________________ [18] पञ्चकल्प-भाष्ये अहवा वी उवएसो एगळं होति गाहणाउत्ति। तह उवदिस्सति जह ऊ चारित्तं गेण्हती सोतु॥१४९॥ अविराहणम्मि य गुणा दोसाय विराहणा चरित्तस्स। तह गाहिज्जति जह तू ओगाढो होति चारित्ते // 150 // णाणे य चेव तह दंसणे य जातिगहणेण संसूया। एयातिं गाहिंति गाहणता वण्णिता एसा // 151 // एमेता जा भणिता अहवा अवहारणे चसदो तु। पडिवत्ती उवगारो वागरणं वावि पडिवत्ती // 152 // एवं कप्पे वणिज्जती उ अण्णे य बहुविहा अत्था / अत्थेसु अणेगेसु य कप्पऽभिधाणं मुणेयव्वं // 153 // सामत्थे वण्णणा काले छेयणे करणे तहा। ओवम्मे अहिवासे य कप्पसद्दो वियाहिओ // 154 // सामत्थे अठमासे य वत्तीकप्पो तु होति गभगतो। वण्णणे अज्झयणं तू कप्पिय जहमेगसाहूणं / / 155 // काले हेमंताणं जह तू दसराय कप्प अतिकते। छेदण जह केसे तू चउरंगुलवज्ज कप्पेहि // 156 // करणे वित्ती कप्पिय अहो! इमेणं जहा तु पुरिसेणं / आइच्चचंदकप्पा हवंति जह साहुणो धम्मे // 157 // सोहम्मकप्पवासी अहिवासे जह तु होति देवा तु / एते सामत्थादी जोएयव्वा इहं कप्पे // 158 //