________________ [262] पञ्चकल्प-भाष्ये णाणचरणसंघातं रागद्दोसेहिं जो वि संघाते। सो संघाए अबुहो गिहिसंघातम्मि अप्पाणं // 2353 // नाणचरणसंघातं रागद्दीसेहिं जो वि संघाए। सो भमिही संसारं चतुरंतं तं अणवयग्गं // 2354 // दुक्खेण लभति बोहिं बुद्धोवि य ण लभते चरितंतु। उम्परगदेसणाए तित्थगरासायणाए य // 2355 // उम्मग्गदेसणाए संतस्स य छायणाए अग्गस्स / पंधति कम्मरयमलं जरमरणमणंतगं घोरं 2356 // पंचविहं उपसंपद णाऊणं खेत्तकालपव्यजं / तो संघमज्झयारे ववहरियव्वं अणिस्साणं // 2357 // णिदरिसणं तत्थ इमे तगराणगरी य सोलसायारिया। अण्णायणाकारी वत्थाव्यवहारी अट्ठ इमे // 2358 // मा कित्ते कंकडुयं कुणिमं पक्कुत्तरं च वच्चाई। बहिरं च गुंठसमणं अंबिलसमणं च निद्धम्म 2359 // कंकडओ विव भालोसिद्धिंण उवेति तस्स ववहारो। कुणिमणिहोवण सुज्झति दुच्छेज्जो एव वितियस्स। पक्कुल्लाव भयातो कजंपि ण सेसतं उदीरेति / पादेणं आउत्तिय उत्तर सोचाहणेणं तु. // 2361 //