________________ सम्भोगकल्पः [211] आहारउवहिपूजादिकारणा ण तु परूवितं तित्थं / णाणचरणाण अट्ठा नित्यं देसिति तित्थकरा 1893 तित्थं चउहा संघो तस्स य देसेंति णाणमादीणि। तित्वमरणामगोत्तम्स खयट्ठा अवि ग सामव्या 1894 जाण चरण गुणकारगाणे आहार उहिमादीण / एतेण अणुण्णाना तहिं ठिताणं तु तो पूजा // 1895 // एसो उवहीकप्पो वणियओ वित्थरं पभोत्तणं / संभोगकप्पमेत्तो वोच्छामि अहं समासेणं // 1896 / / पुठवभणितो विभागो संभोगविहीय दोहिं ठाणेहिं / दोसु वि पसंगदोसा सेसे अतिरेगपण्णवए // 1897 / / दसविह सत्तविहेहिं पुव्वुत्तेतेहिं दोहिं ठाणेहिं / दोसु वि पसंगदोसा ण मुंजए अण्णसंभोई॥१८९८॥ जम्हा तु ण णज्जंती उग्गममादी उ जे भवे दोसा। एतेण अपरिभोगो अमणुण्णे होति बोधव्वो 1899 जं तत्थ ण पत्तं तू तमहं वोच्छामि एतमतिरेगं / जे तु गुणा संभोगे ते वण्णेऽहं समासेणं // 1900 // अणुकंपा संगहे चेव लाभालाभऽवि दाहया / दावहवे य गेलन्ने कंतारे अंचिए गुरू // 1901 //