________________ [20] पञ्चकल्प-भाष्ये खेत्ताणि य हायंती विहारजोग्गाइं तदणुभावेणं / दा. दुब्भिक्खपउरकालो तेणऽणुभावेण मणुयाणं 169 लद्धी उग्गहणम्मि संघयणं धारणा य परिहाति / ण य सीसायरियाणं सत्ती वत्तुं व सोतुं वा // 170 // ण य संति बहू गुरुवो जे वत्तारो य हुंति अत्थस्स / तेवि ण सव्वस्स लहुं पसादसुमुदा भवंती तु। दा॥ इयाणि परिहाणिं जं एगपदे वि एगमत्थपदं / बहु मंतव्वं तंपि हु किं पुण संतेसुऽणेगेसु // 172 // तो ण पमाएयव्वं ण य भत्ती तू तहिं ण कायव्वा / सुठुतरं उज्जोगो कायव्वो तम्मि चित्तव्वे // 17 // सो पुण पंच विकप्पो कप्पो इह वण्णिओ समासेणं / वित्थरतो पुवगतो तस्स इमे हाँति भेदा तु // 174 // छविह सत्तविहे या दसविह वीसतिविहे य बायाले। जस्स तु नत्थि विभागो सुव्वत्त जलधकारो से 175 विभयण विभागो भण्णति जहरिसो छव्विहो य सत्तविहो / णामादिविभागोवा जस्सेसोण विदितो होति सुव्वत्त सुटु वत्तं तस्स निबुड्डस्स वा जलमगाहे / होती सचक्खुयस्स वि जहंधकारो मणुस्सस्स // 177 // अहवा जलंधकारो मेहोछइयम्मि होति गगणम्मि / अहवा जलंधकारो जत्थादिच्चो ण दीसति तु // 178 //