________________ [106] पञ्चकल्प-भाष्ये जियपिंडेणं पिंडो अजीवकप्पस्स संगुणो णियमा। मो होति दव्वपिंडो तस्स उ संखा इमा होति // 954 ईयालसतसहस्सा अट्ठावीसं भवे सहस्साई / सत्तसया पंचसहिया ठाणाणं मीसकप्पम्मि // 955 // जियअजियमीसगाणं कप्पाणण्णे वि भंगसंजोगा। पत्तेयमीसगा वि यणेयव्वा आणुपुवीए // 956 // पव्वावेको एक एको अणेगा अणेग एकं च। गेगाणेगे य तहा चउभंगा एव एकेगे // 957 // एवं एक एक्कासि एकमणेगेऽवि एत्थ वि तहेव / चउभंगो णेयवो एकेके छह तु पदाणं // 258 // एकेक्कसि पव्वावे मुडावेक्कं तु एक्कसिं चेव / पत्थ उ दुगसंजोगो चउभंगो होति णायव्वो // 959 // एवं दुततिय-चउपंच-छक्कजोएहिं जत्तिया जे तू। संजोगा भंगाया ते सव्वे होंति णेयव्वा // 16 // पव्वावे मुंडेगं पव्वावगं च मुंडणेगे य! गंगे एक्कं च तहा णेगाणेगे य एमेव // 161 // एभेव लेसगावी दुगतिग-चउपंच--छक्क-संजोगा। बुद्धीएऽणुगंतवा सब्वेवि जहक्कमेणं तु . 1962 //