________________ [156] पञ्चकल्प-भाष्ये एसा गणहरमेरा आयारत्थाण वण्णिता सुत्ते / " लोगसुहाणुगताणं अप्पच्छंदा जहिच्छाए // 1400 // लोयसुहं सद्दादी विसया तेसिं तु जे भवे रत्ता। अप्पच्छंदा ते ऊ विहारो ते सऽणुण्णातो // 1401 // उग्गमउप्पायण-एसणाउ चरित्तस्स रक्खणट्ठाए / पिंडं उवहिं सेज्जं सोहेंतों होति सचरित्ती / / 1402 // सीतावेति विहारं सुहसीलत्तेण जो अबुद्धीओ। सो णवरिं लिंगसारो संजमसारम्मि णिस्सारो 1403 तित्थगरोचउणाणी सुरमहितो सिज्झियव्वय धुवम्मि अणिगृहियबलवीरिओ तवोवहाणम्मि उज्जमति॥ किं पुण अवसेसेहिं दुक्खक्खयकारणा सुविहिएहिं। होति ण उज्जमियव्वं सपचवायम्मि माणुस्से ? 1405 संखित्ता विव पवहे जह वड्ढति वित्थरेण पवहंती। उदधिं तेणं च णदी तह सीलगुणेहि वड्ढाहि 1406 // कुणमप्पमाय आवस्सएहिं संजमतवोवहाणेहिं / णिस्सारं माणुस्सं दुल्लभलाभं वियाणित्ता // 1407 // तिव्वकसायपरिणता परपरिवादं च मा करेज्जाहं / अचासायणविरता होह सदा संजमरता य // 1408 //