________________ [10] पञ्चकल्प-भाष्ये वत्तव्व चसद्देणं भेयपभेदा उ जेत्तिया तेसिं। सुद्धेहिं तेहिं तु उवसंपण्णो हु सुचरित्ते / (दा.)॥७६॥ अहवा पंचविहाओ उवसंपय होतिमा समासेणं / सुय सुहदुक्खे खेत्ते मग्गे विणए य बोधव्वा // 77 // अहवा तिविहुवसंपय णाणे तह दंसणे चरित्ते य। चरित्तं च कतिविहं तू पंचविहं तं इमं होति // 7 // सामाइय छेदुवट्ठावणं च परिहारसुद्धियं चेव / तत्तो य सुहमरागं अहखायं चेव बोधव्वं // 79 // अहवा वयसमितादी सराग तह वीतरागमहवावि। खाइग खओवसमितं उवसमियं वा भवे तिविहं / (दा.) भेदा उ चसणं होंति इमे णाणदंसणाणं तु / खाइयखओवसमियं दुविहं णाणं मुणेयव्वं // 81 // खइयं केवलणाणं खओवसमियाई सेसणाणाइं / खइयं खओवसमियं उवसमियं दसणं तिविहं // 82 // कस्सेतं चारित्तं णियंठ तह संजयाण ते कतिहा ? पंच णियंठा पंचेव संजया हॉतिमे कमसो // 83 // पुलए बउस कुसीलो होति णियंठे तहा सिणाए य / एएसिं एकेको पंचविहो होति बोधव्वो // 84 //