणासणा य जहियं सुलभा जोग्गा य साहूणं / दा। भत्तं सुलभमणुण्णं च एरिसं णत्थि अण्णहिं तत्थ। जंगिय-भंगियमादी न हु सुलभा अन्नहिं वत्था 906 // पडिगहगावि य सुलभा सेहा यण्णत्व णत्थि खेत्तम्मि अण्णत्थ दुलभा तृ तेण तु पत्थं बहुगुणं तु। दा॥९०.५ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकस्थानस्थितिकारणानि [111 सड्ढा आहारादीदिति य जोग्गाणि संथुता चेव / पुरपच्छे दिट्ठभट्ठा य अण्णहिं णस्थि एरिसगा। दा / उडुबद्ध-मामकप्पेण विहारो तंण सद्दह इमेहिं / संजमआतविराहण वच्चंते गाम अणुगामं // 999 / णाणादीण य हाणी जोरगं खेत्तं तु मग्गमाणाणं / खेत्ताओवि य खेत्तं संकममाणे धुवमसज्झाओ 1000 जेणीयत्त दोसा मासंते परिवसेण ते चेव / एवं मासविहारे मण्णंतो बहुविहे दोसे // 1001 णो सहहति विहारं तेण तु ण विहरेति तस्स आणादी मासोवरिं च लहुओ णीयावासे य जे दोसा // 1002 / ते सो पावति सव्वे एतेहालंबणेहिं अच्छंतो / किं पगंतेणेवं ण विसेसो भण्णती सुणसु // 1003 णिकारणम्मि एवं पडिबंधो कारणम्मिणिद्दोसो / ते चेव अजयणाए पुणो वि सो पावती दोसे 1004 / ' काणि पुण कारणाई जेहिं चिटेज्ज एगठाणम्मि / भण्णति पुबुद्दिट्ठा जे खेमसिवादिया दारा 1005 // तेसि चिय पडिवक्खा अक्खेम असिव तहय दुन्भिक्खं। बहुपाणुवस्सओवा अमणुण्णो जो तु दयमादी। Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 112] पञ्चकल्प-भाष्ये एतेहिं कारणेहिं एगट्ठाणम्मि अच्छमाणा उ / जदि जयण ण कुवंती तच्चिय णिययादिया दोसा // का पुण जयणा तहियं भण्णति तेहिं कारणेहिं उ द्वितस्म / अण्णउवस्सयभिक्खादिया तु जयणा मुणे यव्वा // 1008 // अक्खेममादिएसु वि अक्खेत्तेसुं तुकारणवसेणं / चिटुंताणं तूतहियं इमा तु जयणा मुणेयव्वा 1009 अक्खेमे विसति पुरं संवढे वावि आसयंती उ। अक्खमं च अण्णत्व तहिं खेमं तो ण णिगच्छे / दा॥ जइ असिवं तु बहिद्धा ताहे अच्छंति ते तहिं चेव / दुब्भिक्खे विणणीतिय य अहवा सव्वत्थ दुभिक्खं दुभिक्खे जयण तहियं अच्छंते वावि जयण तह चेव। बहुपाणे आउत्ता चंकम्मंते तु जयणाए // 1012 // उवस्सएवि आउत्ता कुडमुहभूतीतवावि लक्खंति / अण्णाए वसहीए ठंति पमज्जति य अभिक्खं / दा // जा जत्थ जयण जुज्जति अमणुण्णे उवस्सयम्मि तं कुज्जा / कयवरसोहणमादी दुग्गंधे गंधपकिरती। . दा ||1014 // Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकल्प: [113] उदगमा चलगामे थले च वसही तहिं तु गिण्हति / अगि भए मालबद्धे हम्मियतलगम्मि व वसंति // रोगबहुले अवथाणि वज्जए चोरकिण्णि ण तु विहरे। सत्यण अवि गच्छे ठायंति व जत्थ निरवायं। दा // जहियं मावयदोसा तहियं एगाणितो ण गच्छेज्जा। गेण्ह वमहिं च गुत्तं गामस्स तु मज्झयारम्मि / दा॥ विज्जामलादीहिं वाले णीणेति रातो णवि गच्छे / दा। रायं य पण्णविंती साहुगुणभजाणमाणं तु 1018 जत्थ जणो णवि जाणति साहुगुणे तहिं कहंति साहुगुणे / दा। परिभोग अकालम्मी रत्तिं कुव्वंति सज्झायं / दा // 1019 // दूरेण कुतित्थीए वज्जेती / दा। एसणं च पण्णवए / कुलडा इत्थी चरियाइया य वज्जति चरणहा 1020 वज्जेज्ज अणायतणा णाणादीणं च जत्थ उवघातो। एवं जहसंभवं तं करेज्ज जयणं णिवसमाणो / दा // एसोतु खेत्तकप्पो उस्सग्गववायसंजुतो भणिओ। एत्तो उकालकप्पं वोच्छामि जह कमेणं तु // 1022 // मासं पज्जोसवणा वुड्ढावास परियायकप्पो य / उस्सग्गपडि मणे किलिकम्भे चेव पडिलेहा // 1023 // Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 114] पञ्चकल्प-भाष्य सज्झायज्झाणभिक्खे भत्तवियारे तहेव सज्झाए / णिक्खमणे य पवेसे एसा खलु कालकप्पविही // पुव्वं तु मासकप्पो परूवितो सो णिसीहणामम्मि / णवरिं तु इहारुवणा वणिज्जति मास अतिरेगे 1025 मासातीतं वसतो वसतीए तीए चेव मासलहुं / तह भिक्खायरियाए वीयारे तह विहारे य // 1026 // परिसाडी संथारे सव्वेसेतेसु होति मासलहुं / चत्तारि य उवघाता संथारे अपरिसाडिम्मि // 1027 // पंचेते मासिया खल चाउम्मासं च मिलिय सव्वेते। णवमास मासऽतीए उडुबद्धे संवसंतस्स / दा 1028 / / लहुगा तु वासतीते वसतीए सेस होंति ते चेव / भिक्खायरियादीसुं जे भणिता मासतीतम्मि। दा॥ आरोवणा उ एसा कालदुवे वण्णिता अणिताणं / एत्तो पज्जोसवणासामायारिं पवक्खामि // 1030 // पेहेत्तु वासजोग्गं बहिया अच्छंति वा सुदिक्खता। जे अंतरा उ गिण्हे तं सव्वं तेसि खेत्तीणं // 1031 // अह पुण वच्चंताणं वासाजोग्गं तु अंतरावासं / आरद्धडहरगामे ण पहुव्वति एगवसहीय // 1032 // Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धवासकालः [ 115] अण्णोण्णसुहिताणं बहवा मागारिया ण तीरंति / परिहरितुं नाहे वज्जे गुरु सागरियं णवरि एक 1033 अविमेस समायारी पज्जोसवणाए वणिय णिसीहे। सच्चेव णिरवसेसा इमम्मि दारम्भि गायत्र्या 1034 बुड्ढस्म तु जो वासो वड्ढी व गतो तु कारणेणं तु / एसो तु वुड्ढवामो तस्स तु कालो इमो होति 1030 अंतोमुहुत्तकालं जहण्णमुक्कोस पुत्वकोडी तु। मोत्तुं गिहिपरियागं जं जस्स व आउगं तित्थे 1036 मरणे अंतमुहुत्तो देसूणा पुवकोडि कह होज्जा ? / जो नरुणो च्चिय समणो असमत्थो विहरितुं जातो॥ कदा-विज्जा चरियं लाघवेण तवस्सी, नत्तो नवो देसितो मिद्विमग्गो। अहाविहिं संजम पालइत्ता दीहाउसो वुड्ढवासस्म कालो // 1038 // विज्जा तु बारमंगं करणं तस्म गहणं मुणेयव्वं / सुत्तं बार ममाओ तत्तियमेत्ता य अत्थे वि ! दा 1039 धित्तुं मुत्तत्थाई घार समा देसदसणं च कतं। चरियं भंतेगहें लापविएणं तु तिविहेणं // 1040 // उवकरण मरीरिदिय एवं तिविहं तु लाघवं होति। उवकरणऽरत्तदुट्ठो धरेति ण य गिण्हा अहियं 1041 Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 116] पञ्चकल्प-भाष्ये संघयणधितीजुत्तो अकिसो ण तु थूरदेहसारीरो / दा वस्सिदिओ तवस्सी / दा। चउत्थमादी तवो चिन्नो॥ कुव्वंतेण अछित्तिं णाणादी देसिओत्ति मोक्खपहो। दा। सुत्तत्थुवदेसणं संजमियं संजमेणं च / दा 1043 काऊण अवोछित्तिं बारस वासाइं णिच्चमुज्जुत्तो। दीहाउतो तु सूरी पांडवज्जेब्भुज्जयविहारं / / 1044 // अब्भुज्जयमचयंतो अगीयमीसो व गच्छपडिबद्धो / अच्छति जुण्णमहल्लो कारणतो वावि अन्नोवि 1045 जंघाबले व खीणे गेलण्णे सहायतो व दोबल्ले। अहवावि उत्तमढे णिप्फत्ती चेव तरुणाणं // 1046 // खेत्ताणं च अलंभे कयसंलेहे व तरुणपरिकम्मे / एतेहिं कारणेहिं वुड्ढावासं वियाणाहि // 1047 // केवतियं तु वयंतो खेत्तं कालेण विहरितुं अरिहो। केवातियं अणरिहो (अचयंतो) बलहीणो वुड्ढवासी तु // 1048 // दुन्नि वि दाऊण दुवे सुत्तं दाऊण सुत्तवज्जं च / एवं दिवढमेगं अणुकंपादीसु वी जतणा // 1049 // दोण्णिवि सुत्तत्थाई दुवेत्ति जो जाति गाउए दोन्नि / जाव तु भिक्खावेला एस तु सपरकमो थेरो 1050 // Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिविधा अनुकम्पा [117] एमेव अदाऊणं अत्थं अहवा अदातु दोणि वितु। दो गाउयाई दोण्णी पुण्णाए भिक्खवेलाए // 1051 // एवं दिवढमेगं च गाउयं तिन्नि होंति एकेके / गमया तु मुणेयव्वा विहरण अरिहोस थेरोतु 1052 // एस सपरकमो तू जो पुण दाऊण उभयसुत्तं वा / गच्छेज्ज अद्धगाउय सपरक्कमो होति एसोवि 1053 // सव्वेते विहरंती एतेसु दुगाउयं दिवढं वा / जे जंति गाउयं चिय तिण्हंतेसि वुड्ढाणं // 1054 // जेवि य गाउयमद्धं उभयं सुत्तं च दातु गच्छंति / तेसणुकंपा तु इमा कायव्वा होति तिविहाओ 1055 विस्सामण उवकरणे भत्ते पाणे अ लंबणे चेव / तं च विजाणति कालं गंतुं वा एति जो जत्थ 1056 जयणा सुद्धालंभे पणगादी सातु होति णायव्वा / अपरकमं तु थेरं एत्तो वोच्छं समासेणं // 1057 // खेत्तं तु अद्धगाउय कालेणं जाव होमि दिवसोउ / खेत्तेण य कालेण य जाण अपरकम थेरं // 1058 // अण्णो जस्स ण जायति दोसो देहस्स जाव मज्झण्हो। सो विहरति सेसा पुण अच्छति मा दोण्हवि किलेसो।। Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [118] पञ्चकल्प-भाष्ये भमो वा पित्तमुच्छा वा उद्धसासो व खुभति / गतिविरिए विऽसंतम्मि एवमादी ण रीयति // 1060 // गच्छपरिमाणतो तू सहायगा तस्स होंति कायव्वा। सत्तेव जहण्णेणं तेण परं होंति गावि // 1061 // चउभागतिभागद्धे सव्वेसिं गच्छतो परीमाणं / संतासंतअसंती वुड्ढांवासं वियाणाहि // 1062 // अट्ठावीसं जहण्णेण उक्कोसेणं सतग्गसो / गच्छं गच्छं समासज्ज चउभागादी विभायए 1063 जइ होंति अट्ठवीसं चउहा गच्छो उ तो विभज्जति तु सत्त उ चउभागणं ते दिज्जती सहाया उ // 1064 // पुण्णम्मि मासे तो णिती सत्त अण्ण उवेंति उ / एवं अतिति णिति य मास मासम्मि सत्त उ 1065 // एवं दोसा ण होती तु उवट्ठावणादि जे भवे। तेणं तु अट्ठवीसाए चउभागा विभज्जिता // 1066 // अट्ठावीसं ऊणा दुहासतीए उ ते हवेजाहि / संता असती अगीया बाला वुड्ढा अजोग्गा वा 1067 असंता सतीण पुजंति ततिया तेण तिण्णिदुणिको। भागा उ विभइयव्वा इगवीसा चोदसत्तण्हं // 1068 Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृद्धवासे यतना [19] दो संघाड अडंती भिक्खं एको य गेण्हए उवहिं। थेर दुवे जीणे सत्तसु जयणेसालित्त (भिक्ख) मादीसु बुड्ढावाम जगणा खेत्ते काले वसहीय संथारे। खित्तम्मि णवगमादी हाणी जावेकभागोतु // 1070 // धीरा कालच्छेदं करेंति अपरकमा तहिं थेरा। कालं च अविवरीयं करिति तिविहा तहिं जयणा 1071 कालच्छेदो मासं अण्णा वसही तु भिक्खमादीणि / अहसु उडुबद्धेमुं चउमासे सेलवासासु // 1072 // कालं अग्विवरीयं उडुबद्धे वासवासियं ण करे / वासादामे य नहा उडुबद्धं वावि ण करिति // 1073 // तिविहजयणेत्ति इणमोतिविहणुकंपातु होइ वुड्ढस्स। जह कायवा इणमो तमहं वोच्छं समासेणं // 1074 // आहारे जयणा वुत्ता तस्स जोगे य पाणए / णियया मउया चेव छविताणेसणादिसु। कालदारंगतं काणिदृपः आमे पिंडघरे व तह य दारुघरे। कडगे कडगलणघरे वोच्छत्थे होंति चउ गुरुगा। कोटिमार वसंतो आलित्तम्मि ण डज्झए तेणं / काणिगादिगहणं रक्खइ य णिवानवसही तु 1077 Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [130] पञ्चकल्प-भाष्ये वसहि णिवेसण साही दूराणयणम्मि जो उ पाउग्गो। असती य पडिहारिं मंगलकरणम्मि णीणति / ___ वसहित्ति दारं गतं // 1078 // वसही य अहासंथड चंपगपट्टो व चम्मरुक्खा वा। थिरमउओ संथारो असतीय णिवेसणा ठाणे ||1079 // असतीइ साहि वागड सग्गामे चेव तह य परगामे। कोसद्ध जोयणादी बत्तीसं जायणा जाव // 1080 // थिर मउओ अपडिहारी घेत्तव्यो तस्स असति पडिहारी। पिउपजयादिफलगं मंगलवुद्धी धरे जं तु१०८१ केइ गिहत्था तं उस्सवाहि अचिंति ण परिभुजंति / तं पणइया तु गिहिणो बिति य एअम्ह मंगलं 1082 देजह नवर छणम्मि अच्चियमहितं पुणोवि णेज्जाह / तं घेत्तूणं फलगं उस्सवदिवसम्मि पेसंति // 1083 // पुण्णमि अप्पिणंती अण्णस्स व वुड्ढवासिणो देति / मोत्तूण वुड्ढवासं आवज्जति चतुलह सेसे // 1084 // पडियरति गिलाणं वा सयं गिलाणो वि तत्थवि तहेव। दा. / भावियकुलेसु अच्छति असहाए रीयओ दोसा। दा. // 1085 // ओमादी तवसा वा अचएंतो दुबलोवि एमेव दा.। पडिवन्न उत्तिमद्धे पडियरगा वावि तण्णिस्सा 1086 Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रस्य ग्रहण-झरणकालः [121 ] तरुणाणं णिप्फत्ती आततरे चेव होति णायनो। कालियसुथ दिठिवाए तेसिं कालोऽयमकोसो 1087 // संवच्छर व झरए बारसवासाइ कालियसुयस्स। सोलस गरिट्टिवाए एसो उसोसतो कालो // 1088 // पारसवास गहियं तु कालियं झरति वरिसमेगं तु / सोलस भूतावाते गहणं झरणं दस दुवे य // 1089 // गहणझरण कालियसुते पुब्वगते जदि एत्तिओ कालो। आयारकप्पणामे कालच्छेदो तु कतरेसिं ? // 1090 // आयारकप्पणामं णिसीहं तत्थ भासमुडुबद्धे। वासासु चउम्मासं एसो कालो तु कतरेसिं // 1091 / / भणिओथेरेणिस्साणेणं कारणजातेण एत्तिओ कालो अजाणं पणगं पुण गवगग्गहणं तु सेसाणं // 1092 // जिम्मवणट्ठा एतेसिं चेव एवं तु कारणज्जायं / जेहि उ गुणेहिं जुत्ता दिजंते ते इमे होति // 1093 // जे गिहिउ धारयिउं च जोग्गा, थेराण ते दिति बिहज्जए तु / गिण्हंति तहाणठिया सुहेण, किचं च धेरस्स करिति सव्वं // 1094 // आसज्ज खेत्तकालं बहु पाउग्गा ण संति खित्ताउ / णिच च विभत्ताणं सच्छंदादी बहू दोसा / दा 1095 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / 122] पञ्चकल्प-भाष्ये जह चेव उत्तिमढे कतसंलेहस्स ठाति एमेव / दा। नरुणपडिक्कम पुण रोगविमुक्के बलविवड्ढी।दा 1096 बुड्ढावामातीए कालादी तेण उग्गहो तिविहो। आलंबणे विसुद्धा उरगहो तकज्जि वोच्छेओ 1097 जं कारण वुढिगतो वासो तहि कारणे अतीयम्मि। मतिपडिभग्गा जे उ आयरिए उग्गहो णत्थि 1098 दुविहेविकालतीते मास चउम्मास उग्गहो तिविहो। सच्चित्तादी छिण्णो आलंबणे तम्मि छिण्णम्मि 1099 कारणसमत्ति पुरओ जो अच्छति उग्गहे तहिं होति। मच्चित्तादी तिविहं ण लस्म तहियं इमं णातं // 1100 // आगासकुच्छिपूरो उग्गहपडिसेहियम्मि जो कालो। ण हु होति उग्गहो सो कालदुगे वा अणुण्णाओ११०१ जह णाम कोइ पुरिसो छाओ आकासकुच्छि पूरिच्छे / ण हु होति सोवि तित्तो अमुत्तता उवणओ एवं 1102 कालदुवित्ति अणुण्णा गिम्हाए जत्थ चरममासोकओ अण्णक्खेत्तऽसतीए तत्थठियाणोरगहो होति 1103 // एमेव वामतीते दसराया तिणि जाव उगोसो। वासणिमित्तठिताणं उग्गहो छम्मास उक्कोसो 1104 Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभाव्यप्रकारः [123] तकज्जममत्तीए वि रायदुट्टपरचक्क असिवादी। एतेहिं कारणेहिं तु उग्गहो होति तीते वि // 1105 // एतस्नु उरमहसु आभवणभव्यवि (चित्त भाणिए सा। अयमण्णोतु पगारो आभव्यमणाभवंत य // 1106 // मुहसीलणुकंपातट्टिए य संबंधिखवगगेलण्णे / सचित्त सलिहाए पहटिए धारणदिसासु // 1107 // तणुयपि णेच्छए दुक्खं सुहं वा कंखती सदा। सुहसीलोएस अक्खाओ सातागारवणिस्सितो 1108 सुहसीलयाए सेहं कोई पेसेज्ज अण्णसाहूणं / पलिमंथं माणतो दुक्खं खू सारवेउं जे // 1109 // असहायरस व देज्जा कोई अणुकंपयाए सेहं तु / आयट्ठीण व कोई पेसिज्जा धम्मसद्धाए // 1110 // दिज्जा सिणेहओ वा संबंधी अस्स कोइ सचित्तं / खमगी सयं व होज्जा खलवस्त व पेसवेज्जाहि 1111 देह व गिलाणगस्सा वेयावच्चट्ठताए असहाए / अहवा सय गिलाणो अवएंतो सारवेउं जे // 1112 / / पेसितम्न उ असिहो मसिहो आन्ति पुण जस्स पेसिओ तस्स / एवं असंधरेणांव पसियओजह गिलाणेणं / / Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [124] पञ्चकल्प-भाष्ये कह दातु पुणो मग्गति जम्हा सो अप्पभू तु णाणस्स। तम्हा तस्सायरिओ मग्गति सेज्झंतियादी वा 1114 अहवा जाहे सयं चिय सो सेहो जाओ होति गीयत्यो। तोजाणति आभव्वो अयं पुव्विल्लयाणं तु / दा 1115 उडुवासवुड्ढवासे एसो भणितो तु कालकप्पविही / परियायकालकप्पं एत्तो वोच्छं समासेणं // 1116 // कोराइणितो होती? कों वावी होति ओमराइणिओ?। भण्णति सुणसु विसेसं रायणिय ओमराईणं // 1117 // संजमसेढीअंतो जो उ ठितो सो भवे हु रायणिओ। जो बाहिं सो ओमो एवं अतिसेसिता जाणे // 1118 // तम्हा छउमत्थाणं जो पुत्वं ठावितो वएसुं तु / सो होति रायणिओ जो पच्छा सो भवे ओमो 1119 सामइयसंजयाणवि सामाइयं जस्स पुव्वमुच्चरियं / सो होती रायणिओ इतरो ओमो मुणेयव्यो / परियागकप्पत्ति गतं // 1120 // अठुस्सास जहन्नो काउस्सग्गो उ होति बोधव्वा / अट्ठसहस्सुकोसो अहवा संवच्छरं वावि। दा // 1121 // पडिकमणं देसिय राइय पक्खिय चउमासि तय वरिसे य। एतेसिं वक्खाणं पुव्वं आवस्सए भणितं / / Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वन्दनकस्थानानि [ 125 ] कितिकम्मं कायव्वं काहे कति वाचि होतऽहोरत्ते ? / एतसिं णाणत्तं वोच्छामि अहाणुपुवीए 1123 // पडिकमणे मज्झाए काउम्लग्गावराह पाहुणए / आलोयण संवरणे उत्तिम? य बंदणयं // 1124 // चत्तारि य पडिकमणे किइकम्मा तिणि होति सज्झाए पुव्वण्हे अवरण्हे किइकम्मा चोद्दस हवंति // 1125 // सूरुग्गमे जिणाणं पडिलेहणियाए आढवणकालो। थेराणऽणुग्गयंमी उवहिणा सो तुलेयव्वो। दारं 1126 पढमचरिमासु णियमा सज्झाओ पोरुमीसु दियराओ माणं तु अत्थपोरुसि वितियाए तं तु दिवसस्स / दारं // 1127 // ततियाए पोरुसीए भिक्खरगहणं तु होति कातव्वं / सेसं च पमाणादी होइ इमं तु समासेणं // 1128 // पमाणे काले आवस्सए य संघाडए य उवकरणे / मत्तगकाउस्सग्गे जस्स य जोगो सपडिवक्खो 1120 भत्तट्ठाणं पि ओहे जह भणितं तहेव होइ एत्थंपि / एक वेलं भत्तं रत्तिं च ण कप्पते भोत्तुं / दारं / / 1130 // कालस्स पडिक्कमिडं मज्झण्हे ताहे होति गंतव्वं / वीयारं भोत्तूण व सेस अकालो उ वीयारे / दारं 1131 Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [126] पञ्चकल्प-भाष्ये चउ संझासुण कप्पति सज्झाओ तासिमंतु कायव्यं / पुव्वावरासु दोसु विकाउस्सग्गट्टिता झत्ति // 1132 // दिणमज्झाए भिक्खं जाव अभत्तहितो तुजा माह। राओ मज्झिल्लाओ णिद्दामोक्खं करेंती उ // 1133 // णिक्खमणं खलु सरए पाउसकाले पवेसु पुवुत्तो। एसोतु कालकप्पो भावे कप्पं अतो वोच्छं। दारं 1134 दसण णाण चरित्ते तव पवयण पंचसमिति तिहिं गुत्तो हतरागदोस णिम्मम खमदमणियमट्टिओ णिचं११३५ अणिमूहियबलवीरितो परकमति जो जहुत्तमाउत्तो अत्तट्टकरणजुत्तो गुणभावण भावणिकपो। एयाओ दारगाहाआ // 1130 // रिद्धीहिं कुलिंगीणं ण य देववतीहिं जस्स तृ भावो / दंसणविगलो जायति सणमाराहियं तेणं // 1137 // णाणं दुवालसंगं तं चेव य पवयणं तु संघो वा। गहणंमि उज्जतो या रतो व्व तह वच्छलो यावि // चरणे निच्चुज्जुत्तो मूलगुणेसुं सउत्तरगुणेसुं। ण य अतियारं कुणती पच्छित्तेणं व मोहिकतं 1139 तवबारसंगजुत्तो समितीसहितो तिगुत्तिगुत्तो य / रागद्दोमणिहंता णिम्ममो णियते शरीरवि / / 1140 / / Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावकल्पः कोहं जिणति खमाए मद्दवमादीहिं सेस कलसेऽवि / दमणियमा दोवकं इंदियणोइंदिया होति। दारं 1146 णाणादिएहिं अणिमूहितो तु कम्मस्स णिज्जरट्ठाए / उज्जमति परकमती घडइत्ति य होंति एगट्ठा // 1142 / / जह सुत्त णिहिट्ठो तह कुव्वति जो तु अप्पमाएंतो। सो हु जहुत्ताउत्तो एवं मतिमं वियाणज्जा // 11436 अत्तहा मोक्खछा ण उ इहलोगादि हेउगं कुणति / करणं जोगतिएणं जयणाजुत्तोत्ति अववादे // 1144 / मूलगुण उत्तरे या भावणपणवीस अणिच्च यादी य मेत्ती-पमोय-कारुण-मज्झत्थादीहिं णिकंपो / दारं एसो उ भावकप्पो अहवाणाणादितो पुणो तिविहो / दसणपढमं भण्णति णाणचरित्ता नदायत्ता // 1146 / तो दंसणस्म चैव तु जहिं पदेहिं तु होति उवधातो। ताई इमातिं वोच्छं णिक्खमणादीणि तु कमेण 1147 णिक्खमण गमणभुंजण सादयवयणे य एकवायणिए। दसणणाणाभिगमे रायकुमारे गणहरे य // 114816 णिक्खमण बेंतम्हं अधावहाएन्नुणा ततो भगवं / परिसए वि ण दिक्ख णिक्खंते जेण माहणं // 114 Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 128 ] पञ्चकल्प-भाष्ये पूजा सकाररुयी तेण पवत्तंति कसि वावि जाणंतो। तारिसए ण णिक्खंतो जेणुदितो होति सकारो 1150 णहु एवं वत्तव्वं सो चिय भगवं तु जाणए एवं / णहु भाणुपमा तीरइ खजोयपहाहिं अतिसइतुं 1151 गमणे तुरियं साहू गच्छंती अहो सुदिट्ठभिक्खूणं / सणियं वयंति णेवं वत्तव्वेवं तु भावेज्जा // 1152 // ते लोगरंजणट्ठा सणियं गच्छे ण धम्मसड्ढाए / ण य जुगपेही ते खलु विवरीयं सोहणो भावो 1153 जंवि कहिंचि सतुरितं तं पि य गेलनमादिकज्जेसु। गच्छंती तु सुविहिता बहुतरमायं मुणेऊणं // 1154 // भुंजंति चित्तकम्मठितावि सकादि बोडियादी य / ण तहा साहू एवं भासंते दंसणविरोहो // 1155 // कुक्कुडताए मोणं करेंति जणरंजणट्ठताए उ। भावेयव्वं एवं साधू पुण णिज्जरट्ठाए // 1156 // जंपिय भासंति जती तंपिय कजंमि थोव जयणाए। इम मुंच चिट्ठऊ वा गुरुमादीणं च पाउग्गं / दारं // सकयपाढो मरुगादियाण एसा तु देविकी भासा / समणाण पागयं तु थीभासाए उवणिबद्धं // 1158 // Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर्शनकल्पः [129] तत्थ वि सद्दियवयणं सदिया चेव णवरि जाणंति / सव्वेमंऽणुग्गहट्ठा इतरं थीबालवुड्ढादी // 1159 / / दिट्ठता सिणपल्लीणिवाणकरणेण होति कायव्वो। एगेण कतो अगडो वावि ससोवाण वितिएणं 1160 ततिएण तलागं तू तत्थऽगडे केयघडियमादीहिं। तीरति उवभोत्तुं जे बितियं दुपदाण अभिगम्म 1161 दुप्पदचउप्पदमादी सव्वेसि तलाग होति अभिगम्म। इय सव्वऽणुग्गहत्थं सुत्तं गहितं गणहरेहिं // 1162 // सव्वत्थ वेदसत्थं चरण करणे य एगवादणियं / विवरीयं समणाणं भावेंतो दंसणविराही // 1163 // तत्थ वि भावेयव्वं सो चिय अत्थो तु होति सव्वासिं। सामुद्दसेंधवादी जह लवणसहाव सव्वे वि / दारं // दसणपभावगाति अहवा णापां अहिज्जमाणं तु / अत्तट्ठपरट्ठा वा जहलंभे गेण्ह पणहाणी // 1165 // भिक्खु त्ति जं पदम्मी भणितं जं वावि तं णिमित्तेणं। गच्छंता कि सेवे? असदहंतो अणाराही। दारं 1966 पव्वज्ज अप्पपंचम रायसुतस्सा तु दाइगभएणं / राया उ समणुजाणति अंते पडिणीलो सो तेणं 1167 Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [130] पश्चकल्प-भाष्ये तत्थ वि य फासुभोती सुत्तत्थाई करेंति अच्छति। जणइत्तु सुतेकेकं अमूढलक्खासु इत्थीसु // 1168 // ते रज्जेसुं ठाविय पुणरवि गच्छंति गुरुसमीवं तु / आलोइयणिस्सल्ला कतपच्छित्ताण तो तेसिं // 1169 // संकप्पियाणि पुट्विं आयरियादीपदाणि गुरुणा तु। पच्छागताण ताण य तदिवसं चेव दिण्णाति 1170 परियायम्मि णिरुद्धे जं दिएणतगं तु जो ण सहहति। सुहसमुदितस्स जं वा कीरति तृ रायपुत्तस्स // 1171 // तत्थ वि भावेज्जेयं पत्तिकडाई तु तेहिं थेराणं / रायसुतदिक्खितेण य उम्भावण'पवयणे होति 1172 असहुस्स जं च कीरति अज्जसमुदस्स चेव गुरुणोतु। एयं असद्दहंते विराहणा दंमणे होति // 117 // तत्थवि भावेयव्वं जेणायत्तं कुलं तु तं रक्खे / अण्णस्स वि कायव्वं गिलाणगस्सेम उवदेसो 1174 इति एस समासेणं दंसणकप्पी उ आहितो एवं / दारं एत्तो तु णाणकप्पं वोच्छामि अहाणुपुञ्चीए // 1170 सुत्तुद्देसे वायण पडिपुच्छ परियट अणुपेहा। . आयरियउवज्झाया अह होति तु सुत्तकप्पविही / / Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानकल्पः [131] आयारमादिकातुं सुयं तु जा होति दिट्टिवादो तु / अंगाणंगपविढं कालियमुकालियं चेव // 1177 // तं पुण सव्वं पि भवे संवादसमुट्टियं व णिज्जूढं / पत्तेयबुद्धभासित अहव समत्तीय होज्जाहि 1178 ससमयवादं संवादमाह जह केसिगोयमिज्जाती। पण्णवणादसकालिय-जीवाभिगमादि णिज्जूहूं / / पत्तेयबुद्धभासिय इसिभासियमादिगं मुणेयव्वं / केवलणाणसमत्तीय भासिता चोद्दस उ पुव्वा 1180 एतं सुतं तु जं जत्थ सिक्खितं जेण जह तु जोगेणं / तं तह चिय दायव्वं एसो खलु अज्झयणकप्पो 1981 एयं पुण सुतणाणं वायणजोगं तु जारिसं होति। तं वोच्छामी अहुणा सुत्तस्स य लक्खणं जं तु 1182 जित परिजितं अमिलितं अविच्चामेलितं अवाविद्धं घोस णिकाइय ईहिय सुविमग्गियहेउसम्भावं 1183 फुड विसद सुद्धवंजण पद अक्खर संधिकारणमणूणं पादप्पयाणुलोमं णिउत्तसुत्ते त्ति सुतकप्पो॥११८४॥ णिपुणं विपुलं सुद्धं णिकाइयं अत्थतो सुपरिसुद्धं / हितणिस्सेसकरं वुद्धिवड्ढणं फलमुदारजुतं // 1185 / / Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 132] पञ्चकल्प-भाष्ये सगणामं व जितं खलु परिजिय हेटुवरितो उर्वरितो हेट्ठा। मिलिते उ धण्णणातं विच्चामेलो उ अण्णोणं॥ अज्झयणुद्देसाणं सुत्ते मीसेति कोलिपयसं वा। तं चेव य हेटुवरि वाविद्धे आवलीणातं // 1187 // घोस उदत्तादीया णिकाइयऽक्खेव सिद्धिपरिसुद्धं / इंहित सयं मतीए विचारितं एव णेव त्ती // 1188 // साहम्मय-वेहम्मय-हेतूहि मग्गिओ तु सम्भावो। जस्स तु सुत्तस्स भवे तं होति सुदिट्ठसम्भावं 1189 णिस्संदिद्ध फुडं खलु संजुत्तं वावि पुव्वमवरेणं / विसदं अणिगूढत्थं वंजणसुद्धं स उवयारं // 1190 // अत्थुवलद्धी जत्थ उ तं होति पदं तु अक्खरा वण्णा। संधी संबंधो खलु सुत्ता सुत्तस्स जो कोति // 1191 // एतेहिं गुणमहितं पादा तु सिलोगमादिणं होति / गजंमि य पदसंखा अणुलोमं जण्ण पडिलोमं 1192 पुब्विल्लपरिल्लेणं जंण विरुज्झति तु तंतहा तहियं / अत्येण जोइयं तू णिउत्तमेतारिसं होति // 1193 // णय-हेतु-वादभंगिय गणितादी अत्थओ य णिउणंतु। वित्थिन्नत्थं विपुलं मूगादीवायणाहिं च // 1194 // Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकल्प सुद्धं तु सुग्गिहीतं अलियादीदोसवज्जितं वावि / अत्थे णिकाइयं खलु णिकाइयं अहव बंधेणं // 1195 // आविरुद्धो अक्खरेहिं जस्सत्थो तह य समयमविरुद्धो। तं अस्थतो विमुद्धं हितं तु इहलोयपरलोये // 1196 // अहियं सेयकर तू णिस्सेसकरं तयं मुणेयव्वं / उप्पत्तीमादीण य बुद्धीण विवद्धणं जं तु // 1197 // तस्स फलं तु उदारं अव्वाषाहं अणोवमं सोक्खं / एसोतु सुत्तकप्पो (दारं) एत्तो वोच्छामि उद्देसं 1198 उद्दिसियव्व उवहिते अणुवट्ठिते उदिसते चउलहुगा। अणलोहए वि लहुगा तम्हा आलोइ उद्दिसणा 1999 आलोयणा य विणए खेत्तदिसाभिग्गहे य काले य / रिक्खगुणसंपदा चिय अभिवाहारे य अट्ठमए 1200 अण्णगणागत पुच्छे केवइय सहायगा गुरूणं तु ? / एवं पुट्ठो सो विय वदेज्ज एगादिय इमे उ // 1201 // एगे अपरिणते या अप्पाहारे य थेरए / गिलाणे बहुरोगे य मंदधम्मे य पाहुडे // 1202 / / एतारिसं विउसज्ज आगते सोहि होति पुव्वुत्ता / आयारकप्पणामे सीसपडिच्छे य आयरिए // 1203 // Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [134 ] पञ्चकल्प-भाष्ये एयदोसविमुकं तु आगता लोइए पडिच्छति तु / ' आलोयणा तु एसा सेसा दारा जहा वासे // 1204 // णवरिं तु कालदारं गुणदारं चेव ईसिभासिस्सं / अंगसुयक्खंधाणं उहेसो सुकपक्खम्मि // 1205 // पण्णत्तिमहाकप्पसुयादि सरदे सुभिक्खकालम्मि / मित्तियादि पुच्छिय उद्दिसणा होति कायवा 1206 सेसं कालविहाणं पुवुत्तं तं तु होति णायव्वं / दारं / केहिं गुणेहिं जुत्तस्स तु उद्दिसियव्वं ? इमे सुणसु // अव्वोच्छित्तीसंवेगविणयउववेयवज्जभीरुस्स / पुव्वण्हे जोगसमुट्टितस्स उद्देसणाकप्पो। दारं 1208 वाइगवाइज्जते गुणा उ वायणविहिं च वोच्छामि / वायगवादिजंते गुणाण दारा इमे होंति . // 1209 // अप्पणो य दढा रक्खा विपुलो य तहाऽऽगमो / सुयणाणस्स य पूजा जिणाण छिद्देय दुच्छल्लो // उम्मग्गं वचंती अप्पा रक्खेज्जते तु णियमेणं / सुण्हादिद्रुतेणं सुतवावारोवओगेणं / दारं // 1211 // उवउत्तस्स तदठे णिज्जरलाभो तवो य विउलो य। इंदियपणिही य तहा पसत्थझाणोवओगो य 1212 Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाचनाविधिः जं अण्णाणी कम्म खवेति बहुयाहिं वासकोडीहिं / तं णाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उस्सासमेत्तेणं // 1213 // बारसविहम्मि वि तवे सम्भितरबाहिरे कुसलदिठे। णवि अत्थि णवि य होही सज्झायसमं तवोकम्मं / / दारं // 1214 // मुयणाणुवदेसेणं बाएंतेणं व गेण्हगेणं च / सुतपूजा होति कया तं च जितं होति वायंते 1215 सुतपूजाए य पुणो सुतोवएसेण य वट्टमाणणं / वाएंतमहिज्जंते आणा उ कया जिणिंदाणं / दारं // सुयणाणुवदेसेणं वायंतो गेण्हतो य पंतेहिं / ण चइज्जती छलेउं वंतरमादीहिं देवेहिं / दारं / वायणगुणा तु एते समासतो वण्णिता मए कमसो / वायणविहिं तु एत्ता वोच्छामि अहाणुपुवीए // 1218 अत्ताण परिस पुरिसं हितऽणिस्सिय परिजितं जितं काले / दिद्रुत्थं फुडवंजण णिव्वावण णिव्वहणसुद्धं // तवुसी गंधियपुत्तो रण्णो रयणघरिए दओभासे / देवीआभरणविही दिट्ठता होंति आयरिए // 1220 // Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [136] पञ्चकल्प-भाष्ये अत्ताणं तु तुलेत्ता सत्तो मि ण वत्ति वायणं दातुं / जाणेज्जा पुरिसे वि य जो घेत्तुं जत्तियं तरति 1221 पहुयं घेत्तु समत्थे बहु देंती अप्प गेण्हते अप्पं / विच्चामेलणदोसो अतिबहुते तस्स दिज्जते / दारं // परिणाम अपरिणामा अतिपरिणामा य तिविह पुरिसाउ। णाऊणं छेदसुतं परिणामगे होति दायव्वं / ।दारं // 1223 // इहपरलोगे य हितं / दारं। अणिस्सियं जंतुणिज्जरट्ठाए। ण तु वाए गारवेणं आहारादीतट्ठाए। दारं। उक्कइतोवइयं परिजियं तु जिय एव अगुणयंते वि। दारं। कालित्ति कालियादी कालो जो जस्सतं तहियं // जस्स वि जाणति अत्थं दिट्ठत्थं तं तु भण्णती सुत्तं / दारं / फुडवियडवंजणं तू वयणविसुद्धं मुणेयत्वं / ।दारं // 1226 // तं होती णिव्ववणं जो वाएंतो तु ल्हादि उवघा (प्पा) ए। णिव्वहणसुत्तमेयं जो अक्खित्तो उणिव्वहति 1227 तउसारामी तउसे पुव्वं ण पलोए आगते कइ (ह) ए। जाव पलोए ताव तु केइ विपरिणत अण्हहिं गेण्हे / / Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाचनाविधिः [137] एवं जो आयरिओ पुट्ठी संतो वि चिंतयति अत्थं / विप्परिणमिउं तस्स तु सीसा वचंति अण्णत्थ 1229 जह मुल्लअणाभागी आरामी सो तहिं तु संवुत्तो / तह णिज्जरअणभागी आयरिओ होति एवं तु 1230 जेण पुण पुव्वदिट्ठा तउसा आरामिएण होंति तहिं। सो देति लहुं तउसे मुल्लस्स य होति आभागी 1231 एवं आयरिएणं जेणत्यो पुब्वि चिंतिओ होति / सो वाएति लहु लहुं णिज्जरभागी य हो एवं / दारं / / एमेव गंधिपुत्ते जाणमजाणे य गंधभाणे तु / आभागी अणाभागी उवसंघारो वि य तहव / दारं / / सेणियणिवस्स हत्थी तंतुयमच्छेण गहिओ जलमज्झे सिरिघरिओ दओभासं मग्गिओ ण वि जाणे कत्थ कओ ? // 1234 // जा मग्गति ता हत्थी पडिआ रण्णा विणासितो घरिओ। बितिओ मग्गितो दिण्णम्मि तक्खणा मोचिते पूया / दारं // 1235 // एमेवायरियम्मि वि उवसंघारो तहेव कायव्वो / चिंतणसमवाकरणे णिज्जरलाभे अलाभ य / दारं / / Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 138] पञ्चकल्प-भाष्ये रण्णो दो देवीओ पेस्सल्ली वल्लभी य पहायति / पेस्सल्ली हारावे आभरणे वल्लभीए उ // 1237 // जह चेडी आभरणं आवासे तह इमं पि णायव्वं / उवसंघारो तह विय आयरिए होति कायव्यो। दारं। एवं ता वाएंतो भणितो अहुणा पडिच्छगं वोच्छं / जारिसगुणेहिं जुत्तो वाएयव्वो तु सो होति 1239 अणुरत्तो भत्तिगतो अतिंतिणो अचवलो अलुद्धो य। अव्वक्खित्ताऽऽउत्तो कालण्णू पंजलिउडो य 1240 मंविग्गो मद्दविओ अमुती अणुयत्ततो विसेसण्णू / उज्जुत्तमपरितंतो इच्छितमत्थं लभति साधू 1241 जो तु अवाइज्जंतो ण रुज्झती जह मम ण वाएइ। सो होई अणुरत्तो। दारं / भत्ती पुण होइ सेवा उ। दारं / // 1242 // मज्झ न देइ त्ति त जो तिंबुरुकठं व तडतडे दिवसं / न य आहाराईसु तदभावो अतिंतिणो एसो / दारं / / गइठाणभावभासाइएहिं नवि कुणइ चंचलं तं तु। गाणंगणिओ न भवे अचंचलो सो भुणेयव्वो। दारं॥ आहारादुकोसं जो लघृणं तयं न अत्तहे। पस न लुद्धो (दार) वक्खेवणा तु सद्दादिविसएसु // Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृच्छाकल्पः [139] लीहालटुगमादी जो य पढंतो ण करेंति वक्खेवं / अव्वक्खित्तो एसो आउत्तो अणण्णमणसो उ। दारं / / आहारादीकाले कालण्णू होति उवणयंतो उ (दारं)। मुत्तत्थे गिण्हंतो कुण (इ) अंजलि पंजलिकडो उ // संविग्गा दवे मिगो भावे मूलुत्तरेसु तु जयंतो (दार) मद्दविओ जो अमाणी (दारं) अमुई विसमत्तणे वि जो ण मुए। दारं // 1248 // आगारइंगितेहिं जाउं हियइच्छितं उवविहेति / गुरुवयणं चऽणुलोमे एसो अणुवत्तओ णामं / दारं // जाणति तु जो विसेसं हिताहितादीण सो विसेसगणू। णवि होति णिव्विसेसो समचंदणलोट्टचिक्खल्लो। दारं / // 1250 // उज्जुत्ता उ अणलसो (दार) अपरितंतो तु थूलभद्द इव ( दारं ) / सुत्तत्थणिज्जराओ मोक्खो वा इच्छियत्थो तु (दारं)॥१२५१॥ पुच्छणकप्पो अहुणा जाति पुच्छेज्ज संकियादि तु। ताति भण्णति इणमो अहक्कम आणुपुवीए // 1252 // पदमक्खरमुद्देसं संधी सुत्तत्थतदुभयं चेव / घोस णिकाइत ईहित सुविमग्गितहेतुसम्भावं 1253 Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [140] पञ्चकल्प-भाष्ये पदमावी जा घोसो वुत्तत्था होंति एते सव्वेवि (दार)। हिययम्मिणिकाएउं पुच्छति उणिकाइयं एवं (दार)। पुवावरेण ईहित एय मए एव होति ण व होति ? (दारं)। हेतूहि कारणेहि त सुविमग्गिय एव तु मए त्ति (दार)। सब्भावो अत्थो खलु संदिद्धाइंतु पुच्छते तातिं (दार)। एयाइं विय कमसो परियट्टे चेव अणुपेहे (दार) 1256 अहुणा तु अहीयव्यं केरिसयाणं समीवे समणेणं / आयरियउवज्झायाणं तमहं वोच्छं समासेणं 1257 उग्गम उप्पायण एसणाए णिरवेक्खो णीयपडिसेवी / सुत्ते अदिट्ठसारो आयरिओ ण कप्पती सो तु 1258 उग्गम उप्पायण एसणाइ सावेक्खो णितियपरिवजी सुत्तम्मि दिट्ठसारो आयरिओकप्पती सो उ // 1259 // सुत्तस्स सारो अत्थो सो दिट्ठो जेण होति बुद्धीए / सो होति दिट्टसारो आयरिओ तू मुणेयव्वो // 1260 // एमेव उवज्झाओ गुणेहिं जुत्तो तु होति णायव्यो / एतेसिं तु सकासे सुत्तत्था होति घेत्तव्वा // 1261 // आयरियउवज्झाया णाणुण्णाया जिणेहिं सिप्पट्ठा। णाणे चरणे जायावग त्ति तो ते अणुण्णाता (दारं)। Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारित्रकल्पः [141] एसो तु णाणकप्पो जहक्कम वणितो समासणं / एत्तो चरित्तकप्पं वोच्छामि अहाणुपुठवीए // 1263 // जम्हा चरिजते तु चरियं वा तेण तो चरित्तं तु। ते पुण अप्पडिसेवे सुद्धमसुद्धं तु पडिसेवे // 1264 // पडिसेवणा तु दुविहा दप्पे कप्पे य होंति णायव्वा / एतेसिं तु विभासा जह भणिय णिसीहणामम्मि // एसो चरित्तकप्पो छव्विहकप्पो य एस अक्खाओ। सत्तविहकप्पमेत्तो वोच्छामि अहकमेणं तु // 1266 // ठितमठितजिणे घेरे लिंगे उवही तहेव संभोगे। एसो तु सत्तकप्पो णेयव्यो आणुपुव्वीए // 1267 // ठियमठितकप्पाणं होति विसेसो इमो मुणेयव्यो। पुरपच्छिमाण च ठिओ अठिओ पुण मज्झिमजिणाणं॥ कतिठाणेहिं ठितो खलु ठितकप्पो होति तू मुणेयव्यो?। कइहि उ अठितकप्पो ? ठिताठितो होति बोधव्वो॥ दसठाणठितो कप्पो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स। कतरे दस ठाणा तू ? भण्णति आचेलगाइ इमे / / आचेलुक्कुद्दसिय सेज्जातर रायपिंड कितिकम्मे / वत जेट पडिक्कमणे मासं पजोसवणकप्पे // 1271 // Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [142] पञ्चकल्प-भाष्ये एतेहिं दसहिं ठितो ठितकप्पो होति तू मुणेयव्यो (दार) चउहिं ठितो छहिं अठितो अठितकप्पो पुण इमेहिं॥ सेज्जातरपिंडे या कितिकम्मे चेव चाउजामे य। राइणिय पुरिसजेट्ठो चउसु वि एतेसु होति ठितो१२७३ आचेलुक्कुद्दसिय णिवपिंडे चेव नह य पडिकमणे। मासं पन्जोसवणा छप्पेते अणवटिना कप्पा // 1274 // दुविहो होति अचेलो संताचेलो असंतचेलो य / तित्थकर असंतचेला संताचेला भवे सेसा / दारं / / पडिमाचेलो दुविहो सावेक्खो चेव गिरवेक्खो 127 णिगिणो अचोल पट्टो णिरविक्खो सो भवे अचेलो उ। णिगिणो सचोलपट्टो साविक्खो सो पुण अचेलो / / णिग्गतवसणो णिवसणी अवसणो अचेलो य अकडिपडो य / पडिमाचेलस्सेए नामा एगढ़िया होंति 1258 उग्गम उप्पायण एसणाए जदि होंति अपरिसुद्धाई / मोल्लगरुयाणि ताणि तु अपरिजुण्णाई चेलातिं 1279. उग्गमउप्पायणएसणाए जदि होति सुपरिसुद्धाई / मोल्ललहुयाणि ताणि उ परिजुण्णाई तु चेलाई 1280 Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अचेलस्वरूपम् [ 143 ] एत्तो सावज्जाइं चेलाइं संजमोवघातीणि। वज्जेत्ता विहरंतो होइ अचेलो अपरिजुण्णो // 1281 णिग्गहियरागदोसो अणवज्जेहिं अहापरित्तेहिं / अपेहि वि विहरंतो होति अचेलो उ परिजुण्णो // णिरुवहतलिंगभेदे गुरुगा कप्पह य कारणज्जाते। गेलन्न-रोग-लोए सरीरविवेग य कितिकम्मे // 1283 // असिवे ओमोदरिए रायदुढे पवादिदुढे वा / आगाढे अण्णलिंग कालक्खेवो व गमणं वा / अचेलत्ति गतं // 1284 / / सालीघतगुलगोरसणवसु वल्लीफलेसु जातंसु / वाणट्टकरण सड्ढा आहाकम्मे णिमंतणता // 1285 // आहा अहे य कम्मे आयाहम्मे य अत्तकम्मे य / तं पुण आहाकम्मं णायव्वं कप्पती कस्स ? // 1286 / / संघस्स पुरिमपच्छिमममणाणं तह य चेव समणीणं / चतुरो उवासगाणं पच्छामण्णायगागमणं // 1287 // संघस्स मज्झिमे पच्छिमे य समणाण तहय समणीणं / चतुरो पडिस्मताणं पच्छा सण्णायगागमणं // 1288 // उज्जु य जड्डा सब्वे पुरिमा चरिमा य वकजड्डा तु / तम्हा तेसिं संरक्खणट्ठ सव्वं पडिक्कुटुं // 1289 // अवगतजडा मज्झिमसाहू तह चेव ते परिणंमति / कप्पाकप्पं दंसिय तेसिं वज्जं पडिकुळें // 1290 // Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [144] पश्चकल्प-भाष्ये पुरिमाण दुव्विसोज्झो चरिमाण दुरणुपालओ कप्पो मज्झो विसुद्धचरणो एवं कप्पोऽणुगंतव्वो // 1291 // आयरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा तु / तिक्खुत्ती अडविपवेस चउ परियट्टे तओ गहणं // 1292 // असिवे ओमोदरिए रायदुढे पवादिदुठे था / अद्धाणे गेलन्ने आहाकम्मं तु जयणाए // 1293 // जदि सब्वे गीतत्था ताहे आलोयणागहे भणिता। अह होति मीसगजणो पायच्छित्तं तवोकम्मं 1294 चउरो चउत्थभत्ते आयामेगासणे य पुरिमड्ढे / णिव्वितितं दायव्वं सतं च पुव्वोरगहं कुज्जा 1295 संघस्सोहविभागो समणा समणी च कुलगणस्सेव। कडमिह ठिते ण कप्पति अठितकप्पे जमुद्दिस्स 1296 आयरिए अभिसेगे भिक्खुम्मि गिलाणगम्मि भयणा तु / अडविपवेसे असती तियपरिय? ततो गहणं // तित्थगरपडिकुट्ठी आणा अण्णाय उग्गमो ण सुज्झे। अविमुत्ति अलाघवया दुल्लभसेज्जा विउच्छेदो 1298 दुविहे गेलन्नम्मिणिमंतणा दव्वदुल्लभे असिवे / ओमोयरिय पदोसे भए य गहणं अणुण्णायं 1299 तिक्खुत्तो सक्खेत्ते चउद्दिसिं जायणम्मि कडजोगी। दव्वस्स य दुल्लभता सागारियसेवणा दवे (दार) // Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतिकर्म [145] मुइए मुद्धभिसित्ते मुदितो जो होति जोणिसिद्धो तु। अभिलित्तो य परेहिं सयं व भरहो जहा राया 1301 ईसरतलवरमाडंबिएहिं सेट्ठीहि सत्यवाहेहिं / णितेहिं अतितेहि य वाघातो होति साहुस्स // 1302 // लोभे एसणघाते संका तेणे चरित्तभेदे य / इच्छंतमणिच्छंते चाउम्मासा भवे गुरुगा // 1303 // अण्णे वि होंति दोसा आइण्णे गुम्मरयण इत्थीओ। तणिस्साए पवेसो तिरिक्खमणुया भवे दुट्ठा 1304 दुविहे गेलन्नम्मि विणिमंतणा दव्वदुल्लभे असिवे / ओमोदरिय पओसे भए य गहणं अणुण्णातं (दारं)॥ पढमं अब्भुट्ठाणं कितिकम्मं अजसेवियमुदारं / कायव्वं कस्स व कण वावि काहे व कतिखुत्तो 1306 विणओ सासणे मूलं / गाहा (आ०१२२८) // 1307 // जम्हा विणयति कम्मं / गाहा (आ०१२२९) / / 1308 // पुवामेव या विणओ / गाहा // 1309 // आयारावणयकप्प गुणदीवणा अत्तसोहि उज्जुभावो अजव मद्दव लाघव तुट्ठी पल्हायकरणं च // 1310 // Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [146] पञ्चकल्प-भाष्ये लहुओ गुरुओ मासो लहुगा गुरुगा भवे चउम्मासा। खुड्डग भिक्खू वसभे आयरिए अदु व विवरीयं 1311 जदिखुत्तो जदिवेलं णिक्खमए णिक्खमित्तु वादेति। ततिखुत्तो तं बेलं सव्वे गुरुणो समुट्ठति // 1312 // वसहीय भिन्नमासो काइयभूमीय मासिगं लहुये। चत्तारि य सुकिलया ओंगाहं तस्स बहियार 1313 भिक्खू वसभायरिया अज्जा उवासगा य इत्थीओ। वादी राया संघो राया संघो उभयओ वि // 1314 // लहुओ गुरुओ मासो लहुगा गुरुगा भवे चउम्मासा। छम्मासा लहुगुरुगा छेदो मूलं तह दुगं च // 1315 // वंदण चिति किइकम्मं पूयाकम्मं च विणयकम्मं च / कायव्वं कस्स व केण वा वि काहे व कहखुत्ता 1316 कति ओणयं // गाहा // (आ० 1119) // 1317 / / सेढी समतीताणं कितिकम्म जे य होंति सेढिगता। सेढीउ बाहिराणं कितिकम्मं होति भइयव्वं 1318 // आयरियउवज्झाए पवित्ति पत्तेयबुद्ध पुब्वधरे / . केवलणाणधरम्मि य कायव्वं णिजरट्ठाए // 1310 // Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृतिकर्म [147] सेढीठाणे सीमाकजे चत्तारि बाहिरा होति। सेढीठाणे दुगभेदयाए चत्तारि वीभइया // 1320 // पत्तेयवुद्ध जिणकप्पिया य सुद्धपरिहारिया अहालंदा। एते चउरो दुगभेयाए कजेसु बाहिरगा // 1321 // अंतोवि होति भयणा ओमे आवण्ण संजती सेहे / घाहिपि होति भयणा अतिवालग वायए सीसे 1322 हेट्ठाणठितो वि हु पावयणि गणठिताए अवरम्मि। कडजोगी ज (स) निसेवति आदि णियंठो व सो पुज्जो 1323 संकिण्णवराहपदे अणाणुतावी य होति अवराहे / उत्तरगुणपडिसेवी आलंबणवजिओ वजो // 1324 // गच्छपरिक्खणट्टा अणागतं आडवायकुसलस्स। एत्तो गणाहिपतिणो सुहसीलगवेसणा भणिता 1320 दुविहे कितिकम्मम्मी वाउलिया भो णिसह वुद्धीया। आदिपडिसेधियम्मी उरि आलोअणा बहुला 1326 मुगधुगए / गाहा ( आ० 1138) // 1327 // वायाए णमुकारो / गाहा (आ० 1139) // 1328 // एतातिं अकुव्वंतो। गाहा (आ० 1140) // 320 // . + Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [148] पञ्चकल्प-भाष्ये परियाव महादुक्खे मुच्छामुच्छे य किच्छपाणे य। किच्छुस्सासे य तहा समोहते चेव कालगते // 1330 // चत्तारि छच्च लहु गुरु छेदो मूलं च होति बोधव्वं। अणवठ्ठप्पे य तहा पावति पारंचियं ठाणं // 1331 // परियाग परिस पुरिसं खेत्तं कालागमं च णातूणं / कारणजाते जाते कितिकम्मं होति कातव्वं // 1332 // दसण णाण चरित्तं तव विणयं जत्थ जित्तियं जाणे। जिणपण्णत्तं भत्तीय पूअए तं तहाभावं // 1333 // सावज्जजोगविरति त्ति संजमो तेण होति एगविहो। रागद्दोस निरोहो त्ति तेण दुविहो मुणेयव्वो // 1334 // मणवयकायजोगाण णिरोहो तेण होति तिविहो तु। कोहमाणमायलोभुवरतो त्ति चउहा मुणेयव्वो॥ पंचवत इंदियाणि य ते पंचह रातिविरति छकाया। वत-काय-अकप्पादी अट्ठारसहा मुणेयवो // 1336 // जोगे करणे सन्ना इंदिय भोम्मादि समणधम्मे य / अट्ठारससीलंगसदस्त संजमो होइ णायब्यो।।१३३७॥ कितिकम्मं पि य दुविहं अन्भुट्ठाणं तहेव वंदणयं / समणेहि य समणीहि य जहकम होति कायव्वं // Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठस्वरूपम् [ 149] सव्वाहिं संजतीहिं कितिकम्मं संजताण कायव्वं / पुरुसुत्तरिओ धम्मो सव्वजिणाणं पि तित्थम्मि / दारं // 1339 // पंचनामो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स / मज्झिमयाण जिणाणं चाउज्जामो भवे धम्मो 1340 पुरिमाण दुव्विसोझो चरिमाणं दुरणुपालओ कप्पो। मज्झिमयाण जिणाणं सुविसोज्झो सुरणुपालो य॥ पुव्वं तु उवट्ठविओ जस्स वा सामाइयं कयं पुव्वं / सो होती जेट्ठो खलु जो पच्छा सो कणिट्ठोतु 1342 पुव्वोवट्ठो जेठो होई त्ती एत्थ होति पच्छा तु / उवठावणातु कतिहिं ठाणेहिं ? इमा भवे दसहा 1343 ततो पारंचिता वुत्ता अणवट्ठप्पाति तिणि तु / दसणम्मि य वंतमि चरित्तंमि य केवले // 1344 // अदुवा चियत्तकिचे जीवकायं समारभे। सेहे दसमे वुत्ते जस्सुवठावणा भणिता // 1345 // अहवा पारंचेको अणवठ्ठप्पो य होति एको तु। दसणवंतो ततिओ चरित्ते य चउत्थओ होति 1346 Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 150] पञ्चकल्प-भाष्ये पंचमो चियत्तकिच्चो सेहो छट्ठो य होति बोद्धव्यो। एसो य छव्विहो खलु चउव्विहो वा इमो अण्णो / / दमणम्मि य वंतम्मि चरित्तम्मि य केवले / चियत्तकिचे मेहे य उवट्ठप्पा तु आहिया // 1348 // दसण चरित्तवंते पारंचणवतो पि पविसंति। तो जेणं भवंती तु एवं सेसा भवे चतुरो // 1349 // दसणवंते य तहा जीवणिकाया य जो समारभती। उठावणाए भयणा एतसिं होति दोण्हंपि // 1350 // अणाभोएण मिच्छत्तं संकंते सम्मत्तं पुणरागते / नमेव तस्स पच्छित्तं जं सम्म प्रडिवज्जती // 1351 // आभोगेण उ मिच्छत्तं संकते सम्मत्तं पुणरागते / जिणथेराण आणाए मूलच्छेज्जं तु कारए // 1352 // छण्हं जीवणिकायाणं अप्पज्झो तु विराहतो। तिविहेण पडिकते मूलच्छेज्जं तु कारए // 1353 // छण्हं जीवणिकायाणं अणप्पज्जो तु विराहतो। आलोइय-पडिकंतो सुद्धो हवति संजतो // 1354 // जीवणिकायारंभे दसणवंते य भणिय पच्छित्तं / तं देइ सुत्तविहिणा अन्नह देंते इमे दोसा // 1355 // Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकल्पः [151] अपायच्छित्ते य पच्छित्तं पच्छित्ते अतिमत्तया। धम्मस्मासायणा तिव्वा मग्गस्स य विराहणा 1356 उस्मुत्तं ववहरंतो कम्मं बंधति चिक्कणं। मसारं च पवड्ढेति मोहणिज्जं च कुव्वति // 1357 // उम्मग्गदेसणाए मग्गं विपडिवादए। पर मोहेण रंजंतो महामोहं पकुव्वति। दारं // 1358 // सपडि कमणो धम्मो पुरिमस्स य पच्छिमस्स य जिणस्स मज्झिमयाण जिणाणं कारणजाए पडिकमणं / दारं // दुविहो य मासकप्पो जिणकप्पोचेव थविरकप्पो य / एकेको य दुविहो अठितकप्पो य ठितकप्पो / दारं // पज्जोसवणाकप्पो होति ठितो अद्वितो च थेराणं / एमेव जिणाणं पी कप्पो ठितमाहितो होति // 1361 // चाउम्मासुकोसो सत्तरि राइंदिया जहण्णेणं / ठितमट्टितमेगतरे कारणवच्चासि तऽण्णतरे। दारं 1362 ठित मट्टितो तु कप्पो एसो मे वण्णिओ समासेणं / अह एत्तो जिणकप्पं वोच्छामि अहाणुपुवीए 1363 गच्छम्मि य णिम्माया थेरा जे मुणितसव्वपरमत्था। अग्गह अभिग्गहे वा उति जिणकप्पियविहारं / / Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [152] पञ्चकल्प-भाष्ये णवपुव्वि जहण्णणं उक्कोसेणं तु दस असंपुण्णा / चोद्दसपुव्वी तित्थं तेण तु जिणकप्प ण पवज्जे 1365 वइरोसभसंघयणादारं। सुत्तस्सत्थो तु होति परमत्थो संसारसभावो वा णाओ तो मुणितपरमत्थो 1366 दोहग्गह ततियादी पडिमाहिग्गहण भत्तपाणस्स / दोहिं तु उवरिमाहिं गेण्हते वत्थपाताई // 1367 // दव्वादभिग्गहा पुण रयणावलिमाविगा व बोधव्वा / एतेसु विदितभावा उर्वति जिणकप्पियाविहारं / दारं॥ परिणाम जोग सोही उवहिविवेगो य गणणिक्खेवोय। सेज्जासंथारविसोहणं च विगतीविवेगं च // 1369 // गणहरठवणं च तहा अणुसट्ठी चेव तह य सीसाणं। सामायारी य तहा वत्तव्वा होति जिणकप्पे // 1370 / / अणुपालिओ यदीहो परियाओ वायणा विमे दिण्णा अब्भुज्जयाण दोण्हं उमि कतरंणु? परिणामो। दारं।। सेहणिमित्तं जोगाण भावणा सा इमा तु पंचविहा। तव सत्त सुतेगत्ते बले य तह पंचमा होति // 1372 / / एतसिं तु विभासा उवरि भणिहिति मासकप्पम्मि / दारं सेसाई दाराई वोच्छामि समासतो इणमो // 1373 / / Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणस्याऽनुशास्तिः [153 ] पुव्वुवहिस्स विवेगं काउं गेण्हति अहागडं उवहिं। अभिगहियमेसणाहिं उप्पादेयं सयं चेव / दारं 1374 गणसण्णा स करेती जो जहिं ठाणठितो तु पुव्वम्मि। तं तत्थेव ठवेती गणणिक्खेवं च इत्तरियं // 1375 // सेज्जाए अपरिभुत्ते ठायति तहियं तु एगदेसम्मि / दारं संथारं उप्पादे अहाकडं एसणविसुद्धं / दारं // 1376 // विगतीओ य ण गेण्हति गेण्हति भत्तं च सो अलेवाडं। दारं ! इय भाविउ हु जाहे ताहे ठवती गणहरं तु॥ गणहर गुणसंपण्णं बामे पासम्मि ठावइत्ताणं / चुण्णाति छुहति सीसे सचित्तादी य अणुजाणे / दारं // 1378 // ठावेऊण गणहरं आमंतेऊण तो गणं सव्वं / तिविहेण खमावती सबालवुड्ढाउलं गच्छं // 1379 // संवेगजणियहासा सुत्तत्थविसारता पयणुकम्मा / चिंतेति गणं धीरा णिता वि हु ते जिणाणाए // 1380 // णिद्धमहुराति सेसं परलोगहितं गुरूण अणुरुवं / अणुसहि देंति तहिंगणाहिवतिणो गणस्सेवं // 1381 // तवणियमसंपउत्ता आवस्सगझाणजोगमल्लीणा / संजोगविप्पओगे अभिग्गहा जे समत्थाणं // 1382 / / Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [154] पञ्चकल्प-भाष्ये सुप्पत्ते णिसिरंतेहिं गणो वी चिंतिओ भवति सो उ। दारं / णिद्धाए दिट्ठीए आलोए तं गणं सव्वं / दारं // वायाए महराए आसासे / दारं। अपरिसेसणिस्सेसं / दारं / गुरुअणुरूव जहरिहं सवालवुड्ढाति राइणिए। दारं // 1384 // नवो होति बारसविहो दुह णियमो इंदिओय णोइंदी। आवास सामायारी बोधव्वा चकवाला उ / दारं 1385 सुत्तत्थझाणजोगे अल्लीणा तेसु होह जुत्ताउ। सव्वे वि य संजोगा णियमा उ य विप्पओगंता। ' दारं // 1386 // तह उवही उपायण दव्वादीया अभिग्गहा जे तु। सति सामत्थे तेसु वि मा हु पमायं करेज्जाऽणु 1387 अहवा अभिग्गहा तू कुणंति जिणा य जे समत्था य / दारं / एवं सासेत्तु गणं ताहे गणहारि अप्पाहे 1388 गणसंगहुवग्गहरक्खणे तुम मा हु काहिसि पमादं / ठितकप्पो हु जिणाणं गणधरपरिवाडिया गच्छे / / मज्जाररसियसरिसोवमं तुम मा हु काहिसि विहारं / माणासेहिसि दोण्णि वि अप्पाणं चेव गच्छं च 1390 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गणधरमर्यादा [155] वड्ढेतओ विहारो जिणपण्णत्तो दुवालसंगम्मि / जह जिणकप्पियपरिहारियाण सेसाण वि तहेव // परिवड्ढमाण सड्ढो जह जिणकप्पोतहा करेज्जासी। अकरतमप्पणा तू ण ठवे अण्णं इमं णातं // 1392 // जो सगिहं तु पलित्तं अलसो तु न विज्झवे पमाएणं। मो न वि सद्दहियव्वो परघरदाहप्पसमणम्मि 1393 णाणं अहिज्जिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता / ण चएति जो धरेतुं अप्पाण गणं ण गणहारी 1394 णाणं अहिज्जिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता। चोएति जो धरेतुं अप्पाण गणं स गणहारी // 1395 / णाणं अहिज्जिऊणं जिणबयणं दसणेण रोएत्ता। ण चाति जो ठवेडं अप्पाण गणं ण गणहारी 1396 णाणं अहिज्जिऊणं जिणवयणं दंसणेण रोएत्ता। चोएति जो ठवेउं अप्पाण गणं स गणहारी // 1397 // णाणम्मि दंसणम्मि य तवे चरित्ते य समणसारम्मि। ण चएति जो ठवेडं अप्पाण गणं ण गणहारी 1398 णाणम्मि दंसणम्मि य तवे चरित्ते य समणसारम्मि। चोएति जो ठवेउं अप्पाण गणं स गणहारी 1399 Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [156] पञ्चकल्प-भाष्ये एसा गणहरमेरा आयारत्थाण वण्णिता सुत्ते / " लोगसुहाणुगताणं अप्पच्छंदा जहिच्छाए // 1400 // लोयसुहं सद्दादी विसया तेसिं तु जे भवे रत्ता। अप्पच्छंदा ते ऊ विहारो ते सऽणुण्णातो // 1401 // उग्गमउप्पायण-एसणाउ चरित्तस्स रक्खणट्ठाए / पिंडं उवहिं सेज्जं सोहेंतों होति सचरित्ती / / 1402 // सीतावेति विहारं सुहसीलत्तेण जो अबुद्धीओ। सो णवरिं लिंगसारो संजमसारम्मि णिस्सारो 1403 तित्थगरोचउणाणी सुरमहितो सिज्झियव्वय धुवम्मि अणिगृहियबलवीरिओ तवोवहाणम्मि उज्जमति॥ किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं। होति ण उज्जमियव्वं सपचवायम्मि माणुस्से ? 1405 संखित्ता विव पवहे जह वड्ढति वित्थरेण पवहंती। उदधिं तेणं च णदी तह सीलगुणेहि वड्ढाहि 1406 // कुणमप्पमाय आवस्सएहिं संजमतवोवहाणेहिं / णिस्सारं माणुस्सं दुल्लभलाभं वियाणित्ता // 1407 // तिव्वकसायपरिणता परपरिवादं च मा करेज्जाहं / अचासायणविरता होह सदा संजमरता य // 1408 // Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्याणामनुशास्तिः [ 157] सुस्सूसगा गुरूणं चेइयभत्ता य विणयजुत्ता य / सज्झाए आउत्ता साहूण य वच्छला णिचं // 1409 // एस अखंडियसीलो बहुस्सुतो य अपरोवतावी य / चरणगुणसुट्टिय त्ति य धण्णाणयरीति घोसणगं // बाढं ति भाणिऊणं एवं णे मंगलं ति जंपंता / आणंदअंसुपादं मुंचंति गुणे सरंता से // 1411 // कतरे गुणा उ तस्सा जे सुसरंतेसु तस्स ते सीसा // भण्णति इणमो सुणसू ते भण्णंते समासेणं // 1412 // सव्वस्स दायगाणं समसुहदुक्खाण णिप्पकंपाणं। दुक्खं खु विसहिउं जे चिरप्पवासो गुरूणं तु 1413 सीलड्ढ गुणड्ढेहि य बहुस्सुएहि य अपरोवतावीहि / पवसंतेहिं मएहिं य देसा ते खंडिया होंति // 1414 // अणुसटिं दाऊणं ताहे पसंत्थम्मि तिहिमुहुत्तम्मि / अहसन्निहितं संघं असतिगणं तं समाहूय // 1415 // जिणवरपादसमीवे पडिवजे गणहराण व समीवे / चोदसपुग्वे तह चेतिए य असती य वडमादी 1416 थामावहारविजढा काउं गहणं व गाहणं चेव / मुत्तत्थझरियसारा गेण्हंति अभिग्गहे धीरा // 1417 // Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [158] पञ्चकल्प-भाष्ये जिणकप्पियपाउग्गा अभिग्गहागेण्हती ण अण्णातु जिणकप्पो केरिसस्सा कप्पति पडिवजिउं ? सुणसु॥ कप्पे सुत्तत्थविसारयस्स संघयणविरियजुत्तस्स / एतारिसस्स रूप्पति पडिवजिउ होति जिणकप्पो।। जिणकप्पे संघयणं भणितं पढमं तु होति णियमेण / विरियं तु भण्णति धिती तीए जुतो वज्जकुड्डसमो॥ कोति पुण ण पडिवज्जे सो पुण णियमा उ कारणेहिंतु। काणि पुण कारणाणि य? इमाई ताई णिसामेह // देहस्स दुबलत्तं आयरियाणं च दुल्लभपसादा / दारं। रोगपडिबंध ण सहति सीउण्हादी अ पडिभोगी। सुत्तत्थाणि विधेत्तुं दुब्बलदेहो उ तं ण चाएति। दारं। गुरूणं च अणणुकूलत्तणेण णाराहिओ सूरी 1423 / / आयरिया अपमन्ना सुतप्पसायं उ ते ण कुव्वंति। णाहीतं तेण सुतं जावइएणं तु पजत्तो / दारं // 1424 // सोलसविहरोगाणं अहवा गाढं अभिद्दएणं तु / णाधीतं होज्ज सुतं ने य इमे वण्णिता रोगा // 1425 // कासे सासे जरे दाहे जोणीसूले भगंदरे / अरिसा अजीरए दिट्ठी मुद्धसूले अकारण // 1426 / / Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडश रोगाः अच्छीवेयण तह कण्णवेयणा कंदु कौढ दगउन एते ते सोलस वी समासतो वण्णिता रोगा। दारं / / अण्णी पडिबंधेणं गुरुकुलवासं ण चेव आवसती। तेणं णाहिज्जति ऊ के पुण पडिबंधिमे सुणस्, 1428 सो गामो सा वइया तं भत्तं भद्दओ जणो जत्थ / एताई संभरतो गुरुकुलवासं ण रोएति // 1420 // सकारो सम्माणो पूजइ मे भोइओ तहिं गामे / आयरिओ महतरओ एरिसता मे तहिं सड्ढा 1430 // सच्छंदुठाणणिवज्जंणस्स सच्छंदगहितभिक्खस्स सच्छंदजपियस्स य मा मे सत्तू विएगागी // 1431 / एतेहि ऊ अभागी सीताइणं ण देति तु उरं तु। तो णाहिज्जति सो ऊ गुरुकुलवासं असेतो 1432 एतेहिं (ण) पडिवज्जे अणुसंहिं दारिधं परिममत्तं / का पुण सामायारी जिणकप्पे होतिमा साउ 1433 खेत्ते काल चरित्ते तित्थे परियाग आगमे वेदे। कप्पे लिंगे लेस्सा गणणे झाणे यऽभिग्गहे // 1434 // पव्वावण मुंडावण मणसा वण्णे वि से अणुग्धाता। कारणणिप्पडिकम्मे भत्तं पंयो य ततियाए // 1430 / Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [160] पञ्चकल्प-भाष्ये एसो जिणकप्पोखलु समासतो वण्णितो सविभवणं। दारं / एत्तो उ थेरकप्पं समासओ मे णिसामेहि 1436 तिविहम्मि संजमम्मि उ बोधव्वो होति थेरकप्पो तु। सामइय-छेदपरिहारिए य तिविहम्मि एयम्मि 1437 ठिय अट्ठिए व कप्पे सामाइयसंजमो मुणेयव्यो / छेदपरिहारिया पुण णियमा उ हवंति ठितकप्पे 1438 एतेसु थेरकप्पो जह जिणकप्पीण अग्गहो दोसु / गहणं चऽभिग्गहाणं पंचहिं दोहिं च ण तह इहं // बाले वुढे सेहे अगीतत्थे णाणदंसणप्पेही। दुब्बलसंघयणम्मि य गच्छपइण्णेसणा भणिता॥ जहसंभवं तु सेसा खेत्तादि विभासियव्व दारा तु। उरिं तु मासकप्पो वित्थरतो विभासते तेसिं। दारं / / 1441 // इति एस थेरकप्पो एत्तो वोच्छामि लिंगकप्पं तु। तहियं तु लिंगकप्पो इणमो जिणकप्पे भवती तु॥ रूढणहकक्खणिगिणो मुंडो दुविहोवही जहण्णो सिं। एसो उ लिंगकप्पो णिव्वाघातेण यवो // 1443 // रयहरणं मुहपोत्ती संखेवेणं तु दुविह.उवही तु / वाघातो विकितलिंगो अरिस पमेहे कडिपट्टो 1444 Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकल्पस्यातिशयाः [161] दुविहा अतिसेसा वि यतेसि इमे वण्णिता समासेणं / बाहिर अभितरगा तेसि विसेमं पवक्खामि 1445 बाहिरगो सरीरस्सा अतिसेसो तेसिमो उ बोधव्वो / अछिद्दपाणिपाया वइरोसभसंघयणधारी // 1446 // अभितरमतिसेसो इमो उतेसिं समासतो भणिओ। उपही विव अक्खोभा सूरो इव तेयसा जुत्ता 1447 अव्वावण्णसरीरा वइगंधो ण भवते सरीरस्स / खनमवि ण कुच्छते सिं परिकम्मं ण वि य कुवंति॥ पाणिपडिग्गहधारी एरिसया णियमसो मुणेयव्वा / अतिससा वोच्छामि अण्णेवि समासतो तेसिं 1449 दुविहो अतिसेस तेसिं णाणातिसओ तहेव सारीरो। णाणातिसओ ओहिमणपज्जव तदुभयं चेव // 1450 // आभिणियोहियणाणं तणाणं चेव णाणमतिसेसो। तिवली अभिण्णवच्चा एसो सारीरभतिसेसो॥१४५१॥ रयहरणं मुहपोत्ती जहण्णोवहि पाणिपत्तयस्सेसो / उलोल निणि कप्पा रयहर मुहमोत्ति पणगेतं 1452 णवहा पडिग्गहीणं जहण्णमुसोस होति बारसहा / तेसि वयाणिदिय अतिरेगो पातणि ज़ोगो // 1453 // Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [162] पञ्चकल्प-भाष्ये उव्वदृण घंसणमज्जणा य णहणयणदंतसोभाय। एते उवघाता खलु भवंति जिणलिंगकप्पस्स 1424 उव्वदृणाइयाति उवकरणं चेव थेरकप्पीणं / भइयव्वो लिंगकप्पो गेलण्णादीहिं कज्जेहिं // 1450 // कज्जम्मि गिलाणादिसु उवट्टणमाइया अणुण्णाया। दुगुणो चउरगुणो वा कारणतो होति उवहीउ 1456 रूढणह कक्खणियणो मुंडो दुविहोवही समासेणं / एसो तु लिंगकप्पो कारण विवच्चा सित्तण्णतरो१४५७ लोय खुरकत्तरी य व मुंडं तिविहं तु होति थेराणं / असिवादिकारणेहिं कज्जविवज्जास लिंगस्स 1458 णिरुवहतलिंगभेदे गुरुगा कप्पति य कारणज्जाते। गेलण्णरोगलोए सरीरवेयावडियमादी // 14.9 // वासत्ताणेणावि हु भेदो लिंगस्स तं अणुन्नातं / चाउम्मासुक्कोसं सत्तरि राइंदिय जहन्नं // 1460 // एयं तु दव्वलिंगं भावे समणत्तणं तु णायव्वं / को नु गुणो दव्वलिंगे? भण्णति इणमो मुणसु वोच्छं। सक्कार वंदण णमंसणा य पूजा कहणा य लिंगकप्पम्मि पत्तेय बुद्धमादी लिंगे छउमत्थ तो गहणं // 146 // Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यलिङ्गस्य गुणाः [ 163 ] वत्थासण सकारो वंदण अब्भुट्टणं तु णायव्वं / पणिवादो तु णमंसण संतगुणुकित्तणा पूया॥१४६३।। दट्टण दवलिंगं कुव्वंतेताणि इंदमादी वि। लिंगम्मि अविज्जंते ण णज्जती एस विरओत्ति 1464 कहेंतो समणलिंगे ण धम्मं नू सम्मातो भवे / अलिंगं बेति तं कीस जाणंतो ण करे तुमं? // 1465 // पत्तेयबुद्धो जाव उ गिहिलिंगी अहव अण्णलिंगी उ / देवा वि ताण पूएंति मा पुज्ज होहिति कुलिंगं // 1466 ण यणं पुच्छति कोती केरिसओ होति तुज्झ धम्मोत्ति। णय सल्लिंगविहणं छउमत्थो जाणे विरओत्ति 1467 एसो तु लिंगकप्पो अहुणा वोच्छामि उवहिकप्पं तु। जो जस्स भवे उवही जिणथेराणं जहाकमसो 1468 ओहे उवग्गहे या दुविहो उवही तु होति णायव्यो / ओहोवही तु तिण्हं ओवग्गहिओ भवे दोण्हं 1469 जिणकप्पे थेरकप्पे कप्पातीते य तिहमोघो उ / थेराणमुवग्गहिओ साहणं संजतीणं च // 1470 // बारस चोद्दस पणुवीस णव य एको य णिरुवही चेव। जिण थेर अज्जपत्तेयबुद्धतित्थकरतित्थकरे 1471 Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [164] पञ्चकल्प-भाष्ये पाणीपडिग्गहीया पडिग्गहधारी य होंति जिणकप्पे। थेरा पडिग्गहधरा कप्पादीया तु भइयव्वा // 1472 // बियतियचउक्कपणए णव दस एकारसेव बारसगं / एते अहविकप्पा उवहिम्मिवि होति जिणकप्पे 1473 अहवा दुगं च पणगं उवहिस्स तु होति दोणि वि विकप्पा पाणिपडिग्गहियाणं अपाउय सपाउयाणं च रयहरणं मुहपोत्ती एयं दुयगं अपाउयंगाणं / रयहरणं मुहपोत्ती तिण्णि य पच्छाद इतरेसिं 1475 उग्गहधारीणं पि य दुविहो उवही समासतो होति / णवविह दुवालसविहो अपाउय संपाउयाणं च 1476 पत्तं पत्ताबंधो पातठ्ठवणं च पातकेसरिया / पडलाइं रयत्ताणं च गोच्छओ पातणिज्जोगो 1477 रयहरणं मुहपोती णवहा एसो अपाउअंगाणं / इयरेसिं एसेव य अतिरेगा तिणि पच्छागा 1478 एते चेव दुवालस मत्तउ अतिरेग चोलपट्टो य? एसोश चोहनविहीं उबही खलु धेरकप्पम्मि 1479 अजाणं एसेव य चोलत्थाणमिन णवरि कमढं तु। अतिरेग अंगलग्गा इभेतु अण्णे मुणेयव्वा // 1480 // Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येकबुद्धानामुपधिः [165] उग्गह णंतग पट्टो अड्ढोरुग चलणिया य बोद्धव्वा। अभितर बाहिणियंसणीय तह कंचुए चेव // 1481 // उकच्छिय वेकच्छिय संघाडी चेव खंधकरणी य / ओहोवहिम्मि एते अज्जाणं पण्णवीसं तु // 1482 // सत्तय पडिग्गहम्मि रयहरणं चेव होति मुहपोत्ती। एसो तु णव विकप्पो उवही पत्तेयबुद्धाणं // 1483 // एगो तित्थगराणं णिक्खममाणाण होति उवही उ। तेण परं णिरुवहि ऊ जावजीवाए तित्थगरा॥१४८४॥ जिणा बारसरूवाइं थेरा चोद्दसरूविणो। अज्जाणं पण्णवीसं तु अतो उड्ढं उवग्गहो 1485 एसो उवहीकप्पो समासतो वण्णिओ जहाकमसो।दा संभागकप्पमहुणा समासतो मे णिसामेह // 1486 // संभोगपख्वणता सिरिघर सिवपाहुडे य संभुत्ते / दसणणाणचरित्ते तवहेतुं उत्तरगुणेसु // 1487 // ओह अभिग्गह दाणग्गहणे अणुपालणाय उववाए। संवासम्मि य छट्ठो संभोगविही मुणेयव्यो / पडिदार गाहा // 1488 // उवहि सुय भत्तपाणे अंजलीपग्गहे इय / दावणा य निकाए य अन्भुट्ठाणेत्ति आवरे // 1489 // Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [166] पञ्चकल्प-भाष्ये कितिकम्मस्स य करणे वेयावच्चकरणे इय / ममोसरणसन्निसेज्जा कहाए य पबंधणा // 1490 // उग्गम उप्पाएसण निवेय परिकम्मणा य परिहरणा। मंजोगविहिविभत्ता उवहिमिन वि होति उट्ठाणा // वायण पुच्छणा पडिपुच्छ चिंत परियणा य कहणा य मंजोगविहिविभत्ता सुतठाणे होंति छट्ठाणा // 1492 // उग्गमउप्पाएमण लोयण संभुंजणा णिसिरणा य / मंजोगविहिविभत्ता य भत्तदाणे विछट्ठाणा 1493 वंदिय पणमिय अंजलि गुरुआलोवे अभिग्गहिणिसेज्जा / संजोगविहिविभत्ता अंजलिकम्मे वि छट्टागा // सेजोवहि आहारे सीसगणा अणुप्पयाण सज्झाए। मंजोगविहिविभत्ता दावणाए वि छट्ठाणा // 1495 // सेन्जोवहि आहारे सीसगणाऽणुप्पदाण सज्झाए। मंजोयविहिविभत्ता निमंतणाए वि छट्ठाणा // 1496 // अब्भुट्ठासण अंजलि किंकर अब्भासकरणमविभत्ती। संजोगविहिविभत्ता अब्भुट्ठाणे वि छट्ठाणा॥१४०॥ सुत्तायाम सिरोणय मुद्धाणं सुत्तवज्जियं चेव / संजोगविहिविभत्ता कितिकम्मे होंति छट्ठाणा 1498 Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैयावृत्त्यस्य षट् स्थानानि [167 ] आहार उवहिमत्तग अहिगरण विओसणा य सुयसहाए / संजोगविहिविभत्ता वेयावच्चे विछट्ठाणा 1499 वास उडु अहालंदे पुहुत्तसाहाराणोग्गहित्तिरिए / बुड्ढावासोसरणे छट्ठाणा होति पविभत्ता // 1500 // परियट्टणाणुओगे वागरणे पडिपुच्छणा य आलोए। मंजोगविहिविभत्ता सण्णिसेज्जाए छट्ठाणा // 1501 // वादो जप्पवितंडा पयणियाऽणीच्छिया कहा होति। संजोगविहिविभत्ता कहापबंधे य छट्ठाणा // 1502 // रागणं दोसेणं अण्णाणमविरईयमिच्छत्ते। कोमामालोआसवदारेहिं तू रातीभोयण छ?हिं॥ अविरयस्स बावत्तरिविहो। एसा बावत्तरी दोहिं गुणिता रागद्दोसेहिं चोयालंसतं / अण्णाणातीहिं // 216 / / कोहादीहिं / / 288 // आसवदारेहिं / / 360 // रातीभोयणछठेहिं // 432 // बारस य चउव्वीसा छत्तीसा य अडयालमेव सट्ठीय। बावत्तरीउ एसो संजोयविही मुणेयव्वो // 1504 // बारस य चउव्वीसा छत्तीसऽडयालमेव सट्ठीय। बावत्तरी विगुणिता चोयालसतंतु संजोगा // 1505 / / Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [168] पञ्चकल्प-भाज्ये पारस य चउव्वीसा छत्तीसऽडयाल चेव सट्ठी य। पावत्तरी छग्गुणिया चत्तारि सता उ बत्तीसा 1506 जस्सेते संजोगा उवलद्धा अत्थतो य विण्णाता। सो जाणती विसोही उवघायं चेव संभोगे / / 1507 // जस्सेते संजोगा उवलद्धा अत्थतो य विष्णाता। णिज्जूहिउं समत्थो णिज्जूढे यावि परिहरिउं 1508 सरिकप्पे सरिछंदे तुल्लचरित्ते विसिट्ठतरए वा। आयएज्ज भत्तपाणं सएण लाभेण वा तुस्से 1500 सरिकप्पे सरिछंदे तुल्लचरित्ते विमिट्टतरए वा। साहहिं संथवं कुज्ज णाणीहिं चरित्तगुत्तेहिं // 1510 / / ठितकप्पम्मि दसविहे ठवणाकप्पे य दुविहमपणतरे। उत्तरगुणकप्पम्मि य जो सरिकप्पोस संभोगो 1511 सत्तविहकप्प एसो समासतो वणितो सविभवेणं : एत्तो दसविहकप्पं समासओ मे णिसामेहि ! सत्तविहो कप्पो समत्तो।। 1512 // कप्पपकप्पविकप्पे संकप्पुवकप्प तह य अणुकप्पे / उक्कप्पे य अकप्पे तहा दुकप्पे सुकप्पे य // 1513 / / गच्छाओ णिग्गताणं जिणकप्पियमादियाण कप्पो तु तं च समासेण अहं उल्लिंगेहामि इणमोतु // 1514 // Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकल्पिकादीनामाचारः ज [169] पिंडेसण पाणेसण उग्गह उद्दिट्ट भावणा चेव / बारस य भिक्खुपडिमा एवमादी भवे कप्पो 1515 पिंडेसण पाणेसण पंचुवरिमया सभिग्गहेगा य। सेसासु य अग्गहणं सेज्जोग्गह उवरिमा दोसु 1516 उद्दिहित्ती हेट्ठा जिणकप्पविहीं तु जो समक्खाओ। खेत्ते काल चरित्ते इच्चाइ तहेव उ इहइंपि // 517 / / पणुवीस भावणाओ महब्बयाणं तु होति पंचण्हं / बारस अणिच्चतादी तवसुत्तादी य पंचेव // 218 एताहिं भावणाहिं भावती ते उणिचमप्पाण। सव्यवि गच्छणिग्गत वेरग्गपरायणा वीरा :1610 बारस भिक्खूपडिमा आदिग्गहणेण लंदिया चव / तह सुद्धपारिहाही सव्वोऽवेसो भवे कप्पो // 1.20 // णिच्छय णिरासणिम्मम णिरहंकार परभट्ट दृढजोगी। चत्तसरीर कसाया इंदिरागामा य णिग्गहिया 1521 जंचऽण एवमादी सव्वणयविहाण आगमविसुद्धं / कप्पो त्ति णाणदंसण चरित्तगुणमावहं जाणे 1522 णिच्छयमतिणो णिच्छयणहिता ण उद्विता तु ववहारे। अहवा विणिच्छतो तू णाणादीयं भवे ततियं / / Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [17] पञ्चकल्प-भाष्ये णासंसह इहलोयं परलोगं वा वि एस तुणिरासो। दारं णिम्ममता तु ममत्तं ण करेती अवि य देहे वि 1524 ण करेइ अहंकारं एरिसओ अहंति उत्तमगुणोघो। दारं णेवाणं परमट्ठो तस्साहणता तु दृढजोगी // 1525 // णिप्पडिकम्मसरीरो चत्तसरीरो उ होति णायव्यो। पऽवणेतऽच्छिमलादिविखंतिखमो उज्झियकसाओ। सोइंदियमादीसु य विसयपयारेसु सद्दमादीसु। ण उवेति रागदोसे इंदियगामा य णिग्गहिया (दारं) पवणया वी दुविहा णाणे करणे य होंति बोधव्या / मवणयाणंऽपेयं मतं तु जो सुद्वितो चरणे 1528 कप्पो णाम भण्णति जो आवहती हु णाणमादीणि / वुड्डि वा वि करेती सव्वो सो होति कप्पो तु 1529 // कप्पो उ एस भणितो अहुणा एत्तो पकप्प वोच्छामि। उस्सारकप्पमादी जहकमं आणुपुवीए // 1530 // उस्सारकप्प लोगाणुओग पढमाणुओग संगहणी। मंभोग सिंगणाइय एवमादी पकप्पो तु // 1531 // आयारदिठिवादत्थजाणए पुरिसकारणविहण्णू / मंविग्गमपरितंतो अरिहति उस्सारणं काउं // 1532 // Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सातवाहननृपपृच्छा [ 171] कारणे-अहिरगते य पडिबद्धे संविग्गे य सलद्धिए। अवठिए य पडिबुज्झी गुरु अमुदी जोगकारए 1533 गच्छा य अलद्धीओ ओमाणं चेव अणहियासो य। गिहिणो य मंदधम्मा सुद्धं च गवेसए उवहिं 1534 एपहिं कारणेहिं उस्सारायारिहो उ बोधव्वो (दा)। उस्मारो दिठिवादे धम्मकही गंडियणिमित्तं 1535 उस्मारकप्प एसो समासओ वण्णिओ मए एवं / लोगाणुआगमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं // 1536 // मेहावीमीसम्मी ओहामिय कालगज्जथेराणं। मज्झंनिएण अह सो खिसंतेणं इमं भणितो // 163 / / अतिबहुतं तेऽधीतं णय णातो तारिसो मुहत्तो उ। जत्थ थिरो होति सेहो णिक्खंतो अहो! हु बोदत्तं // तो एवं छउमत्थं भणितो अह गंतु सो पतिट्ठाणं / आजीविसकासमी सिक्खति ताहे णिमित्तत्थं 1539 अह तम्मि अहीयम्मी वडहेट्ठ णिवेट्ठ अएणय कयाति / साताहणो णरिंदो पुच्छइमा तिण्णि पुच्छाओ // 1540 // पसुलेंडि पढमताए बितिय समुद्दे व केत्तियं उदयं ? / ततियाए पुच्छाए महुरा य पडेज्ज व ण वत्ति? 1541 Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [172] पञ्चकल्प-भाष्ये पढमाए वामकडगं देति तहिं सतसहस्समुलं तु। वितियाए कुंडलं तू ततियाए वि कुंडलं बितियं 1542 आजीविया उद्वित गुरुदक्खिण्णं तु एत अम्हं ति। तेहिं तयं तू गहितं इयरोचित कालकज्ज तु॥१५४३॥ णहम्मि तु सुत्तम्मी अत्यम्मि अणढे ताहे सो कुणति। लोगणुजोगं च तहा पढमणुजोगं च दोऽवते / / 544 // बहुहा णिमित्त नहियं पहमणुओगे य होंति चरियाई। जिणचाइदमारणं पुव्वभवाइं णियहाई // 1545 // तो काजणं नो मा पाइलिपुत्त उवद्वितः संघ वेति कनं मे किंची अणुग्गहवाएं तं सुणम // 46 // तो संघेण णिसंलं सोतूण य से पडिच्छितं तं तु / तो तं पहाटेतं तूणगरम्भी कुसुमणाममि ! 1547 // एमादीणं करणं गहणं णिज्जूहणा पकप्पो तु। संगहणीणच करणं अप्पाहाराण तु पकप्पो // 1748 // संभोगो संगहुवग्गहढता य बच्छल्लपीति बहुमायो / साहारणकुलगणसंघठवण अणतिकमणमेव // 149 // सुत्तत्थतदुभयादीहि संगहो वग्गहो य भत्तादी। वच्छल्ल गुरुगिलाणे एवमादीसु जहकमसो // 1550 // Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शृङ्गमादितं कार्यम् [173] एगत्थ भोयणेणं पीती भवतिकभाण जिमित त्ति। बहुमाणं पिय कुव्वति सहायगत्तं च तेणेव // 1551 // केई अलद्धिमंता ण लभंति सलद्विया चिय लभंति / जं लद्धं सामण्णं संभोगमित्तो उ इच्छंति // 1552 // कुलगणसंघत्थेरा मज्जायाओ ठवेंति हिंडंता / जह सकुले परिताणो णत्थी उवसंपया चेव // 1553 // कुलगणसंघढवणा जाओ य कताओ तहिं तु थेरेहिं। कुलबहुमज्जाता विव ताओ य णतिकमिजति 1554 कज्जेसु सिंगभूतं कज्जं तू सिंगणाइयं होति / तं चेनिसाहुसंजति होज्जाहि सगच्छपरमच्छे / संभोगकप्पो गतो // 1555 / / तं पुण होज्जाहि कतं कोति भणेज्जाहि संजति जति वा / मज्झेस दुवक्खरओ कहंति सो पुच्छितो आह / कीतो मे व पइट्ठो हाउं वा आणिओ धरेंतो वा। दारे वास जानो अहवा राजा इव पलावी // 1557 // अमिऊणं घेत्तुं दासाणि करेउ अब लोभेउं / वस्थासणमादीहिं तु तत्थ पमादो ण कायवो 1558 गच्छस्स रक्खणट्ठा चारित्तठिते अवस्स कायव्वं / इहरा तू मज्जाता गच्छस्स तु फेडिया होति 1559 Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 174] पञ्चकल्प-भाष्ये आणाए जिणिंदाणं अणुकंपाए य चरणजुत्ताणं / परगच्छे व सगच्छे सव्वपयत्तेण कायव्वं // 1560 // अणवत्थवारणट्ठा उच्छृदिळंततो कुसीले वि। लिंगं अणुम्मुयंते जीवठिय अबुद्धधम्मो य // 1561 // अणुसट्ठी धम्मकहापण्णविओ जदि न मुंचती पावो ताहे अतीसत्तीए इमाई कुज्जातु करणाणि // 1562 // अंतद्धाणी ओसोवणी य पासायकंप वेतालं / अभिओग थंभ संकम आवेसण वेयणकरी य 1563 अंतद्वाणं काउं हरंति ओसोवणं च काऊणं / वेतालमुट्ठवेउं भेसंति तगं अमुचंतं // 1764 // अभिओग वसीकरणं विज्जासंकामणं तु अण्णत्थ / थंभस्स कंपणं वा आवेसेतुं व भेसंति // 1565 // माहम्मियवच्छल्लं कुणमाणेणं तु एव कत होइ / अण्णे य गुणा उ इमे हवंति ते मे णिसामेह // 1530 // मिच्छत्ता सम्मत्तं सम्मदिट्ठी चरित्तओ लंभं / चरित्तठिते थिरत्तं मलणा य पभावणा तित्थे 1967 तम्हा साहुणिमित्तं सव्वपयत्तेण एव कायव्वं / अहुणा चेतिणिमित्तं जं कायव्वं तगं वोच्छं 1768! Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चैत्यनिमित्तं कर्त्तव्यम् [175 ] चोदेइ चेतियाणं खेत्तहिरणे व गामगावादी। लग्गंतस्स व जतिणो तिकरणसोही कहं णु भवे ? // भण्णति एत्थ विभासा जो एयाई सयं विमग्गेज्जा। तस्स ण होती सोही अह कोति हरेज एयाई // 1570 / / तत्थ करेंत उवेहं जा सा भणिता तु तिगरणविसोही / सा य ण होति अभत्ती य तस्स तम्हा णिवारेज्जा। सव्वत्थामेण तहिं संघेणं होति लग्गियव्वं तु / सचरित्तअचरित्तीण उ सब्वेसि एव कज्जं तु 1570 तत्थ पुण कयादि णिवो अण्णत्थ हवेज्ज तत्थ उ वयंता लिंगत्थेहि समयं का मज्जादा भवे तहियं? // 1.73 / / भत्ते पाणे सयणासणे य सेज्जोवही य सज्झाए। वायणपडिच्छणासु य सुहसीले अत्तसंहारो 1574 जहियं तु सावयादी कोति करेज्जाहि संघभत्तं तु / तहियं तु ण गेण्हेज्जा ण य वस उद्दिट्ट सेज्जासु / / पाणगभत्तादीसुंण य संघाडो ण या वि ते सुत्ते / घोहिंति आसणे वि य ण जयंती एत्थ तु उवेसो 1576 सेज्जा वेवं उवहिं ण देति गेण्हति वा ण संघाडं / सज्झायं पि ण गिण्हे ण पडिच्छे चोदए वावि 1575 Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [176] पञ्चकल्प-भाष्ये मोत्तुं राउलकज्जं उवदेसं वा सुएज्जऽहव एवं / अण्णत्थ उदासीणो एसो खलु भत्तसंथारो // 1578 // परिवार देति तहिं राजकुले विण्णवेति ते चेव / जदि वा होज्ज समत्थो मंतेज्जा सो सयं चेव 1579 पुण बंधवहादिसु उद्दवणचरित्तभंसरोहे वा। णिरलंबणो समत्थो ण करेति तहिं विसंभोगो 1580 कोई वहबंधादी साहूण करेज्ज अहव देवकुलं / पाडेज्ज पडियभंगं च करेज्जा कोति पडिणीओ॥ अहवा वि णिमित्तं तू अकहेभाणो तु कोड़ रु भज्जा। णिरलंबणमगिलाणो ओरसविज्जादिसु समत्थो / जदि णेच्छति मोदेतुं तमसंभोयं करेंति तो समणं / परितावणादि जं ते पावेंती नं च पावइ य॥१५८३॥ केवइयं पुण कालं बंधादिगताण तेसि समणाणं / कायचं तु मतिमता भण्णति हणमो णिसामेह 1984 मज्जायसंपउत्ते चिरमवि कायव्यमपरितंतेण / मज्जायविप्पटणे सउवालंभं सतिं करणं / / 1782 // जदि अबराहे गहितो भण्णति मोएमो जदि पुणे ण करे / एरिसगमन्भुवगते नोंदउं पच्चुवालं भे 186 Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकल्पकथनम् [177 इहपरलोगं चहउं कुव्वंतेतारिसाणि जे इहतिं / ते पावंतताई परे य लोए दुहसताई // 1587 // एवं उवालभेत्ता मोदेउं जदि पुणो करेमाणो। घेप्पेन्ज उदासीणं हवेज्ज ते वाहि (रि) या समणा एवं तु समासेणं एस पकप्पो मए समक्खातो (दारं)। एत्ता तु समासेणं वोच्छामि विकप्पमहुणा उ 1589 अतिरंगं परिकम्मण तह भंडप्पायणा य बोधव्वा / एमादि विकप्पो तू तत्थाइरेगे इमं होति // 1590 // एगेण अलेवकडं कप्पो संघाडऽलेवग पकप्पो / तिप्पभिहं तु विकप्पो मत्तगभोगो यऽणट्ठाए 1591 पादेगेण अलेवं गेण्हे जिणकप्पिया तु सो कप्पो / थेराण दोणि पादा संघाडेणं च हिंडंति // 1592 / / तत्थेगपडिग्गहए भत्तं लेवाड़गंपि गेण्हति / एगत्थ दवं मत्तग दोण्हं पी रित्तग कप्पो // 1593 // तिप्पभितिं हिंडती णिकारण मत्तएसु वा गेण्हे / सो होति विकप्पो ऊ तत्थ य सोही इमा होति 1594 जदि भोयणमावहतीततिमासाजति दिणा उआणेती तावहया चउमासा बितियाए रोवणा भणिया 1595 Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [178] पञ्चकल्प-भाज्ये समणीण तिण्ह कप्पो चतुपंचण्हं भाणतो पकप्पो उ। तेण परेण विकप्पो एत्तो उवहिं तु वोच्छामि 1596 तिणि तु भणिता कप्पा अतरंता विपतिणा पकप्पविही / उप्पायगवज्जाणं तिठाणारोवणा ___ भणिता // 1597 // गणणाए पमाणेण य उवहिपमाणं दुहा मुणेयव्वं / गणणाए जिणाणं तू एको दो तिन्नि वा कप्पा 1598 दो रयणी संडासो सोत्थीओ वावि होति आयामो। रंदा दिवड्ढहत्थं एयपमाणप्पमाणं तू // 1599 // दो खोमिओपिण एको थेराणं तिन्नि होति गणणाए। आयामायपमाणा दुहत्थ अद्धं च विच्छिन्ना // 1600 // एसो उ भवे कप्पो पकप्पो उ गिलाणए गुरूणं वा चतु सत्त वा वि पाउण माणऽतिरित्तं च धारेज्जा / / कारण पकप्पो होती विकप्पा णिक्कारणे मुणेयन्यो / उप्पायगो पवित्ती सावतिरेगं धरेज्जाहि // 160 // गणणाए पमाणेण व गच्छटाए तु तं पात्तर्ण / जो अन्नो अतिरेगं धरेइ सोधी तु तस्स इमा 1603 // चाउम्मामुक्कोसो मासियमज्झे य पंच य जहणे / तिविहम्मि वि उवहिम्मि अतिरेगारोवणा भणिता॥ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिकर्म अतिरेग उवहिदारं संखेवेणोदितं अह इआणिं। परिकम्मदार वोच्छं अप्परिकम्मो जिणाणुवही 1605 कारणविही पकप्पो थेराणं अविहिए विकप्पो उ। परिकम्मणा उ एसा भंडप्पायं अतो वोच्छं 1606 // गाहग गहणं गेज्झं जहासंखेणिमे तु णायव्वा / पुरिसे पडिमा उवहीं तिणि तिगा भावसुद्धाइं 1607 गाहगो गीयत्थो खलु पुरिसो णियमेण होति णायव्वो। उद्दिट्टमाइयाहिं गहणं पडिमाहिं भणियं तु / घेत्तव्यो उवही खलु तिण्णित्ताहार उवहिसेज्जत्ति। तिणि वि तिविसुद्धाई उग्गममादीहिं णियमेणं // एगेण चेव गहणं कप्पो दोहिं भवे पकप्पो तु / तिप्पभितिं तु विकप्पो भत्ते पाणे तहा उवही 1610 आदितिएणतु गहणं वितियहाणम्मि अब्भणुण्णातं / हंदि परिरक्खणिज्जो सुहाकरो सव्यसाहणं // 1611 // आदित्ति होति कप्पो तिगंति आहार उवाहि संज्जातु। गहणं तु होतितिविहं उग्गममादी तिगविसुद्धं 1612 बितियठाणपकप्पो तत्थ वि तिगसुद्धमेव घेत्तव्छ / असती य अणुण्णातं पणहाणीए असुद्धं पि॥१६१३॥ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [14.] पञ्चकल्प-भाष्ये केण पुण कारणेणं गच्छे असुद्धं पि उग्गमादीहिं / घेप्पति ? भण्णति सुणसू कारणमिणमो समासणं // रयणाकरोव्व जम्हा उ आगरो होति सव्वसोवाणं। णाणादीण य पभवो ततो उ मोक्खा उ तो रम्ग्वे // आइण्णता महाणो कालो विसमा सपकवओदोसा। आदितिगभंगगेणं गहणं भणितं पकप्पम्मि 1616 तियतिक्कंतपमाणे अणुवासो चेव कारणनिमित्तं / परिकम्मण परिहरणे उवही अतिरित्तगपमाणो॥ गच्छो सबालवुढो गिलाणसेहादिएहिं आदिण्णो। एसो व महाणी तू तस्स तु दुलभं तिगविसुद्धं 1618 कालो विसमो दुभिक्खमादिदोसा सपक्खओ उ इमे / पासत्थादी बहवे ओमाणंतो तओ होति 1619 अहव असंविग्गादी जह महराकोट्टइल्लगा केइ / मायाए उग्गमंती सड्ढा अपि कोवि नवि जाणे // एतेहिं कारणेहिं अलंभे आइतिगभंगगहणं तु / आदितिगमुग्गमादी भंगो तू भंसणा होति // 1621 // कारणतो तिविहंपी माणं तू अतिकमज्ज उ कदादि। किं पुण तिविहं माणं? भण्णति इणमो णिसामेह // Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकल्पनिरूपणम् [181] हवती पमाणपमाणं खेत्तपमाणं च कालमाणं च। एतं तिविहपमाणं अतिकमो तेसिमो होति // 1623 // अतिरेगपमाणेणं तिण्ह परेणं पि णाम गेण्हेज्जा / खेत्तओ अतिकमो तू परतो वि दुगाउया मग्गे 1624 कालपपाणातिकमे कुज्जा पाउरणगं अकालेवि / वसती कालातीतं असिवादणुवासणं एयं / दा 1625 परिकम्मणमविहीए बलियट्ठाइदुब्बलंमि कुज्जाहि / दुल्लभलंभे सीतेण अद्दिओ उणियं पंतो // 1626 // अतिरित्तपमाणं वा धारिज्जति कारणेहिं एएहिं / सो सव्वो पकप्पो तू णिकारणओ विकप्पो उ 1627 संकप्पो उ इदाणि सोय पसत्यो य अप्पसत्यो य / एतेसिं दोण्हं पी परूवणा होतिमा कमसो // 1628 // दसणनाणचरित्ते अणुपालण पसत्यणोपसत्थो उ। इंदियविसयकसाएसु अप्पसत्थो उ संकप्पो 1629 दसणपभावकाई सस्थाई कहमहं अहिजेजा। जो चिंते(ई)यं एसो संकप्पो दंसणे होति / दा 1630 णाणतियारं ण करे कहं च णाणं अहं अहिजेजा। इति णाणे चारित्ते सुद्धचरित्तो कहं होजा ? // 1631 // Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [182] पञ्चकल्प-भाष्ये उत्तर उत्तरिएहिं व चारित्तगुणेहिं कह णु विहरेज्जा। एसो उ चरित्तम्मी संकप्पो सस्थगो भणिओ। दा०॥ सद्दादिइंदियत्थाण पत्थणा तह य रागगमणं तु / कोहादिकसायाण य अज्झप्पं होति अपसत्थं 1633 एसो खलु संक्रप्पो एत्तो वोच्छामहं तु उवकप्पं / उवकप्पती करति उवणेइ व होंति एगट्ठा // 1634 // भत्तेण व पाणेण व उवकरणेण व उवग्गहं कुणति / उवकप्पति गुणधारी उवकप्पं तं वियाणाहि 1635 // खुहिओ पिवासिओ वा सीतभिभूतो व ण तरती पढिउं। तस्स करेति उवग्गह पडंत कुड्डुस्स वा थूणा // जो उप्पाए समाहिं चउव्विहं णाणदंसणे धरणे / तत्तो य तवसमाहि तस्स खमे णिज्जरा होइ 1637 भत्तेणं व पाणेणं व उवकरणेण उवग्गहियदेहो / जो कुणति सि समाहिं तस्सावरणं हणति दाता // भत्तस्स व पाणस्त व उवकरणस्स व उवग्गहकरस्स। जो कुणति अंतरायं तस्सावरणं पवड्ढेति // 1639 // एसुवकप्पो भणितो एत्तो वोच्छं अहं तु अणुकप्पं / अणुसद्दो तू तहियं पच्छाभावे मुणेयव्वो // 1640 // Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुकल्पनिरूपणम् [183] णाणचरणड्ढयाणं पुवायरियाण अणुकिति कुणइ। गणुगच्छइ गणधारी अणुकप्पं तं वियाणाहि // गुणसयसहस्सकलियाण गुणुत्तरतरं अभिलसंताणं / जे खेत्तकालभावा आसज्जा जोगहाणी भवे 1642 गुणसयकलिओ (सं) जमो मोक्खो य गुणोत्तरो मुणेयव्यो। सामायारी हाणीतु जोगहाणी मुणेयव्वा।। खेत्ताणऽसती अद्धाण उच्चखेत्तम्मि काल दुभिक्खे / भावे गेलन्नादिसु सुद्धाभावे उ जदसुद्धं // 1644 // गेण्हेज्जाहारादी णाणादीसू व उज्जमण कुज्जा। अणसणमादी व तवं अकरेमाणस्स साहुस्स 1645 एगंतणिज्जरा से जह भणिता सासणे जिणवराणं / जोगणियत्तमतीणं सुहसीलाणं तवो छेदो // 1646 // सुहसीलदुट्ठसीला तेसिं अल्फासु गेण्हमाणाणं / जं आवज्जे तहियं तवं च छेदं च तं पावे // 1647 // उक्कप्पो उ इदाणि उड्ढं कप्पावि होति उक्कप्पो। अहवावि छिन्नकप्पो उक्कप्पो अहवण अवेतो 1648 उग्गम उपायणएसणासु णिरवेक्खा कंदमूलफले / गिहिवेयावडियासु य उक्कप्पं तं वियाणाहि // 1649 // Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [184] पञ्चकल्प-भाष्ये णामणि थंभणि लेसणि वेताली चेव अद्भवेताली। आदाणपाडणेसु य अण्णेसु य एवमादीसु // 1650 // तसएगिदियमुच्छण संसेइममच्छमरणमहिओगे। रोद्दाऽऽहव्वणनह बंभदंडथंभे य अगणिस्स 1651 णामणि रुक्खफलाई पडिमाणं देउलाण थूभादी। धभणि पदमवि ण चलति लेसणि लेसति अंगाई // विणिहिट्ठाण य आणणि अहव णिलुक्कावणम्मि वेताली। उट्ठविऊण णिवातोतक्खण एसऽद्धवेताली॥ गम्भाणं आदाणं करेति तह साडणं च गम्भाणं / अभिजोग वसीकरणे विज्जाजोगादिहिं कुणति // विच्छिगमच्छिगभमरे मंडुक्के मच्छए तहा पक्खी / सम्मुच्छावेमादी जो जोणीपाहुडेणं च // 1655 // पसु उद्दविडं जागं आहव्वण मंत रोदकम्मे य / कोहादि बंभदंडो थंभणि अगणिस्स मंनेणं // 1656 // एमादि अकरणिज्जं णिकारणे जो करेति तू भिक्खू / सव्वो सो उक्कप्पो एत्तोऽकप्पं तु वोच्छामि // 1957 // णिकिव णिरणुकंपो पुप्फफलाणं च साडणं कुणनि / जं चण्ण एवमादी सव्वं तं जाणसु अकप्पं :1658 // Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुकल्पविहारी [ 185] जो उ किवं ण करती दुक्खत्तेसुं तु सव्वसत्तेसु। णिरवेक्खो रीयादिसु पवत्तई णिक्कियो सो तु 1659 सहसा य पमाएण व परितावणमादि बिंदियादीणं / काऊण णाणुतप्पइ णिरणुक्कंपो हवइ एसो // 1660 // सत्तहमठाणेसू सट्ठाणा मेवणाए सहाणं। गच्छागादमि उ कारणमि बितियं भवे ठाणं 1661 सत्तट्ठमठाणाई उक्कप्पो चेव तह अकप्पो य / ते णिक्कारणसेवी पावति सहाणपच्छित्तं // 1662 पत्तंमि कारणे पुणं रायदुहादियाम्म आगाढे / जयणाए करेमाणो होति अकप्पो ठिति हाणे 1663 // दसणणाणचरित्ते तवविणए णिचकालपासत्थो। णिचं च णिदिओ पवयणम्मितं जाणसु दुकप्पं 1664 दुकप्पविहारीणं एगंतासायणा य बंधो य / आसायणा य बंधेण चेव दीहो तु संसारो // 1665 // दसणणाणचरित्ते तवविणए णिच्चकालमुज्जुत्तो। णिचं पसंसिओ पवयणमि तं जाणसु सुकप्पं 1666 सुक्कप्पविहारीणं एगंताराहणा य मोक्खो य / आराहणाइ मोक्खेण चेव छिण्णो य संसारो दसकप्पो समत्तो // 1667!! Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [186] पञ्चकल्प-भाम्बे वुत्तो दसविहकप्पो अहुणावीसतिविहं तु वोच्छामि। तस्स तु दारा इणमो संगहिया तीहिं गाहाहिं 1664 कप्पेसु णामकप्पो ठवणाकप्पो य दवियकप्पो य / खेत्ते काले कप्पो दंसणकप्पो य सुतकप्पो // 1669 // अज्झयण चरित्तंमि य कप्पो उवही तहेव संभोगो। आलोयण उवसंपद तहेव उद्देसणुण्णाए // 1670 // अद्धाणंमि य कप्पो अणुवासोतह य होति ठितकप्पो। अट्टियकप्पो य तहा जिणथेर अणुवालणा कप्पो // जो चेव दवियकप्पो छव्विहकप्पमि होति वक्खाओ। सो सेव णिरवसेसो जो य विसे लोऽत्थ तं वोच्छं / एस पुण तिविहकप्पो अहव इमं भावकप्पमज्झयणं। सव्वं वा सुतणाणं दायव्वं केरिसे होति // 1673 // सुपरिच्छियगुणदोसे सेलघणादीहिं तू परिच्छाहि / सुविसोहितमिच्छ मले उंडयभोमादि णातेहिं 1674 सव्यंपि य सुयणाणं सुत्तत्थो सड्ढिए ण तु असड्ढी। अह पुण को परमन्थो विसेसओ पवयणरहस्सं? // पवयणरहस्समेताणि चेव भण्णंति छेदसुत्ताणिं / ताणि ण दायव्वाणि भण्णति सुत्तंमि को दोसो ? // Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रदानयोग्यः [ 187] अप्पं पि य तं बहुगं अरहस्तमपारधारए पुरिसे। दुग्गतगमाहणे विव जह वहरगहीरगादीयं // 1677 // जह फेल्लमाहणेणं रत्थाए वहर हीरतो लद्धो। सो अण्णस्स दरिसिओ तेण वि अण्णस्त सो सिहो॥ एवं परंपरेणं रण्णो कण्णं गतो तु सो ताहे। ताहे दंडितो रण्णा हडो य सो वइरहीरो से 1679 एवं अपरिणयस्सा किंची अववादकारणं सिहं / सो कहयति अण्णेसि परंपरेणं चरणणासो // 1680 // तम्हा परिच्छिऊणं देयं विहिसुत्तबद्धपेढस्स / परिणामगस्स जतिणो ण तु देयं अपरिणामस्स / / दवियकप्पो समहिगतो ण भणिय जं हेदृतं भणामि त्ति / सो भण्णती विसेसो इणमो वोच्छं समासेणं / / दव्वं तु गेण्हियव्वं सुद्धं गविसिय गवेसणा दुविहा। अविहीय विहीए या अविहीय इमं मुणेयकं 1683 दव्वाणि जाणि काणिति गहणं लोए उति साहूणं / तेसिं तु संभवं मग्गमाणे ण तु साहते अत्थं 1684 अविहीय दोस पिंडुवहिसेज्जसज्झायणिक्खमपवेसी। णवकहगदुयचउक्के एते सव्वेण पावेंति // 1685 // Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [188] पञ्चकल्प-भाष्ये साली तुंबीमादी आहारे फलिहमादि उवहिमि / रुक्खा पुण सेज्जट्ठा एमाधिगमो हु माहणं // 1686 // एताई पुच्छिऊणं कत्थ पहण्णाणि ? तहिं नहिं गच्छे / अविहिगवेसण एसा जह भणिया पिंडजुत्तीए 1687 आहारोवहिसेज्जाण णाणदग्वेहिं होति णिप्फत्ती। घेसणमिरिए पिप्पलि अल्लगघततेल्लगुलमादी 1688 हिमवंते पिप्पलीओ मलए मरिचाण होति णिप्फत्ती। हिंगुस्स रमढविसए जीरगमादी य जो जत्थ 1689 मा अम्हं अट्ठाए गावो कीता हढा व दूढा वा। फलमादी मा रुक्खो व रोवितो अम्ह अह्राए 1690 एमादि विमग्गंतो पभवं णाणादियाण परिहाणी। तह वत्थपातसेज्जाण मरेति सो अंतरा चेव 1611 एवं सो हिंडंतो भत्तं पाणं च ठाणमुवहिं च।। जह उग्गमे उ कह वा सज्झायं कुणतु हिंडतो ? // जो णिक्खमणपवेसे कालो भणितो तु वासउडुबद्धो। दुचउक उडुबद्ध विहारो हेमंतगिम्हासु // 1693 // णवमो वासावासे एसो कप्पो जिणेहिं पण्णत्तो / एयरस संखमाणं वोच्छामि अहं समासेणं // 1694 // Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहारसङ्ख्या [189] बोणि सया चत्ताला उडुबई एत्तिओ विहारो तु। वासासू पण्णासा पणगं पणगं हसति एगं // 1695 // पुरपच्छिममज्झाणं सव्वेसि एस काल वोच्छेओ / णिचं हिंडतेणं विराहितो होति सो णियमा 1696 / / / नम्हा खल उप्पत्ती ण एसियव्वा तु तसे दवाणं / जस्सट्ठा णिप्फण्णं तं गंतुं एसते मतिमं // 1697 // अतिबहुय दुल्लभं वा णातुं दव्वकुलदेसभावे य / पुच्छति सुद्धमसुद्धं ताहे गहणं अगहणं वा 1698 // अहया पुट्ठो भणज्जा समणादिकयं व अहव णिक्खितं। पक्खित्तं वावि भवे तत्थ उदारा इमे हेति // समणे समणी सावयसाविगसंबंधि इड्डि मामाए / राया तेणे पक्खवे या णिक्खेवयं कुज्जा / / 1700 // दमए दूभगे भट्टे समाणे छण्णे य तेणए। ण य णाम ण वत्तव्वं दुठे रुठे जहा वयणं 1701 एतेसिं दाराणं विभास भणिता जहा य कप्पंमि / सच्चेव णिरवसेसा णायव्वा सव्वदव्वेसु // 1702 // जं पुण जत्थाइण्णं दव्वे खित्ते य होज्ज काले य। तहियं का पुच्छा तू जह उज्जेणीए मंडेसु // 1703 / / Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 19.] पञ्चकल्प-भाष्ये एमेव माहमासे किसराए संखडीए का पुच्छा ? / विच्छिण्णे व कुलंमी बहुए दवमि का पुच्छा ? 1704 तम्हा तु गहणकाले मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / सोहेज्जा दव्वस्स तु ण मूलओ तस्स उप्पत्ती 1705 कीते पामिचे छज्जए य णिप्फत्तिओ य णिफण्णे / कज्जं णिप्फत्तिययं समाणिते होति णिफण्ण 1706 कंडितकीतादीया तंदुलमादी तु होज्ज समणट्ठा। णेप्फत्ती सा तु भवे आयट्ठा फासुणिप्फण्णं 1707 तं होति कप्पणिज्जं जं पुण समणठ्ठ होज्जणिप्फण्णं। तं तु ण कप्पति एत्थं च चोदा चोदए इणमो 1708 णिप्फत्तिओ य णिफण्णओ य गहणं तु होज्ज समणस्स / णिप्फत्तिओ असुद्धे कहं णु णिफण्णते सोही ? // 1709 // एवं गरेसियचे किं एगट्ठाणगं परिच्चत्तं ? / भण्णति अफासुदव्वे ण चेव गहणं तु साहूणं 1710 तो तेणं साहूणं किं कज्ज होइति तू विमपोण / अण्णंपि य एगकुलेण हु आगरोसव्वदव्याणं 1711 तिकडुयमादीयाणं सव्वदव्वाण संभवेगकुले। ताणि तु गवेसमाणे हाणी सच्चेव णाणादी 1712 Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रुतोपयोगस्य महता [191] तम्हाऽपप्पं परिहर अप्पप्पविवज्जतो विवज्जति हु। अप्पप्पं सातो विवज्जति ण तं च साहेति 1713 / / णिप्फत्ती समणहासमणट्ठा चेव जंतु होह णिप्फन / गहितं होज्ज जयंतेण तत्थ सोही कहं होति ? 1714 सुयणाणपमाणेण उ उवउत्तो उज्जुयं गवेसंतो। सुद्धो जदि वावण्णो खमओ इव सो असढभावो / जो पुण मुक्कधुराओ णिरुज्जमो जदि वि सोउ णावण्णो / तह वि य आवण्णो वि य आहाकम्म परिणओव्व // 1716 // एयस्त सोहणठं अहवा अण्णंणि अण्णए एत्थ / कारगसुत्तं इणमो तमहं वोच्छं समासेणं // 1717 // अंगंमि वि बितियए ततियगमि जे अत्थकुसल जिणदिट्ठा। एतेसु जुत्तज़ोगी विहरतो अहाउयं वुज्झे अंगरगहणापढमं आयारो तस्स बितियसुतखंधे / तस्स विबीयज्झयणे उद्देसे तस्स ततियांम // 1719 // जत्थेयं सुत्तं खलु सेय उवस्से ण होज्ज सुलभो उ। अहवा जितईए त्ती अज्झयणंमी तइज्जंमि // 1720 // तस्स विततिउद्देसे आदीसुत्तंमि जं समक्खायं / जदि संकमो असुद्धो ताहं जयणाए जुत्तो उ 1721 Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 192] पञ्चकल्प-भाष्ये देसूर्णपि हु कोडिं अच्छंतो सो विसुज्झती णियमा / तम्हा विसुद्धभावो सुज्झति णियमा जिणमयंमि // बाहिरकरणे जुत्तो उवओगमहिडिओ सुतधराणं / जं दोस समावण्णो वि णाम जिणवयणतो सुद्धो // दव्वेण य भावेण य सुद्धमसुद्धे य होति चतुभंगो। ततिओ दोसु विसुद्धो चउत्थतो उभयह असुद्धो॥ बितिओ भावविसुद्धो दव्वविसुद्धोय पढमओ होति। अहवा वि दोसकरणं दव्वे भावे य दुविहं तु 1725 भावविसुद्धाराहको दव्वतोसुद्धोय होतऽसुद्धोध। जे जिणदिट्ठा दोसा रागादी तेहिं ण उ लिप्पे 1726 एते सामण्णतरं कीयादी अणुवउत्तो जो गिण्हे / तहाणगावराहे संवढियमोवराहाणं . // 1727 / / आवण्णे सहाणं दिज्जति अह पुण बहुं तु आवण्णो। तहियं किं दायव्वं ? भण्णति इणमो सुणह वोच्छं // तहियं किं वायव्वं ? तबो व छेदो तहेव मूलं वा। कत्थेदं भणितंती भण्णति तु णिसीहणामंमि 1729 वीसतिमे उद्देसे मास चउम्मास तह य छम्मासं। उग्घायमणुग्घातं भणियं सव्वं जहाकमसो।।१७३०॥ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रकल्पः [ 193] एसो तु दवियकप्पो जहक्कम वणिओ समासेणं / एत्तो उ खेत्तकप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं / / 1731 // आदी छक्कणियत्ती तु वण्णिता जंमि जंमि खेत्तमि / एतेसिं सण्णिकासे सालंबो मुणी वसे खेत्ते / / 1732 // छब्धिहकप्पो आदीतहिं जारिसगाणिसेविया खेत्ता। अक्खमअसिवमादीण कप्पती तारिसे वासो 1733 खेमादि अलब्भंतो पडिकुठेहिं पि वसति जयणाए / दुयमादी संजोगा वक्खाणं सण्णिकासस्स।।१७३४॥ अक्खेमे असिमि य असिवं वज्जे वसेज्ज अक्खेमे / महियं उवहिविणासो असिवे पुण जीवणासो तु // 35 एवं ओमादीसुं संजोगा तिगचउक्कमादीया।। वतियव्वं जेसु जंहा तमहं वोच्छं समासेणं // 1736 // कडजोगिसन्निकासे बहुतरगं जत्थुवग्गहं जाणे / थोवतरियं च हाणिं तत्थण्णयरे दुावहकाले // 1737 // एतेमामण्णतरे आलंबणविरहिओ वसे खेत्ते / कालदुयावराहे संवट्टियमोवराहाणं // 1738 // संवादृयावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाणणेमाण चरिमंमि / दा. 1739 Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [194] पञ्चकल्प-भाष्य एसो उ खेत्तकप्पो अहुणा वोच्छामि कालकप्पं तु। जावाउतं तु झीणं अणुपाले ताव सामण्णं // 1740 // गीतसहाओ विहरे संविग्गेहिं व जयणजुत्तो उ। असती विमग्गमाणो खेत्ते काले इमं माणं // 1741 // पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेग वा विजोयणाणं तु। गीतत्थपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1742 // एक व दो व तिणि व उक्कोसं बारसेव वामाई / गीतत्थपादमूलं परिमग्गेज्जा अपग्निंतः // 1743 // पंच व छ सत्त सत्ते अतिरेगं वा विजायणाणं तु / संविग्गपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1744 // एक व दोवतिण्णि व उक्कोसं बारसेव वासाई। संविग्गपादमूलं परिमग्गेज्जा अपरितंतो // 1745 // संविग्गो गीयत्थो भंगचउक्के उ पढममुवसंपा। असती ततियबितिए चउत्थगंणो उ उवसंपे॥१७४६॥ उक्कमओ खलु लहुगो चउरो लहुगा चउत्थभंगंमि / जस्सट्टा उवसंपद तं णत्थि चउत्थभंगंमि // 1747 // एतसिं तु अलंभे एगो थामावहारमकरेंतो। विहरेज्ज गुणसमिद्धो अणिदाणो आरामसहाओ॥४८ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकल्पः [ 195] कालंमि संकिंलिटे छक्कायदयावरो वि संविग्गो। जयजोगीण अलंभे पणगणतरेण संवासो॥१७४९॥ पणगण्णतरं पासत्थमादिभंगे चउत्थए जयणा / जत्थ वसंती ते तू ठाति तहिं वीसु वसहीए // 1750 // तेसि णिवेदेऊणं अह तत्थ ण होज्ज अण्णवसही उ। ण वहेज्ज वा उदंतं वसेज्ज तो एक्कवसहीए 1751 अपरीभोगोगासे तत्थ ठितो तू पुणो वि य जएज्जा। आहारमादिएहिं इमेण विहिणा जहाकमसो॥१७५२।। आहारे उवहिमि य गेलण्णागाढकारणे वा वि / थामावहारविजढो असती जुत्तो ततो गहणं // 1753 आहार उवहिमादी उप्पादे अप्पणा विसुद्धं तु / असती सतलाभस्सा उ जो तेसिं साहुपक्खीओ 54 सोतु कुलाई पुच्छिज्जतीउ दाएति वा वि सो तेसिं / तहवी अलभंतो तू जतती पणहाण जालहुगा 1755 संविग्गपक्खसहिओ ताहे उप्पादएज्ज सुद्धं तु। असती पणहाणीए जइत्तु अप्पे पडिग्गहगं // 1756 // तह असती तन्भायणमाणीयं गेण्हती तहिं चेव / णियगेवि पडिग्गहगे गेण्हति पासत्थपायाउ / दा. // Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 196] पञ्चकल्प-भाष्ये उवहिं पुराणगहितं अप्पपरिभुत्तं तु गेण्हती तेसिं। असती तएतरं पी यदि य गिलाणो भवे तत्थ 1758 तत्य व जइज्ज एवं असती सव्यंधि से करेज्जितरे। अहवाले विगिलाणा हवेज्ज ताहे करे सोवि 1759 एतत्थं हाच्छज्जति गच्छो अण्णोरण जंतु साहज्ज। कीरति ण पमाओ खलु तम्हा गेलन्ने काययो 1760 दीही व भडहतो वा कम्मोदइओ हवेज्ज आनंको / मडहो अदिग्घरोगो तविवरीओ भवे इतरो 1761 कालचउक्के वी खलु कायव्वं होति अप्पमत्तणं / उडुबद्धे वासु य दियराओ चउक्कमेतं तु // 1762 // जिणवयणभासियंमी णिज्जर गेलनकारणे विउला। आतंकपउरताए कतपडिकइया जहण्णेणं // 1763 // जह भमरमहुयरिंगणा णिवयंती कुसुमियंमि वणसंडे इय होति णिवइयव्वं गेलन्ने कइयवजढेणं // 1764 // सयमेव दिट्टपाढी कति पुच्छंन जाणगा वेज्ज / वेज्जाण अट्टगं पण णायव्यमिणं समासेणं // 1765 // संविग्गमसंविग्गे दिहत्थे लिंगि सावए सण्णी। अस्सपिण सपिण इतर परतित्थियकुसलतेइच्छं 1766 Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकल्पः [197] पइदिणमलब्भमाणे वत्थु ठवेयव्वगं भवे किंचि / तत्य तु भणेज्ज कोती सुक्कंतु ठवे दवे दोसा 1767 संसत्तं पिसुक्खं (क) तू अणिद्धं च सुसाहगं / सुसारत्थं तगं होति इतरे दोसा बहू इमे // 1768 // गिद्धे दवे पणीए अपमज्जणयाण तक्कणायरणा / एते दोसा जम्हा तम्हा तु दवं ण ठावेज्जा // 1769 // भण्णति जेणं कज्जं तं ठावेज्जा तहिं तु जयणाए / आयंकविवच्चासो चतुरो लहुगा य गुरुगा य // 1770 / / जं सेवियं तु किंची गेलन्ने तं तु जो तु पउणो वि। आसेवते तु साधू रसगिद्धो सेलओ चेव // 1771 // तंबोलपत्तणातेण मा हु सेसा वि तू विणासिज्जा / णिज्जूहंती तं तू मा अण्णो वी तहा कुज्जा / दा. // कालकप्पाहिगारे तू पस्थिए होति सोवि तस्सरिसो। कालविकप्पणो वी असिवादीओ मुणेयव्वो // 1773 // असिवे ओमोदरिए रायदुट्टे पवादिदुहे वा। भागाढे अण्णलिंगे कालक्खेवो व गहणं वा // 1774 असिवे जदि जतिपंता लिंगविवेगेण तक्खणं गच्छे। सव्वत्थ वा वि असिवे कालक्खेवो विवेगेणं // 1775 / / Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [198] पञ्चकल्प-भाष्ये ओमेऽवेवं कुन्जा पवादिदुटेण बुद्धिणा णातं / तस्थ वि य अण्णलिंगं गिहिलिंगंवा वि भासेजा१७७६ एयं चिय आगाढं अहवा देहस्स जा तु वावत्ती। णिव्विसयाणत्ताण व भत्तस्त णिसेहणा चेव 1777 एतेसामण्णतरं अणगाढालंबणो णिसेवेजा। तट्ठाणतावराहे संवट्टियमोवराहाणं // 1778 // संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं च / आयारपकप्पे जं पमाणणिम्माण चरिमंमि // 1779 // एसो तु कालकप्पो एत्तो वोच्छामि दंसणे कप्पं / सद्दहणलक्खणं तू जिणोवदिढेसु भावेसु // 1780 // उवरतछक्कायस्स वि आयरियपरंपरागते अत्थे। आगाढकारणेसुं सद्दहसु णिसेवणं तत्थ // 1781 // छक्काए सद्दहिउं इणमण्ण पुणो वि सद्दहेयव्वं / आगाढमणागाढे आयरियव्वं तु जं तत्थ // 1782 // दव्वे खेत्ते काले भावे पुरिसे तिगिच्छ असहाए / एतेहिं कारणेहिं सत्तविहं होति आगाढं // 1783 // एगादीया वुड्ढी एगुत्तरिया य होति दव्वाणं। ओमत्थगपरिहाणी दव्वागाढं वियाणाहि // 1784 // Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दर्शनकल्पः [199] जपति पुणो वैजो सचित्तं दुल्लभं व दव्वं वा। अप्पडिहणंतो अच्छति उद्दिसिउं जाव सो ठाति // जाह उद्दिट्टहाणी ताहे ओमत्थहाणिए भणति / अम्हे करमो जोग्गं अलंभ एयस्स किं कुणिमो 1786 एवं तु हावयंता खेत्तं कालं च भावमासज्ज / ता जुहंती जाव तु लंभे जसिं तु दवाणं // 1787 // अह पुण लभेज एवं अवस्लमतेहिं कज्ज दव्वेहि। एतं दव्वागाढं तहिं जए पणगहाणीए // 1788 // खेत्तागाढं इणमो असती खेत्ताण मासजोग्गाणं / असिवं वा अण्णत्था णदीय वा होज्ज रुद्धा तु 1789 आयरियादि अगारग अहवा अण्णत्थ सावता होज्ज। अंतर जहिं च गम्मति वाला तह तेणखुभियं वा / / एतेहिं कारणेहिं खेत्तागादंमि एरिसे पत्ते / अच्छति असढभावा एगक्खेत्ते वि जयणाए 1791 कालस्स वा वि असती वासावास वियारणा णत्थि। एतेहिं कारणेहिं कालागाढं वियाणाहि // 1792 / / वासा जोग्गं खेत्तं पडिलेहेतुं तु कालो ण पहुत्तो। वचंताण व अंतर वासं तू णिवडितुं पयत्तं // 1793 // Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [200] पञ्चकल्प-भाष्ये डहरं वंतरखेत्तं ताहे तं चेव पुवखेत्तं तु। .. गंतुं वसती वासं समतीते वीतदसरातं // 1794 // अतिउकडं व दुक्खं अप्पा वा वदणा झवे आउं / एतेहिं कारणेहिं भावागाढं वियाणाहि 1795 // अच्चुक्कडसूलादी अहिडझाइ तु वेदणा अप्पा / तत्थऽग्गितावणादी देहच्छेदोवगाढादी // 1796 // जंमि विणढे गच्छस्स विणासो नह य णाणचरणाणं एतेहिं कारणेहिं पुरिसागाढं वियाणाहि 1797 // तस्स त सुद्धालंभे जावज्जीवं पि होतऽसुद्धणं / कायव्वं तू णियमा पुरिसागादं भवे एतं // 1798 // जेण कुलं आयत्तं तं पुरिसं आयरेण रक्खेज्जा। ण हु तुंबंमि विणढे अरया साधारगा होति // 1799 // संजोगदिट्ठपाढी फासुग उवदेसणासु जो कुसलो। एतारिसस्स असती णायव्व तिगिच्छमागाढं 1800 मजण तूलि विभासा असणे पाउरणए य पाणे य। केवडियाण पयाणे अण्णह चित्तो गिलाणो वा 1801 होज व सहायरहितो अव्वत्ता वा वि अहव असमत्था। एय सहायागाढं तम्हा तु मुणी ण विहरेजा / / 1802 // Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रकल्पः [ 201] जावंति पवयणंमी पडिसेवा मूलउत्तरगुणेसु। ता सत्तसु सुद्धेसू सुद्धमसुद्धा असुद्धेसु // 1803 // आगाढमणागाढे एवं जं जत्थ होति करणिज / तं तह सद्दहमाणे दंसणकप्पो हवति एसो // 1804 // एसो दसणकप्पो अधुणा सुतकप्पमो तु वोच्छामि / जे तस्स होति विधयो अहिज्जए जेण वा विधिणा // दुविहंमि आगमंमी सुत्ते अत्थे य जे जहिं भावा / सुतमसुत्तकडाणं पवित्थरं ताण अत्थणं // 1806 // वित्थरो णाम सुत्तमि गहिए अत्थो तु दिज्जती। मुत्ते अहिज्जियव्वे तु मज्जादा तु इमा भवे 1807 पडिलहण काऊणं सज्झायं पट्टवेतु वट्ठादी। आयरियादिणिसेज्जं करेति पच्छा य सज्झायं 1808 पोरुसि सातं झायं(काउं)चरिमाए पढियपत्तपडिलेहे। ताहे तु अत्थपोरुसि इमिणा विहिणा करेंती तु 1809 काउस्सग्गे वक्खवणा य विकहा विसोत्तिया पयतो। बन्भुट्ठाणे वा कोलणा य अक्खेव साहरणा 1810 अण्णो विय सुतकप्पो सोयव्वं मंडलीय रायणिए / अणुओगधम्मताए कितिकम्मं होति कायव्वं 1811 Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 202] पञ्चकल्प-भाष्ये वक्खातो सुतकप्पो एत्तो वोच्छामि अज्झयणकप्पं / दायव्व जेण विहिणा जग्गुणजुत्तस्स वा तं तु 1812 जोए परियाए अणरिहे य अरहे य विणयपडिवण्णे। मुत्तत्थतदुभएसं जे अज्झयणेसु अणुभागा 1813 जस्सागाढो जोगो तं आगाढेण चेव दायव्वं / अणगाढे अणगाढं एत्तों वोच्छामि परियागं // 1814 // जं संखपरीमाणं भणितं सुत्तंमि तिवरिसादीयं / तं तेणं माणणं उद्दिसियव्वं भवे सुत्तं // 1815 // खुड्डियाविमाणपविभत्तिमादिदीहे विय तू परियाए। ण वि दिज्जती अणरिहे अणरिहे तू इमे होंति 1816 तितिणिए चलचित्ते गाणंगणिए य दुब्बलचरित्ते। आयरियपारिभासी वामाव? य पिसुण य / / 1817 // आदीअदिट्ठभावे अकडसामायारिए तरुणधम्मे। गव्वित पइण्ण गिण्हइ छेदसुते वज्जिते अत्थं 1818 डहरो अकुलीणो चिय दुम्मेहो दमगमंदबुद्धि त्ति / अविअप्पलाभलद्धी सीसो परिभवइ आयरिए / सोवि य सीसो दुविहो पव्वावियतो य सिक्खओचेव सो सिक्खतो वि तिविहो सुत्ते अत्थे तदुभए य / / Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारित्रकल्पः [203] एतोसि अणरिहाणं जे पडिवावा तु होति सव्वोसि / परिणामगा य जे तू ते अरिहा होति णायव्वा 1821 एतारिसे विणीते सुत्ते अत्थे य जत्तिया भेदा / अज्झयणुद्देसेसु य ते सव्वे असेसिए देज्जा // 1822 // एसज्झयणे कप्पो एत्तो वोच्छं चरित्तकप्पं तु / जे तु विहाणचरित्ते वतेसु गुरुलाघवं चेव // 1823 // पंचविहंमि चरित्तंमि वण्णिता जे जहिं अणूभावा। एसो चरित्तकप्पो जहक्कम होति विण्णेओ // 1824 // सामाइयादि पंचह अणुभागा तेसि जत्तिया भेदा / वतपंचगंमि कतरं भारियरं लहुतरं कं वा // 1825 / / सव्वगुरुगी अहिंसा तीसे सारक्खणड सेसाणि / बंभवयं च तत्तों तत्तो अदत्तं मुसं तत्तो // 1826 // सबलहुओ परिग्गहो सको वत्थापिरागणिग्गहणं / लोगे पुण गुरुगतरो सव्वेसि भवे मुसावादो॥१८२७॥ काऊण वि संवरणं मुसवज्जाणं तु सयभंगे वि / ण भवति पदण्णलोवो तेण मुसं भारितं लोए 1828 जह तेणगा उकेती अचयंता मुसितु भिच्छुगविहारं। णियडीयाति धम्म सुणेमु अह भिच्छुगे ते उ 1829 Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [284] पञ्चकल्प-भाष्ये सोउं मिच्छुचतारा विणयं काऊण भिच्छुए आह / अज्जप्पमिति अम्हं बुद्धो सत्था वते देह 1830 // मुसवज्जा चाएमो धारेमो गेण्हिडं वते तेणा। वीसत्यभिच्छुगाणं मुसितु विहारं समाढत्त! 1831 भिच्छु लवंति तेण घेत्तुं सिक्खाश्याणि मा अज्जो। भंजह लवंति तेणाण हु पचवाय मुस अम्हे 1832 गुरुलाघरवक्खाणं एवं तू सोहिकारणाभिहितं / पत्तंमि कारणंमि उ लहुयतरं पुव्व सेवेज्ज!॥१८३३॥ काणि पुण कारणाणि जेसु तु पत्तेसु जयणपडिलेवा। भण्णइ माणि इथाई कित्त हं म समासणं // 1834 // गच्छाणुकंपयाए आयरियगिलाणआवतीए य ! पडिसेवा खलु भणिता एते खलु कारणा त उ 1835 बोहियतेणादीसुं गच्छस्सट्टा णिसेवणा होति। आयरियाण व अट्ठा विभासवित्थारओ एत्थं 1836 णाउं तुंबविणासं अरगा साहारगा ण एवं तु। आयरियस्स विणासे गच्छविणासो धुवं एवं 1837 आगाढे गेलन्ने कंदाति विभास आवती चउहा। दव्वावति खेत्तावति काले तह भावओ चेव 1838 Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यतनाया महत्त्वम् [205] एतेहिं कारणेहिं अप्पत्तेहिं तु जो तु सेवेज्जा। सुहसीलयाए जो उ आवज्जति ण वि य सुज्झति हु॥ जो पुण पत्ते काराण जयणा आसेवणं करेज्जाहि / तस्स चरित्तविसुद्धीजह भणति जिणो हितं इणमो।। गच्छाणुकंपयाए आयरियांगलाण आवदि विदिण्णे / जत्थेव य पडिसेही सचरित्तासेवणा तत्थ // 1841 // पुरिमस्स पच्छिमस्स य मज्झिमगाणं तु जिणवरिंदाणं। आलेवणा य सचरित्तया य अत्थेण अणुगम्मो 1842 वयभंग पि करेंतो जह सचरित्ती कहं तु अत्थणं / अणुगंतव्वं एयं भण्णति आगाढकारणतो // 1843 // जे के अवराहपदा किण्हा सुका भवे पवयणमि / णिघरिसपरिच्छणाए दुगठाणेणं मुणेयव्वा // 1844 // पडिसेहोऽणुण्णा वा पायच्छित्ते य ओह णिच्छइए। ओहेण उ सठाणं अत्थविरेगेण वोगडियं // 1845 // हिंसादवराहपदा किण्हे अणुघाति मुकिला लहुगा। णिघरिसपरिच्छणा खलु जह कणगं ताव णिहसेसु॥ एवं परिच्छिऊणं आयवयं गच्छमावती जं तु / णित्यारयमि पत्ते जयणाए णिसेव सचरित्ती 1847 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [206] पञ्चकल्प-भाष्ये दुट्ठाणा मूलूत्तर दप्पे अजए य होति पडिसहो। कप्पे जयणाणुत्ता जो पुण णिक्कारणा सेवे / / 1848 पायच्छित्तं पावति तं दुविहं ओहियं च णेच्छइयं / ओहं तु जमावणं तं दिज्जति तंमि सहाणं // 1849 // णिच्छइयं अत्थेणं वीमंसित्ता उ दिज्जती जंतु। एयं अत्थविरेगं वोकडियं छव्विहं इणमो // 1850 // कस्स कहं कहिं तं वा कदिया णु कम्मि केचिरं होति। छट्ठाणपदविभत्तं अत्थपदं होति वोगडियं // 1851 // कस्सति गीतागीतस्स वा वि कह जयण अजयणाए वा कहिं अद्धाण वसंते कदियाणु सुभिक्खदुभिक्खे // अहवा दितराओ वा कम्हि त्ती कारणे व इतरे वा। कम्हि व पुरिसज्जाते आयरियादीण अण्णतरे 1853 केचिर कतिवारे खलु केवहकालं व सेवियं होज्जा। एवं छट्ठाण एवं सुद्धासुद्धे असुद्धितरे // 1854 // संघयणधितिजुताणं साहूण अरहं तु दिज्जए तत्थ / असह अथिरादीणं दिज्जदि चाएतिजं वोढुं // 1855 // सोतूण कप्पियपदं करेति आलंवणं मतिविहणो / रहस्संच अणरहस्सं करेति मतिसूयओ पुरिको 1856. Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपधिकल्पः [207] माइट्ठाणविमुक्को अकप्पियं जो तु सेवते भिक्खू। तं तस्स कप्पितपदं मायासहिए चरण भेदो // 1857 / / एसो चरित्तकप्पो एत्तो वोच्छामि उपहिकप्पं तु। सो पुण पुव्वाभिहितो ओहुवग्गह जुत्तओ चेव // जो तु विसेसो एत्थं तं णवरि इहं अहं तु वक्खामि / सुद्धग्गमादीएहिं धारेयव्यो जहाकमसो // 1859 / / फासुयमफासुए यावि जाणए या अजाणए / ओहोवहुवग्गहिते धारणा कस्स केच्चिरं // 1860 // जदि फासुवही कारणि गहिओ तू जाणएण तो धारे। जो जुण्णो अजुण्णो विहु अट्ठपकुव्वे छुब्भति हु॥ फासुगो अजाणएणं कारणगहिओ घरेज्जते ताव / जावण्णो उप्पण्णो ताहे तु विर्गिचए तं तु // 1862 // अह पुण अफासुओतू जाणगगहिओ तुकारणे होजा। जदि गीतत्था सव्वे तो धारेती तुजा जिण्णा 1863 अग्गीतविमिस्सेहिं अणुप्पण्णमि तं विगिचंति / अह पुण अफासुओ तू कारणगहितो अगीतेणं 1864 उप्पण्णे उप्पण्णे अण्णमि विगिंचती तु सो ताहे। एवं चतुभंगेणं धारणता वा परिहवणा // 1865 // Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 208] पञ्चकल्प-भाष्ये सो पुण दुविहो उवही वत्थं पातं च होति बोधव्वं / वत्थं तु बहुविहाणं पाता पुण दो अणुण्णाला 1866 चोदेती पंचण्हं किण्ण वि एगो पडिग्गहो होति / तो दो एकेकस्स तु भण्णति ण पहुप्पए एवं // 1867 // तो चउतिण्ह दुवण्हं अहवा एके कनस्स एके। भण्णति पाहुणगादिसु ताहे किं काहितेकेणं ? 1868 अप्पा परो पवयणं जीवणिकाया य चत्त होतेवं / वारत्तगादटुंनो तम्हा दो दो तु घेत्तव्वा // 1869 // भणति जदेवं तेणं जिणकप्पी एगपातओ कम्हा ? / भण्णति कारणमिणमो सुणसू जेणेगपादो तु 1870 संगहियकुच्छि जसपेहिय अप्पाहारे चियत्तदेहे य / णासपणेऽणावाए णातिनिरुद्ध ठविय भाणं // 1871 // तिवली अभिण्णवच्चो कंकग्गहणी य संगहियकुच्छी जोयणमांवे गच्छेज्जा सण्णाडो थंडिलस्लऽसनी॥ जसकारि पवयणस्सा जेण अजसो होति तं तु ण करेति / परमहियएसणाहिय ण थावि सुल भी से आहारो : 1873 // जदि विष हुकुच्छिपूरं ल भति कदानी बहुस्स कालस्त पि य से विद्धंसति तत्तकडिल्ले व जह बिंदु 1874 Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिनकल्पे एकपात्रस्य कारणम् [209 ] तेणप्पं वच्चं से ता गच्छति जाव सारियं णत्थि / ण य बाहा उप्पज्जति चत्तं च सरीरगं तेणं 1872 णासगणं जाति धंडिल्लं णावात णियमेण तु / विच्छिण्णं दूरमोगाढं सव्वदोस विवज्जियं // 1876 / / णिक्खिप्पिपडिग्गहगं वोसिरितुं णेयसो तु णिल्लेवे / एतेण कारणेणं जिणकप्पिउ एगपातो तु // 1877 // पातदुगस्स त गहणे कारणमेतं समासतोऽभिहितं / अहुणा तू चोदयंती किं घेप्पति वत्थमतिरेगं? 1878 किं तीहिं ण पहुप्पेज्जा एक्कणाछादणा पकप्पंमि ? / गच्छ सकारणे त्ति य वोच्छेदकरो पसंगस्स // 1879 // चोदेती किं तिण्हं गहणं ऊणेहिं जं ण संथरति / भणती एकेणावि हुसंथरति पुणाह तो सूरी // 1880 // छादणतो णासणतो ऊणेण कता भवे पकप्पस्त / मा हु पसंगविवड्ढी ऊणऽहितं तेण वारेति // 1881 // गच्छो सकारणात्ती गिलाण बुड्ढे य बालमस हादी। तेसहा अतिरेगं घेप्पति मा हाज दुलभंति // 1882 // सीतापितावियाणं माहू णाणादियाण परिहाणी। होज्जाहि तेण गेण्हति संथरती जावदीएणं // 1883 // 14 Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [210] पञ्चकल्प-भाष्ये जदि एयविप्परमा तवणि मगुणा मवे गिरवसेसा। आहारमादियाणं को णाम परिग्गहंकुज्जा // 1884 // पंचमवयोवधातो चोदेती वत्थमादिगहणनि / एगव्यतोवघार घातो पंचण्ह दिनलाणं .1885 // एवं तु चोदियंभी बति गुरू ण उ परिगहो सोतु। संजमगुणावकारा उवघाति परिग्गहो होनि // 1886 // जमि परिग्गहियंमी तसथावरघातणा पत्तंनि। गहणे गहिते धरणे सोणाम परिग्गहो होति 1887 गहणे पुरकम्मादी गहिते पुण होनि पच्छकम्मादी। धरणं अप्पडिलेहा कीरति मुच्छा त जा तत्थ 1888 जमि परिग्गहियंमी तसथावरसंजमा पवत्तंनि / गहणे गहिते धरणे सो ऊ ण परिग्गहो होति 1889 रागादिविरहिओ तू आहारादीण जं कुणति भोग। ण हु सो परिग्गहो तू तो किं गुरुमादिणं पूया 1890 कीरति आहारादीहिं ? भण्णति मणितातु णियमसो सा तु। तित्थंकरहिं चेव तु तेण उ सा कीरए तेसिं / तो किं पूयाहेतुं पवत्तथंतीह नित्थगरनित्यं ? / अह कम्मक्खयहेतुं पुटो एवं इमं आह // 1892 // Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्भोगकल्पः [211] आहारउवहिपूजादिकारणा ण तु परूवितं तित्थं / णाणचरणाण अट्ठा नित्यं देसिति तित्थकरा 1893 तित्थं चउहा संघो तस्स य देसेंति णाणमादीणि। तित्वमरणामगोत्तम्स खयट्ठा अवि ग सामव्या 1894 जाण चरण गुणकारगाणे आहार उहिमादीण / एतेण अणुण्णाना तहिं ठिताणं तु तो पूजा // 1895 // एसो उवहीकप्पो वणियओ वित्थरं पभोत्तणं / संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं // 1896 / / पुठवभणितो विभागो संभोगविहीय दोहिं ठाणेहिं / दोसु वि पसंगदोसा सेसे अतिरेगपण्णवए // 1897 / / दसविह सत्तविहेहिं पुव्वुत्तेतेहिं दोहिं ठाणेहिं / दोसु वि पसंगदोसा ण मुंजए अण्णसंभोई॥१८९८॥ जम्हा तु ण णज्जंती उग्गममादी उ जे भवे दोसा। एतेण अपरिभोगो अमणुण्णे होति बोधव्वो 1899 जं तत्थ ण पत्तं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरेगं / जे तु गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं // 1900 // अणुकंपा संगहे चेव लाभालाभऽवि दाहया / दावहवे य गेलन्ने कंतारे अंचिए गुरू // 1901 // Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [212] पञ्चकल्प-भाष्ये बालादणुकंपणट्ठा असहू अतरंत संगरट्ठाए। केति सलद्धि अलद्धी तेसि साहिल्लयट्ठाए // 1902 // उप्पन्ने अहिगरणे काहिंति विउसणं तु अविदाही। ण च गच्छे बहिभावो उप्परओऽहंति परिभूतो 1903 मझं अणेकभाणो त्ति काउ मा एस पेच्छती पुस्विं / जत्थ उकुले महल्ले लभनि भिक्खा महल्लीओ 1904 सम्हा उ दवदवस्सा पुचि गच्छामहं तु तंगहं। एते उ परिहरेत्ता दोसा हु भवंति संभोगे // 1905 // गेलण्णेण व एतस्स हिंडितुं आणियं तु अण्णेहि / तो खाइ यऽसहुवग्गो कंतारे आणितसहूहिं // 1906 // एमेव अंचिए वी गुरू वि गेण्हति तु अण्णमण्णस्स। एको पुण परितम्मति बाहिरभावं वि गच्छेज्जा // एते उ एवमादी संभोगंमि उ गुणा भवंती उ। तम्हा खलु कायव्वो संभोगो गुणण्णिएण समं // एताई ठाणाई जो तु सहू होतओ पमादेति अण्णे आणेति त्ती घेत्तृणं जं व तं केती // 1909 // सेसाणुपालणट्ठा तो तं उम्मंडली करेंती उ। जदि आउदृति जुज्जति ताहे मेलिज्जति पुणो वि 1910 Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजदृष्टान्तः [213] अह पुण चोइज्जंतो बहुसो गाउट्टए उ तं दोसं / सति लाभलद्धिजुत्तो णिज्जूहंतीउ तं ताहे // 1911 // अह मंदलाभलद्धी ग य जोगं जुज्जती अहत्थामं / सो हि खरंटेऊणं मेलिज्जइ मंडलीए तु // 1912 // किं कारण णिज्जूहणा जं गुणुत्तरधराणं। ण करेती वच्छल्लं तेण उणिज्जूहणा तस्स // 1913 / / एवं आयरिएण उ जोगो सव्वस्स चेव गच्छस्स / वोढव्चो दिर्सेतो गएण इत्थं इमो होति // 1914 // जह गयकुलसंभूओ गिरिकंदरविसमकडगदुग्गेसु। परिवहति अपरितंतोणियगसरीरुग्गते दंते // 1915 // तह पवयणभत्तिगओ साहम्मियवच्छलो असढभावो परिवहति अपरितंतो खेत्तविसमकालदुग्गनु 1916 जदि एक्कभाणजिमिता गिहिणी वि य दीहमेत्तिया होति / जिणवयण बहिन्भूता धम्म पुण्णं अयाणंता / / किं पुण जगजीवसुहावहण संभुंजिऊण समणेणं / सका हु एकमेको णीयओ विव रक्खितुं देहो ? 1918 केरिसयं संभुंजे करिसयं वा वि तू ण संभुंजे। भन्नइ उग्गमसुद्धं भुंजे असुद्धं ण भुंजेज्जा // 1919 / / Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [214] पञ्चकल्प-भाष्ये चोदे आहारादी उग्गममादी असुद्ध मा भुजे। जं पुण अपेहणादी कालादीहिं उवहयं तु // 1920 // तं पुण सुद्धोवहिणा मा समयं एहिं तु बंधेजा। संघासणं तस्स उ उवघातो मा हु सुद्धस्स // 1921 // भण्णति सुद्धस्स जती संघासेणं तु होति उवघातो। सुद्धण असुद्धस्स वि पावति सुद्धी तवमएणं // 1922 // अह उवघातो त्ति मतं संफासेण उमना विसोही ते। णणु ते इच्छामेत्तं ण य इच्छामेत्तओ सिद्धी 1923 उवघाती विसोही वा णन्थिअ जीवस्स भावतो एसो। उवधानो चिसोही वा परिणामवसेण जीवस्स 1924 सस्सेव पसत्थरस उ परिणामस्स अह रक्खणट्ठाए। कीरति संभोगविही गच्छपमात्तण मा गच्छे 1925 संभोगकप्पदारं एवं खलु वाणितं मए एवं / आलोषणकप्पविहिं एत्तो वोच्छं समासेणं // 1926 // दुविहपडिसेवणाए दोठाण दुयागताण ठाणाणं / जस्से व तु अहिमुहतो आलोएन्जा तदट्ठाए // 1927 // दप्पिया कप्पिया चेव दुविहा पडिसेवणा। एप्पियाए उ दो ठाणा मूले तह उत्तरे चेव // 1928 // Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _आलोचनकल्पनिय [215] कप्पियाए वि एमेव दो ठाणा उ वियाहिता / जयणा अजयणा चेव एकेका य वियाहिता // 1929 // जस्से व अभिमुहोत्ती जंचेव य कातु विहरते पुरतो। आयरिय उवज्झाया तस्सेव उ तं तु आलोए 1930 // अहवा जं जह सेवित मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य / पाणतिवातादीसु य वतेसु तं तं तहालोए // 1931 // अहवा मोक्खाभिमुहो मोक्खट्टाए तु अट्टकम्माणं / अणलोइए ण मुंचति कम्हा इणमो णिसामेहि 1932 जाँद विय तवगुणजुत्तो होति मणुस्सो अणुद्धरिय सल्लो / ण करेति दुक्खमोक्खं सल्लुद्धरणे पि जति यव्वं / / 1933 // सं पुण केरिसगस्स तु वियडेयत्वं तु ? जाणतो जोत / अविजाणते ण कप्पति अजाणतो जो अगीयत्थो / / पायच्छित्तमयाणंतो ठाणे ठाणे अहाविहिं। आलोयणाए उवसंपयाए ण हु होति पाउग्गो 1935 किं कारणं ण याणति सोहिं साहुस्स सोहिकामस्स / ठाणे ठाणे पुढवादिएसु मूलुत्तरे वावि // 1936 // पाणतिवातादीसु य कारणणिकारणे य जयणाए / मालोयण गुणदोसदरिसणेण हु होति पाउग्गो 1937 Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [216] पञ्चकल्प-भाष्ये गुण अणिमूहियमादी दोसा पुण गृहणादीया होति / एते ण याणे अगीतो तम्हा उ इमस्स णालोए 1938 पायच्छित्तं वियाणंतो ठाणे ठाणे जहाविहिं / आलोयणाए उवसंपयाए सा होति पाउग्गो / / 1939 / / पडिसेवणातियारे दुविहे काले पबंधवोच्छेदो / एकेक छक्कएणं आलोयण मा पडिच्छााह ..1940 // पडि सेवणाऽतियारा दुविहा मूलगुण उत्तरगुणे य। पडि सेवणकालो वि य दुविहो उडुबद्ध वास य 1941 अवोच्छिण्णपबंध तबिवरीयं तु होनि वच्छिण्णं / वयछककायछक्काकप्पादी छक्कमेककं // 1942 // अप्पादी छक्कापिणं अकप्प गिहिभायणं च पालयंको / तत्तो य गिहिणिसेज्जा होति सिणाणं च सोभा य // 1943 // एतेसिं छक्कगाणं एककं जंतु होति आवण्णो / तं तं आलोए तहा पच्छित या वि आयरिआ 1944 आलोयणववहारो संवासि पवासिया उ अवराहा / संवासिया उ गच्छे पवासिया कारणगतस्त 1945 अहवा जा अणवट्ठो ता संवासिं तु होति अवराहा। पारंची पावासी पवसति गच्छा उ जेणं तु // 1946 // Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसम्पदाकल्पः [27] पंचविहो सज्झाओ दाणग्गहणंमि भयिओ संवासी। पावासिए ण दिज्जति ण य गहणं होति कायव्वं // आवण्णगपरिहारि य अणवढे चेव दोण्हऽवेतेसिं / ण वि दिज्जति ण वि घेप्पति सेसाणं दाण गहणं च आलोअणाए कप्पो एसो भणिओ मए समासेणं / उवसंपताए कप्पं एत्तोउ समासओ वोच्छं / / 1949 // दुविहंमि आगमंमि उ परूवणा चेव आथरणता य / पण्णवणगहण अणुपालणाए उवसंपदा होति 1950 आगमहेउं उवसंपदा उ स य आगमो भवे दुविही। सुत्तं अत्यो य तहा पारगते तत्थ उपसंपा // 1951 // दो आयरिया पारग कत्थउ उवसंपदा तहिं कुज्जा ? जो णिउणतरं भासति अह णिउणं दो वि भासंति // सामायारी पडिलेहणादि जो तत्थ आगरावेति / दोसु वि समुज्जतेसू जो तहियं धम्मकहिओ उ 1953 ता विय हु सिक्खियव्वा सज्झायस्सेव जेण तं अंगं। दोसु वि धम्मकहीसुंजा तहियं गाहगो होति 1954 गाहणसत्तीजुत्तेसु दोसु वी कत्थ होइ उवसंपा। अतरंत असहुवंग्गं विसंसओजो उ पालति॥१९५५॥ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [218] पञ्चकल्प-भाष्ये एतेसु विमिट्टनरो अण्णाहितोऽरिहाति उवसंपे। इतरो होनि अजोग्गो जदि विय सा हानि गीयन्यो। जो उ असंविग्गं पुण पण्णवणाकोविदो त्ति काऊणं / उवसंपन्जति बालो नस्ल इम होति दोसा उ 1957 सीहमुहं वग्घमुहं उयहिं च पलित्तगं च जो पविसे। असिवं आमोदरितं धुवं सि अप्पा परिचत्तो 1958 तह चरणकरणहीण पासत्थे जाउ पविसते भिक्खू / जयमाणे उ पजहिउं सो ठाणे परिचयति तिणि॥ एमेव अहाछंदे कुसील ओसन्नमेव संसत्ते। जं निणि परिचयंती णाणं हहदंसण चरित्तं 1960 कं पुण उपसंपज्जे ? तत्थ इमे गच्छ होति चत्तारि / एगो देति लएइ य बितिओ देतीण गेण्हति तु 1961 सतिओण देति गेण्हनि ण यदेतिण गेण्हतीचउत्योउ पढमे उपसंपज्जइ सेसा उ त आ णऽणुण्णाया 1962 बितिए णिज्जरलाभं णलभति गेलण्णभादिकज्जेसु। सतिए गिलाण कारण अवसट्टे मरणदोसा // 1963 // दोणि विचउत्थे दोसा होति अवत्थू यनेण तो तम्हा। पढमंमि जे गुणा खलु हवंति ते मे णिसामह // 1964 // Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपसम्पदाकल्पः [29] भत्तोवहिसयणासण दाणग्गहणे य एक्कमेकस्स / हट्ठगिलाणे कनकारिए व अणतिकमो जोऽत्व 1965 जो पुण ते दूसेंतो करेति उवसंपदं असुद्धसु। तिठाणगाभिलासी हवह तु वोसट्ठतिहाणो // 1966 // किंण ठिओऽसि नहिं चिय? पुट्ठो जति तस्सिमे दोसा अप्पियसज्झायादी णत्थिय ते यावि जति तत्स१९६७ जं दोसं आभासति तं दोसं अप्पणा समावज्जे / जो वि पडिच्छति तं तू सोवियतं चेव आवज्जे॥ गच्छस्स जोवसंपे असुद्धमावज्जती तगं सोतुं / जो पुण पडिच्छमाणो अविणीयादीहिं दोसेहिं 1969 दूसे उंण पडिच्छति ण संति ते यावि तस्स जदि दोसा ताहे जं सो वश्तीं तं तं दोसं अप्पणा वजे // 1970 // जंच असुद्ध पडिच्छति रागेणं तस्स जे भवे दोसा। बोसहतिगट्ठाणादि ते तु सो अप्पणा पावे // 1971 // भरुहा अणरुहा उवसंपदाय भणितातु होति दोऽवेते अयमण्णा तु अणरिहो सूरी उवसंपदाते तु 1972 आहारे उवहिं मि य पगासणा होति अणरिहमसड्ढे / एगंतणिज्जरही संविग्गजणमि उद्देसो // 1973 // Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [220] पञ्चकल्प-भाष्ये आहार उवहिसेज्जा लभिहामी तेण संगहं कुणती। होहामि वा पगासो लोए ण ऊ णिज्जरहाए : 1974 // एए होंति अणरिहा तितिणिचलचित्तमादिणी जे य अहवा विमंदसड्ढे आकड्ढविकढिए वा वि 1975 जो पुण इमेहिं पंचहि ठाणेहिं वादे सो भवे अरुहो। संगहुधग्गहणिज्जरसुनपज्जवजातऽवोच्छिती // तस्स पुण णिज्जरहा वाएंतस्स णियमेण सूरिस्स। आहारोवहिपूजा पगासणाचेव भवतीतु / / 1977 // विगएणाहारादी उकोसा तम्स होति दायव्वा / काले कालणुरूवाजे बाधि सभांवअणुरूवा // 1978 // उच्छूढसरीरो तु जइ वि य सो मंडलीय भुंजति तु। तह विय मत्तगगहणं सीसपडिच्छेहि काययं 1979 एस अणुधम्नता हू जह गोलमसामि सामिणी गण्हे। हिंडंतस्स पुण इमं तस्ल उ दोसा भवंती उ॥१९८०॥ वाते पित्ते गण लोए कायकिलेसे अचिंतता। मेढी अकारए बाले गणचिंता ट्ठी वादिणो 1981 एतेर्सि दाशण वक्खाणुवरि वितिज्जउद्दे से। ववहारे भणिहिती वित्थरतो इह समासेणं 1982 Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उद्देशकल्पः [221) भत्तीए तु गुणाणं पगासणा तस्स तेहिं कायव्वा / एतारिस महप्पा उज्जुत्तो अणज्जकालीओ 1983 थामावहारविजढो तवसंजमसुटिओ जियकसाओ। बहुसुन बहुआगमिओ भत्तीए पगासए एवं ।दा. // एसुवसंपदकप्पो वोच्छं उद्देसकप्पमहुणा उ / उदिसण बायण त्ति य पाढणया चव एगट्ठा / / 1985 // सुत्तत्थतदुभयाई पवायते ताव जाव संधाणं / बहुपञ्चवाययाए विजढे भजियं तु संधाणं // 1986 // संधाणमंतगमणं असिवादी पच्चवायणेगविहा। विजढेत्ती णिक्खित्तं जोगे भइओ पुणुक्खेवो 1987 जति कारणेण केणति णिक्खित्तोतोसि उक्खिव पुणो वि। अह दप्पा णिस्वित्तो तो ण उ उक्खिप्पती . भुज्जो // 1988 // उद्दिलुमि य अंगे सुतखंधमि य तहेव अज्झयणे / आसज्ज पुरिस कारण लिट्ठाण होति पडिहो 1989 अंगादी उद्दिष्टे पुरिसं दळूण अपरिणामादी / अच्छति वसदृरादिहि अविणीयादी व णाऊणं 1990 ताहे णिक्खिप्पति तू तिहाणे जंतु भणित पडिसहो। तं सुत्तमत्थतदुभय एतेसिं तिणि पडिसेहो 1991 Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [222] पञ्चकल्प-भाष्ये एजुद्देसणकप्पो अहुणा वोच्छं अणुकतु / कम्ही काले गहणं बस्थादीणं अणुण्णा !!1992 / / वत्थं पादरमहणे वासायासेसु जिग्गमो सरदे / तिगपणासत्तादुगाउयमि अप्पोदगं जागे // 1993 // वत्यादीण गहणं णाणुण्णातं तु हाति वा सामु। वासादीय हरेणं दुमसे अण्णे उ गण्हति // 1994 // तोलें पुण णेंनाणं सरदे जदि दाह गाउयागं तो। दगसंघजहण्णेण तिन्नि पंचव मज्झिमगा // 1995 // सतंब उ उक्कोसा गिम्हंमी तिन्नि पंच हेमंते / वालासु य सत्त भवे परेण खेत्तं गणुग्णानं // 1996 अप्पोदगत्ति मग्गा जं तं रीयासु वणितं पुविं। तं अद्धद्धे जोयणे दगघट्टा जाव सत्तेव // 1997 // वत्थं पातग्गहणे णवसंथरणमि पढमठाणंमि / एत्तो वतिक्कमम्मि तु सट्टाणासेवणा सुद्धी // 1998 // पढमं ठाणुस्सग्गो तेणं तू नवसु होति खेत्तेसु / वत्थादीणं गहणं तत्थेव य होति उ विहारो // 1999 / / णवठाणातिकमे पुण भवई सट्ठाणतो विसुद्धो तु / किं पुण तं सट्ठाणं अववादो असति तो होति 2000 Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यादीनि नवस्थानानि [223] अववाएणं गहणं उस्तग्गो चेव होति सो ताहे। गिण्हंतस्स तुकारणि सुद्धी तह चेव बाधवा 2001 जह मेहंतुस्सग्गे सुद्धी उवहिम्स एव वितिएणं। गेण्हतस्स विसुद्धी साणं एवमक्वायं // 2002 // अहवः वि इमे अण्णे णव उ ठाणा वियाहिता। दवादीयाउ इणमो वोच्छामि अणुपुध्वसो // 2003 // दब्बे खेत्ते य काले य वसही भिक्खमंतरे / सज्झाइए गुरू जोगी एते ठाणा वियाहिता // 2004 // दव्याणाऽऽहारादीणि जादितु सुलभाई तंमि खेत्तंमि खेत्तं विच्छिन्नं खलु वत्तंत सुणेंतगगणस्त // 2005 // पत्तण परियहती सुणेति अत्थं गणो तु बालादी। तस्स पहुचति खेत्तं आहारादीहिं संथरणं // 2006 // काले ततियाए वेला वसही जोग्गातु भिक्खसुलभंति ग विगिट्ठमंतरा तं सज्झाओ सुज्झति जहिं च // सुलभं आयरियाणं जोरगं जोगीण सुलभ पाउग्गं / एते ते णव ठाणा जहिं उस्सग्गेण गहणं तु॥२००८॥ उस्सग्गेण विहारो संथरमाणाण णवसु खेत्तेसु / तो सव्वुग्घादुवही व पल्ले यावि दगघट्टे // 2009 // Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [224] पञ्चकल्प-भाष्ये गवि दूरे गच्छंती णवगस्स असंभवे बितियठाणं / दगघट्टे बहुए वी पेल्ले दूरं पि गच्छेजा // 2010 // दुल मि वत्थपादे ऊणहिएK पिणवसु गच्छेज्जा। एमेव विहारो विहु खेत्ताणऽसती मुणेयव्यो 2011 आलंबणे विसुद्ध दुगुणं निगुणं चतुग्गुणं वा वि। खेत्तं कालातीयं समणुण्णातं पकप्पंमि // 2012 // एस अणुण्णाकप्पो अहुणा अद्वाणकप्प वाच्छामि / जेहिं च कारणेहिं अद्धाणं गम्मते इणमो // 2013 / / असिवे ओमोदरिए रायदुट्टे भए व आगाठे। देसुठाणे अपरकमे य अद्धाणतो पणगं // 2014 // उद्दहरे सुभिक्ख अद्धाणपवज्जणं तु दप्पेणं / दिवसादी चउलहुगा चउगुरुगा कालगा होनि 2015 उग्गम उप्पादण एसणाए जे ग्वलु विराहने ठाणे / तं णिप्फण्णं तस्स उ पायच्छित्तं तु दायव्वं // 2016 // पुहवी आऊ तेऊ चेव वाऊ वणस्सति तसा / गंतेसु परितेमु य जं जहिं आरोवणा भणिता // लहुओ गुरुओ लहुया गुरुया चत्तारि छच्च लहुया य। छगुरु य छेदो मूलं अणवठ्ठप्पो य पारंची // 2018 // Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सार्थगवेषणम् [225] असिवे ओमोदरिए रायदुछे भए व आगाढे। गीतत्था मज्झत्था सत्यस्स गवसणं कुजा // 2019 // कालमकाले भोती णातूण य अहिवतिं अणुण्णवणा। भिच्छुयमिच्छट्ठिी धम्मकहाए णिमित्ते य 2020 सत्तुय समिए संखडि पत्थयणे खलु तहेव पोग्गलिए। धम्मकह णिमित्तेणं वसहा पुण दव्वलिंगणं 2021 सत्थे पंथे तेणे पंचविहो उग्गहो य दव्वाणं / सुन्नग्गामे दव्वग्गहणं जयणाए गीतत्था // 2022 // तुवरे फले य पत्ते गोमहिसे सूयरा य हत्थी य / आयवमणायवे चिय जयणाए जाणगे गहणं 2023 पिप्पलगसूति आरिगणक्खच्चणतलियपुडगवज्झे य / कत्तिय कत्तरि सिंकग संवग लाउए चेव // 2024 // वातियपित्तियसिंभियगुलिगाणं अगदसत्थकोसे य। जंचऽण्णु वग्गहकरगं गेण्हह अद्धाणकप्पमि 2025 सीहाणुगा य पुरतो वसभाणू मग्गतो समण्णेति / पंथे तंपिय जंता धरेंति जा अद्धपजत्ती॥ 2026 // दंडियमिच्छद्दिट्टीसमुदाणणिवारणं च णिव्विसए / सारूविसणिभद्दग वसभा पुण दव्वलिंगेणं // 2027 // Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [226] पञ्चकल्प-भाष्ये उवकरणचरित्ताणं विलोवणा सरीरलोयऽणागावे / धम्मकहणिमित्तेणं पुलागकज्जण आगाढे // 2028 / / असिवादिकारणेहिं अद्धाणपवज्जणं अगुणातं / उवकरणपुव्वपडिलेहिएण सत्थंण गंतव्यं / / 2029 / / बच्चंताणं असहू कोती णरिज गंतु देहि अपरकमे तु ताहे तवियं तु इमेांव मग्गेज्जा // 2030 // एमक्खुरे ग दुखुरे दुपए अणुवांधे तह 7 अणुरंगा। अह भद्दए भिजायति असती अणुसहिमादीहिं॥ एगखुरा आसाती दुखुरा उट्टादि दुपय जड्डादी। अणुबंधी सक डाली अणुरंग पिसी तु बोधका 2032 एतेसि पुवुवट्ठ खुरादि जातित सिद्धपुत्ताड़ी। असती य खुड्डतो वा लिंगविवगेण कड्ढति तु 2033 आवासियंमि सत्थे तरसेव तगंषि अप्पिणंति पुणो / अह भणनि गता संला अपोजनाह त्ति मम एवं // ताहे पच्छकडादी चारदी तेसि असनिउ खुड्डो / लिंगविवेगं काउं चारेती जागता ठाणं // 2035 // एवं दुखुरादीसु वि जयणा जा जत्थ सा तु कायव्या। सुत्तत्थजाणएणं अप्पाबहुयं तु णायव्वं // 2016 // Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुवासनाकल्पः [227] एतेसामण्णतरं अणगाढालंबणे णिसेवेज्जा। तट्ठाणगावराहे संवट्टियमोऽवराहाणं // 2037 // संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा / आतारपकप्पे जं पमाणणिम्भाणचरिमंमि // 2038 // अद्धाणकप्पो एसो अहुणा अणुवासणाए कप्पं तु। वोच्छामि गुरूवदेसा अणुग्गहट्टा सुविहियाणं 2039 अणुबासंसि तु कप्पे पण्णवग पडुच्च बहुविहा अत्था / अणुवासियाए पगतंसुद्धा य तहा असुद्धा य 2040 अणुवासत्य बहुहा उडुवाते वसण अहव असिवादी। बुड्ढादीवासो वा अह्वा अणुवमणाणुवासो 2041 वसितं पुणो वि वसती अणुवासिगवसहि सामहर्गा सण्णा नीयहिगारो एत्थं सा होज्जा सुद्धऽसुद्धा वा।। पट्टीवंसादीहिं वंसगकडणादिएहिं तह चेव / होति असुद्धा वसही मूलगुणे उत्तरगुणे य // 2043 // काल यातिरित्तं अविसुद्धासुं च तासु वसमाणो / पावलि पायच्छित्तं मोत्तुणं कारणमिमेहिं / / 2044 // असिवे आमोदरिए रायबुट्टे भए व आगाढे / गेलन्ने उत्तिमढे चरित्त सज्जातिए असती // 2045 // Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [228] पञ्चकल्प-भाष्ये बाहिं सव्वत्थऽसिवं तत्थ सिवं तेण कालदुयगमि / पुण्णे वि ण णिग्गच्छे अणुपच्छाभाव अणुवासी॥ आलंबणे विसुद्धे सुत्तदुतं परिहरे पयत्तेणं / आसज्ज तु परिभोगं भयणा पडिसेवसंक्रमणे 2047 असिवादीहिं वसंते सुद्धाए वसहीए वसे साहू / सुद्धा वसतीए जतती विसोहि कोडीए पुवं तु 2048 भयणत्तिय जं भणियं पुवप्पतरात्थ जे उ जे दोसा। ते ते पुव्वं सेवे संकमणेऽवी इमा भयणा // 2049 // अप्पाबहुं तुलेतुं जत्थ गुणा तू भवेज्ज बहुतरगा। गच्छं गच्छंताण व तं चेव तहिं करेज्जा उ॥२०५० // असिवादिणिट्ठिए पुण अवक्खेवेण संकमे तत्तो / सत्थं तु पडिच्छंती जइ अच्छे तत्थ सुद्धो उ॥२०५१॥ एतऽणतरविहूणं अणुवासिय जे तु अणुवसे कप्पं / कालहुयावराहे संवयमोऽवराहाणं // 2052 // संवट्टियावराहे तवो व छेदो तहेव मूलं वा। आयारपकप्पे जं पमाण णिम्माणचरिमि / 2053 // अणुवासियाए कप्पो एमेसो वणितो समासेणं / ठितकप्पभो तु तत्तो वोच्छामि गुरूवदेशेणं // 2054 // Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थितकल्पः [229] गच्छाणुकंपयाए सुत्तत्थविसारए य आयरिए। आगाढे पढमसंजतो ओवग्गहिए पकप्पदुए // 2055 // गच्छो जदि हीरेजा आयरियं वा विवायए कोई / एरिसए आगाढे जस्स उजा होति लद्धी उ // 2056 // सो तं मा पणदेती पढमणियंठो पुलागलद्धीओ। गच्छोवग्गहहेउं कारण पकप्पठिअणुण्णा // 2057 // दुपए त्ति साहुसाहुणि तदट्ठहेउं तु एव मूलगुणे। भणिता सेवा एसा सीसो पुच्छति उ अह इणमो॥ जह कारणमि भणिया मूलगुणेसुं तु एव पडिसेवा। तह होज्ज कारणंमी पडिसेवा उत्तरगुणे वि // 2059 // गुरुयतरएसु एवं मूलगुणेसुं तु जदि भवेऽणुण्णा / उत्तरगुणेसु तत्तो लहुयतरेसुं ततोऽणुण्णा // 2060 // ठियकप्पेसो भणितो अहुणा वोच्छामि अट्ठियं कप्पं / संखेवपिंडियत्थं जह भणियमणंतनाणीहिं // 2061 // वत्थे पायग्गहणे उक्कोसजहन्नगंमि अठिओ तु / ठियमट्टिते विसेसो परूवितो संपकप्पमि // 2062 // वत्थाणि य पाताणि य मज्झिमतित्थंकराण कप्पमि। बहुमोल्लाण वि गेण्हति अठियकप्पो समक्खाओ / / Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . पन्धकारमा [230] पञ्चकल्प-भाष्ये मोल्लगरूवं पि वत्थं अट्ठारसपणितरूवग जहन्न / एत्तो भसयसहस्सं उकोसमोल्लं तु णायव्वं // 2064 // ऊणगअट्ठारसगं वत्थं पुण साहुणो अणुण्णातं / एत्तो बतिरित्तं पुण गाणुण्णातं भवे वत्थं // 2065 // जिणथेराणं कप्पं अहुणा बोच्छामि आणुपुत्वीए / जं जत्य जहा निवयति समासओ तं तहा सुणसु // जिणथेराणं कप्पो जम्हा उ ठितंमि अठिए चेव / ठित अद्वितकप्पाणं जम्हा अंतरगता एते // 1067 // जो तु विसेसो एत्थं तं तु समासेण णवरि वक्वामि। जिणथराणं कप्पे जिणकप्पे ला इमं वोच्छं // 2068 // दुयसत्तए तियचउक्कगस्स अद्वद्धएगछेदेणं / अवि होज्ज कालकरणं पुणरावत्तीण विय तेसिं // पिंडेसणा उ सत्त उ हवंति पाणेसणा दु सत्तेए / चतु सेज्ज वत्थ पाते तिण्णेते चउकगा होति // 2070 // दोण्णाऽऽदिमा उ सत्तसु अवणेतुं सेस उवरिमा पंच। अद्ध होति छेदे दो दो अवणे चउकेसु / 2071 // गेण्हंलि उवरिमासु तत्थ अवि घेत्तु अण्णतरियाए। हेडिल्लासु ण गेण्हति जदि वि करे कालकिरियं तु // Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थविरकल्पविधिः [231] अणभिग्गहेण ण वितागेण्हंति विही उएस जिणकप्पे अहुणा उ थेरकप्पे वोच्छामि विहिं समासेणं 2073 गहणे चउन्विहंमि बितिए गहणं तु परमजत्तेणं / जं पाणबीयरहितं हवेज्ज तरमाणए सोही // 2074 // गहणं चउब्विहं पी वत्थं पातं च सेज्जआहारो। एतेसिं असतीए गहणं पढमं तु बीयस्स // 2075 // बितियं पातं भण्णति किं कारण तस्स गहण पढमं तु तेण वि ण बोडियपडिमा गिहिमायणभोगोहाणी य॥ अहवा चउव्विहं तू असणादी तत्थ होज्ज गहणं तु / तत्थ तु वितियं पाणं तस्स तु गहणं पढमताए 2077 असतीय फासुयस्सा तससहिए कंद बीयसहिए वा। किं कारण तण विणा आसुं पाणक्खतो होज्जा 2078 तरमाणो गेण्हती सुद्धं अतरो पेल्ले तह संथारे। संथरंतो तु गेण्हंतो पावति सट्ठाणपच्छितं 2079 सत्त दुए दसए वा अणेगठाणेण वा भवे गहणं। एत्तो निगातिरित्तं गच्छे गहणं तु भइयव्वं // 2080 // पिंडेसण पाणेसण सत्त दुगे तं तु होति णायव्वं / दसंगं एसणदोसा गहाणुग्गमे दोसा // 2081 / / Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [232] पञ्चकल्प-भाष्ये एत्तो तिगातिरित्तं उग्गमउप्पायणेसणासुद्धं / भजियांत कप्पति त्ती तस्सऽसतीए असुद्धं पि // एसो तु थेरकप्पो वोच्छं अणुवालणाए कप्पं तु / अणुवालिंति सुविहिता गच्छं विहिणा उ जेणं तु // परियट्टी परियéतओ य दुविहो पुणो वि एकेको / उवसग्गखेत्तकाला वसेण अज्जाण परिवठ्ठी // 2084 // परियट्टियव्वयं खलु परियट्टी चेव होति एगढ़। समणा समणीओवा दुविहं परियट्टियव्वं तु 2085 // समणपरियह दुविहो आयरिओ बीयओ उवज्झाओ। संजतिपरियट्टो पुण तिविहो तु पवत्तणीतइया 2086 समणिपरियहि दुविहा विहिपरियट्टी य अविहिए चेव। जतिणि परियट्टीयव्वा णियमेणं कारणेणिमिणा // ताओ बहूवसग्गा तेणादिदुसंचराणि खेत्ताणि / कालवसेण च संपति जायति लोगस्स पंतत्तं 2088 तम्हा सव्वपयत्तण रक्खियव्वा उ ताओ णियभेणं। ण विसतिरा मोत्तन्वा मा होज्जातासि तु विणासो॥ संविग्गगीतपरिणतो तासिं परियडओ अणुन्नाओ। होति पुण अणरिहो खलु परियट्टी तू इमो तासि // Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्याणामुपाश्रये गमनकारणानि [233 ] अबहुस्सुते अगीयत्थे तरुणे मंदधम्मिए / कंदप्पि सीलणट्ठाए अविही दाणे य गहणे य 2091 बहुस्सुतगीत जहण्णो आवासगमादि जाव आयारो ते अग्गीतऽबहुस्सुत तिण्ह समाणारतो तरुणो 2012 जो उज्जोगं ण कुणति चरणे सो होति मंदधम्मे तु। अणिहुयउल्लावादी सरीरकुविओ य कंदप्पी 2093 णिकारणे अणट्ठा संजतिवसही तु वच्चए जो तु / णिकारणमविहीए जो देती गेण्हती वावि // 2094 // एयारिसे तु अज्जाणं परियट्टी तु ण कप्पति / कारणेहिं इमेहिं तू गम्मति अज्जाणुवस्सयं // 2095 / / उवस्सए य गेलण्णे उवही संघपाहुणे। सेहट्ठवणुद्देसे अणुण्णा भंडणे. गणे // 2096 // अणप्पज्झ अगणी आऊ वीयारे पुत्तसंगमे / संलेहण वोसिरणे वोसट्ठाणे ठिते तिहिं // 2097 / / अरिहो अणरिहो यावि परियट्टी एवमाहिओ। अहुणा पत्तिणी तासिं अजोगा तु इमा भवे 2098 वासग्गामविहारे वीयारादेकदीहिया। अजुत्तोवहि अणाउत्ता अप्पछंदा य काहिता॥२०९९॥ Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [234] पञ्चकल्प-भाष्ये पडिणीय थद्ध सुहसीला गिहिवेयावचकारिता / संसत्त ठवियभत्ता य बाउसी अप्पणहिया / / 2100 // अणायतणगवेसी य छण्णंगाणं पलोइया / जा यऽपण एवमादी अज्जा सणाणुकड्डिया 2101 माहारे उवहिंमि य गतीए सरणासणे सरीरे य। भास ए बाउसाणं जा जहिं आरोवणा भणिता 2102 बासावासं वसति तु एकिया तह य गामऽणुग्गामं / दूइज्जती वियारं विहारभिक्खादि एका य // 2103 // दीहं करति गोयरदोच्चमुक्कस्सगाणि मरगती। चित्तलियादिणियंसण अजुत्तउवही भवति एसा // इरियाभासेसणादाणणिक्खये णिसिरणे अणाउत्ता। अणपुच्छाए गच्छति जत्थिच्छाए य सच्छंदा 2105 गेहेसु मिहत्थाणं गंतुण कहा कहेति काहीया / तरुणादि अहिडते अणुजाणति जा तु सः पडिणी॥ थद्धा जच्चादिमयादिएहिं सुहसीलदुतील त्ति / सिक्णबंधणमादिसु वेदावचं गिहीण करे // 2107 // उत्सवस्थपत्तादिएहिं संसत्तभावसंसत्ता / अहवा वि गिहत्येसुं पाउरणादीसु अविभत्ती 2108 Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - अयोग्यप्रवत्तिनीस्वरूपम् [235] भत्तं वा पाणं वा णिक्खिवती पाउसा उ धुवति। अभिक्खं तु हत्यपादे कक्खंतरगुज्झमादीणि 2109 सण्णिहिसंणिचए चेव कुणति जा अप्पणो अणट्टाए। अप्पं वा वि अणट्ठा संचयं जा य करणं तु // 2110 // जतादिसाल तह वकोट्ट एमेव सोल ठाणाणि / जा गच्छति एतेसुं अणायतणगवेसिता सा तु॥ गुज्झंगाणि पलोए अप्पणो अहवावि जातु पुरिसाणं। उकोसगमाहारं एसति उवहिं च उक्कोसं // 2112 // गच्छति सविलासगती सयणिज सतूलियं सबिब्बायं। उवद्देति सरीरं सिणाणमादी व जा कुणति // 2113 // भमुहुक्खेवादीहिं सविकारं भासती य सविलासं। एमादि अणरिहा तू पच्छित्तं वा वि सट्ठाणं 2114 // तत्थ पुण नाव इणमो पच्छित्तं भन्नए समासेणं / देतगधरेंतगाणं अगीतमादीण दोण्हं पि // 2115 // अबहुस्सुते अगीतत्थेणिसिरिज गणंतु अहव धारेजा तदेवसियं तस्स तु मासा चत्तारिभारियया 2116 // सत्तरत्तं तवो होति ततो छदो पहावती। देणं छिन्नपरियाए तनो मूलं तओ दुगं // 2117 / / Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [236] पञ्चकल्प-भाष्ये एककं सत्तदिणे दातुं तवेऽतिच्छिए ततो छदो। अत्तो तवो अराद्धो पणगादिकडो व जहिं केति 18 तुल्ला चेव य ठाणा तवछेदाणं भवति दाह पि। पणगादि पणगवड्ढी दोण्ह वि छम्मासनिट्ठवणा 19 किं कारणंण कप्पति गणहरो अबहुस्सुतो अगीनत्थो। भण्णति सो पच्छित्तं जयणं च ण जाणए कातुं 20 // दिटुंलो पट्टेणं अजाणमाणेणं जाणएणं च / कायव्यो एत्थ इणमो परूवणा तस्सिमा होते 21 // गेमि अहिणवंमि य सरसंचारण कुहरणासुं च / कुणति विवच्चासं खलु जह णट्टमसिक्खितो हो / तह कुणति विवच्चासं अग्गीता सव्वकरणजोगेसुं। सुत्तत्थमजाणंतो णाणे तह दंसण चरित्ते // 2923 // जह णदृ गीतवाइयविजाणतो मुंजए समं तालं / सुत्तं तु विजाणतो तह कुणनी सम्भकरणं तु 2124 // किं पुण सो न विजाणइ जं कुणती सव्वहिं विवच्चासं। भण्णति सुणसू इणमा जंकुणती सो विवच्चास 2125 ठाण णिसीय तुयदृण पेहण पप्फोडणे तहा सयण / भा सासुद्धग्गहणे जे अण्णे परूविया ठाणा 2126 Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आर्यापरिवर्तकस्वरूपम् [237] उवदिसिउंण वि याणति सामायारिंतु ठाणमादीयं / अन्जावि जा अगीता ण जाणए सावि तह चेव 2127 अप्पछदिओ लुद्धो परिभूतो य पत्थिओ। बहुलोहमोहसण्णो अजायग्गो दुरणुकड्ढो // 2128 // पाएणमप्पछंदा महग्घदाणेण लोभित अकिच्चं / कुव्वंति छगलिया विव परिभूताओय सव्वस्स।दा.॥ मंसादिपेसिया विव संजतिवग्गो हु पत्थणिज्जो तु। घिजाइयदिट्ठीसुं बहुसुं बहुमोह सन्नाओ // 2130 // मज्जायविप्पहूणे मनायाए य संपउत्तंमि / पडिसेहो अणुण्णा य मग्गधर विलोमता चतुरो 2131 जम्हा तु दुपरियहो अन्जावग्गो उ तेण पडिसेहो / परियट्टणे अजाणं मज्जाया विप्पहूणस्स // 2132 // मज्जायसंपउत्तो अज्जापरियट्टओ अणुण्णाओ। परियट्टए अजोगो उटिए चतुगुरू सोही // 2133 // मग्गधरो आयरिओ सो पुण सिढिलेइ जो तु मज्जातं। तस्वदेसो कीरति मज्जायाए दढो होति // 2134 // उपदेससार पडिसारणा य तेण पर तिण्णि मासलहुं। छंद अवमाणं अप्पलंदं विवजए // 2135 // Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [238] पञ्चकल्प-भाष्ये दिळंता य इमेसिं पढमा मासलहुगादि दिजंति / छगणोल्लपट्टरुंचण अवराहे सूरिसु कमणं // 2136 // आयरणे उवदेसो अकप्पपडिसेवणे य उवदेसा। विगहादिषमाएमु य मा वह एल उवदेसा 2137 णिद्दाइपमादाइसु सई तु खलियस्स सारणा होति / णणु कहित ते पमादा मा सीदसु तेसु जाणंना // तद्दिसं बीए वा सीदंतो वुच्चए पुणो तइयं अण्णं वेल ण सज्झ भिक्खण्ण दीहिं संसत्तं 2139 फुडसक्ख अचियत्तं गोणी तु दिओ व मा हु ऐलज्जा। मज्झं अतो ण भएणति एलणचित्तं नतो सारे 2140 भणति दिण्णुवदेसो तुज्झं बिनियं च सारितऽम्हेहिं / एगवराहो ते सढो वितिय पुण ते ण विसहामो 2141 ताहे पुणोऽवराहे कयंमि पच्छित्तं देंति मासलहुं / भण्णइ य सुणेहेत्धं विट्ठेनं तेणएणं तु / / 2142 / / गोणादिहरणगहिओ मुक्को य पुणो सहोढ संगहितो। उल्लोल्लछगणहारी | मुच्चती जायमाणो वि // 2143 // पुणरवि कनावराहे मासलहुं चेव देति से सोही। भण्णति घहिजंतं चुक्त्थं दुट्ट तह तुमंपि // 2144 // Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मार्गच्छेदस्वरूपम् [ 239 / पुणरवि अवरद्धंमी मासो चिय तेसि दिजते दंडो। पाणी सो संवत्तो अतिरंचियकुंकुम ततियं // 2145 // तेण पर णिच्छुभणं कुलगणथेरादि तम्स कुव्वंति। अयमण्णो वी णीयमो भण्णति तू जस्सिमे दोसा / / अप्पछंदियलुद्धं गिलाणं दुपडिजग्गणं / वामं सगव्वि णचा संवासो वि ण कप्पति // 21476 उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छायणाए मग्गस्स / मग्गधर उवालंभे मासा चत्तारि पारिथया॥२१४८॥ आयरियाणं छंदे ण वनी अप्पछंदिओ सो उ : आहारादुकोसं लद्धं अत्तट्टि लो तु // 2149 // जोतुगिलाणो अपत्थं मग्गति सोहोति दुपडिजग्गोतु ठायसु भणिनो वच्चति वचत्ति य ठाति वामो सो 2150 जच्चादिमादिएहिं करेति गव्वं तु परिभवति अण्णं / णाणादीया मग्गो परूवणा अण्णहा तेसिं // 2151 // गाणादिसु सीदंतो ण सुद्धमग्गं तु जो परूवेइ। एसो मग्गच्छेदो वड्ढयती दीहसंसारं // 2152 / / एतेसिं तु विवेगो मग्गधरा खलु कुलादिया थेरा। तेहिं उवलद्धाणं उठिताणं गुरू चतुरो (मासा)। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 240] पञ्चकल्प-भाष्ये बालाणं वुड्ढाणं भिक्खुमादीण चेव सव्वेसिं / संखेवेण महत्थो उवदेसो कीरई इणमो // 2154 // कप्पे सुत्तत्थविसारएण थामावहारविजढेण / भत्तादिलंभऽलंभे सकारजढेण होयव्वं // 2155 // कति थेरकप्पे सुत्तत्थविसारएण साहूण / सव्वत्थेसू सबलं ण गृहियव्वं समत्थेणं // 2156 // आहारमादिएहिं दटुं धीयारमादिपुर्जते / साहू अपुज्जमाणे ण एव मणसा विचिंतेज्जा 2157 पहजंती अजया वयं तु सव्वण्णु मरगमोदिण्णा / हा कह णु ण पुजामो ण कर मणदुक्कडं एवं // 2958 // सकारपुरकारे परीसहे तू अहियासिओ एवं / जूरंते णऽहियासिओ तम्हा सुमणेण होयव्यं 2159 वीसइविहकप्पो तू एसो खलु वणितो समासेणं / वायालकप्पमहुणा गुरूवएसेण वोच्छामि // 2160 // दव्वे भावे तदुभरकरणे वरमणमेव साहारो। णिव्धेस अंतर जयंतरे य ठित अहिते चेव / 2161 // ठाण जिण घेर पज्जुसणक्षेत्र सुत्ते चरित्तमज्झयणे / उद्देस वायण पडिच्छणा य परियऽणुप्पेहा // 2162 // Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्रव्यकल्प: [241] जातमजाते चिण्णमचिण्णे संधाणमेव चयणे य / उववाय णिसाहे या ववहारे खेत्तकाले य // 2163 // उवही संभोगे लिंगकप्प पडिसेवणा य अणुवासे / अणुपालणा अणुन्ना ठवणाकप्पे य बोधव्वे / / 2164 // एतेसिं तु पदाणं पत्तेय परूवणं पवक्खामि / तहिथं तु दव्वकप्पो इणमो तु समासतो होति 2165 पंचण्हं असणादीणं पणुवीसति हि भवे विसोहीउ। अहवा वि उ चउद्दतिया एत्तो तिगवड्ढिया सोही॥ असणं पाणं वत्थं पातं संजा य पंच एतेसिं। सुद्धी पणवीसतिया उग्गम तह एसणाए य / / 2167 // सुतणाणपमाणेण उ गहियमसुद्धे वि होइ सुद्धो तु। अहवा वि तु छद्दसया सोलस उप्पायणा दोसा 68 // एएसि सव्वेसि हणपयणकिणादिणवहिं कोडीहिं / कतकारिताणुभोदित एसा तिगवड्ढिता सोही // 19 // दसणणाणचरित्ते तवपक्ष्यणसच्च समिति तिहिं गुत्तो हतरामदोसणिम्ममखमदमणियमद्वितो णिचं // 7 // तदुभयकप्पो अहुणा एते चिय दव्वभावकप्पाउ / दोणि वि मिलिया एते तदुभयकप्पो इमो सो य॥ . Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 242] पञ्चकल्प-भाष्ये आहारे अट्ठविहे सेन्जोवहि पंचपंचगविसोही। दसणचरित्तगुत्तो तवसमितिगुणेहिं सो होति 2172 असणादीतो चउहा उवकारि चउव्विहो य तस्सेव / एसट्टविहाहारो परूवणा तस्सिमा होति // 2173 // असणं तु ओदणावी तदुवकारी उ खीरकुसणादी / पाणं तु पाणमेव तु कप्पूरादी तु उवकारी // 2174 / / खाइम फलाइयं तू सुत्ता (ण्ठा) दी होति तदुवकारीतु। साइम तंबोलादी चुण्णादी तदुवकारी तु // 2175 / / एवं आहारादी उग्गमउप्पायाणेसणासुद्धं / उप्पाए दंसणादीहिं जुत्तो अहवा तदट्ठाए // 2176 / / विरतीय अविरती या विरयाविरतीय तिविहकरणंतु एकेकं होति दुहा ओहे य अभिग्गहे चेव // 2177 // विरती करणं ओहे पंचेव महव्वता भवंती तु। होति अभिग्गहकरणं पिंडविसुद्धादिऽणेगविहं 2178 अहवा ओहे संजमो विभागतो होति सत्तरसभेदो। अविरति असंजमोहे अट्ठारस अभिग्गहे इणमो॥ पाणतिवाते मोसे अदत्त मेहुण परिग्गहे चेव / कोहमाण मायलोभे पेजे दोसे तहा कलहे / / 2180 // Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साधारणकल्प: [ 243] अन्भक्खाणे पेसुण्ण अरतिरह चेव मायमोसे य / मिच्छादसणसल्ले अट्ठारस अभिग्गहे एस // 2181 // विरताविरतीए पुण ओहेण अणुव्वता भवे पंच। उत्तरगुणा अभिग्गहि हवंति सिक्खावता सत्त 82 एत्थं पुण अहिगारो विरतीकरणेण होति दुविहेणं / जह तेसु अतीयारो ण होति तह ऊ पयतियव्वं 83 उन्नामरक्खियाणं महव्वताणं कतो हवति पीला। भण्णति आहारादिहिं तिहिं पीडा होतऽसुद्धेहिं 2184 उज्जम उज्जोयो खलु एतेणं रक्खियाण तु वयाणं / पीला उवघातो खलु भवति कहं पुच्छती सीसो 85 भण्णति आहारोवहिसेजा एतेहिं तिहिं असुद्धेहि / उग्गमदोसादीहिं तु पीला संजायति वयाणं 2186 तम्हा उ उग्गमादीहिं विसुद्धाहारमादिया कजा। वेरमणकप्प एसो एत्तो साहारणं वोच्छं / / 2187 // सेज्जुवहिज्झाय आहारमेव साहार तह य अणुकंपा। आदिपणगं तु तुलं भइयं अणुसासणाए तु // 2188 // सेज्जुवहिज्झाय आहार पसिद्धा एते होंति चत्तारि / साहारणकप्पो पुण मूलगुणा उत्तरगुणा य 2189 Y Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [244] पञ्चकल्प-भाष्ये साहारण त्ति किं पुण सेजादुप्पादगाण सव्वेसिं। सामन्नगुणा ते ऊ तम्हा साहारणं जाण // 2190 // आदिपणगं तु तुलं ति जाण सेन्जाति जाव साहारं / ठियमठियाण दोह वि एते खलु होति तुल्ला तु 91 अहवादिपणग मूलगुण पंचेते होते दोण्ह तुल्ला तु / समणाण व समणीण व नम्हा साहारणं जाणे 92 भइयमणुसासर्ण ती अणुकंपणुसालणत्ति एगट्ठः / कोइ कराइ अणि उणो ण तरति अणुसासणं काउं॥ सुहभारियत्तणेणं होति विसुद्धो य अंतरप्पा से / तस्स वि होलि वताइं पंच वि साहारणाई तु . 194 आणा तित्थगराणं सामण्णा संजताण सव्वेसि। सुहुभे वि तप्पमाए अणुसासणयं कुणति जो तु 95 तेण अणुकंपिता णिच्छएण जम्हाऽणुसहितो होति / तसऽणुसहऽणुकंपा एगट्ठा होति णायवा॥२२६॥ साहारकप्प एसो अहुणा वोच्छामि णिव्विसणकप्पं / जह णिविमति समणा सम्मं तु गुरूवएसेणं 2197 गाणं च दशर्ण वा तहा चरित्तं च समितिगुत्तीओ। एकासीतिपदेहिं णिब्बिस णिव्वेसणाकप्पो 2198 Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तराकल्पः [245] छव्विह कप्पादीया बायालंता उ पंचवी एते / मेलीणा उ भवंती एकासीतिं भवे भेदा // 2199 // णवरं छव्विहकप्पे वीसइकप्पे य णामठवणाओ। मोत्तं सेसा सव्वे एक्कासीति तु मेलीणा // 2200 // एते सव्वे संमं णिव्विसमाणस्स णिव्विसणकप्पो। एतेसिं पुण कतरो महढितो होति सव्वेसिं 2201 सव्वे वि हु चरणविसोहिकारगा तह वि अत्थि हु विसेसो। सद्दहणाऽऽचरणाए भइतं पुण पालणाए तु // 2202 // सद्दहणाकप्पो या आयरणा चेव दो पहाणतरा। अहवा सद्दहण चिय सद्दहितुं जो ण आयरति 2203 भइयमणुपालण त्ति य सदहिऊणं पिण तरती कोई। अणुपालेतुं अज्जा तम्हा खलु सो ण पव्वावे 2204 // णिव्विसणकप्पो एसो एत्तों वोच्छामि अंतराकप्पं / संखेव पिंडियत्थं गुरूवएसं जहा कमसो // 2205 // पंचट्ठाणमसंखा बारसगं चेव तिणि वि तियाणं। अज्झत्थणाणकरणट्टयाए सो अंतराकप्पो // 2206 // सामादि संजतादी पंचह चरणं तु तेसि एकेकं / संजमठाणमसंखा एकेके तत्थ ठाणंमि // 2207 // Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [246] पञ्चकल्प-भाष्ये होति अणंता चारित्तपन्जवा ताणऽसंखगुणियाणि / एकं संजमकंडग कंडगसंखा य छट्ठाणा // 2208 // छट्ठाणाऽसंखेज्जा संजमसेढी तु होति बोधव्वा / सामाइय-छेदसंजमठाणा गंतुं असंखेजा // 2209 // परिहारि-संजमठाणा ताहे लग्गति ते वि तु असंखा / गंतूण होति छिन्ना ताहे तत्तो पुणो परतो // 2210 // वड्दति जा असंखा सामाइ-छेदसंजमट्ठाणा / सामादि-छेदठाणा ताहे छिन्ना हवंती उ // 2211 // तो सुहमरागठाणा ते वि असंखेज़ गंतु वोच्छिन्ना। तस्स अपच्छिमठाणा अणंतगुणवाढतं णियमा / / एवं परमविसुद्धं होति अहक्खायसंजमट्ठाणं / पंचमसंख त्ति गतं बारसगं बारपडिमाओ // 2213 // सुद्धपरिहारचतुरो अणुपरिहारी वि णवमकप्पठिती। एते तिणितिया खलु एतेसिं एकमेकस्स // 2214 // अंतरसंजमठाणा होति असंखा तु तेसि सव्वेर्सि। होति दुविहा तु सोही करणे अज्झत्थतो चेव 2215 ता दोवी कायव्वा णाणट्ठाए सुतोवउत्तेणं। एसो अंतरकप्पो णयकप्पमियाणि वोच्छामि 2216 // Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयकल्पः [247] सव्वेसि पि णयाणं आदेसणयंतरं पि सहाणे / एस जयंतरकप्पो पुव्वगतविसालमादीसु // 2217 // सव्वे विणेगमादी आदिस्सति जो णयो त साऽऽदेसो। जयतो अण्णो वि गओ णयंतरं होति णायव्वं // 18 // सट्टाणे सहाणे सव्वे बलिया हवंति सव्विसते। एसो णयकप्पो तू पुत्वगतंमी समक्खाओ // 2219 // उप्पादपुश्व विसालं तं आई काउं सव्वपुव्वेसु / भणितो उ णयविभागो एत्थं चोदेति अह सीसो॥ कम्हा कालियसुत्ते ण णया तु समोयरंति हु कहं वा। णयविगल होति साहण मोक्खस्स तु भण्णति सुणाहि जयवजिओ वि हु अलं दुक्खक्खयकारओ जतिजणस्स। चरणकरणाणुओगो तेण उ पढमं कतं दारं // 2222 // आयारपकप्पधरो कप्पव्ववहारधारतो अजो। णयसुत्तवजिओ विहु गणपरियट्टी अणुण्णाओ 23 // पच्छित्तकरण अणुपालणाय भणिता उ कप्पववहारे / एतेण अत्यधारी गणधारी जो चरणधारी // 2224 // अनोत्ती आमंतण णिद्देसे वा यस्स मुत्ताई। जाति तु दिढिवाते पच्छित्तं दिजते तह उ / / 2225 // Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [248] पञ्चकल्प-भाष्ये तेहिं विणा वि जाणति आयारपकप्पधारओ जम्हा। तम्हा तु अणुण्णातो गणपरियट्टी तु सो णियमा॥ करणाणुपालयाणं तु पजवकसिणं समासओ णाणं / करणाणुपालणदुतं पजवकसिणं भवे तिविहं // 27 // दुतिपण छक्ककणयंतरेसु सोलस हवंति ठाणाई। करणट्ठाण पसत्था करणट्ठाणा उ अपसत्था / / 2228 एयाई ठाणाई दोहिं विगाहाहिं जाइं भणिताई। तेसि परूवणमिणमो समासतो होति बोधव्वं // 29 // करणं तु किया होति पडिलेहणमादि सामयारीतु। तं पालिज्जति णाणेण तं च दुधिहं मुणेयव्वं // 30 // पजवकसिणसमासो पजवकसिणंतु चोदसतु पुव्या। सामाइयं पकप्पो होति समासो मुणेयव्यो 2231 // पज्जवकसिणं तिविहं सुत्ते अत्थे व तदुभए चेव / एमेव समासो विहु तेहिं पालिज्जए चरणं / / 2232 / / तस्स णएहिं मग्गण ते उ समासेण होंति दुविहातु। दव्वहिपज्जवट्ठिय गया उ अविसेसियविसिट्ठा 33 // वण्णादि समुदियं तू दव्वट्ठी दव्वमिच्छते णियमा। तं चेव पज्जवणओ दव्वाइविसेसियं इच्छे (12234 // Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नयकल्प.. [249] अहवा वि तिणि विणया दव्वहित पज्जवहित गुणट्ठी पज्जायविसेस चिय सुहुमतरागा गुणा होंति // 35 // एगगुणकालगादिसु परिसंखगुणठितो तु णायव्यो / दवाओ गुणाणन्ने गुणा विसेसत्ति एगट्ठा // 2236 / / आदिल्ला तिणि णया एको वितिओ य होति उज्जु सुओ। सदादितिणि वेको तिनिणया होति एवं वा 2237 / / अहवाविणिगमसंगहववहारुज्जुसुए होति चतुरेते। सद्दणय तिणि एको पंच गया होंति एवं तु // 2238 // अहवा वि होज्ज छकं गमो संगाहिगो असंगाही। संगहिगो संगहं तू ववहारपविट्ठ असंगाही // 2239 / तम्हा तु संगहणओ ववहारो चेव होति उजुसुत्तो। सदो य समभिरूढों एवंभूतो य छक गया॥२२४०॥ एते पुण सव्वे वी दुग तिग पंण छक्क मेलिया संता। सोलस नयंतराई समासओ होंति एयाइं // 2241 / / जदि कुणति दवियकप्पं एतेहि जयंतरेहिं तु विसुद्धं / करणठाणपसत्था ते खलु होति मुणेयव्वा // 2242 // बकरेंते अपसत्था कप्पे स जयंतरे समक्खाओ। कप्पे ठितमठिए. पुण वोच्छामऽहुणा समासेणं 2243 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [250] पञ्चकल्प-भाष्ये संघयणवजिओ विहु दुक्खक्खयकारओ पणगजाओ। संघयणसमग्गस्स वि अजातचतुरो अमोक्खाए 44 पंच उ महव्वताइं पणगं तेसिं तु जो करे पयत्तं / जाओ जोणिप्फण्णो अजातोणियमा अणिप्फण्णो॥ ठियमाठिए व कप्पे संघयणेणावि जो विहीणो तु। सो कुणति दुक्खमोक्खं, जो पुण ण करे पयत्तं तु॥ पंचसु महव्यतेसुं संघतणेणं तु जदि वि संपण्णो। सो चतुगतिसंसारे भमती ण य पावती मोक्खं // अहुणा उ ठाणकप्पो उद्धठाणादिओ मुणेगव्यो। ठियकप्प संजतस्स विडणुण्णांओ आतिस्ता वि॥ एवं जिणकप्पो विहु ठियकप्पे अठिए यऽणुण्णाओ। एमेव थेरकप्पो ठितमठिते होतिऽणुणाती // 2249 // पज्ज़सवणाकप्पो सुत्ते कप्पो तहा चरित्ते य। अज्झयणुद्देसंमि य कप्पो तह वायणाए य 2250 कप्पो पडिच्छणाए परियऽणुपेहणाए कप्पो य / ठितमठिएसु दोसु वि एते सव्वे भवे कप्पा // 2251 // जातमजाओ अहुणा दोणि वि एते समं तु वचंति / जातं णिफण्णं ति य एगळं होति णायव्वं 2252 Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचीर्णानाचीणंकल्पः [ 251] जातमजातं करणं जाते करणे गती तिहा छिण्णा / अजाते करणंमि उ अण्णतरीतं गतीं जाइ // 2253 // जायं खलु णिप्फण्णं सुत्तेणऽत्थेण तदुभएणं च / चरणे य संजुत्तं वतिरित्तं होति अज्जातं // 2254 // जातकरणेण छिण्णा णरगतिरिक्खा गती उ दोण्णि भवे। अहवा तिहा उ छिण्णा णरगतिरिक्खामणुस्सगती॥ देवेसु वि तिणि गती छिण्णा वेमाणिएमु उववत्ती। उसु विगतीसु गच्छति अण्णतरि अजातकरणेणं / / एसो जातमजाते कप्पोऽ भिहितो इदाणि वक्खामि / आइण्णमणाइण्णे कप्पं तु गुरूवदेसेणं // 2257 / / आहारचतुक्के करण फासणे खेत्तकालउवगरणे। आइण्णे आइण्णं तश्विवरीए अणाइणं // 2258 // आहारचतुकं खलु असणादीयं तु होति णायव्वं / करणं आयरणं तू तस्स तु जं जत्थ आइण्णं 2259 पिसितं सिंधुविसए दातिं पुण उतरावहाइण्णं / संबोलं दमिलेसु एमादी खेत्तमाइण्णं // 2260 // काले दुभिक्खादिसु पलंबमादी तु सचमाइण्णं / उवगरणे आइण्णं वोच्छामि अतो समासेणं 2261 Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [252] पञ्चकल्प-भाष्ये सिंधू आउलियाई काला कप्पा सुरट्ठविसयंमि / दुगुल्लादि पुंडवद्धणि मरहठेहुं च जलपूरा // 2262 // एवं जत्थाइण्णं रहिथं तू कप्पती तु आपरिउं। इतरत्थ कारणंमी फासणगहणं च परिभोगो 2263 आइपणे चतुवराण य पीलाकारओ पवरणस्स। ण य मइलणा पवयण नाइपणं आपरे कप्पं 2264 आहार उवहिजा सेहा चतुबग्गा होनि णायव्यो। पक्ष्यणपीलुवधानो पिसियाई बजगाइ त्ति / / 2265 / / चोदेइ का महलणा? भण्णांत पडि साहेयाणि ज सेवे। सा होति भइलणा तू जो पुण सुपरिष्?ओ चरणे // तण्णातु सलाहति वणति गुणेहिं एस जुत्तो त्ति। सुठुकरे अप्पहितं जो पुण करणे अजुत्तो उ 2267 तं दटुं संदेहो उप्पजति किण्ण एस सच्छंदो ? आओ णं उवए सो एरिसओ देसिओ सपए 1.2268 / / आह जिणकप्पियाण वि आइण्णं किंचि अस्थि अह पत्थि ? भण्णति ण अस्थी किं पुण आयरे जिणकपिताइण्णं॥ आहार उवहिदेहे निरवक्खो णवरि णिजरापेही। संघयणविरियजुत्तो आइण्णं आयरति कप्पं 2270 Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चरणकल्पः [ 253 ) सण णाण चरित्ते तवे य तह भावणासु समितीसु। छण्हं पि निप्पगारं सद्दहे संधाण साहणता 2271 सदहति सम्मदंसण आयरति पख्वणं च कुणमाणो / संधाणकप्प एसो एवं सेवाण वीणेयं / / 2272 / / संधाणकप्प एसो भणितोतु समासतो जिणक्खातो। संखेवसामुद्दिळं एत्तो वोच्छं चरणकप्पं // 2273 // आहारउवहिसंज्जा तिकरणसोहीए जाहिं परितंतो। पग्गहितविहाराओ तो चवती विसयपडिबद्धो 2274 कोति बिसेसं वुज्झति पसत्यठाणा अहं परिभट्ठो। अंधत्त कोई ण बुज्झए मंदधम्मत्ता // 2272 / / दव्वे भाचे अंधो दवे चक्खूहिं भावे ओसण्णो। सीवरगन्तं ण रोयति णितियाग पहाणमिच्छंतो 76 जुत्तो जुत्तविहारी तं चेव पसंसते सुलभवोही / ओसण्णविहारं पुण पसंसए दाहसंसारी // 2277 // आहारोबहिसेज्जा णीयावासे वितिकरणऽविसोही। तह भावंधा केई इमं पहाणं लि घोसति // 2278 // गीयादि विहारमि विजदि कुणतीणिग्गहं कसाधाणं। तस्स हु भवते सिद्धी अवितहसुत्ते भणियमयं 79 // Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [254 पञ्चकल्प-भाष्ये बहुमोहे वि हु पुट्विं विहरित्ता संवुडे कुणति कालं। सो सिज्झति अवि य इमे पुरिसज्जाता भवे चतुरो॥ णाणेणं संपन्नो णो तु चरित्तेणं एत्थ चतुभंगो। तेणेसेव पहाणो एवं भासंति णिद्धम्मा // 2281 // तम्हा तु ण एताई कुज्जा आलंबणाई मतिमं तु / कुज्जा हि पसत्थाई इमाइं आलंबणाई तु // 2282 / / तित्थगराणं चरितं चरितं कसिणंगपारगाणं च / जो जाणति सद्दहती ओसण्णं सो ण रोएति 2283 धुवसिज्झितव्यगंमि वि तित्थगरो जदि तमि उज्जभति। किं पुण तवे उज्जोगो अवसेसेहिं ण कायव्यो चोद्दसपुधी कसिणंगपारगा तेसि जो उ उज्जोगी। तं जो जाणति सोखलु संविग्गविहारसद्दहतो 2285 एमादी आलंबण काउं संविग्गतं न रोएति / को पुण ओसण्णत्तं रोएती? भण्णती इमो तु 2286 सुत्तत्थतदुभए अकडजोगि ओसण्णयरोयओ होज्जा अहवा दुग्गहियत्थो अहवा वी मंदधम्मत्ता // 2287 // अण्णाणि यऽकडजोगी दुग्गहियत्थो तु जो ण अववादो। गहिओ ण वि उस्सग्गो गहिते वा मंदधम्मो .उ // 2288 // Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निशीथकल्पः जो रोए ओसण्णो इति एसो वणिओ चरणकप्पो / उववादकप्पमहुणा वोच्छामि जहक्कमेणं तु // 89 // चहिं ठाणेहिं वियहिऊण संविग्गसड्ढयाजुत्तो। अभुज्जतं विहारं उवेइ उववायकप्पो सो // 9 // उववयणं उववाओ पासत्थादी य पंच ठाणा तु / सुविविहं तु वट्टितो वियदिओ होति णायव्यो / संवेगसमावण्णो पच्छा उ उवेति उज्जयविहारं / एस उववायकप्पो णिसीहकप्पं अतो वोच्छं // 92 // पतुहा णिसीहकप्पो सद्दहणऽणुपालणा गहणसोही। सद्दहणा वि य दुविहा ओहणिसीहे विभागे य 93 मोहे त्ति हत्थकम्मं कुणमाणे रोगमूलिया दोसा। गेण्हणमादि विभागे अहवोघो होति उस्सग्गो 94 अववादो तु विभागो सव्वंऽतं तु सद्दहंतस्स / सहहणाए कप्पो होइ अकप्पो पुण इमो हु // 2295 / / मिच्छत्तस्सुदएणं ओसण्णविहारताए सद्दहणा / गणहरमेरं ओहं ण संदहती जो णिसीहं तुं 2296 ओसण्णाण विहारं सद्दहती सुविहिताण गणमेरं / ण तु सद्दहती जो खलु एस अकप्पो तु सद्दहणे 97 Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [256 ] पञ्चकल्प-भाष्ये जाणि भणिताणि सुत्ते पुव्वावरबाहिताणि वीसाए। ताणि अणुपालयंतो सव्वाणि णिसीहकप्पो तु 2298 सुत्तत्थतदुभयाणं गहणं बहुमाणविणयमच्छेरं / चोद्दसपुव्विणिबद्धो पकप्पगहियंभि गणधारी // 99 // तिविहो य पकप्पधरो सुत्ते अत्थे य तदुभए चेव / सुत्तधरमोत्तु तइओबितिओवा होति गणधारी 2300 तिगपणग पणग छक्कं अट्ठगणवगं च जस्स उवलद्धं / ठवणाकरणं दाणं च सो हु सोहीवियाणाहि // 2301 // णाणादीणं तियगं पणगं ववहारो होति पंचविहो / बितिथपणगं पंच वता छकं पुण होंति छाया 2 // आलोयणारिहगुणे अठ्ठ तु अहवा विसोहि अछविहा आलोयणतादीयं मूलं तं जाणती जो तु // 2303 // आलोयणमादीयं अणवठें तं तु णवविहं होति / पारंचितं तमहवा दसविह होती चसद्देणं / / 2304 // ठवणा रोवण करणं सफला मासा करेत्तु जो जाणे / सो होति दाण अरिहो तविवरीतो अणरिहो तु॥५॥ किह पुण तं दायत्वं पायच्छित्तं तु पुच्छए सीसो। भण्णति इमेण विहिणा दायव्वं तं जहाकम सो॥६॥ ओहेण तु सट्ठाणं सट्ठाणविभागता पवित्थारो। पच्छित्त पुरिसहेतू किंति ण संती चरणमादी 2307 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारकल्प: [257 ] ओहे सहाणं ति य जह चउगुरु होति रायपिंडंमि / सट्टाणविभागे पुण ईसरमाई मुणेयव्वो // 2308 // जह वा करकम्ममि य ओहेणं होति मासगुरुयं तु। होति विभागपसंगो दिद्वादीओ मुणेयव्वो // 2309 // पुरिसज्जातं णातुं च दिजए जं च जारिसं वत्थु / गुरुमादिबलिय दुब्बलहट्ठगिलाणादिजंजोग्गं 2310 हेउ कारण णिकारणे य जयणादिसेवियं जह उ / चोदेति किं णिमित्तं पच्छित्तं दिजते सुणसु 2311 पायच्छित्ते असंतंमि चरित्तं तु न चिट्ठए / परित्तमि असंतंमि तित्थे णो सचरित्तया // 2312 // तित्थंमि असंतमी जेव्वाणं तु ण गच्छती। गेव्वाणंमि असंतंमि सव्वा दिक्खा निरत्थिया 13 एवं णिसीहकप्पो चतुहा तू वणितो समासेणं / ववहारकप्पमहुणा गुरूवएसण वोच्छामि // 2314 // ववहारे कोति भिक्खू सच्चित्तणिवायणिद्धमहुरेहिं / ववहरती ववहारं वितहं सो संघमज्झमि // 2315 // कोइ बहुस्सुय भिक्खू अपुषणगरंमि किंचि ववहारं। गाएणं किंदित्ता वत्थव्वेहिं पमाणकतो / / 2316 // Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [258] पञ्चकल्प-भाष्ये अह पच्छा सचित्तं खुड्डाई तस्स केणई दिण्णं / वसही पाउरणं वा वरऽम्ह पक्खं ववहरेउ 2317 घयतिल्लादी णिद्धं खंडगुलादीहिं वा वि संगहितो। सव्वाहिं एहिं ताहे ववहरए पक्खवातेणं / / 2318 // दुववहारिएणं को तु णिसेहेज तो वदे संघो। एतट्ठा संघमेलो कीरति इणमो य संपत्तो // 2319 // अण्णो तहिं तु गीओ संघसमत्तीय तिणि वाराओ। उच्चारे सिद्धपुत्तो तत्थ य मेरा इमा होति // 2320 // घुट्ठमि संघसद्दे धूलीजंघो वि जो ण एजाहि / कुलगणसंघसमाए लग्गति गुरुए व चउभासे / / 2321 // जं काहिति अकजं तं पावति सति बले अगच्छंतो। अण्णाइया व ओहावणादि तसिं च जं कुजा 2322 सोऊण संघसई धूलीजंघे वि होति आगमणं / धूलीजंघणिमित्तं ववहारो उवहितो होति // 2323 / / सोऊणं संघसदं धूलीजंघो उ आगतो संतो। वितहं ववहरमाणे साहू समएण बारेइ // 2324 // णिद्धं महुरं जिवातं कितिकम्मं विजाणएस जंपतो। सचित्ते खेत्तमीस अत्यधर णिहोड दिसहरणं 3320 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारकल्प: [259 ] भिक्खू य मुसावादी ववहारे तइयगंमि उद्देसे। सुत्तं उचारेती अह बहुपक्खा इमं होति // 2326 // रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणमि एकमिकस्स / कज्जंमि कीरमाणे किं अच्छति संघमज्झत्थो 2327 रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणेण एकमेकस्स / कज्जंमि कीरमाणे अण्णो वि भणेतु ता कोइ 2328 कुलगणसंघठ्ठवणं इहंण याणामि देसिओ मि अहं। अण्णेण वि ता केणति कप्पति इह जंपितुं किंचि 29 संघेण अणुण्णाएं अह जंपति सो तहिं गुणसमिद्धो / ववहारणीतिकुसलो अणुभाणंतो तयं संघं // 2330 // संघो महाणुभावो अहं च वेदेसिओ इहं भंते / संघसमिति ण जाणे तं भे सव्वं खमावेमि // 2331 // देसे देसे ठवणा अण्णा अण्णा य होति समितीय / गीतत्थेहऽभिण्णातं वेदेसिओऽहं ण जाणामि 2332 अणुमाणेत्ता एवं ताहे अणुण्णाए जंपए इणमो। परिसा ववहारीण य इमे गुणे तू समासेणं // 2333 // परिसा ववहारी वा मज्झत्था रागदोसणिहुया य / जदि होंति दो वि पक्खा ववहरितं तो सुहं होति Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [260] पञ्चकल्प-भाष्ये वुत्ते वऽत्थधरेणं जदि उ ववहारिणो तु जंपेज्जा। शृणं तुम्हे मण्णह मज्झं सव्विक्रवयणं ति // 2335 // सेसा तु मुसावादी सच्चपरिभट्टगा तु किं सम्वे / भएणति सुहेण एत्थं भूतत्थमिणं समासेण 2336 // ओसण्णचरणकरणे सच्चव्यवहारता दुसहहिया। चरणकरणं जहंतो सच्चव्यवहार पि जहे 12337 // जहिया अणेण चत्तं अप्पणथं णाणदंसणचरितं / तइया तस्स परेसुं अणुकंपा नस्थि जीतु // 2338 // भवसयसहस्सदुलहं जिणवयणं भावओ जहंतस्स / जस्त न जायं दुक्खं न तस्स दुकग्वं परे दुहिए / आयारे वहतो आयारपरूवणे असंकियओ। आयारपरिभट्ठो सुद्धचरणदेसणे भइओ 2340 // तित्थगरे भगवंते जगजीववियाणए तिलोगगुरू / जो न करेइ पमाणं न सो पमाणं सुनधाणं 2341 // तित्थगरे भगवंने जराजीवविधाणए तिलोगगुरू / जो उ करेति पमाणं सो उ पमाणमयर णं // 42 // संघो गुणसंघालो संघो य विचयो य कारणं / रागद्दोसविमुको होति समो सवसाहणं // 23:3 // Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारकल्पः [261] परिणामियबुद्धीए उववेओ होति समणसंघो तु। कज्जे णिच्छितकारी सुपरिच्छितकारओ संघो // 44 // एक्कासि दुवे व तिण्णि व पेसविए ण एइ परिभवेणंतु। आणातिकमणिज्जूहणा तु आउदृववहारो // 2345 // आसासो वीसामो सीतघरसमो य होति मा भाती। अम्मापीतिसमाणो संघो सरणं तु सव्वेसिं // 46 // सीसो पडिच्छओवा आयरिओवाण सोग्गतिणेति / जे सचकरणजोगा त संसारा विमोएंति // 2347 // सीसो पडिच्छओ वा आयरिओ वावि ते इहं लोगं / जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति // 2348 // सीसो पडिच्छओवा कुलगणसंघा ण सोग्गतिं गति। जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति // 1349 // सीसो पडिच्छओ वा कुलगणसंघो व एति इहलोए। जे सच्चकरणजोगा ते संसारा विमोएंति // 2350 // सीसे कुलिच्चए गणिच्चए व संघिच्चए च समदरिसी। ववहारसंथवेसु य सो सीतघरोवमो संघो // 2351 // गिहिसंघातं जहितुं संजमसंघाततं समुवगम्म / णाणचरणसंघातं संघाएंतो हवति संघो // 2352 // Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [262] पञ्चकल्प-भाष्ये णाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो वि संघाते। सो संघाए अबुहो गिहिसंघातम्मि अप्पाणं // 2353 // नाणचरणसंघातं रागद्दीसेहिं जो वि संघाए। सो भमिही संसारं चतुरंतं तं अणवयग्गं // 2354 // दुक्खेण लभति बोहिं बुद्धोवि य ण लभते चरितंतु। उम्परगदेसणाए तित्थगरासायणाए य // 2355 // उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छायणाए अग्गस्स / पंधति कम्मरयमलं जरमरणमणंतगं घोरं 2356 // पंचविहं उपसंपद णाऊणं खेत्तकालपव्यजं / तो संघमज्झयारे ववहरियव्वं अणिस्साणं // 2357 // णिदरिसणं तत्थ इमे तगराणगरी य सोलसायारिया। अण्णायणाकारी वत्थाव्यवहारी अट्ठ इमे // 2358 // मा कित्ते कंकडुयं कुणिमं पक्कुत्तरं च वच्चाई। बहिरं च गुंठसमणं अंबिलसमणं च निद्धम्म 2359 // कंकडओ विव भालोसिद्धिंण उवेति तस्स ववहारो। कुणिमणिहोवण सुज्झति दुच्छेज्जो एव वितियस्स। पक्कुल्लाव भयातो कजंपि ण सेसतं उदीरेति / पादेणं आउत्तिय उत्तर सोचाहणेणं तु. // 2361 // Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारकल्प: [263] रोमंथयते कजं वच्चादी णीरसं विवऽसणेत्ति / कहिते कज्जे संते बहिरो व भणाति ण सुतं मे // 32 // मरहट्टलाडपुच्छा केरिसया लाड गुंठ ! साहिस्सं / पावारभंडिछुभणं दसियागणणं पुणो दाणं // 2363 // गुंठादि एवमादीहिं हरति मोहेत्तु तं तु ववहारं / अंबफरुसहिं अप्पो ण णेति सिद्धिं च ववहारो 2364 एते अकजकारी तगराए आसि तंमि उ जुगंमि / जेहिं कया ववहारा खोडिजंतऽण्णरजेसु // 2365 // इहलोगमि अकित्ती परलोगे दुग्गती धुवा तेसिं / अणणाए जिणिंदाणं जे ववहारं च ववहति // 66 // बत्तीसं तु सहस्सा गच्छो उक्कोसओ य उसभमि / बहुगच्छुवग्गहकरा इत्तियमित्ताण जत्थ संथरणं // कित्तहं पूनमित्तं धीरं सिवकोहतिं च अज्जासं / अम्हागं धमण्णाग खंदिलगोविंददत्तं च // 3268 // एते उ कजकारी तगराए आसि तंमि उ जुगंमि / जेहिं कता ववहारा अक्खोभा अण्णरजेसु // 69 // इहला गमि य कित्ती परलोए सुग्गती धुवा तेसिं / आणाए जिणिंदाणं जे ववहारं ववहरंति // 2370 // Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [264 पञ्चकल्प-भाष्ये तहियं पुण केरिसएणं जंपियव्वं तु होति समर्णण / भण्णति सुणसू इणमो जारिसएणं तु वात्तव्व 2371 पारायण समत्ते थिरपरिवाडी पुणा वि संविग्गा / जो णिग्गली दिदिपणे गुरूहिं सो होति पवहारी 72 मूलपाशायणं पढम बतिय बहुमौतमं / ततियं च णिरवसंसं जा सुज्झनि गाहगो 2373 / / सुत्तत्यो चलु पढमो बितिओ गिज्जुत्तिनीसओ भाणओ / तइओ य णिस्वससी एस विही होति अणुआग / / 2374 // पडिणीय संदधम्मो जोणिगाओ अप्पणो सकम्महिं ण हु होति सोपमाणं असमत्तो दलणिग्गमणे : 75 // आयरियादेसाऽवारिएण सत्थे गुणगुणितसरिएण / तो संघमज्झयारे क्वहरियव्वं अणिस्साए // 376 / / आयरिय अणादेसा वारिएण सच्छंदवुद्धिरइएणं / सचित्तखित्तमीसे जो ववहरती ण सो धन्नो // 2377 // सो अभिमुहेति लुद्धा संसारकडिल्लगंमि अप्पाण। उम्मग्गदेसणाए तित्थगरासायणाए य / / 2378 / / उम्मग्गदेसणाए संतस्स छायणाए मग्गस्स / . उम्मग्गदेसगस्सा मासा चत्तारि भारियया // 2379 / / Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहारकल्पः [ 265] परिवार वुड्ढधम्मकह वादि खमए तहेव मित्ती / विज्जा राइणिया इढिगारवो अट्ठहा होति / / 2380 // एमादिगारवहिं अकोविया जे तु तत्थ भासेजा। ते वत्तव्वा इणमो ण तुज्झभागो इहं वोत्तुं // 2381 // बहुपरिवारो भण्णइ जयपरिवारेण हाज कजं तु / सद परिवारं देज्जसु वुड्ढो पुण भण्णई इणमो 2382 लोगेण जत्थ समयं ववहारगयं तु तत्थ होज्जाहि / तत्थ तुम जंपेज्जसु धम्मकही भण्णति इमं तु 2383 जहियं धम्मकहाएं कजं तहियं तुम भणेज्जासि / वादी जत्थ तु वादिप्पओयणं तत्थ भासेन्जा 2384 खमगो भण्णति इणमो देवयकजं जहिं भवेज्जाहि / असिवादिकारणेहिं तत्थ तुमं तं करेजासि // 2385 / / विजासिद्धो भण्णति विज्जाए जत्थ संघकजमि / कज्ज होज्ज करेज्जसु राइणिओ भण्णति इमं तु / / वेले कितिकम्मस्स उ अणुवताण वंदणं अम्हं / कुज्जाहि तुमं गंतुं इह पुण गीयस्स विसओ तु // ण हु गारवेण सका ववहरितुं संघमज्झयारंमि / मासेति अगीयस्थो अप्पाणं चेव गच्छं च // 23886 Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 266] पञ्चकल्प-भाष्ये णासेइ अगीयत्थो चतुरंगं सन्धलोगसारंग। णटुंमि उ चतुरंगेण हु सुलभं होति चतुरंग // 2389 // थिरपरिवाडीहिं बहुस्सुएहिं संविग्गणिस्सिय करहिं। कमि भासियध्वं अणुओगे गंधहत्धीहि // 2390 // मादी य मुसाबादी बिलियं तांतेयं वयं च लोवेति / भाषी च पावजीधी असुतीलित्ते कणगदंडे // 2391 // आभवते पच्छित्ते ववहारो समासतो भवे दुविहो। दोसु य पणगं पणगं आभव्यते अहीकारो // 2392 / / चितो अचित्तोय मीसओ खेत्तकालाणफण्णो / संचविही बवहारो आभव्यतो तु णायव्यो / 2393 // सहषि तु सचित्तो अच्चित्तो हवति वत्थमादी उ। मीसो समंडगाणं खेतमि तु गाममादीहिं / / 2394 // गरादि दलाखत्ते पुण वसहीए तत्थ भग्गणा होति / काल उदुवासाहु य आनणा होति णायथ्या 2395 अहवाऽऽतषण उपसंपयवेत्तकालपञ्चजा। णाऊण संघप्रज्झे ववहरिभवं आणस्साणं / / 2396 // सुत सुह दुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य पंचहा होति / सव्वावि य एषाओ सुयणाणमणुप्पवत्तीओ 2397 Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूत्रोपसम्पद् [267 ] जस्य तु सुतोवसंपद तत्थ तु सव्वा हवंति एयाओ। अहया सुतोवदिट्ठा ण तु सेच्छाए हवंतेया // 2398 // गुरुसीसपडिच्छाणं तिण्ह वि को कस्स किंचुवकरेति / वेयावच्च गमागम काले चिंतादि दव्वे य // 2399 // सीसो आयरियस्स तु वेयावच्चं तु कुणति जा जीयं / जहिं गच्छति तर्हि वच्चति पेसेइ व जत्थ तहिं जाति॥ कज्ज समाणइत्ता एती लद्धिं व सधमपनि / कायव्वुवरगहो तू णाणादीएहिं गुरुणावि // 240 / / दव्वे सञ्चित्तादी लाभो सीसस जो लहिं होति। सो वि य जावजी सव्वा गुरुगो तु भवति / कुणती पाडिच्छो वि तु वेयावच्चं तु असणमादीहिं / बच्चइ य एमाणेणं कालेणं रोयती जाव // 2403 // गेण्हइ वा जाच सुतं ना कुणी सध्यमेव पाडिच्छो। एतो दव्ये वोच्छं जं आभवती तु माडिच्छे // 2404 // जं होनि णालबद्धं अभिसंधारेत तगं एति / संदेसदिण्णगंवा णामे चिंधे व काले य // 2405 // बल्लीऽणंतर संतर अणंतरा छजणा इमे होति / माया पिया य भाता भगिणी पुत्तो य धूया य॥ Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [268) पञ्चकल्प-भाष्ये मातुं माया य पिता भाता भगिणी य एव पितुणो वि। भाउं भगिणीणाऽवच्चा धूता पुत्ताण वि तहेव परंपरवल्लि एसा // 2407 // जदि एतभिधारेती पडिच्छगं ने पडिच्छगन्सेव / अह णो अभिधारेंत्री सुतगुरुणा तो उ आभव्वा 2408 संगारो पुबकओ पच्छा पाडिच्छओ तु सो जाओ! तेण णिलेदेयव्वं उवट्ठिया पुचसेहा मे // 2409 // एवतिएहिं दिणे हिं तुज्झ सगासं अवस्स एहामो। संगारी एव कता चिंधाणि य तेसिं चिंधेह // 2410 // कालण य चिंधेहिं य अविसंवादीहिं तस्स गुरुणिहरा / कालंमि विसंवादए पुच्छिजति कि ण आओ सि 11 संगारदिवसेहिं जदि गेलण्णादि दीवयति तो तु / तस्सेव अह तु भावो विपरिणतो पच्छ पुण जातो // तो होति गुरुस्सेव तु एवं सुतसंपदाए भणितं तु / सुहदुक्खुवसंपण्णे एत्तो लाभं पवक्वामि // 2413 / / वसु मम सुहदुक्खे अहमपि तुज्झं तु एवमुखसंपे / पुरपच्छसंथुया ऊ सो लभती जे य बावीसं // 2414 // सुहदुक्खसंपदेसा एत्तो खेत्तोवसंपदं वोच्छं / खेत्तोग्गही सकोसं वाघाए वा अकोसं तु // 2415 // Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रोपसम्पद् [269] पत्ते उग्गह साहारणे य वासे तहेव उडुबद्धे / सव्वदिसासु सकोसं णिव्वाघातेण पत्ते उ // 2416 // अडविजलतेणसावदयाघाते एगदुगतिचतुसुं वा / होज अकोसो उग्गहो अधुणा साहारणं वोच्छं 17 // साहारण होजाही पडिलेहण पुव्वपच्छणिग्गमणे / पुव्वं पच्छा पत्ते आयरिए वसभ अज्जासु // 2418 // दुगमादीगच्छाणं पडिलेहगणिग्गताण समग तु। पत्ता खेत्तं एसो पढमभंगो मुणेयव्वो // 2419 // समगं णिग्गम एके पच्छा पत्ता य बितियओ भंगो। पच्छा णि गय पुत्वं पविठ्ठा पच्छा य दुहतो वि 20 // पढमगभंगे जो खलु पुत्विं तु अणुण्णवेंति ते खेत्ती। समगं पुणऽण्णुविए सामण्णं होति दोण्हं पि // 2421 // बितियगभंगे दप्पेण पुचि पत्ता उजदि णऽणुण्णवंते। एयरोसिं असढाण य अणुण्णवेताण खेत्तं तु // 2422 // पुरणिग्गता कहं पुण पच्छा पत्ता उ ते हवेज्जाहि / गेलन्नखमगपारण वाघातो अंतर हवेज्जा // 2423 // गेलन्ने वाउलाणं तु खेत्तमण्णस्स णो दए। णिसिद्धो खमओ चेव तेण तस्स ण लब्भती // 2424 Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [270] पञ्चकल्प-भाष्ये अंतरवाघाएणं पच्छा पत्ताण पुब्धि जे पत्ता। असढेहिं अणुण्णवितं पुव्विं पत्ताणतं खेत्तं // 2425 // अह समगमणुण्णविए काउ पमादं पितो उ साहारं। एवं तु षितियभंगो अहुणा तइयंमि वोच्छामि // 26 // पच्छावि पत्थियाणं सभावसिग्घगतिणो भवे खेत्तं / एमेव य आसण्णे दुरद्धाणा व पत्ताणं // 2427 // भंगे चउत्थगंमी पुव्वाणुण्णाए असढ भावाणं / पढमभंगसरिच्छा आभवणा तत्थ णायव्वा // 2428 // पुचगहिओवि उग्गहोहोति गिलाणट्ठताए जहिययो अह होज्जा संथरणं कालक्खेको दुपक्ख वि 2429 / / पुव्वहितखेत्तीणं जदि आगच्छे गिलाणइत्तऽण्णे / जदि दोण्ह असंथरणं तो णिग्गमो खेत्तियाणं तु 30 अह दोण्ह वि संथरणं दोणि वि अच्छंति जा. गिलाणो उ। एते य दोण्णि पक्खा अहवा समणा य समणीओ।। गिलाणं उवही किचा भत्तोवहि लुद्धताऽविहिग्गहित। पेल्लंती परखेत्तं साहमियतेणिया तिविहा // 2432 // उवही णियडी माया गिलाणणिस्साए विज्जमाणे वि छंइत्तु एंति खेत्ते भत्तोवहिलुद्धताए उ 2433 // Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्षेत्रोपसम्पद् [21] लन्भंति सुंदराई गिलाणणियडीए एंति तो तत्थ / इतरे वि गिलाणो त्ती काउं तओ णति खेत्ताउ 2434 तेसुं तु णिग्गएसुं सचित्तादी उ तिविह जं गेण्हे / तं तेसि होति तेण्णं पच्छित्तं चेव तिविहं तु॥२४३५॥ जे पुण असंथरंता एंति तहिं तेसिमा भवे मेरा। आयरियवसभअज्जाण चेव वोच्छं समासेणं 2436 अच्छंति संथरे सव्वे वसभी णीती असंथरे / जत्थ तुल्ला भवे दोवि तत्थिमा होति मग्गणा 2437 णिप्फण्णतरुणसेहे जंगितपादच्छिणासकरकण्णा / एमेव संजतीणं णवरं वुड्ढीसु णाणत्तं // 2438 // परिवार अणिप्फण्णो अच्छति णिप्फण्णतोतु णिग्गच्छे / अच्छंति वुड्ढ तरुणा यं णिति सेहे असेहिल्ले॥ अच्छंति जुगिया तू णितियरे अहव गिता दोवि / तत्थाइल्ला अच्छे अच्छे समणीण तरुणीओ // 2440 // समणाण य समणीण य अच्छंती संजतीओ णियमेणं जेण बहुपच्चवाता अणुकंपातेण समणीणं // 2441 // संथारे भत्तसंतुट्ठा तस्स लाभंमि अप्पभू / झुंगियमादीएम य वयंति खेत्तीण ते जोसि // 2442 // Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ { 272] पञ्चकल्प-भाष्ये दुयमादीगच्छाणं वेत्ते साहारणमि वसियव्वे / अप्पत्तिय पडिसेहताए मेरा इमा तत्थ // 2443 // अस्थि बहुवसभगामा कुदेसणगरोवमा सुहविहारा। बहुगच्छुबग्गहकरा सीमच्छे देण वसियव्वं // 2444 // आयरिय उवज्झाया दुहिं तिहिं सहिया तु पंचओ गच्छो। एव तु गच्छा तिणि उडुबद्धे संथरे जत्थ 2445 // वासासु तिचउजुना आयरिय उवज्झ सत्तओ गच्छो एव तु गच्छा तिणि तु वासामु संथरे जत्थ 2446 कालदुयंमि वि एवं जहण्णयं होति वासखेत्तं तु। बत्तीस तु सहस्सा गच्छो उकोस उसभम्मि 2447 बहुगच्छुश्चग्गहकरा एत्तियमेत्ताण जत्थ संथरणं / ऊणा अणुवग्गहिता सीमच्छेदं अतो वोच्छं 2448 तुभंडतो भह बाहिं तुज्झ सचित्तं ममेतरं वावि / आगंतुय पत्थव्वा थीपुरिसकुलेस्तु व विसेसो 2449 सेसे सकोसजायण मूलणिबंधे अणु-मुयंतेणं / मच्चित्ते अच्चित्ते भीस वियांदणकालंमि 2420 // सत्ती णिस्साहारणमि सूलवेत्तं अणुम्मुयंनेणं / होति सकोसं जोयण दिसविदिलाहुं तु सव्वत्तो।। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकल्पः [203 एवं खेत्तओ एसो कालओ उडुबद्धि होति मासो तु। वासासु चउम्मासो एवति कालो विदिण्णो तु 2452 एवति कालविदिण्णं पुण्णे णिकारणंमि तेण परं / ण तु उग्गहो विदिण्णो मोत्तूणं कारणमिमेहिं 2453 असिवादिकारणहिं दुविहऽतिरेगे वि उग्गही होति / जा कारणं तु छिण्णं तेण परं उग्गहो ण भवे 2454 जदि होति खेत्तकप्पो असती खेत्ताण होज्ज बहुगावि। खेत्तेण य कालेण य सव्वस्स वि उग्गहोणगरे 2455 सति लंभे खेत्ताणं जोग्गाणं जो तु जत्थ संथरति / सो तहितं संचिक्खे खेत्ताण असती पुण बहूंवि 56 एगत्थ उ गामादिसु जहियं तू संथरंति तहिं अच्छे / सव्वेसिं तहिं उग्गहो साहारण होति जह णगरे // एसा खेत्तुवसंपद पुरपच्छासंथुए लभति एत्थ / मह मित्तवयंसा या जं च लभे सुत्तोवसंपन्नो 2458 मग्गोवसंपदाए मग्गं देसेति जाव सो तस्स / लभती दिट्टाभट्ठादि जोय लाभो पुरिल्लाणं // 2459 // विणओवसंपदा पुण कुव्वति विणयं तु जो तुरायणिए सव्वं तस्साभवती जो उ उवट्ठायती तस्स // 2460 // Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [274] पञ्चकल्प-भाष्ये उवसंपद इच्चेसा पंचविहा वणिता समासेणं / खेत्तंमि परे खेत्ते णिक्खामिओ जो तु होज्जाहि // काले उदु वासं वावसिऊणं णिग्गताण जो अण्णो। पढमबितियदिवसेसू णिक्वामे कालओ एसो 2462 इच्चेसो पंचविहो ववहारो आभवंतिओ णामं / पच्छित्ते ववहारो जह दसमुद्देस ववहारि // 2463 // अहुणा तु खेत्तकाला ते वि तु तत्थेव भणित ववहारे। जं तत्थ उ तस्सेसं तमहं वोच्छं समासेणं // 2464 // दुविहे विहारकाले तिविहा सोही उ उवहि भत्ताणं / दिण्णे जतंत सोही अविदिण्णट्टाए आवणे / / 2465 // उडुषद्धे वासासु य विहारकालो य होति दुविहेसो। उग्गम उप्पायण एसणा य एसा तिविह सोही 2466 उड्डुबद्ध मास वासासु हाँति चतुरो विदिण्णकालो तु / एत्थ जयंता जदिवि तु आवजे तह वि सुद्धा तु 2467 मासो चतुमासा पुण संवसमाणा तु तत्थ अतिरित्तं / लग्गति जयंता विहु किमु अजयंता उकिं चणं // उडुबद्ध वामवासं अणुवसमाणो असुद्धभत्तुवही / आयरियप्पमाणा गुणप्पमाणं च समणाणं // 2469 // Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालकल्प: [ 275] उग्गममादीदोसा असेवमाणो वि सो तु आवण्णो / जम्हा दोसायतणं उरंमि थावेत्तु संवसति // 2470 // कत्थेयं भणियंति य भण्णति आयरिएण किमायारे। आयारपकप्पे तू आयारिं भवंतु आयारी // 2471 // जे भिक्खू णितियवासं वसइत्ती एत्थ भाणिय सुत्तमि। एवं पमाण उभये अतिरित्ते या वि जे दोसा 2472 जदि पुण बहिताहाणीतहिं वढि गुणाण तत्थ अच्छंति। के पुण गुणादि भणिता भण्णति णाणादिया होति // 2473 / / कालातीते दोसा दव्वक्खओ होति अच्छमाणाणं / तम्हा उ ण चिट्ठज्जा अतिरित्तं दुविहकालंमि // 2474 / / णियअणुकंपाए गिहिणं तो णाम ण वसहा तुम्भे। भण्णति ण होति एवं मा साधूणं चरणभेदो 2475 चोदेताहारादिसु सुज्झे तेसू वि णाम जं तीए / तत्य ण चिट्ठह तण्णामणिद्दयत्तेण गहियाणं 2476 / / मा पाविहिंति धम्म गिहिणो साहूण फासुदाणेणं / इय णिद्दयता अहवा इहलोगणुकंपता तेसिं // 2477 // मा दव्ववओ होही अणुवासे णिच्च साधुदाणणं / इय अणुकंपिहलोए भण्णति ण तु एवमादीहिं 2478 Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 276 ] पञ्चकल्प-भाष्ये मा होज चरणभेदो पुण्णातीतमि संवसंताणं / अतिचिरसंवासेणं सिणेहमादीहिं दोसेहिं // 2479 // एसो उ कालकप्पो एवं वक्खाणिओ समासणं / अहुणा हु उवहिकप्पं गुरूवदेसेण वोच्छामि 2480 उपगिण्हति उवकारं करेति उवहीयतेण उवही तु। किं कारणंतु उवही उद्दिसिओ भएणती सुणसु 2481 जीवाणऽणुग्गहट्ठा एवं खलु वण्णितो इहं तित्थे। कातूणऽणुग्गहपदं पडिणीयपदे अभावो तु // 2482 // रसयादणुकंपट्टा अगणीमादीण चेव रक्खट्ठा / असहूणऽणुकंपट्टा य उवहीगहणं जिणा बेंति // आह जहणुग्गहट्ठा वत्थादीगहण देसियं समये। तो असहूणं कम्हा थीपरिभोगोणऽणुण्णाओ 2483 भन्नति पवित्ति कम्हिऽवि कम्हिवि पुण होति अपवित्ती उ। संजमपडिणीयत्ता मेहुणमादीण णाऽणुण्णा // 2484 // नाणचरणठिताणं उवग्गहं कुणति णाणचरणाणं / आहार उवहिसेन्जा तेण उ उवाहित्तणं बेति // 2485 // जस्स पुणोवहिगहिता उवघायकरीतु तस्स उबघातो। कह उवघाय करेती अतिरित्त गहो य मुच्छा य 2486 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपधिकल्प: [ 277] संथरमाणो गेण्हति अतिरित्तं उवहि जो भवे समणो। वण्णादिजुते मुच्छति इट्टाहारे धुवस्सेवं // 2487 // एतेसु अणिटेसु य जो दुस्सति से करेति उवघातं। णाणादीणं तिण्हं तम्हा ते वज्जिए हेतू // 2488 // जो जत्थ जदा जहियं उवही परिभोगओ अणुण्णाओ सो तत्थ अणतिचारो अणणुण्णाए चरणभेदो 2489 जह सिंधूओ कप्पो ओराला उण्णिया अणुण्णाया। पिसियादीण य गहणं खीरादीणं चऽणुण्णातं / / अतिहिमदेसे य तहा कारणियगयाण सिसिरकालंमि। परि ताण य को विवाद चरणे अणुवघातो 2491 लाडविसयादिएK एतेसिं चेव भोत्तु पडिसेहो / पडिमिद्धे परिभोग कुणमाणो भंजती चरणं // 2492 // णाणंपि तु सो भिंदइ उवदेसं जेण ण कुणती तस्स / जं णाण पुव्वदंसण दंसणभेदो वि तो तेणं // 2493 // णिवदिक्खितमतरतादिएमु कजेसु होति परिभोगो। समणुण्णाओ कसिणादियाण इहरा अणुव भोगो॥ एसो उ उवहिकप्पो अहुणा संभोगकप्प वोच्छामि / तस्स पसाहणहेडं गाहामुत्तं इमं आह // 2495 // Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 278] पञ्चकल्प-भाष्ये ण विरागाण वि दोसा संभोगविही तु वणितो मुत्ते। णाणचरणठिताणं भाणियं सुतणाणपुरिसेहिं 2496 रागेणं संभुंजति सिणेहओ तेहिं सद्धि मम पीती। जच्चादणुवसमेण व दोसेणेवं ण संभुंजे // 2497 / / णाणचरण रयाणं एसुवदेसो उ वण्णितो सत्था। तं गणहरेहि गहितं तो ते सुतणाणपुरिसा उ 2498 किं कारणं अणुण्णा संभोगविही तु एस साहूणं / भन्नइ नाणाईणं परिवड्ढी एव होहिति तु // 2499 // अण्णोण्णस्स सगासे णाणमहीहिंतिजं च तं गहिता। होहिंति थिरा चरणे काहिंति गिलाणकिचं च 2500 जदि संभोगगुणा ते ता सव्वे कीस ण परिभुजंति / भण्णति सरिसऽहिंगेहिं व संलोगो ण पुण हीणेहिं / / अस्थि पुण केइ पुरिसा तिगं तिगेणं पमाय कव्वंति। आहार उवहिसेजा जत्तो संभुंजणाबंधो // 2502 // आहारादीतियगं उग्गममादी असुद्धगहणेणं / जे कुव्वति पमायं तेसिं संवासदोसेणं // 3 // अणुमोदणपच्चिइओ मा बंधो होहितित्ति तेणं तु। ण वि कीरति संभोगो ते वि य चगिता वरं होता 4 Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्भोगकल्पः [ 279] णणु रागदोसियत्तं संभुंजणे एगएगऽसंभोगे। भण्णति ण रागदोसा सुणसू जं कारणं एत्थं 2505 संभुजणा विसुद्धा उवग्गहं कुणति णाणचरणाणं। संभुंजणा असुद्धा चरित्तभेदं वियाणाहि // 2506 // भोगेण पमाएणं तद्दोसाणं तु होति समणुण्णा। एवं चरित्तभेदो किं पुण सो कुव्वति पमादं // 2507 // पूयारसपडिबद्धो सुद्ध असुद्धं करेति संभोगं / ' अहवा वि अजाणतो संभोगविहीए गुणदोसे 2508 पूजाहेतु पमादी सेवति रसहेउगं च तस्सेवी / णाणादिसुद्धकप्पं कुणति असुद्धं तु सो एवं // 2509 // पारस मूलपदा खलु संभोगविहीय वण्णिता सुत्ते। जत्तो पावादाणं भणितं दुट्ठाण उक्खेवो // 2510 // उवहिसुतभत्तपाणे अंजलीपग्गहे इय। वायणा य णिकाए य अन्भुट्ठाणे त्ति यावरे // 2511 // कितिकम्मस्स य करणे वेतावच्चकरणे इय / समोसरण सन्निसेज्जा कहाए य पबंधणे // 2512 // एते बारसभेदा संभोगविहीय तू समक्खाता। पावादाणं तेसु तु इमेहिं ठाणेहिं णायव्वं // 2513 / / Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [280 / पञ्चकल्प-भाष्ये रागद्दोसाणुगतो जो संभोगं तु पालए पत्तं / .. सो दुट्ठो णायव्वो तस्सुक्खवो विसंभोगी :2514 // अहवा वि इमेहिं तू कारणेहिं णियमा भवे विसंभोगी। संभोगविहिं जा तू विवरीयं आयरेजाहि // 2515 // उवरिममज्झिमहेट्टिम संभोगाणगं तिहाविभए। पडिसेहे पडिसेहो समणुण्णे होति समणुण्णो 2516 उवरिमए त्ति अहागड मज्झिमगाहोंति अप्पपरिकम्मा। सपरिकम्मा हेहिम संभोगविही लिहा एसो।। अहाकडा मिलति अहाकडेसुं भत्तं च पाणं तह धोवणं वा / अहाकडा गच्छति हेहिमेसु ण हेटिमा छुन्भ अहाकडेसु // 2518 // मज्झिमिता हेट्टिमते छुन्मांत ण तु हेट्टिमा उपरिमेसुं। एसो तिविहो तु भवे संभोगविही समासणं 2519 पडिसेहे पडिलेहो सपरिकम्मं तु होति पडिबद्धं / तस्स पुणो पडिसेहो उवरिल्ले मेलणा जाउ 2520 // पडिसेहो हेढुवरि उवरिल्लो हेट्टिमे अणुण्णाता। अह पडिसेहि अणुण्णा होति इमा तू मुणेयव्वा 2521 जो पडिसिद्ध एयं आयरती तस्स होति पडिसेहो / पडिसेहो विवेगोत्ती अवितहकरणे अणुण्णा उ 2522 Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिङ्गकल्पः [ 281] केरिसएणं तु समं संभोगो तेसि होति कायव्वो। अहवा विण कायव्वो भण्णति इणमो णिसामहि // ण वि एस मंदधम्मे ण गिहत्थेसुं ण चेव अन्जासु / बावत्तरी विभत्तोऽवितरे पडिसेहणं जाणे // 2524 // दिज्जति घेप्पति य तहा केसिंची दिज्जए ण घेप्पति तु णवि दिजति घेप्पति तू णवि दिजति णवि य घेप्पति तू // 2425 // संविग्गसंजयाणं दिज्जति घेप्पह य पढमभंगो तु / संजतिवग्गे दिजति णवि घेप्पति कारणे बितिओ। गिहिअण्णनित्थियाणं णवि दिज्जति घेप्पती उणवरं चणवि दिज्जतिणविघेप्पति पासत्थादीण सव्वेसिं॥ बावत्तरी विभत्त त्ति एस बारसविही तु संभोगी। छहिं गुणितो बांवत्तरि संभोगाणं मुणेयव्वा 2528 बावत्तरी तु एसा दुगतिगचउपंचछक्कसंगुणिता। जावइय होति भेदा तेसु विसुद्धेसु संभोगो // 2529 // पडिसहो असुद्धंसुं कप्पो संभोग एस वक्खाओ। अहुणा तुलिंगकप्पं वोच्छामि अहाणुपुठवीए 2530 जो पुट्विं वक्खाओ जिणथेराणं तु दोण्ह ची कप्पो / रूढ णहकक्खमादी सो चेव इहं पि णायव्वो 9531 Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 282] पञ्चकल्प-भाष्ये इति एसो लिंगकप्पो वोच्छं पडिसेवणाए कप्पं तु। जारिसयं सेविज्जति सुद्धमसुद्धं समासेणं // 2532 // गहणपरिभुजणाए णिव्वाघाते तहेव वाघाते। वाघाते दुयगहणं णिवाघाते य तियगहणं // 2533 // पडिसेवणा उ दुविहा गहणे परिभुंजणे य णायव्वा / एकेका वि य दुविहा णिव्याघाते य वाघाते // 2034 // वाघातंमी सुद्धं गेण्ह असुद्धं च एतंदुयगहणं / परिभुंजती वि एवं णिव्याघातमि वोच्छामि 2535 उग्गममादीसुद्धं गेण्हति परिभुजती य तियमेतं / अह को पुण वाघातो परूवणा तस्सिमा होति 2536 असिवे ओमोदरिए रायट्ठ भए व आगाढे / छक्कायद्गमुवादाय वाघाले णिवघाते य 1.2537 // सुद्धमसुद्धं व जहिं अहवा सच्चित्तमीसर्ग वा वि। एनसिं दोण्हं तू वाघाते गहण भोगे य / / 2538 / / णिव्वाघाए छह वि अचित्ताणं तु गहणकायाणं / गहिशस्ल य परि भोगो तस्सेव य होति कायव्यो 39 परिभोगे वाघातो गहिते पच्छा तु होज तं णातं / जह आहाकम्म ती ताहे य तयं ण परिभुंजे 2540 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवासनाकल्प [ 283] वाघाते सेवंतो अकिचमेयं तु चिंतए साहू। होति तहा णिजरओ जो पुण इणमो समायरति // पूजारसपडिबद्धो ओसण्णाणं च आणुयत्तीय / चरणकरणं णिगूहति तं जाणऽणुयत्तियं समणं 42 // पूजारसहेङ वा बेती जह किच्चमेव एयं तु / मा मे ण देहिति पुणो जह एसोऽकिच्चकारीत्ति 43 अहवा ओसण्णाणं तु अणुयत्तीय बेति को दोसो। आहाकम्मादीसुं णवरं मा कीरउ सयं तु // 2544 // सो गूहति चरणादी एवं तुच्छं खु तस्स सामण्णं / तम्हा तु परवेजा सुद्धं मग्गं तु किं चऽणं 2545 णिस्साणपदं पीहति अणिस्स विहरंतयं ण रोएति / तं जाण मंदधम्म इहलोगगवंसगं समणं // 2546 // अहवा उम्मग्गो खलु णिस्साणं तं तु पीहए जो तु। तस्स तु छेदसुतत्थं ण कहे दोसा इमे तहियं 47 // पंचमहव्वतभेदो छक्कायवहो / तेणऽणुण्णाओ। सुहसीलऽवियत्ताणं कहेइ जो पवयणरहस्सं 2548 // पडिसेवकम्प एसो अहुणा वोच्छं अणुवासणाकप्पं / अणुवास मासकप्पो वासावासो इमेसिं तु // 2549 / / Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [284 / पञ्चकल्प-भाष्ये जिण-थेर-अहालंदे परिहरिते अज मासकप्पो उ। खेत्ते कालमुवस्सयपिंडग्गहणे य णाणत्तं / / 2550 // एएसिं पंचण्ह वि अण्णोण्णस्स उ चतुपदेहिं तु / खेत्तादीहिं विसेसो जह तह वोच्छं समासेणं 2551 णत्थि उ खेत्तं जिणकप्पियाण उडुबद्ध मास कालो तु / वासासुं चउमासा वसही अममत्त अपरिकम्मा 52 पिंडो तु अलेव कडो गहणं तू एसणाहुबरिमाहिं / तत्थ वि काउमभिग्गह पंचण्ह अण्णतरियाए 53 // थेराण अस्थि खेत्तं तु उग्गहो जाव जोयण सकोस। णगरे पुण वसहीए विकाले उडुबद्धि मासोतु 2554 उस्सग्गेणं भणिओ अववाएणं तु होज अहिओ वि। एमेव य वासासु चि चतुमासो होज अहिओ वि // अममत्त अपरिकम्मो उवस्सओ एत्थ भंग चउरो उ / उस्सग्गेणं पढमो तिणि उ सेसाववादेणं // 2556 // भत्तं लेवकडं वाऽलेवकडं वा वि ते उ गिण्हंति / सत्तहि वि एसणाहिं सावेक्खो गच्छवासा त्ति 2557 अहलंदियाण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिणाणं तु। णवरं कालविसेसो उडुवासे पणग चतुमासो 2558 Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवासनाकल्पः [285] गच्छे पडिबद्धाणं अहलंदाणं तु अह पुण विसेसो / उग्गहो जो तेसिं तू सो आयरियाण आभवति 2559 एगवसहीए पणगं छवीहीओ व गाम कुव्वंति / दिवसे दिवसे अण्णं अडंति वीहीइ णियमेणं 2560 परिहारविसुद्धीणं जहेव जिणकप्पियाण णवरं तु / आयंबिलं तु भत्तं गेण्हंती वासकप्पं च // 2561 // अजाण परिग्गहियाण उग्गहो जोतु सोतु आयरिए। काले दो दो मासा उडुबद्धे तासि कप्पो तु // 2562 // सेसं जह थेराणं पिंडो य उवस्सओ य तह तासिं। सो सव्वो वि य दुविहो जिणकप्पो थेरकप्पो य // जिणकप्पि-अहालंदी-परिहारविसुद्धियाण जिणकप्पो। थेराणं अजाण य बोधव्वो थेरकप्पो उ // 2564 // दुविहां य मासकप्पो जिणकप्पो चव थेरकप्पो य / णिरणुग्गहो जिणाणं घेराण अणुग्गहपवत्तो 2565 उडुवास कालतीते जिणकप्पीणं तु गुरुग गुरुगा य। होति दिणंमि दिणंमी थेराणं ते चिय लहूओ 2566 तीसं पदावराहे पुट्ठो अणुवासियं अणुवसंतो। जे जत्थ पदे दोसा ते तत्थयगो समावणे // 2567 // Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [286] पञ्चकल्प-भाष्ये पण्णरसुग्गमदोसा दस एसणदोस एते पणुवीसं / संजोयणादि पंच य एते तीसं तु अवराहा / / 2968 / / एतेहिं दोसेहिं जदि असंपत्ति लग्गती तह वि / दिवसे दिवसे सो खलु कालातीते वसंतो तु 2565 वासावासपमाणं आयारे उप्पमाणितं कप्पं / एवं अणुम्मुयंतो जाणसु अणुवासकप्पं तु // 2570 / / आयारपकप्पंमी जह भणियं तीति संवसतो वि / होति अणुवासकप्पो तह संवसमाणऽदोसा तु 2071 दुबिहे विहारकाले वासावासे तहेव उडुबद्धे / मासातीते अणुवहिवासातीते भवे उवही // 2572 / / उडुबद्धिएसु अट्ठसुमासातीतसुं तत्थ वास ण तु कप्पे। घेत्तूणं उवही खलु वासातीतसु कप्पति तू // 2073 / / वासउडु अहालंदे इत्तिरि साहारणे पुहुत्ते य / उग्गह संकमणं वा अण्णोण्णसकासहिजते 2074 वासासु चउम्भासो उडुवः मासो लंद पंच दिणा। इत्तिरिओ रुक्खमूले वीसमणट्ठा ठिताणं तु // 2575!! साहारणा तु एते समठिताणं बहूण गच्छाणं / एक्केण परिग्गहिता सव्वे वोहित्तिया होति // 2056 / / Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुवासनाकल्प: [287 संकमणण्णमण्णस्स सकासे जदि तु ते अहीयंते। सुत्तत्थतदुभयाइं संधे अहवावि पडिपुच्छे / / 2577 // ते पुण मंडलियाए आवलियाए व तं तु गेण्हेजा। मंडलियमहिजंते सचित्तादी तु जो लाभो 12578 // सो तु परंपरएणं संकामति ताव जाव सट्ठाणं / जहियं पुण आवलिया तहियं पुण अंतरे ठाति 2579 ते पुण ठित एकाए वसहीए अहव पुप्फकिण्णा तु / अहवा वि तु संकमणे दव्वस्सिणमो विही अण्णो / / . सुत्तत्थतदुभयविसारयाण थोव अ संततीभेदे / संकमणदव्वमंडलि आवलियाकप्पअणुवासा 2581 पुव्वतिाण खेत्ते जदि आगच्छेज अण्ण आयरिओ। बहुसुय बहुआगमिओ तस्स सगासंमि जति खेत्ती॥ किंचि अहिजेजा ही थोवं खेत्तं च तं जदि हवेजा। ताहे असंथरंता दोणि वि साहू विसजेति // 2583 / / अण्णोण्णस्स सगासे तेसिं पिय तत्थ विज्जमाणाणं। आभवणा तह चेव य जह भाणयमणंतरे सुत्ते 84 एवं.णिव्वाघाते मास चतुम्मासितो उ थेराण / कप्पो कारणतो पुण अणुवासो कारणं जाव 2585 Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [288] पञ्चकल्प-भाज्ये एसऽणुवासणकप्पो अहुणा अणुपालणाए कप्पं तु। संखेव समुद्दिढ वाच्छामि अहं समासेणं // 2586 // मोहतिगिच्छाए गते णटे खेत्तादि अहव कालगते। आयरिए तंमि गणे पीलादीरक्खणहाए // 2587 / / को उ गणी ठवणिज्जो भण्णति जति तस्स कोति सीसो तु।सुत्तत्थतदुभएहिं णिम्माओ सो ठवेयव्वो। असतीय तस्स ताहे ठावेयव्वा कमेणिमेणं तु / पञ्चज्ज कुले णाणे खेत्ते सुहदुक्खि सुतसीसे 2589 गुरुगुरु गुरुणं तू वा गुरुसज्झिलओव्य तस्स सीसोवा पव्वज्ज एगपक्खी एमादी होइ णायवो // 2590 / / असतीए कुलिचो वी तस्सऽसतीए सुएगपक्खीओ। खेत्ते उवसंपण्णे तस्सऽसतीए ठवेयवो 2591 / / सुहदुक्खियस्स असती तस्सऽसतीए सुतोवलंपण्णा एवं तु वियाण तहिं सीसंसि तु मग्गणा णथि 92 पाडिच्छगणधरे पुण ठविए तहियं तु मराणा इणनो। सुत्तत्थमहिज्जंते अणहिज्ज इमे विभागा॥२:०३।। साहारणं तु पढमे बितिए खत्तम तनिए सुखदुकवे / अणहिज्जते सीले सेसे एक्कारस विभागा!२.९४|| Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणुपालमाकल्प [ 289] पुवुद्दिढगस्स उ।। पच्छुट्टि पवाययंतस्स / 2 / संवच्छरंमि पढ मे पडिच्छए जं तु सचित्तं // 2595 / / पुव्वं पच्छुद्दिष्टे पांडच्छए जं तु होति सञ्चित्तं / संवच्छरंषि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स / / 2596 / / पुत्वं ५च्छुद्दिष्टे सीसंमि तु जं तु होति सचितं / संवच्छरंमि पढमे तं सव्व गणस्स आभवति / 4 / / पुवुद्दिवगणस्सा / / पच्छुद्दिढ पवाययंतस्स / 6 / संवच्छमि बितिए सीसंमि तु जं तु सचित्तं 2598 पुव्वं पच्छुद्दिट्टे सीमंमि तुजं तु होति सचित्तं 7 / संवच्छमि तनिए तं सव पवाययंतस्स // 2599 // पुवुद्दिठे गच्छे ।८पच्छुद्दिट्टे पवाययंतस्स / / संवच्छगम पढमे सिस्सिणिए जंतु सचितं // 2600 // पुत्वं पच्छुद्दिठे सिस्सिणिए जंतु होति सचित्तं / संवच्छरमि बितिए तं सव्व पवाययंतस्स / 10 / 1 // पुत्वं पच्छुद्दिठे पडिच्छियाए उ जंतु सचित्तं / संवच्छरम पढमे तं सव्व पवाययंतस्स / 11 // 2602 खेत्तुवसंपायरिओ सुहदुक्खी चेव जति तु संठविओ। कुलगणसांघच्चो वा तस्स इमो होंति उ विवेगो 2603 Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [29.] पञ्चकल्प-भाज्ये संवच्छराणि दुणि उ सीसंमि पडिच्छयाम्म तदिवसं एवं कुलिच्च गणिच्चे संवच्छर संघ छम्नासा 2604 तत्थेव य णिम्माए अणिग्गए निग्गए इमा मेरा / सकुले तिणि तियाइं गणदुग संवच्छरं संघे 2605 ओमादिकारणेहिं दुम्मेहत्तेण वा ण णिम्मातो। काऊण कुलसमायं कुलथेरे वा उवढेति // 2606 // णव हायणाई ताहे कुलं तु सिक्खाबए पयत्तणं / ण य किंचि तेसि गिण्हति गणो दुगं एग संघो उ॥ एवं तु दुवालसहिं समाहिं जदि तत्थ कोनि णिम्मातो। ता णिति अणिम्माए पुणो कुलादी उवट्ठाणा 2608 तेणेव कमेणं तू पुणो समाओ हवंति वारस उ। णिम्माए विहरंती इहर कुलादी पुणोवट्ठा // 2609 // तहवि य बारसमाओ णिम्माओ सोसि गणधरोहोति तेण परमणिम्माते इमा विही होति तेसिं तु 2610 छत्तीसातिकते पंचविहुवसंपदाए तो पच्छा / पत्तं उवसंपाद पव्वज्ज तु एगपक्खंमि // 2611 // पव्वज्जाए सुतेण य चतुभंगो होनि एगपक्खंमि / पुवाहितवीसरिए पढमासति ततियभंगणं 2612 Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुशाकल्प [291 सव्वस्स वि कायव्वं णिच्छयओ किं कुलं व अकुलं वा काले सभावममत्ते गारवलज्जाए काहिंति // 2613 // एसऽणुपालणकप्पो अहुणाऽणुण्णातो गंदिसुत्तेहिं / सिद्धो अणुण्णकप्पो णवरेगट्ठाणि वोच्छामि 2614 किमणुण्ण कस्सऽणुण्णा केवतिकालं पवत्तियाऽणुण्णा। आयरियत्त सुतं वा अणुण्णव्वइ जं तु साऽणुण्णा // यस्स त्ति सीसस्स तु गुरुगुणजुत्तस्स होयऽणुण्णा उ। केवति काल पवित्ती आदिकरेणुसभसेणस्स 2616 एगट्टियाणि तीय उगोण्णाइं हवंति णामधेजाई। वीसं तु समासेणं वोच्छामि ताणिमाई तु // 2617 // अणुण्णा उण्णमणा णमण णामणि ठवणा पभाव णा वियारे। तदुभयहिय मजाता कप्पे मग्गे य . गाए य // 2618 // संगह संवर णिजर थिरकरणमछेद जीत वुढिपयं / पयपवरं चेव तहा वीस अणुण्णाए णामाई // 2619 / / अणुण्णवइत्तऽणुण्णा उण्णामिय ऊसियंति उण्णमणी गिहिसाधूहिं णमिजति तम्हा ऊ होति णमण त्ति // सुतधम्मचरणधम्मे णामयती जेण णामणी तम्हा / ठविओ आयरियत्ते जम्हा ऊ तेण ठवणं ति 2621 Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [292] पञ्चकल्प-भाष्ये ठवितो गणाहिवत्ते होति पभू तेण पभवो सव्वेंसिं। णाणादीणं होती पभवो पभूइ त्ति एगट्ठा // 2622 // मायरियात्ते पभविते तेण वियारा उ दिजति गणो से। तदुभयहियं ति भण्णति इहपरलोगे य जेण हितं // गणधरमेर धरेती जम्हा ऊ तेण होति मज्जादा। करणिज्जो कप्पो त्ति य कप्पो गणकप्प समणेणं // णाणादि मोक्खमग्गो सो तंमि ठितोत्ति तो भवति मग्गो। जम्हा उ णायकारीणाओ वा एस तो णातो॥ दव्वे भावे संगहो दव्वे आहारवत्थमादीहिं। भावे गाणादीहिं तु संगिण्हति संगहो तेणं // 2626 // दुविहेण संवरेणं इंदियणोइंदिएहिं जम्हा तु / अप्पाण गणं च तहा संवरयति संवरो तम्हा 2627 गणधारणमगिलाए कुणमाणो णिज्जरेइ कम्माई / अण्णे य णिज्जरावे तम्हा तू णिज्जरा होति 2628 वातेरिता लता इव पकंपमाणाण तरुणमादीणं / होति थिरावटुंभो तरुव्व थिरकरण तेणं तु // 2629 // जम्हातु अवोच्छित्ती सो कुणती णाणचरणमादीणं / तम्हा खलु अच्छेदं गुणप्पसिद्धं हवति णामं 2630 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थापनाकल्प [29] तित्थकरेहि कयामिणं गणधारीणं तु तेहिं सीसाणं / तत्तो परंपरणं आयमिणं तेण जीयं तु // 2631 // वड्ढइ णाणचरणे गणं तु तम्हा उ तेण वुढिपदं / पवरं पहाणमेतं सव्वेसिं रायदेवाणं // 2632 // इति एसऽणुण्णकप्पो जहाविही वणितो समासेणं / ठवणाकप्पं एत्तो वोच्छामि अहाणुपुवीए // 2633 // तिविहो ठवणाकप्पो कुले गणे चेव तह य संघे य। एतेसिं परूवणयं वोच्छामि अहाणुपुव्वीए // 2634 // कुलथेरेणं गणेण व जा मेरा ठाविता भवे णियमा। सो कुलठवणाकप्पो एवं गणे होति संघे य // 2635 // केरिसया पुण थेरा कुलगणसंघाण होति तु पमाणं? / भण्णति मुणसू इणमो जेहिं गुणेहिं तु ते जुत्ता / कप्पाकप्पविहिण्णू सुत्तत्थविसारदा सुतरहस्सा / जे चरणकरणजुत्ता ते सुद्धणयाण तु पमाणं 2637 कप्पाकप्पविहिण्णू सुत्तत्थविसारदा सुतरहस्सा। जे चरणकरणहीणा ते सुद्धणताण भइयव्वा 2638 नेतव्वा खलु कज्जा असती चरणट्ठियाण धेराणं / हीणो वि सुयसमिद्धो मज्झत्थो होति तु पमाणं // Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 294 / पञ्चकल्प-भाध्ये कह पुण ठाविज्जंते ते उ पमाणं तु तेसु ठाणसु / कुलगणसंधा थेरा भण्णति इणमो णिसामेहि 2640 इच्छाकारणिउत्तो पियधम्मो तिण्ह कोइ एन / सो होति तिगत्थेरो तिगचरित वियाणतो धीरो 2641 णातूण गुणसमिद्धं जोगंतु कुलादिथेरठाणस्स / कातूणिच्छाकारं कुलादिणो बेंति तो इणमो॥२६४२॥ तुले होह पमाणं कुलधेरा थेरठाणजोगं तु। एवं तु कुलादीहिं तिगथेरा तू ठविज्जति // 2643 // तिगचरितं जाणइ त्ति चरितं मज्जातर एगट्ठा / तं तु तहाविहि जाणवि तिण्हं पि.कुलादिठाणाणं // पासत्थोसण्ण-कुसीलठाणपरिरक्खती दुपक्ख वि। सो होति तिगत्थेरो तिगथेरगुणेहिं उवउत्तो // 1645 // पासत्थादीठाणे ण वदृती एस रक्खओ होति / अहवा सति सद्धाए पासत्थादी वि पालेति // 2646 // परिहुजंते रागादिरक्खिते साहुसाहुणि दुपक्खे। अहवा अप्पाण परे तिगथेरी संघथेरो तु // 2647 // एसो तु तिगत्थेरो तिगरगुणेहिं होति संपण्णो। अहुणा वीसुं वीसुं कुलादिथेरे पवक्खामि // 2648 // चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा कुलप्पहाणो तु / सो होति कुलत्थेरो कुलचरितवियाणओ धीरो 2649 Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थापनाकल्पः [295] पासत्थोसण्णकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्खे वि। सो होति कुलत्थेरो कुलथेरगुणेहिं उववेदो // 2650 // चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा गणप्पहाणोतु / सोहोति गणत्थेरो गणचरियवियाणओ धीरो 2651 पासत्थोसण्णकुसीलठाणपरिरक्खतो दुपक्खे वि। सो होति गणत्थेरो गणथेरगुणेहिं उववेतो // 2652 // चरणकरणे समग्गो जो जत्थ जदा जुगप्पहाणोतु। सो होति संघथेरो सीतघरसमो पुरिससीहो 2653 // एसो तु मूलसंघो आपुच्छण-गमणकरणकजेसु / हितसुहणिस्सेसकडो कुलगणसंघऽप्पणो चेव 2654 दसणणाणचरित्ते जा पुव्वपरूवणाऽऽयरणया य / एसो तु मूलसंघो तिविहा थेरा करणजुत्ता // 2655 // पुव्वं पि परवेजा आयारादीसु वणितचरित्ते / तं सम्ममायरंतो हवति तु संघो तहा थेरो // 2656 // जो सोहीणचरित्तो अण्णस्सऽसतीत पुव्वभणितोतु। कुलथेरादि ठविन्जति तस्सुवदेसो इमो होति // 2657 // होज वसणसंपत्तो सरीरमायंकता असहुओ वा। चरणकरणे असत्तो सुद्धं मग्गं परवेजा // 2658 // Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [296] उपसंहारः घसणं वाजीमादी सूलजरादी तु होइ आतंको। धितिसारीरबलेणं हीणो असहू मुणेयव्वो // 2659 // एतेहिं कारणेहिं अकप्पपडिसेवणं करंतो वि। सुद्धं मग्ग परूवे अप्पाण हिया अतो एत्तो // 2660 // कप्पपणयस्स भेदा सोचा णच्चा तहेव घेत्तुणं / चरणकरणे विसुद्धे आयरणपख्वणं कुणह // 2661 // आयरियसगासातो सोचा णचा य घेत्तुमत्थेणं / हितते ववत्थवेतुं आयरणपरूवणा कुजा / 2662 // कप्पपणगस्स भेदो परूविओ मोक्खसाहणट्टाए। जं चरिऊण सुचिहिता करेंति दुक्खक्खयं धीरा 2663 पंचविह सुत्तकप्पाण विभासा वित्थरं पमोत्तूणं गहिता सीसहियहा अव्वोच्छित्तट्टया चेव // 2664 // [गाहग्गेण पंचवीससयाई चउहत्तराई 2574 सिलोयग्गेणं बत्तीस सयाणि दसअट्ठसहियाई ] सव्वसुयसमूहमयी वामकरग्गहियपोत्थया देवी। जखकुहंडीसहिया दंतु अविग्धं भणंताणं // महत्पञ्चकल्पभाष्यं / संघदासक्षमाश्रमणविरचितं समाप्तम् / Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शुद्धि पत्रकम् पृष्ठम् पक्तिः अशुद्धम् शुद्धम् 6 & 20 वायण परिहाणी परिच्छित्तुं चम्मपट्टेति एमे ता सिरिकहि पिंड माईण गहपट्टो तूणयतो तुन्हारूएहि कि (ज) विए वायणय परिहाणि परिच्छित्तू चम्मए पट्टए एमेता सिक्खिहि पिंडमाईणं ग्गहपट्टा ऊण कणयं तम्हा उ किजए : PPP 11 16 तो . 15 2 17 जहति चउस्सुंपि अवहारो यारमादो मूले विराहणा वित्ती जहंत चऊसुंपि अवराहो यारमादी मूलं विराहणे 17.. वत्ती Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [2] 12 13 कशि 20 21 7 13 इय णातुं बोधवो रुव्वति 25 10 कप्प इयाणि वोधवो रुब्भति गुरुगो तवो अड्डा तदिवसो मग्गमाणा राइवत्त मूलावरोहिणी वहारी 17 गुरुगो तवो ___ अड्डो तद्दिवसे मग्गमाणे राइभत्त मूलावराहिणी वहारी जह मेहा ठावेति पवंचादी वुड्ढो जंबुणा सपिता मेहो 28 13 31 4 वावत्ती एववादी बूढो जंबुणामपिता या गाहो मणा णपुंसे दिट्टि वच्छे रूसियाहिं 31 32 32 34 13 5 10 15 वत्यि रुसियाहिं Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [3] 35 35 2 11 धारेतु णचाहे साविल किलियं किलियस्स वायंडिओ धारेतुं ण चयह आविल किलिवं किलिवस्स वायव्हिओ 37 उदओ गालिय दो पडिसेवि पवावेहा कहिं छुब्भति असहाए 39 . Gawn cwwA वुदओ गालियदोसा तो सेवि पय्वावेहा . कहि छब्भति कुसहाए णेते माणं णिसयणे कंचियो पतेहि दिक्खितोऽहं वुहूं व गम्मि णिते माणे णिसियणे किंचियो जह पतेहि दिक्खितो वुडुचगम्मि समयत्ति होउती मम्मण्ण समयंति होउत्ती 42 मम्मण Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [4] 42 مهم م 43 4 उड्दुस्सास गलओय 389 करणजड्डो م م उड्दुसास गलभोय 689 करजणड्डो कीवा थिरा य मोऽइय यदुट्ठ सेजिय कीवो م छिराय मोचिय م م م सज्झिय सरिसो पुरिसो ه م दट्ठो م ه م م ه पिसाइए दट्ठोसी पुण्णो च वितिय दिता त कालोवत्ते मेहस्सा सुविणा णाणं सण्णित्ति पच्छा अजणय م م पिसायीते दहोसी पुण्णो व्व बितिय दि ततो उ कालो धत्ते सेह दोसा सुविणणाणा सण्णत्ति वच्छा अजणिय सुराऽभय ه ه م مه 62 سه सुरा भाये Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62. थेरी sns can c. चिंतेति चिंतंति थेरी गहि इच्छिओ गहिइथिओ कुरितो कवितो लिहितक्खराणि लिहितऽक्खरा अणि णिज्जाते णिजते कारवेसु कारवेमु सुविणा सुविणे मुसुगारे वऽवञ्चं चऽवचं मुसुगारो 68 16 वा 69 18 रु पुच्छणा बाह वाहेति आधावेत्ता वुज्झेजा. राहू गामंति चलणे म णमे मेऽह 73 - 2 738 रुपुच्छऽणाबाह बाहेति आधाता बुज्झेजा साहू समायति चलणेसुं णमो मेय वइतुं विजा हुत्तम्मि ओऽविण रमेसि 74 8 74. . 16. . वइत्तूं वेजा हुतम्मि उपमेव 75 13 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [6] 72 14 णरगादहठाणं पुणवि 76 77 77 णं णरगनरणादहठाणं पुणरवि य देवसण्णावी . सम्मति सुत्तरते महाजात एस पिता पाणमंबु सुक्का परिसुक्कं छिज्झति 78 अदुत देवसण्णत्ती सम्मुति सु तुरंते अहाजातं एसविता पाणसुहं सुक्खा परिसुक्खं जिज्झति अदुत अहिजऊ वातकम्म पच्चूसे लंबणणेहे - सोतूण तिच्छडा ण जम्हा गहण अजोग्गो जहा आहिजिऊ वातुकम्म पच्चूस लंबणणेहि सो तू ण तिच्छडा जम्हा उ गहण जोग्गो जदा जुत्ता सतासती जुत्तो परिकम्म संतासती अपारकम्म ___ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [7] 16 साहू अद्धाणणदीसु विणिच्छिणि सा तु अद्धाणादीसु विविश्चण पिलिखू खव्वणं पिलिक्खू सिव्वणं 95 10 96 15 परिकमणे उज्जुयगं मीसजाय 100 12 100 17 1014 a ca / परिकम्मणे उजयगं भीसजाय / होइ स उवरिमेहि णक्खणता मुणेयव्वो बावीलगो विवरिय सव्वो / अश्चिते पिहिप्पिहे वीसहियाई सहियाई णायव्या चेय एकेगे 102 103 20 12 दुचरिमेहि णखछेदणता मुणेयव्वा बावीसमो विवरिया सव्वे अश्चित्ते पिहप्पिहे वीसहिया य अहियारई णायव्वा 104 . 2 105 - 2 चेव एकेके Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [8] .णेगो एकसि 106 107 107 107 208 16 4 17 18 14 111 112 112 12 2 9 W ww dwo णेगे एकसि महिल संदिल्ला संखण कुदिट्टि विहरंती संकममाणे भण्णती णिययादिया णिगच्छे अवत्थाणिव वुड्ढावास पेहेत्तु . तिविहाओ विसंतम्मि असंता सतीण छविता वोच्छत्थे उस्सवाहि थेरेणिस्सा 113 18 मिहिल संदिब्भा संखणग कुदिट्ठा विहरंति संकमणे भण्णति णियादिया णिग्गच्छे अ पुच्छा णिव वुद्धावास पजत्तु तिविहाउ वसंतम्मि संतासंतीए छवेता वोच्चत्थे उस्सवादि थेरेण समा एयं * पडिकम्म 124 197 15 10 120 121 10 11 एवं 13 121 122 पडिक्कम Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1227 122. मासे उग्गहे छिण्णे 7 जाव 124 10 125 16 126 15 1276 127 17 128 2 1288 128 1288 128 17 129 14 मास उग्गहो तिविहो जाओ एवं अतिसेसिता भत्तट्ठाण उज्जतो जहुत्ताउत्तो एवं एन्नुणा ण जिंक्खंतो जुगपेहि ते * सोहणो विरोहो मरुगा जहलंभे भावजेयं तुलेता .. वाए तउसारामी त जो चंचलं तं विय जायावग विवेग एयं अतिसेसितो भत्तट्ठीणं उज्जुत्तो जहुत्तो साहू नूणं एत्तुणा णिक्खंतो जुगपेहाए साहुणो विरोही गुरुगो जहलंभ भावेजेवं 136 18 138 / 14 138 / 16 140 6 140 . 18 तुलेती वाइ तउसारामे न जो चंचलतं चिय जोयावग विवेगे . Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [10] 143 145 145 146 147 19 7 16 16 2 . 147 वजं इत्थीओ उज्जुभावो सेढीउ बाहि भेदयाए दुगभेयाए : परिक्षणट्ठा एत्तो मणवयकाय रातिविरति पच्छा . 147 147 148 12 13 11 148 बझंच इत्थीए उजुभावो सेढीयबाहि भेदपाय दुगदुगभेया परिरक्खणट्ठा एसा मणवयणकाय सरातिविरति पुच्छा वि ते-एसा पडिमाऽभिग्गहण मादिगा सोहि - उप्पादेउँ ठाणहितो णार्ड चाएति लाहसुयं 150 पि 152 152 152 15 153 153 1554 155 10 / 14 / 18 156 3 157 16 158 10 ror 92. ww तो-लेसा पडिमाहिग्गहण माविगा सेह उप्पादेयं ठाणठितो णातं चोएति लोयसुहं पुवे पडिभोगी पुवी पडिभागी Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [11] 158 11 . घेत्तुं से 159 . 159 8 18 160 10 161 15 162 10 मे पंयो पंथो संजमो संजओ गच्छपहण्णेसणा गच्छं पह णेसणा अक्खोभा अक्खोभो जहण्णोवहि जहणोवहि वेयाणिदिय वेयाणि चिय कुज्ज समलिंगे ण समणलिंगेणं * सम्मातो सम्मतो पुच्छणा पुच्छण पडिपुच्छणा परिच्छणा पणिया पइणिया .. अण्णाणमवि अण्णाणावि रागहोसेहि रागदोसहि आयएज्ज भत्तपाणं आयत्ति भत्तप्पाणं दृढजोगी दढजोगी ण उट्टिता उर्द्धिता दृढजोगी दढजोगी छउमत्थं सउमच्छं अण्णय कण्णया पइठितं पइट्टितं 167 9 167 12 168 8 169 - 13. 169 / / 17 171 13 . 172 12 . Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [12] 174 174 174 176 176 177 177 जीवठिय अबुद्ध भेसंति चरित्तठिते सुएज्ज जीवट्टियऽबुद्ध भेसति चरितद्वित्ते मुएज्ज 16 सो 177 178 180 पावतेताई पकप्पो भायण कारणे तिगतिग सेज्जाओ दोसो असंविग्गावी उग्गमती अविकोवि पत्थणा पसत्थो भत्तेण उवकरणेणं णिरवेक्खो 180 13 180 18. पावंतेताई कप्पों भोयण कारण तिगंति सेज्जा तु दोसा असंविग्गादी उग्गमंती अपि कोवि पसत्थणोपसत्थो भत्तेणं उवकरणेण णिरवेक्खा रुक्खफलाई उद्दविडं अकप्पो हीरगादीयं काणिति 14 181 182 182 183 184 184 185 5 13 10 रुक्खफलाणं उद्दवियं पकप्पो 184 185 187 .. हीरगाया काणिवि 187 15 Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [13]] 189 190 . 190 191 13 - 5 6 1 191 ~ * * * * * * * 195 13 196 5 1969 196 16 197 समाणे कीते णिप्फत्तिययं तम्हाऽपप्पं वि य सोहण तहिं पुच्छिज्जती इच्छिज्जति कालचउक्के वी णायव्यमिणं. णिद्धे दवे अपमज्जणयाण विवश्चासो होति सोवि कप्पणो रायदुटे / णत्ताण तिगिच्छ समणे किच्चे णिप्फत्तिमयं तम्हप्पप्पं श्चिय साहण तह पुच्छिज्जते अच्छिज्जति कालचउकं वा णायव्वमिणं णिद्धोदए अपमज्जणपाण विवज्जासे होतिमोवि कप्पन्नो रायडुट्टे णत्तीण तिगिच्छि * * 197 13 197 14 197 15 1984 * * * * * * पयत्तं 1995 199 18 200 201 . . 6 2018 * * अहिडकाइ तस्स सुतम पायं अहिडकाई तत्थ सुत्तम Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वित्थरो-तु वित्थारो-ऊ [14] 201 201 201 202 203 203 9 10 16 14 10 11 कोलणा य वज्जिते कालणाय . बज्जए 206 207 207 208 209 210 अहिंसा मूलूत्तर साहूण फासुगो जिण्णा पेहिय वारेति धरणं परिहरेत्ता यऽहिंसा मूलुत्तर सहूण फासुगे जिण्णो पगहिय धारेति धरणे परिहरिया 11 14 10 वि 12 12 पमोत्तेण परिहारि य जा पसत्तीह परिहारिए 212 214 217 217 218 220 220 220 220 वापंतस्स 16 17 7 13 16 16 वाइंतस्स बाले Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुविं वत्त पुचि वत्तेत विय 227 222 11 223 - 10 223 14 224 10 226 6 227 10 228 11 229 5 231 1 233 5 233 9 233 14 233 17 2343 2344 222222nd 2m on 120 देसुठाणे अपरकमे अणुवासत्थे अवक्खेवेण मा पणदेती गेण्हंति मंदधम्मे एयारिसे देसुट्ठाणे अपरकमो अणुवासत्थो पुव्वक्खेवेण न पमादेती गेण्हेति मंधम्मो एयारिसो तहिं विहारेसु. गवेसा मादी य भज्जा सा उ जा धुवति आरद्धो अज़ोगे विहारे गवेसी मादी अज्जा स उ धुवति अराद्धो अजोगो 236 2 237 14 237 17 2384 लहूं. सज्झ जग्गणं सो होति सज्झं जग्गगं सोहेति 242 2 ... Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आभिग्गह [16] 243 246 246 247 4 10 11 7 अभिग्गहि ठाणा एक्वं आई आदि उतरा तवे 254 ओह 11 रोग राण 255 255 256 258 260 262 263 266 270 270 271 णिबद्ध सोऊण सुणेह णायकारी णिबद्धो सोऊणं सुहेण . णाकारी धमण्णग णगरादि गिलाणं छड्डेत्तु 15 4 6 14 13 16 18 12 ***[***]}{||1|" धम्मण्णग णगरा गिलाण छडेतु Page #332 -------------------------------------------------------------------------- _