________________ [86] . पञ्चकल्प-भाष्ये कोट्ठग तंदुल तिछडा समणट्ठा सिं कडा ण कप्पति। अह दुच्छड संजयट्ठा आयट्ठोवक्खडा कप्पे 775 आयट्ठाए दुछडा संजयअट्ठा तिच्छडा कप्पे। जदिवि य आयट्ठाए आरंभो होति तेसिं तु / दा 756 एमेव य दारुसागाइयाइं जाइं अफासुदव्वाई। अत्तणि ठिताई कप्पे समणट्ठ णवि कप्पे // 777 // गोरसहिंगू तेल्लादि दालिमे तित्तकडयदव्वाइं। लंबण गुलो य भण्णति संचियमेवादि संघट्ठा 778 फासुगदव्वा जे तू अवोछिण्णम्मि भावे ण तु कप्पे। उवक्खडिया वत्तट्ठा वोच्छिण्णभावें य कप्पंति। दा अगडं व खणेज्जाही आरामं वावि अहव रोवेज्जा। संजयणिमित्त कोई पाणफलाई व दाहंति // 780 // तत्थ वि संजयजोग्गा संजयहा कया ण कप्पंति। अत्तछाए कता पुण कप्पंती तंदुला जह उ // 781 // पुत्तं जणेज्ज कोई आयरिओ मज्झ अपरिवारो त्ति / तेसि सहाओ होहिति पव्वावेउं तु सो कप्पे // 782 // भायणअट्ठा तुंबीओ वावे फलेही य वत्थमातट्ठा। संजयठाए जा सुत्तं आतट्ठ वियम्मि पुण कप्पे 783