________________ [246] पञ्चकल्प-भाष्ये होति अणंता चारित्तपन्जवा ताणऽसंखगुणियाणि / एकं संजमकंडग कंडगसंखा य छट्ठाणा // 2208 // छट्ठाणाऽसंखेज्जा संजमसेढी तु होति बोधव्वा / सामाइय-छेदसंजमठाणा गंतुं असंखेजा // 2209 // परिहारि-संजमठाणा ताहे लग्गति ते वि तु असंखा / गंतूण होति छिन्ना ताहे तत्तो पुणो परतो // 2210 // वड्दति जा असंखा सामाइ-छेदसंजमट्ठाणा / सामादि-छेदठाणा ताहे छिन्ना हवंती उ // 2211 // तो सुहमरागठाणा ते वि असंखेज़ गंतु वोच्छिन्ना। तस्स अपच्छिमठाणा अणंतगुणवाढतं णियमा / / एवं परमविसुद्धं होति अहक्खायसंजमट्ठाणं / पंचमसंख त्ति गतं बारसगं बारपडिमाओ // 2213 // सुद्धपरिहारचतुरो अणुपरिहारी वि णवमकप्पठिती। एते तिणितिया खलु एतेसिं एकमेकस्स // 2214 // अंतरसंजमठाणा होति असंखा तु तेसि सव्वेर्सि। होति दुविहा तु सोही करणे अज्झत्थतो चेव 2215 ता दोवी कायव्वा णाणट्ठाए सुतोवउत्तेणं। एसो अंतरकप्पो णयकप्पमियाणि वोच्छामि 2216 //