________________ आर्यापरिवर्तकस्वरूपम् [237] उवदिसिउंण वि याणति सामायारिंतु ठाणमादीयं / अन्जावि जा अगीता ण जाणए सावि तह चेव 2127 अप्पछदिओ लुद्धो परिभूतो य पत्थिओ। बहुलोहमोहसण्णो अजायग्गो दुरणुकड्ढो // 2128 // पाएणमप्पछंदा महग्घदाणेण लोभित अकिच्चं / कुव्वंति छगलिया विव परिभूताओय सव्वस्स।दा.॥ मंसादिपेसिया विव संजतिवग्गो हु पत्थणिज्जो तु। घिजाइयदिट्ठीसुं बहुसुं बहुमोह सन्नाओ // 2130 // मज्जायविप्पहूणे मनायाए य संपउत्तंमि / पडिसेहो अणुण्णा य मग्गधर विलोमता चतुरो 2131 जम्हा तु दुपरियहो अन्जावग्गो उ तेण पडिसेहो / परियट्टणे अजाणं मज्जाया विप्पहूणस्स // 2132 // मज्जायसंपउत्तो अज्जापरियट्टओ अणुण्णाओ। परियट्टए अजोगो उटिए चतुगुरू सोही // 2133 // मग्गधरो आयरिओ सो पुण सिढिलेइ जो तु मज्जातं। तस्वदेसो कीरति मज्जायाए दढो होति // 2134 // उपदेससार पडिसारणा य तेण पर तिण्णि मासलहुं। छंद अवमाणं अप्पलंदं विवजए // 2135 //