________________ कुम्भीनपुंसकनिरूपणम् [37 ] दुविहीय होति कुंभी जातीकुंभी य वेदकुंभी य / जातीकुंभी वायंडिओ हु सो भइय दिक्खाए // 334 // होइ पुण बंदकुंभी असवओ सुज्जते स सागरियं / सोऽवि य णिरुद्भवत्थी णपुंसगत्ताए परिणमति 335 वेउक्कडना ईसालगो हु संविज्जमाण दट्टणं / ण चएती बारेउ णिरुभमाणो भवे ततिओ // 336 // सउणी उ डओ चडउच्व अभिक्ख सेवए जो उ। सोवि य णिरुद्धवत्थी णपुंसगत्ताए परिणमति 337 तकमसेवि जो खलु सेविय त चेव लिहति साणो व्द / सोविय अपडियरलो णपुंसगत्ताए परिणभत्ति 338 एगे पक्ख चुदओ एगे पक्खम्मि जस्स अप्पो उ। सो पक्खपक्खिओ हू सोऽवि णिरुद्धो भवे अपुमं // सागारियर गंधं जिंघान सागंधिओ भवेस खलु। फालं नरेण तोऽवि अलभतो परिणमे अपुमं // 340 // विग्गहअणुप्पवेसिय अच्छति सागारियसि आसित्तो ण य से भावो समो अलभंतो सोवि अपुभ भवे / गालियदोसा भाऊगा जस्स हु सो वद्धिओ मुणेयव्यो। चिप्पियबालस्सेव तु चिप्पित्तु विराहिता जस्स 342