________________ [148] पञ्चकल्प-भाष्ये परियाव महादुक्खे मुच्छामुच्छे य किच्छपाणे य। किच्छुस्सासे य तहा समोहते चेव कालगते // 1330 // चत्तारि छच्च लहु गुरु छेदो मूलं च होति बोधव्वं। अणवठ्ठप्पे य तहा पावति पारंचियं ठाणं // 1331 // परियाग परिस पुरिसं खेत्तं कालागमं च णातूणं / कारणजाते जाते कितिकम्मं होति कातव्वं // 1332 // दसण णाण चरित्तं तव विणयं जत्थ जित्तियं जाणे। जिणपण्णत्तं भत्तीय पूअए तं तहाभावं // 1333 // सावज्जजोगविरति त्ति संजमो तेण होति एगविहो। रागद्दोस निरोहो त्ति तेण दुविहो मुणेयव्वो // 1334 // मणवयकायजोगाण णिरोहो तेण होति तिविहो तु। कोहमाणमायलोभुवरतो त्ति चउहा मुणेयव्वो॥ पंचवत इंदियाणि य ते पंचह रातिविरति छकाया। वत-काय-अकप्पादी अट्ठारसहा मुणेयवो // 1336 // जोगे करणे सन्ना इंदिय भोम्मादि समणधम्मे य / अट्ठारससीलंगसदस्त संजमो होइ णायब्यो।।१३३७॥ कितिकम्मं पि य दुविहं अन्भुट्ठाणं तहेव वंदणयं / समणेहि य समणीहि य जहकम होति कायव्वं //