________________ पण्डकदीक्षायां प्रायश्चित्तम् [35] उवहय उवगरणम्मी एवं होज्जा णपुंसवेदो हु। दोसा सवेदुदिण्णं धारेतु णचाइ णायमिणं // 316 // जह पढमपाउसम्मी गोणो धातो तु हरियगतणस्स / अणुसज्जति कोटिंबिं वावणं दुब्भिगंधीयं // 31 // एवं तु केइ पुरिसा भानूणं भोयणं पतिविसिझें। ताव ण भवति तुट्ठा जाव ण पडिसेविओ वेदो 318 लक्खणदूसियउवघायपंडगं तिविहमेव जो दिक्खे / पच्छित्त तिसुवि मूलं दोसा तहियं इमे होंति // 319 तरुणादीहिं सह गओ चरित्तसंभेदिणी करे विकहा। इथिकहाउ कहित्ता तो सि यऽवण्णं पगासेइ 320 समलं साविलगंधिखेदो य ण ताणि आसए होति। सागारियं णिरिक्खेइ मलेत्तु हत्थेहिं जिग्घइ य 321 पुच्छति सेवियपुवो णसगो णवित्ति अतिसुहं एवं / आसयपोसे य तहा दुविहवि सेवी अहं चेव // 322 // एवं पुच्छित्तु तओ अहवावि अपुच्छिऊण सहसेवे / गणेहज्जा ही समणं तेण कहेयव्यतो गुरूणं // 323 // छदिय कहिय गुरूणं जोण कहेति कहिएऽविय उवेहं। परपक्ख सपक्खे वा जं काहिति सो तमावज्जे 324