________________ [260] पञ्चकल्प-भाष्ये वुत्ते वऽत्थधरेणं जदि उ ववहारिणो तु जंपेज्जा। शृणं तुम्हे मण्णह मज्झं सव्विक्रवयणं ति // 2335 // सेसा तु मुसावादी सच्चपरिभट्टगा तु किं सम्वे / भएणति सुहेण एत्थं भूतत्थमिणं समासेण 2336 // ओसण्णचरणकरणे सच्चव्यवहारता दुसहहिया। चरणकरणं जहंतो सच्चव्यवहार पि जहे 12337 // जहिया अणेण चत्तं अप्पणथं णाणदंसणचरितं / तइया तस्स परेसुं अणुकंपा नस्थि जीतु // 2338 // भवसयसहस्सदुलहं जिणवयणं भावओ जहंतस्स / जस्त न जायं दुक्खं न तस्स दुकग्वं परे दुहिए / आयारे वहतो आयारपरूवणे असंकियओ। आयारपरिभट्ठो सुद्धचरणदेसणे भइओ 2340 // तित्थगरे भगवंते जगजीववियाणए तिलोगगुरू / जो न करेइ पमाणं न सो पमाणं सुनधाणं 2341 // तित्थगरे भगवंने जराजीवविधाणए तिलोगगुरू / जो उ करेति पमाणं सो उ पमाणमयर णं // 42 // संघो गुणसंघालो संघो य विचयो य कारणं / रागद्दोसविमुको होति समो सवसाहणं // 23:3 //