________________ [258] पञ्चकल्प-भाष्ये अह पच्छा सचित्तं खुड्डाई तस्स केणई दिण्णं / वसही पाउरणं वा वरऽम्ह पक्खं ववहरेउ 2317 घयतिल्लादी णिद्धं खंडगुलादीहिं वा वि संगहितो। सव्वाहिं एहिं ताहे ववहरए पक्खवातेणं / / 2318 // दुववहारिएणं को तु णिसेहेज तो वदे संघो। एतट्ठा संघमेलो कीरति इणमो य संपत्तो // 2319 // अण्णो तहिं तु गीओ संघसमत्तीय तिणि वाराओ। उच्चारे सिद्धपुत्तो तत्थ य मेरा इमा होति // 2320 // घुट्ठमि संघसद्दे धूलीजंघो वि जो ण एजाहि / कुलगणसंघसमाए लग्गति गुरुए व चउभासे / / 2321 // जं काहिति अकजं तं पावति सति बले अगच्छंतो। अण्णाइया व ओहावणादि तसिं च जं कुजा 2322 सोऊण संघसई धूलीजंघे वि होति आगमणं / धूलीजंघणिमित्तं ववहारो उवहितो होति // 2323 / / सोऊणं संघसदं धूलीजंघो उ आगतो संतो। वितहं ववहरमाणे साहू समएण बारेइ // 2324 // णिद्धं महुरं जिवातं कितिकम्मं विजाणएस जंपतो। सचित्ते खेत्तमीस अत्यधर णिहोड दिसहरणं 3320