________________ [36] पञ्चकल्प-भाष्ये सो समणसुविहिएहिं पवियारं कत्थती अलभमाणो। तो सेवितुं पवत्तो गिहिणोतह अण्णतित्थी य 325 अजसो य अकित्ती या तं मूलागं तहिं पवरणस्स / तेसिपि होति संका सव्वे एतारिसा मण्णे // 326 // एरिससेवी एतारिसा वी एतारिसो चरतिसदा / सो एसो णवि अण्णों अस्संखडघोडमादीहिं // 327 // जम्हा एते दोसा तम्हा णवि दिक्खणिज्जो पंडो उ। एसो पंडोऽभिहिओ एत्तो किलियं पवक्खानि // 328 क्रिलियस्स गोण्ण णामं तदभिप्पाओ कलिज्जए जस्स सागारियं से गलती किलिवोत्ती भण्णती तम्हा 329 सो हू णिरुन्भमाणो कम्मुदएणं तु जायए तइओ। तम्मिवि सो चेव गमो पच्छित्तं चेवजह पंडे // 330 // उदएण वातियस्सा सविगारं जाण होती संपत्ती। तचणिय असंबुडिते दिळंतो तत्धिमो होति / / 331 // णावारूढो तच्चण्णितो तु दटुं असंवुड पगारि / ओवतिओ पुरिसेहिं ज्झांडन्ति शारिज्जमायोचि 332 एसोऽवि वातिगो हु अल अंतो सेवितुं अणा। कालंतरेण सोऽविहु णपुंसगत्तेण परिणति 333 //