________________ वैयावृत्त्यस्य षट् स्थानानि [167 ] आहार उवहिमत्तग अहिगरण विओसणा य सुयसहाए / संजोगविहिविभत्ता वेयावच्चे विछट्ठाणा 1499 वास उडु अहालंदे पुहुत्तसाहाराणोग्गहित्तिरिए / बुड्ढावासोसरणे छट्ठाणा होति पविभत्ता // 1500 // परियट्टणाणुओगे वागरणे पडिपुच्छणा य आलोए। मंजोगविहिविभत्ता सण्णिसेज्जाए छट्ठाणा // 1501 // वादो जप्पवितंडा पयणियाऽणीच्छिया कहा होति। संजोगविहिविभत्ता कहापबंधे य छट्ठाणा // 1502 // रागणं दोसेणं अण्णाणमविरईयमिच्छत्ते। कोमामालोआसवदारेहिं तू रातीभोयण छ?हिं॥ अविरयस्स बावत्तरिविहो। एसा बावत्तरी दोहिं गुणिता रागद्दोसेहिं चोयालंसतं / अण्णाणातीहिं // 216 / / कोहादीहिं / / 288 // आसवदारेहिं / / 360 // रातीभोयणछठेहिं // 432 // बारस य चउव्वीसा छत्तीसा य अडयालमेव सट्ठीय। बावत्तरीउ एसो संजोयविही मुणेयव्वो // 1504 // बारस य चउव्वीसा छत्तीसऽडयालमेव सट्ठीय। बावत्तरी विगुणिता चोयालसतंतु संजोगा // 1505 / /