________________ मुण्डापनम् [77] जम्मं सड्ढकुलेसू स वढितो गोण्णणाम कत केसी। एसा तु अजणकण्णी पव्वज्जा होति णायव्वा / दा॥ बहुजणसम्मतियाए णिक्खमणं होति जंबुणामस्सादा अक्खायाए जंबू धम्मं अक्खादि पभवस्स // 695 // संगार मल्लिणाते सत्त णिवा कासि जह उ संगारं। दा वेयाकरणे सोमिलपुच्छा जह वाकरे भगव / दा 696 सयबुद्धा तित्थगरा दा सोलसहा एस होति पव्वज्जा। पुच्छा परिसुद्धम्मि तु अब्भुवगत होनि पव्वज्जा 697 गोयरमचित्तभायण सज्झायमण्हाण भूमि सिज्जाती। अब्भुवगयम्मि दिक्खा दवादीसुं पसत्येसुं / दा लग्गादिसुत्तरंते अणुकूल दिज्जते अहाजात / सयमेव तु थिरहत्थो गुरू जहण्णण तिण्हऽट्टा // 699 // अन्नो वा थिरहत्थो सामाइग तिगुण अगहण च / तिगुणं पादक्खिण्णं णित्थारग गुरुगुण वुड्ढी / मुंडावण गतं / दा // 700 / फासुय आहारो से अणहिंडतं च गाहए सिक्ख। ताहेव उवट्ठवणं छज्जीवणियं तु पत्तस्स // 701 // अप्पत्ते अकहेत्ता अणभिगय परिच्छ अतिकमे पासे। एकेके चउगुरुगा विसेसिया आदिमा चउरो / / 702 //