________________ [98] पञ्चकल्प-भाष्ये अहवा महद्धणाइं खित्ते काले य अचित्तं जंतु। भावे जहा गिलाणो भुंजे अगिलाण तह चेव // 883 // पुरिसे असहू तु जहा सह वि परिभुंजते तहा उवहीं / रायादी पव्वइओ अहवा पुरिसो हवेज्जाही / दा 884 अहवा गारवमुच्छा अचियत्ततिरित्त बाउसत्तं च : पंचेते उवहिम्मी समणेण सया ण कायव्वा / दा 885 जोगमकाउमहागडे जो गेण्हति अप्पसपरिकम्म वा। अहवा अमग्गिऊणं अप्पं गिण्हं सपरिकम्मं // 883 // अप्पडिलेहिय गारवमुच्छविभूसा य होति मत्तमए / अचियत्ते मा मे कोवी किव्वतुत्ती होति अट्ठमए / दा। पण्णरसुग्गमदोसा अज्झोयर भीसजायमेगंतु। दा। उपायण सोलसगं एसणदोसा य दसगं तु / दा 888 संजोयणा पमाणे इंगाले चेव होति धूमे य / चत्तारि एकगा खलु एते ते होंति गायव्वा / दा 882 बारस ठाण इमे खलु वेदणमादी तु होति छ हाणा आयंकादी छच्चिय अधरण धरणा य उवघातो। दा॥८९०॥ वेयणवेयावच्चे इरियडाए य संजमठाए। तह पाणवत्तियाए छटुं पुण धम्मचिंताए // 891 / / आयंके उवसग्गे तितिक्खता बंभचेरगुत्तीसु / पाणदयातवहेउं सरीरवोच्छेयणट्टाए // 892