________________ [110] पञ्चकल्प-भाष्ये सज्झाओ जहि सुज्झति / दा। कुदिहिगिण्णो ण या वि जो होति / एसण इत्थी सोही य जत्थ तहियं णिवासो तु / दा / / 9.89 // जहितं च अणायतणा न संति के पुण अणातणा भणिया। साहम्मिभिन्नचित्ता मूलत्तरदोसपडिसेवी एतेहिं जो देसो आइन्नो तह य अन्नतित्थीहिं / मच्छंधवाहगामा पुलिंददेसा अणायतणा // 191 // एतारिसम्मि खेत्ते अप्पडिबद्धण विहरियव्वं तु / आलंबणाई केइ तु इमाणि काउंण विहरंती // 10 // वसही संथारो भत्त पाण वत्थे पडिग्गहे सेहा / सड्ढा य पुव्वसंथुय असद्दहंते य पडिबंधो // 10 // फासुया एसणिज्जा य णिवाया य रितुक्खमा। एरिसा साहुपाउग्गा वसही दुल्लभऽण्णहिं / दा 194 एमेव य संथारा कंबलदन्भादिवत्थुनिप्फन्ना। सयणासणा य जहियं सुलभा जोग्गा य साहूणं / दा। भत्तं सुलभमणुण्णं च एरिसं णत्थि अण्णहिं तत्थ। जंगिय-भंगियमादी न हु सुलभा अन्नहिं वत्था 906 // पडिगहगावि य सुलभा सेहा यण्णत्व णत्थि खेत्तम्मि अण्णत्थ दुलभा तृ तेण तु पत्थं बहुगुणं तु। दा॥९०.५