________________ विहारयोग्यक्षेत्रम् [109] खेमो य सिवो य तहा खेमो सुभिक्खो य एव संजोगा गेयव्व छम् पदेसुं सत्तसु वा आणुपुवीए // 980 // अहवोदयग्गिसावदतक्कर-वालभयविवज्जिओ रम्मो / णिरवेक्खोवि वि य जहियं समणगुणविदू य जत्थ जणो // 28 // एताणि चव खेमाइयाणि आरीयखेत्तसहियाणि / पुत्वभणियाणि जाणि तु ताई खलु सत्त उ हवंति॥ णाणस्स दंसणस्स य चरणस्स य जत्थ णत्थि उवधातो एसो तु खेत्तकप्पो जहियं च अणायणा णत्थि 183 // उदगभयवुज्झणादी जह कोंकण-सिंधु-तामलितादी। पत्थि जहिं अग्गिभयं निरग्गिसाहम्मियगिहा वा // जहियं च सावयभयं सीहादीणं ण विज्जए देसे। जहियं च णत्थि चौरा देहुवही-पंथमोसादी // 1.85 // वाला उ सप्प गोणसमादी।दा। बोहिगभयं च णत्थि जहिं / मणसो समाहिकारो सो रम्मो होति णायव्यो। सूरी अणण्णगम्मो जत्थ णरिंदो तहिं सुहाविहारं / साहुगुणे य बियाणति कुणति य साहण जो रक्खं। दा / / 987 // अहिरण्णसुवण्णेते छज्जीवणिकायसंजमे णिरता। जाणति जणो य एवं जत्थ तु साहण गुणाणहसं। दा।।