________________ [17] षोढा मिथ्यात्वम् आलोयणपडिकमणे तदुभयमेवं तु होति तिविहं तु / सच्चित्तअचित्तमीसग तिविहं चेदं मुणेयव्वं // 139 // अहवा सत्तट्ठविहं नव दसहा वावि होति पच्छित्तं। आलोयणपडिकमणे मीसविवेगे य वोसग्गे // 140 // छद्रं तवे य तत्तो सव्वे उवरिल्ल सत्तमं छेदो। अछविह छेद दुविहो देसे सब्वे य बोद्धव्वो // 141 // णवविह सब्वच्छेदो दुह संजमुवट्ठ विजती मूले / कालंतरमितरे पुण खेत्तंतो बहिं च दसभेदं // 142 // अह वण्णह दुविहेदं एगविहं वावि होज णायव्वं / रागद्दोसा दोण्णी एगविहोऽसंजमो होति // 143 // छट्ठाणे दंसणेत्ती जो काए छविहे ण सद्दहति / णत्थि ण णिच्चादी वा छविहमेयं तु मिच्छत्तं // 144 // धम्मत्थिकायमादी कालंतादिं तु छत्तु दवाई। जो ताई न सद्दहति छविहमेयं तु मिच्छत्तं // 14 // संजमो सत्तरसविहो तु सामाइयमादी अहव पंचविहो (दा) गाहण तव चरित्तस्सा गहणं चिय गाहणा होति किह पुण चरित्तगहणं होजाहि ? भण्णती इमेहिं तु / वेरग्गेणं अहवा मिच्छत्ता होइ सम्मत्तं // 147 // सम्मत्ता उ चरित्तं अहवा होज्जा इमेहिं गहणं तु / सवणे णाणविणाणे एमादी गाहण चरित्ते // 148 //