________________ पृच्छाकल्पः [139] लीहालटुगमादी जो य पढंतो ण करेंति वक्खेवं / अव्वक्खित्तो एसो आउत्तो अणण्णमणसो उ। दारं / / आहारादीकाले कालण्णू होति उवणयंतो उ (दारं)। मुत्तत्थे गिण्हंतो कुण (इ) अंजलि पंजलिकडो उ // संविग्गा दवे मिगो भावे मूलुत्तरेसु तु जयंतो (दार) मद्दविओ जो अमाणी (दारं) अमुई विसमत्तणे वि जो ण मुए। दारं // 1248 // आगारइंगितेहिं जाउं हियइच्छितं उवविहेति / गुरुवयणं चऽणुलोमे एसो अणुवत्तओ णामं / दारं // जाणति तु जो विसेसं हिताहितादीण सो विसेसगणू। णवि होति णिव्विसेसो समचंदणलोट्टचिक्खल्लो। दारं / // 1250 // उज्जुत्ता उ अणलसो (दार) अपरितंतो तु थूलभद्द इव ( दारं ) / सुत्तत्थणिज्जराओ मोक्खो वा इच्छियत्थो तु (दारं)॥१२५१॥ पुच्छणकप्पो अहुणा जाति पुच्छेज्ज संकियादि तु। ताति भण्णति इणमो अहक्कम आणुपुवीए // 1252 // पदमक्खरमुद्देसं संधी सुत्तत्थतदुभयं चेव / घोस णिकाइत ईहित सुविमग्गितहेतुसम्भावं 1253