________________ [270] पञ्चकल्प-भाष्ये अंतरवाघाएणं पच्छा पत्ताण पुब्धि जे पत्ता। असढेहिं अणुण्णवितं पुव्विं पत्ताणतं खेत्तं // 2425 // अह समगमणुण्णविए काउ पमादं पितो उ साहारं। एवं तु षितियभंगो अहुणा तइयंमि वोच्छामि // 26 // पच्छावि पत्थियाणं सभावसिग्घगतिणो भवे खेत्तं / एमेव य आसण्णे दुरद्धाणा व पत्ताणं // 2427 // भंगे चउत्थगंमी पुव्वाणुण्णाए असढ भावाणं / पढमभंगसरिच्छा आभवणा तत्थ णायव्वा // 2428 // पुचगहिओवि उग्गहोहोति गिलाणट्ठताए जहिययो अह होज्जा संथरणं कालक्खेको दुपक्ख वि 2429 / / पुव्वहितखेत्तीणं जदि आगच्छे गिलाणइत्तऽण्णे / जदि दोण्ह असंथरणं तो णिग्गमो खेत्तियाणं तु 30 अह दोण्ह वि संथरणं दोणि वि अच्छंति जा. गिलाणो उ। एते य दोण्णि पक्खा अहवा समणा य समणीओ।। गिलाणं उवही किचा भत्तोवहि लुद्धताऽविहिग्गहित। पेल्लंती परखेत्तं साहमियतेणिया तिविहा // 2432 // उवही णियडी माया गिलाणणिस्साए विज्जमाणे वि छंइत्तु एंति खेत्ते भत्तोवहिलुद्धताए उ 2433 //