________________ [5.] पञ्चकल्प-भाष्य दुविहो य होति दुट्ठो कसायदुट्ठो य विसयदुट्ठो य दुविहो कसायदुट्ठो सपक्ख परपक्ख चउभंगो 451 सासवणाले मुहणंतए य उलुगच्छि सिहरिणि सपक्खे सासवणाल सुसंभिय एगेण गुरूणमुवणीयं // 422 // सव्वं गुरुणा खइयं इयरे कोवो य खामणे गुरुणा / अणुवसमंते उ गणे गणिं ठवेत्ताऽन्नहिं परिन्ना / / 453 / पुच्छंतमणक्खाए सोव्वण्णतो गंतु कत्थ से देहं / गुरुणो पुव्वं कहिते दाइ य पडियरण दंतवहो // 404 / मुहणंतगस्स गहणे एमेव य गंतु णिसि गलग्गहणं संमूढेणियरण वि गलए गहितो मया दो वि // 427 // अत्थं गते वि सिव्वसि उलगच्छी उक्खणामि तुह अच्छी। पढमगमो नवरि इहं उलुगच्छीउ त्ति ढोके / सिहरिणि लद्ध णिवेदे गुरुणं सव्वादितं ते उग्गिरणा भत्तपरिणा अण्णहिं ण गच्छती सो इहं णवरि // परपक्खम्मि सपक्खे उदाइणिवमारतो जह पदुट्ठी सो पवयणरक्खट्ठा णिच्छुभति लिंग हातृणं // 428 परपक्खि सपक्खे पुण जउणाराय व्व सोतु भयणिजो तं पुण आतिसयणाणी दिक्खेंतिऽधिगारिणं णाउं 4.6