________________ कल्प्याकल्प्यविचारः [85] जो वाही णिद्धेणं समुट्टितो तस्स लुक्खकिरिया उ। लुक्खेणमुट्टियस्स तु कायव्वा णिद्धकिरिया तु 766 एसोतु लोइओ खलु पिंडो तू वण्णिओ समासेणं ।दा। लोउत्तरिए पिंडे वणिज्जति पिंडणिज्जुत्ती // 767 / / पिंडे उग्गम उप्पायणेसणा (सं) जोयणा पमाणे य / इंगाल धूम कारण अट्ठविहा पिंडणिज्जुत्ती // 768 // पुढवाईया भेदा वत्तव्व जहकमेण पिंडस्स। गविसणमादीया वि य एसणभेदा य तह चेव // 769 // उग्गममादी दोसा सव्वे य जहकमेण वत्तव्वा / जह भणिय पिंडजुत्तीइ णवरि इमो पूतिए विसेसो।। संचय कोढग दारुय डाए तह गोरसे य लोणे य / लंघणणेहि हिंगू दालिम तह तित्तए चेव // 771 // अगडारामे पुत्ते तुंबे फलही तहेव गाओ य / एतारिसेसमुप्पण्णे गहणं णणु कस्स केरिसयं / / 772 / / भत्तस्स उवक्खेवो गोरसमादी तु संचतो होति। सो संघट्ठा ठवितो भावे अवोच्छिण्णि अगिज्झो 773 अत्तद्विय परिभुत्ते कप्पति भावम्मि ताहि वोच्छिण्णे। कह वोच्छिज्जति भावो सो तू ण अफासुदोसंतु।दा