________________ सर्वश्चत्व वीतरागत्व- तीर्थकरो सर्वज्ञ होवाना अनेक पुरावा छे. तेमांनो एक आ पण छे के- तेओए जणावेल तत्त्वज्ञानने जाणवा अने संपूर्णपणे समजवानो सौ कोइने अधिकार छे. इतरो मान छ तेम एक व्यक्ति पूरता ईश्वरत्व-सर्वज्ञत्वने नहि. जैनदर्शन माने छे अने जणावे छे के- जगतनो कोइपण प्राणी ईश्वर-सर्वज्ञ थइ शके छे, अने आ तत्त्वज्ञानने प्रत्यक्ष जोइ शके छे. सवाल छे तेना माटे करवी पडती कठोर साधनानो. सर्वज्ञ थवा माटे अनादिकालीन कर्मोने आत्माथीं दूर करवा पडे छे अने ते माटे कर्मबंधना हेतुरूप काम, क्रोध, राग, द्वेष अने विषय विकारनी दीर्घकालीन वासनाओ त्यागवी पडे छे. आ बधुं एकदम नष्ट नथी थतुं परंतु प्रथम मार्गानुसारीपणु, बोधिबीजप्राप्ति, सम्यक्त्व प्राप्ति देशविरति, सर्वविरति विगेरेनी प्राप्ति बाद क्रमशः आ वासनाओ नष्ट थाय छे. आत्मानुं शुद्ध स्वरूप प्रगट थतुं जाय छे. आखरे चार घाती कर्मो- प्रथम मोहनीय कर्म पछी अंतर्मुहूर्त्तमां ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय अने अंतराय मूलथी नष्ट करी केवलज्ञान प्राप्त करे छ. अने साथेज सर्वज्ञ थाय छे. आत्मिक सुखरूप आध्यात्मिकताना उच्चशिखरने प्राप्त कर छे. सर्वज्ञत्व प्राप्तिना प्रयासोमां मुख्यरूप सर्वविरति छ आनी प्राप्ति बाद कठोर साधनानी शरूआत थाय छे. तेमां वारंवार स्खलना न थाय ते माटे मुनिओना आचारो विगेरे सर्वविरति स्वीकारनारे बराबर समजवा जाइए. एना माटे जैनदर्शनमा घणां शास्त्रो छे. आगममां निर्दिष्ट चार अनुयोगमां पण महत्त्वनुं स्थान चरणकर णानुयोगनुं छे. बाकीना त्रणे अनुयोगो पण आना माटे ज छ. छेदसूत्रो बहुलताए मुनिजीवनना आचारने आश्रयीने चौद पूर्वधरं एम्चेला छ. आमांनुं एक छेदसूत्र छ- 'बृहत्कल्पसूत्रम् ' अ छेदसूना अर्थने विस्तारथी समजाववा नियुक्त भाष्य-चूर्णि- टीका वगैरे रचाया छ तवी रीते बृहत्कल्पसूत्र (छदसूत्र ) ना नामनिक्षेपाने