________________ [6] पञ्चकल्प-भाष्ये एवं अप्पत्तंच्चिय पुव्वगतं केइ मा उ मरिहंति। तो उद्धरिऊण ततो हेट्ठा उत्तारियं तेहिं (दा.) // 41 // मा य हु वोच्छिन्जिहिती चरणऽणुओगोत्ति तेण णिज्जूढं / वोच्छिण्णे बहुतम्मी चरणाभावो भवेज्जाहि (दारं) // 42 // कह पुण तेण गहेडं दिण्णाई तत्थिमो तु दिळंतो। जह कोइ दुरारोहो सुसुरभिकुसुमो तु कप्पदुमो॥४३॥ पुरिसा केइ असत्ता तं आरोढूण कुसुमगहणट्ठा। तेसिं अणुकंपट्ठा कोइ ससत्तो समारुज्झे // 4 // घेत्तुं कुसुमा सुहगहणहेतुगं गंथिउं दले तेसिं। तह चोदसपुवतरं आरूढो भहबाहू तु // 4 // अणुकंपट्ठा गथितुं सूयगडस्सुप्परि ठवे धीरो। तं पुण सुतोवएसेण चेव गहितं ण सेच्छाए / (दा.)॥ अण्णह गहिए दोसो असाहगं होति णाणमाईणं / केसवभेरीणातं वक्खातं पुव्वसामइए // 47 // अहवा तिगिच्छओतू ऊणहियं वावि ओसहं दिज्जा। तेहिंतु ण कज्जसिद्धी सिद्धी विवरीयए भवति / (दा.)