________________ [16] पञ्चकल्प-भाष्ये दप्पिया कप्पिया चैव दुविहा पडिसेवणा। . ' जयणा अजयणा कप्पी जयणासुद्धो तु सेवतो 130 जयणासेवी कप्पो दप्पो जयणाए अजयणाए य / आवज्जति सहाणं वणिज्जति वित्थरो कप्पे / दा. // पडिसेवगस्स होती देसम्भंगो य सवभंगो य अवराहे करिसए देसे सव्वेवि सो होति // 132 // पणगादी जा छेदो एसो खलु होति देसभंगो तु। मूलादिउवरिमेसु णायव्वो सव्वभंगो तु // 133 // तस्स उ विसुद्धिहेर्ड पच्छित्तं तस्स केत्तिया भेदा। छट्ठाणादीया खलु परूवणा तेसिमा होति // 134 // छसु काएसु वएसु य छविह एगिदियादि पंचविहं। मंघट्टण परितावण उद्दवणे चेव निप्फण्णं // 135 // चउहा तु णाणवंते दंसणवंते चरित्तवंते य / नत्तो चियत्तकिच्चो अहवा दवाइयं चउहा // 136 // अहवा अतिकमादी चउहा कोहाइयं च चउहा तु। णाणादियारभादो होति तिविहं च पच्छितं // 137 // अहवा आहारोवहि सिज्जतियारे य होति तिविहं तु। उग्गम उप्पायण एसणा य तिविहं तु एकेके // 138 //