________________ पात्रप्रमाणं [87] रूती संजयठाते आतट्ठासुत्तमादिक ण कप्पे / जम्हा उ गहणजोग्गोतु संजतट्ठाए कारितो॥७८४॥ संजत अट्ठा वियितो आतट्ठोवठितो य तत्तो य / कप्पति जम्हा य कतो संजतजोग्गो तु आतट्ठा 785 एवं गावीओ वी काइ किणिज्जाहि संजयट्ठाए / आतट दढ कप्पे सभणट्ठा दूढ णो कप्पे // 786 // एमा पनि विसंसो भणितो पुव्वं तु पिंडुजुत्तीए / दा। पत्तो उयहीक्रप्पं वोच्छामि गुरूवएसेणं // 787 / / दुविहीं य हाति उवही पत्ते वत्थे य ओहुवग्गहिए / जिणविर आणलहा बोच्छामि अहाणुपुवीए 788 पाए उम्मन उधाणमणा संजोयणा पमाणे य / इंगाल का कारण अविहा पालणिज्जुत्ती // 789 / / जह सभव यव्वा पिंडगमेणं तु पातणिज्जुत्ती। सव्वत्युग्गाप्रसादी जहा जहा जे तु जुज्जति // 79 // पातपमाणं तु इमं पमाणदारम्भि होति वत्तव्वं / मज्झजहाणु कोसं वोच्छामि अहाणुपुवीए // 791 // तिणि विहत्थी चउरंगुलं च भाणस्स मज्झिमपमाणं। एत्तो हीण जहणणं अतिरेगतरं तु उकोसं // 792 //