________________ (10) उपान्ते- जगतने अहिंसाना सूक्ष्मतम आदर्शों द्वारा संसारना तमाम प्राणीने अभयदान आपवानो संकल्प करावनार जगतमा भा एक मात्र जैन धर्म दुःषमकालनी अनेक पछडाटने सहन करीने पण प्रेरणा आपो रहेल छे. आनुं कारण शुं ? आनुं कारण एज छे के- आ धर्मना पायाना सनातन सिद्धांतोमां आज पर्यंत कोइ सडो लाग्यो नथी... कारणके- आ धर्मना मुख्य आधार रूप श्रमणोए आनी रक्षा न जालवणी माट श्रेष्ठतम प्रयासो कर्या छे, अन आत्मभोगसहित तमाम बलिदानो पण आप्या छे. आ श्रमणपंघनी दृढ मान्यता छ के- जीवनना क्षुल्लक आदर्शो करतां धर्मना आदशो महान् छ. आ हकीकतनी प्रतीति आमजनताने आ महापुरुषनी उपलब्ध कृति अने अनुपलब्ध एता जीवनक्वनथी थाय छे. अंत- आवी महान् कृतिओ गीतार्थ मुनिप्रवरो द्वारा प्रसिद्ध थाय ए आकांक्षा सहित मारी क्षतिओने उदारता पूर्वक अमा आपी कृतार्थ करशे. | cল গুলা प० पू० आचार्य श्री माणिक्यसागरसूरीश्वरशिष्य ___ मुनिराज श्री एण्योदयसागर. उद्दशे व्यवहारस्य वक्ष्यामः / 074-. ) तथा व्यवहारचूर्णिमां 'उक्तः कल्पः, अधुना व्यवहारस्यावसरः प्राप्तः' ( 501-1 } जहा आवस्सए भाणया' (5021-1) 'आवस्सगादीहिं दारहि पुब्वभणिताह' (21-2) 'एयं पिंडानज्जुत्तीए व्याख्यातं' (73-2) 'जहा णिसी है व्याख्यातं ' (73-2) 'पूर्व पंचकल्पे व्याख्याता' (1.0-1) 'पुव्वर्भाणया ओहनिज्जुत्तीए, कोय' (167-1) 'जहा णिसीहे' (173-1) आ उपरथी स्पष्ट निर्णीत थाय छे. के- निशीथ विशेषचूर्णिकार श्री जिनदासगणिमहत्तर आ बधी चूर्णिओना कर्ता छे.