________________ शिष्याणामनुशास्तिः [ 157] सुस्सूसगा गुरूणं चेइयभत्ता य विणयजुत्ता य / सज्झाए आउत्ता साहूण य वच्छला णिचं // 1409 // एस अखंडियसीलो बहुस्सुतो य अपरोवतावी य / चरणगुणसुट्टिय त्ति य धण्णाणयरीति घोसणगं // बाढं ति भाणिऊणं एवं णे मंगलं ति जंपंता / आणंदअंसुपादं मुंचंति गुणे सरंता से // 1411 // कतरे गुणा उ तस्सा जे सुसरंतेसु तस्स ते सीसा // भण्णति इणमो सुणसू ते भण्णंते समासेणं // 1412 // सव्वस्स दायगाणं समसुहदुक्खाण णिप्पकंपाणं। दुक्खं खु विसहिउं जे चिरप्पवासो गुरूणं तु 1413 सीलड्ढ गुणड्ढेहि य बहुस्सुएहि य अपरोवतावीहि / पवसंतेहिं मएहिं य देसा ते खंडिया होंति // 1414 // अणुसटिं दाऊणं ताहे पसंत्थम्मि तिहिमुहुत्तम्मि / अहसन्निहितं संघं असतिगणं तं समाहूय // 1415 // जिणवरपादसमीवे पडिवजे गणहराण व समीवे / चोदसपुग्वे तह चेतिए य असती य वडमादी 1416 थामावहारविजढा काउं गहणं व गाहणं चेव / मुत्तत्थझरियसारा गेण्हंति अभिग्गहे धीरा // 1417 //