________________ क्षेत्रकल्पः [107 ] अचित्त विय एवं एक्को एक्कस्स देति आहारं / एवं उवहीमादिसु सव्वेसु वि होंति चउ भंगा 963 दुगमादी संजोगा एत्थंपि तहेव हुंति विण्णेया। एमेवेक्को एक्कसि आहारादीणि देज्जाहि // 964 // एवं दुगमादीया णेया एत्थंपि सव्वसंजोगा। एवं ता अचित्ते मीसेऽवि य बुद्धिए जोए // 965 / / (एक्को पवावेक्कं आहारादी य देति एत्थवि तहेव / संजोगायव्वा जावतिया संभवे तत्थ ) एसोतु दवियकप्पो तिविहोवि समासतो समक्खाओ पत्तो समामतोऽहं वोच्छामी खित्तकप्पं तु // 966 // जं देवलोगसरिसं खित्तं णिप्पच्चवाइयं जं च / एसो तु खेत्तकप्पो देसा खल अद्वछव्वीसं // 967 // रायगिह मगह चंपा अंगा तंह तामलित्ति बंगा य / कंचणपुरं कलिंगा वाणारसि चेव कासी य // 968 // माएय कोसला गजपुरं च कुरु सोरियं कुसहा य / कपिल्लं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव // 969 / / पारवती य सुरट्ठा महिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। णदिपुरं संदिल्ला भद्दिलपुरमेव मलया य // 970 / /