________________ सारणी प्रव्रज्या [71] आधावेत्ता य ततो घेत्तुं बाहासु दोवि साहूणं / तह विधुताऽणेण दुतं जह संधिविसंधिता सब्वे 640 उत्ताणए महीए पाडेतुं णिग्गतो तु सो तत्तो। उज्जाणं गंतृणं झायति झाणं गुणसमग्गो // 641 // अह ते दटुं णिहते संभंतो परिजणो कहे रणो। रायावि य संभंतो आगंतु णियच्छती ते तु // 642 // पुच्छावइ य जतितो बिंति य णेत्थंम्ह पविसते कोइ / णवरिको पाहुणओ आगतोण तं तु जाणामो // 643 // ताहे उज्जाणादिसु रंण्णा गवेसाविओ य दिट्ठो य। गतृण लयं राया चलणसुणिवडिओ जतिणो // 644 // घेई य जमिनमेहिं अवरद्धं तं खमाहिसी भंते ! / जंपति साधू जदि णिक्खभात मोक्खामि तो गवरिं॥ सण्णाओ अवरेहिं एस कुमारस्स मातुलो सो उ / बहुसो णिबंधकते पडिवण्णो जाहे ते दोऽवि // 646 // ताहे गंतूण तहिं दोण्णिवि धेतूण तेण बाहासु। तह णं खलंखलीकत जह संधी सिं पुणो लग्गा 647 णिक्खामेउं दोणि वि सूरिसगासं णीणिया तेणं। चिंतेइ रायतणओ साधुकतं मातुलेण ममं // 648 //