________________ कृतिकर्म [145] मुइए मुद्धभिसित्ते मुदितो जो होति जोणिसिद्धो तु। अभिलित्तो य परेहिं सयं व भरहो जहा राया 1301 ईसरतलवरमाडंबिएहिं सेट्ठीहि सत्यवाहेहिं / णितेहिं अतितेहि य वाघातो होति साहुस्स // 1302 // लोभे एसणघाते संका तेणे चरित्तभेदे य / इच्छंतमणिच्छंते चाउम्मासा भवे गुरुगा // 1303 // अण्णे वि होंति दोसा आइण्णे गुम्मरयण इत्थीओ। तणिस्साए पवेसो तिरिक्खमणुया भवे दुट्ठा 1304 दुविहे गेलन्नम्मि विणिमंतणा दव्वदुल्लभे असिवे / ओमोदरिय पओसे भए य गहणं अणुण्णातं (दारं)॥ पढमं अब्भुट्ठाणं कितिकम्मं अजसेवियमुदारं / कायव्वं कस्स व कण वावि काहे व कतिखुत्तो 1306 विणओ सासणे मूलं / गाहा (आ०१२२८) // 1307 // जम्हा विणयति कम्मं / गाहा (आ०१२२९) / / 1308 // पुवामेव या विणओ / गाहा // 1309 // आयारावणयकप्प गुणदीवणा अत्तसोहि उज्जुभावो अजव मद्दव लाघव तुट्ठी पल्हायकरणं च // 1310 //