________________ [22] पञ्चकल्प-भाष्ये णाऽपव्वाविते मुंडावणा तुणाऽमुंडिए तु सिक्खवणा। एमादी तु विभासा पब्वावयंती तु केरिसगा // 189 // सुत्तत्थतदुभयविसारयस्स संगहउवायकुसलस्स / कप्पति पवावेतुं संवेगमुवट्टितमतिस्स // 19 // सुत्तत्थेण विसारए चउभंगो एत्थ होति कायव्वो। तं चेव तदुभयं खलु विसारतो जाणतो तस्स // 191 // दब्वे भावे संगहो दवे आहारमादिएहिं तु / सिक्खावणमगिलाए गेलण्णे यावि करणं तु // 192 // भावम्मि संगहो खलु णाणादी तंतु होति बोधव्वो। जाणइ वट्टावेतुं गच्छं तु उवायकुसलो तु // 193 // संसारभउव्विग्गो संविग्गो सो तु होति णायव्यो। एतेसिं तु पदाणं चउभंगा होंति एकेके // 194 // तदुभयविसारदो खलु ण संगहे कुसलो एत्य चउभंगो तदुभयउवायकुसलो एत्थंपि तु होइ चउभंगो॥१९५॥ तदुभयसंविग्गेहि वि चउभंगो एव होति कायव्यो। एव गुणजातियस्सा पव्वावेतुं तु कप्पति तु // 196 // पव्वाविंता भणिता अहुणा पव्वावणिज्ज वोच्छामि। पवज्जाए जोग्गा जे वा होंति अजोग्गा तु // 197 // पव्वावणारिहा खलु जातीकुलरूवविणयसंपण्णा। तविवरीय गुणा खलु होंति अपव्वावणाजोग्गा 198