________________ नपुंसकस्य लक्षणानि [31] जत्तिय तरए वोढुं सीयत्ताणं व जत्तिएणं सो। तत्तियमेत्तो उवही दिज्जति सेऽणुग्गहठाए // 279 // वंदणए अणुकंपा कीरति न सारियम्मि वंदावे / चरणकरणमझायं अणुकूलेउं चरणगाहो // 280 // उवउंजिउं णिमित्ते दोण्हपि य कारणा दुवग्गाण / होहिंति जुगप्पवरा दुण्डवि अट्ठा दुवग्गाणं // 281 // ओहिमणा उपजिद परोक्खणाणी णिमित्त धेतूणं / जदि पारगतो दिक्खा जुगप्पहाणा व होहिंति 282 दोषिणत्ति वालवुड्ढा पुणवि दो वग्ग इथि पुरिसाय सुत्तत्पदुगटाग कालियपुश्वगयअठा वा // 283 // पुणरवि दो वगा खल सभणा समणी य होति णायव्वा लेसि अट्ठा दिती आहारा तेसि होहिंति दा. एत्तो बुच्छ पुंज सो किह णज्जेज्ज जहणपुंसोत्ति। भण्णति चव कप्पति दिक्खेतु चिहि अजाणंतो॥ तम्हा दिक्खा गीते दिक्खिंते चउगुरू अगीयस्स। गीतेऽवि अपुच्छित्ता गुरुगा पुच्छा उवाएणं // 286 / / अम्हं णपुंसगादी ण कप्पने एव भणिते साहेज्जा। को वा णिवेदो ते भणिज्ज भगवं अहं ततिओ 287 अहवावि य मित्ता से णिव्वेदं पुच्छिया हु साहेज्जा। अहवा वि लक्खणेहिं इमेहिं गाउं परिहरेज्जा 288