________________ पुलाकादिनिर्ग्रन्थनिरूपणम् [11] णाणपुलाए तह दंसणे य चारित्त लिंग अहसुहमे / पसरपंचविही खल पुलगणियंठो मुणेयव्यो / / 8 / / आभागमणाभोगे नह संवुडमसंवुडे अहासुहुमे / मो पंचविहो तृ षउसणियंठो मुणेयव्वो // 86 // दुविही होति कुसीलो पडिसेवणया तहा कसाए य / परेको पंचविहो परूवणा तेसिना होइ // 8 // णाणपडिसेवणाए दंसणचरणे य लिंग अहसुहुमे / पडिसेवणाकुसीलो पंचविहो एस णायव्वो // 8 // णाणकसायकुमीले दंसण चरणे य लिंग अहसुहमे / एस कसायकुसीलो पंचविहो तू मुणेयन्वो // 89 // पढभगसमयणियंठे अपढम-चरिमे यतह अचरिमे य / तत्तो य अहासुहुमे पंचमए होति णायब्वो // 10 // पंचविहसिणाए ऊ अच्छवितह असबले अकम्मसे। मंसुद्धणाणदसणधरे य होती चउत्थे तु // 11 // अरहा जिणे य केवलि अप्परिसावी य होति पंचमए। एते पंच विकप्पा सिणायस्स तो होंति णायव्वा // 12 // पंचविह संजता वी सामाइय-छेउवट्ठ-परिहारे। सुहमे य अहक्खाए एकेके ते पुणो दुविहा // 13 //