________________ कल्पाध्ययनस्याभिधेयाः [7] पारिच्छ परिच्छिा पकप्पमादी दलंति जोग्गस्स। परिणामादणिं तु दारुगमादीहिं णातेहिं // 49 // णारिच्छ आदिमुत्ते पुव्वं भणिया तु जाउ विहिमुत्ते। मलघणादी परिसा पूरता ईय भणिहिती // 50 // परिसादारं भणितं कप्पहारं कमेण हु इदाणिं। किं पुण उकमकरणं बहुवत्तव्वं ति णाऊणं // 51 // किं पुण कप्पज्झयणे वणिज्जति? भण्णती सुणसु नाव ! जे अभिहिता उ अत्था तहियं ते ऊ समासेणं // कपण य कप्पिए चेव कप्पणिज्जेत्ति आवरे / फासुए एसणिज्जे य संजमे त्ति य यावरे // 53 // वालए वागए चेव चम्मपति आवरे / पम्हए किमिए चेव धातुए मीसतेति य // 54 // उपसंपधा चरित्तस्स चरित्ते कइविहे इय / णियंठा कति पण्णत्ता कह समोतारणाति य ? // 55 // ववहार कस्स पण्णत्ते कहं पडिसेवणावि य ? / देसभंगे कहं वुत्ते ? सव्वभंगे त्ति यावरे // 56 // पच्छित्ते कइविहे वुत्ते ? छट्ठाणे त्ति यावरे / पंचट्ठाणे चतुट्ठाणे तिट्ठाणे ति यावरे // 5 //