________________ व्यवहारकल्प: [259 ] भिक्खू य मुसावादी ववहारे तइयगंमि उद्देसे। सुत्तं उचारेती अह बहुपक्खा इमं होति // 2326 // रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणमि एकमिकस्स / कज्जंमि कीरमाणे किं अच्छति संघमज्झत्थो 2327 रागेण व दोसेण व पक्खग्गहणेण एकमेकस्स / कज्जंमि कीरमाणे अण्णो वि भणेतु ता कोइ 2328 कुलगणसंघठ्ठवणं इहंण याणामि देसिओ मि अहं। अण्णेण वि ता केणति कप्पति इह जंपितुं किंचि 29 संघेण अणुण्णाएं अह जंपति सो तहिं गुणसमिद्धो / ववहारणीतिकुसलो अणुभाणंतो तयं संघं // 2330 // संघो महाणुभावो अहं च वेदेसिओ इहं भंते / संघसमिति ण जाणे तं भे सव्वं खमावेमि // 2331 // देसे देसे ठवणा अण्णा अण्णा य होति समितीय / गीतत्थेहऽभिण्णातं वेदेसिओऽहं ण जाणामि 2332 अणुमाणेत्ता एवं ताहे अणुण्णाए जंपए इणमो। परिसा ववहारीण य इमे गुणे तू समासेणं // 2333 // परिसा ववहारी वा मज्झत्था रागदोसणिहुया य / जदि होंति दो वि पक्खा ववहरितं तो सुहं होति