________________ [32] पञ्चकल्प-भाष्ये महिलासहावोसरवण्णभेदो मेंढं महंतं मउया यवाणी ससद्दगं मुत्तमफेणगं च एताइं छप्पंडगलक्खणाई॥ गती भवे पञ्चवलोइयं च, मिउत्तया सीतलगत्तया य। धुवं भवे दुक्खरणामधेओ, संकार पञ्चंतरिओ ढकारो॥ गतिहत्थवच्छकडिभमुयभास दिट्टि य केसलंकारे। पच्छण्णमज्जणाणि य पच्छण्णतरं च णीहारो 291 मंदा गती विक्खिवे वामहत्थं, लंबं णियंसेति जहेव इत्थी। कडिथंभगं वा विकरे अभिक्खं सविन्भमं उक्खिवए भुमाओ // 292 // भासंतो या विकरं वच्छे णिवेसेति इत्थिया चेव / हीणस्सरो य जायइ दिट्ठी य सविन्भमा तस्स / / 293 // केसे इत्थी व जहा आमोडति इत्थिमंडणं चेव / ण्हायति एगंते या पच्छन्ने आयरुच्चार // 294 // पुरिसेसु भीरु महिलासु संकरो पमयकम्मकरणो य। एवं बाहिरलक्खण णपुंसवेदो भवे अंतो // 295 // सो पुण णपुंसवेदो लिंगे तिविहो वि होति बोधव्यो। कह लिंग तिए ? भण्णति एत्थं एक वेदतिगं // 296 // उस्सग्गलक्खणं तु त्थीपुरिसणपुंसगाण वेदाणं / फुफुमदवग्गिमहणगरदाहसरिसा जहाकमसो 297