________________ [12] पञ्चकल्प-भाष्ये इत्तरिए आवकही सामाइयसंजए भवे दुविहे / . दुविहे छेओवळें सतियारे णिरतिमारे य // 14 // परिहारविसुद्धीए णिविममाणे तहेव निविठे ! दुविहे च सुहुमराग संकिस्संत विमुज्झते // 15 // अहखाओ वि य दुविहो छउमत्यो चेव केवली चेव ! एसो तु संजतो खलु पंचविहो होति णायवो // 16 // सामाइयम्मि उ कए चाउज्जामं अणुत्तरं धम्मं / तिविहेण फासयंतो सामाइयसंजतो स खलु // 17 // छेत्तूण तु परियागं पोराणं तो ठवेति अप्पाणं। धम्मम्मि पंचजामे छेओवट्ठावणो स खलु (दा.) 28 परिहरति जो विसुद्धं पंचज्जामं अणुत्तरं धम्म / तिविहेण फासयंतो परिहारियसंजतो स खलु / / 19 / / लोभमणुं वेदिता जो खलु उवसामओ व खवओ वा। सो सुहमसंपराओ अहखाया ऊणओ किंचि // 10 // उवसंते खीणम्मिवजोखलु कम्मम्मि मोहणिज्जाम्म छउमत्थो व जिणो वा अहखाओ संजतो स खलु / एतेसि समोतारो दुविहो सट्ठाण तह परट्ठाणे / वोच्छामि आणुपुब्धि जो जत्थ समोयरति तेसिं॥